एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 3: अधिनियम के तहत प्रतिबंधित कार्य

Shadab Salim

27 Nov 2022 7:54 AM GMT

  • एनडीपीएस एक्ट, 1985 भाग 3: अधिनियम के तहत प्रतिबंधित कार्य

    एनडीपीएस एक्ट (The Narcotic Drugs And Psychotropic Substances Act,1985) की धारा 8 सबसे महत्वपूर्ण धारा है, कुछ यूं समझ लिया जाए कि इस धारा के लिए ही सारा अधिनियम गढ़ा गया है। इस अधिनियम को बनाने का उद्देश्य नशीले पदार्थ को प्रतिबंधित करना था जो इस धारा 8 में कर दिया गया है। यह धारा इस अधिनियम का मील का पत्थर है।

    इस ही धारा में समस्त उन पदार्थों को प्रतिबिंबित कर दिया गया जिन्हें प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से अधिनियम बनाया गया था। इस धारा में उन प्रतिबंधित पदार्थों का किसी भी तरह से व्यक्ति के पास होना प्रतिबंधित किया गया है। स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 8 पर इस आलेख में अदालती निर्णय के साथ सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    सबसे पहले अधिनियम में प्रस्तुत इस धारा का मूल रूप का अध्ययन करना चाहिए जो इस प्रकार है-

    धारा 8. कुछ संक्रियाओं का प्रतिषेध- कोई व्यक्ति-

    (क) किसी कोका के पौधे की खेती या कोका के पौधे के किसी भाग का संग्रह; या

    (ख) अफीम पोस्त या किसी कैनेबिस के पौधे की खेती; या

    (ग) किसी स्वापक औषधि या मनःप्रभावी पदार्थ का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, विक्रय, क्रय, परिवहन, भांडागारण, उपयोग, उपभोग, अंतरराज्य आयात, अंतरराज्य निर्यात, भारत में आयात, भारत से बाहर निर्यात या यानांतरण, चिकित्सीय या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिए और इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों या निकाले गए आदेशों के उपबंधों द्वारा उपबंधित रीति से और विस्तार तक ही और ऐसी किसी दशा में जहां ऐसे किसी उपबंध में अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा पत्र, या प्राधिकार के रूप में कोई अपेक्षा अधिरोपित की गई है वहां ऐसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञा पत्र या प्राधिकार के निबंधनों और शर्तों के अनुसार भी करेगा अन्यथा नहीं :

    परन्तु इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, गांजा के उत्पादन के लिए कैनेबिस के पौधे की खेती या चिकित्सीय और वैज्ञानिक प्रयोजनों से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए गांजा के उत्पादन, कब्जे, उपयोग, उपभोग, क्रय विक्रय, परिवहन, भाण्डागारण, अंतरराज्यिक आयात और अंतरराज्यिक निर्यात के विरुद्ध प्रतिषेध केवल उस तारीख से प्रभावी होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे :

    [परंतु यह और भी कि इस धारा की कोई भी बात अलंकारिक प्रयोजन हेतु पोस्ततृण के निर्यात के लिए प्रयोज्य नहीं होगी।]

    यह धारा स्पष्ट कर देती है कि प्रतिबंधित पदार्थ केवल लाइसेंस होने की स्थिति में ही किसी व्यक्ति के पास होना चाहिए अन्यथा नहीं। एनडीपीएस एक्ट,(संशोधन) अधिनियम, 1989 (1989 का 2) के द्वारा अधिनियम की धारा 8 के अंत में द्वितीय परंतुक अंतःस्थापित किया गया है। यह संशोधन 29.5.1989 से प्रभावी किए गए।

    भांग एनडीपीएस पदार्थ नहीं

    भांग को एनडीपीएस पदार्थ की कोटि में होना नहीं माना गया। परिणामतः भाँग की जप्ती के मामले में अभियुक्त के विरुद्ध अधिनियम की धारा 8 एवं 20 के तहत मामला निर्मित नहीं होगा। यह निर्णय सामिद बनाम स्टेट ऑफ यू.पी., 1995 ए.डब्ल्यू. सी. 741 इलाहाबाद के मामले में दिया गया है।

    भानपूर्वक आधिपत्य

    गोपाल बनाम सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स, 2008 (2) एम.पी.एच.टी. 299 म.प्र के मामले में अभियुक्त का प्रतिषिद्ध वस्तु पर भानपूर्वक आधिपत्य होना नहीं पाया गया। अपराध अप्रमाणित माना गया।

    अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के प्रतिषिद्ध वस्तु पर आधिपत्य होना मात्र पर्याप्त नहीं होगा अपितु इसे भानपूर्वक आधिपत्य होने कोटि में होना चाहिए। निम्न न्याय दृष्टांतों पर निर्भरता व्यक्त की गयी-

    नारकोटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो बनाम मुरलीधर सोनी, 2004 सुप्रीम कोर्ट (क्रिमिनल) 1561 बालकृष्ण नायक बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2001 (1) जे. एन.जे. 90 भंवरलाल बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, 2002 (2) ई.एफ.आर. 340 राजू उर्फ राजमल बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2006 (1) विधि भास्वर 268 (अनिल कुमार बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2007 क्रि. लॉरि. 1 म.प्र.

    जब आधिपत्य को प्रमाणित कर दिया गया हो तो जो व्यक्ति यह दावा करता है कि उसका भानपूर्वक आधिपत्य नहीं था तो उसे यह तथ्य प्रमाणित करना होगा कि वह इसके आधिपत्य में कैसे आया था क्योंकि इसकी विशेष जानकारी उसे ही होगी। अधिनियम की धारा 35 इस स्थिति को एक वैधानिक मान्यता प्रदान करती है क्योंकि विधि में उपधारणा उपलब्ध है। समान तरह की स्थिति अधिनियम की धारा 54 में भी है जो कि प्रतिषेधित वस्तु के आधिपत्य के संबंध में उपधारणा उपलब्ध कराती है, यह निर्णय बूटी बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., आई.एल.आर. 2011 म.प्र. 511 के मामले में दिया गया है।

    गेंदालाल बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 1988 (1) म.प्र.वी.नोट्स. 215 म.प्र. के मामले में अभियोजन के मामले के अनुसार स्टेशन हाउस ऑफिसर जी.आर.पी. इन्दौर को इस आशय की सूचना प्राप्त हुई थी कि एक व्यक्ति अफीम के साथ ट्रेन क्रमांक 69 में यात्रा कर रहा था। इस सूचना को रोजनामचा में दर्ज करना बताया गया था। इस जानकारी के आधार पर असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर अभियोजन साक्षी 1, आरक्षक अभियोजन साक्षी 3, मुख्य आरक्षकगण नटवरलाल व राजबहादुर करे अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए नियुक्त किया गया था। वे कोच क्रमांक 1081 में प्रविष्ट हुए थे और उन्होंने यह पाया था कि सीट क्रमांक 24 पर एक व्यक्ति बैठा हुआ था और वह जानकारी जिस प्रकार की दी गई थी उसका विवरण उससे मिलता था। महू रेलवे स्टेशन पर अभियोजन साक्षी 1. ने अभियुक्त से पूछताछ की थी। उसने यह मंजूर किया था कि ब्रीफकेस में अफीम थी।

    वहां से अभियुक्त को रेलवे सेवक अभियोजन साक्षी 2 एवं अभियोजन साक्षी 4 के साथ जी.आर.पी. पुलिस स्टेशन लाया गया था और समान दिन प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। अभियुक्त के शरीर की तलाशी इन्दौर में की गई थी। उसके आधिपत्य में इन्दौर से सिकन्दराबाद का रेलवे टिकिट होना पाया गया था। उससे ब्रीफकेस भी जब्त किया गया था। इसमें 11 किलोग्राम अफीम होना पाई गई थी। इसमें से नमूने लिए गए थे और तदुपरांत अफीम को सील्ड कर दिया गया था।

    अभियोजन साक्षी 1 की साक्ष्य इस प्रकार की थी कि दिनांक 22.9.1986 को उसे स्टेशन हाउस ऑफिसर के द्वारा यह सूचित किया गया था कि ट्रेन क्रमांक 69 अप में एक लम्बा व्यक्ति ब्रीफकेस में जो कि ब्राउन कलर का था अफीम लेकर जा रहा था। कोच क्रमांक 1081 में उसकी पार्टी के साथ प्रविष्ट होने पर अपीलांट को सीट क्र.24 पर पाया गया था। साक्षी ने बताया था कि उन्हें यह विश्वास हो गया था कि जैसा विवरण दिया गया था उसके अनुसार ही यह व्यक्ति था।

    इस साक्षी ने यह बताया था कि अभियुक्त ब्रीफकेस को उसकी गोदी में रखे हुए था और उसने अभियुक्त को महू ट्रेन पहुंचे इसके पूर्व गिरफ्तार कर लिया था और बाद में जब महू पर उससे पूछताछ की गई थी तो उसने बताया था कि ब्रीफकेस में अफीम है। इस साक्षी ने अन्यथा यह बताया था कि अभियोजन साक्षी 2. एवं अभियोजन साक्षी 4 को तब बुलाया गया था और उनसे अभियुक्त के अफीम के आधिपत्य बाबत् कहा गया था। अभियोजन साक्षी 4 की साक्ष्य इस साक्ष्य की साक्ष्य का समर्थन नहीं करती थी। इस साक्षी का वृतान्त यह था कि वह इन्दौर में था।

    अभियोजन साक्षी 3 आरक्षक ने यह बताया था कि अभियुक्त से पूछताछ किए जाने पर प्रथमतः उसने यह बताया था कि वह बाल वेयरिंग रखे हुए है। अभियोजन साक्षी 1 का इस प्रकार का वृतान्त नहीं था। इसके अलावा उच न्यायालय ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि इस आशय की साक्ष्य थी कि रेलवे के कोच में अनेक व्यक्ति उपस्थित थे परंतु वर्तमान मामले में उनमें से किसी को भी साक्षी के रूप में नहीं बनाया गया था। मामला युक्तियुक्त संदेह से परे प्रमाणित होना नहीं माना गया।

    धर्मेन्द्र कुमार बनाम स्टेट ऑफ एम.पी. 2004 (3) क्राइम्स 500 मध्यप्रदेश के मामले में 500 ग्राम अफीम जप्ती का मामला था। स्टेशन हाउस ऑफिसर के द्वारा स्थल पर नमूना पैकेट तैयार नहीं किया गया था। इसे उसके द्वारा संचालित कार्यवाही में संदेह सृजित करने की परिस्थिति के रूप में माना गया। यह प्रमाणित होना नहीं पाया गया कि स्टेशन हाउस ऑफिसर ने जब्त वस्तु को सील किया था। अधिनियम की धारा 55 में यथा प्रावधानित अनुसार स्टेशन हाउस ऑफिसर ने नमूना प्राप्त नहीं किया था।

    न्याय दृष्टांत मोहम्मद शमीम बनाम स्टेट, 1992 (1) ईएफआर 89 में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि जब मामले की संपत्ति को स्टेशन हाउस ऑफिसर के समक्ष अधिनियम की धारा 55 के अधीन यथा अपेक्षित इसे सील करने के लिए प्रस्तुत न किया गया हो तो अधिनियम के आदेशात्मक प्रावधान का अपालन होना माना जाएगा। वर्तमान मामले के तथ्य यह थे कि नमूने को स्टेशन हाउस ऑफिसर के समक्ष नहीं निकाला गया था। जब्त वस्तु को स्टेशन हाउस ऑफिसर के द्वारा प्राप्त नहीं किया गया था। तहसीलदार ने उसके कार्यालय में जप्त मद से 2 नमूने बनाए थे।

    इस प्रक्रिया को अधिनियम की धारा 55 के प्रावधान के उल्लंघन में होना माना गया। अधिनियम की धारा 55 यह प्रावधानित करती है कि नमूने को स्टेशन हाउस ऑफिसर के समक्ष निकाला जाना चाहिए और जप्ती प्राधिकारी के द्वारा उसकी उपस्थिति में नमूना निकालने के उपरांत स्टेशन हाउस ऑफिसर के द्वारा नमूने पर सील अंकित की जानी चाहिए। अधिनियम की धारा 55 के प्रावधानों का अपालन अभियोजन के भाग पर अत्याधिक गंभीर लचरता मानी गई। अधिनियम की धारा 55 के प्रावधान के पालन के आधार पर अभियुक्त को संदेह का लाभ पाने की पात्रता मानी गई।

    अफीम का मामला था। महिला अभियुक्त थी। जिस घर से अफीम की बरामदगी हुई थी वह घर मात्र महिला अभियुक्त के आधिपत्य में नहीं था अपितु इस घर पर महिला अभियुक्त के ससुर, वयस्क पुत्र व 2 लड़कियों का आधिपत्य भी था। प्रतिषिद्ध वस्तु पर महिला अभियुक्त का भानपूर्वक आधिपत्य होने के तथ्य को प्रमाणित नहीं किया गया। परिणामतः अपराध अप्रमाणित माना गया। यह मामला जुबेदा खातून बनाम असिस्टेंट कलेक्टर ऑफ कस्टम्स, 1991 क्रि. लॉज. 1392 का है।

    इस ही तरह भगवानसिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2002 (3) क्राइम्स 498 राजस्थान के मामले में अफीम का मामला था। जिस भवन से अभिकथित अफीम जब्त होना बताया गया था उस पर अभियुक्त का ही अनन्य आधिपत्य था ऐसा प्रमाणित होना नहीं पाया गया था। यह भवन अभियुक्त व उसकी आंट (Aunt) के संयुक्त आधिपत्य में था इन परिस्थितियों में दोषसिद्ध किए जाने से अनिच्छा व्यक्त की गई।

    भगवानसिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2002 (3) क्राइम्स 498 राजस्थान के मामले में अभियोजन साक्ष्य विश्वसनीय मानी गई। नमूनों को रासायनिक परीक्षण के लिए भेजा गया था। हालांकि जिस पुलिस आरक्षक के माध्यम से इसे भेजा गया था उसका मामले में परीक्षण नहीं हुआ था। रासायनिक परीक्षक की रिपोर्ट के आधार पर प्रतिषिद्ध वस्तु अफीम होना पाई गई थी। अभियुक्त के आधिपत्य से 2 किलो अफीम जब्त होने का मामला संतोषप्रद साक्ष्य से प्रमाणित होना माना गया। अभियुक्त ने इस अफीम को उसकी लंगोट में छुपा रखा था। अभियुक्त को दोषी माना गया।

    गोरधनसिंह बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान, 2006 (1) क्राइम्स 808 राजस्थान के मामले में अभियुक्त के पास अफीम की खेती का लायसेंस था। दैनिक वजन रजिस्टर में दिनांक 6.3.1999 से दिनांक 23.3.1999 की अवधि के दौरान होने वाले उत्पाद को इस रजिस्टर में लिखा गया था। इस पर अभियुक्त व अफीम लम्बरदार के हस्ताक्षर थे। अभियुक्त मात्र 5.500 किलोग्राम पदार्थ लाया था जो कि प्रारंभिक वजन रजिस्टर के अनुसार 6.250 किलोग्राम कम मात्रा में थी। कथित अवधि के दौरान का वजन 11.750 किलोग्राम था।

    अन्वेषण में अभियुक्त से 3.807 किलोग्राम अफीम बरामद होना बताया गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अधिनियम की धारा 8/18 एवं 19 के तहत अभियोजन किया गया था। रजिस्टर की प्रविष्टि का मूल्यांकन किया गया। अफीम लम्बरदार अभियोजन साक्षी 3 का कथन वर्तमान मामले में अत्याधिक महत्वपूर्ण माना गया। उसने प्रतिपरीक्षण में यह मंजूर किया था कि रजिस्टर पर लिखा गया वजन कृषक के द्वारा मौखिक बताए जाने पर आधारित था। उसने अन्यथा यह मंजूर किया था कि उसने रजिस्टर में कोई वजन नहीं लिखा था अपितु उसका पुत्र इसे लिखा करता था अभियोजन साक्षी 3 के द्वारा दिए गए कथन से यह स्पष्ट दर्शित होना पाया गया कि उसके द्वारा मेन्टेन किए जाने वाले रजिस्टर में होने वाली प्रविष्टियाँ प्रमाणित स्वरुप की नहीं थीं।

    उन्हें कल्पनात्मक परीक्षण के आधार पर अथवा कृषक के रिप्रजेंटेशन के आधार पर किया गया था। कृषकों के द्वारा लाई जाने वाली अफीम के वजन करने के लिए लम्बरदार को कोई स्केल प्रावधानित नहीं की गई थी न ही अभियुक्त के आधिपत्य में कोई स्केल थी। इस प्रकार यह स्पष्ट होना पाया गया कि रजिस्टर में की गई सभी प्रविष्टियाँ प्राक्कलित थीं और इसलिए इन पर निर्भरता व्यक्त नहीं की जा सकती उन्हें कल्पनात्मक आधार पर किया गया था। अभियुक्त के विरुद्ध अपराध प्रमाणित नहीं माना गया।

    अल्प मात्रा में गांजा जप्त

    मुन्ना बनाम स्टेट ऑफ एम.पी., 2004 (1) के मामले में विचारण न्यायालय ने अभियुक्त को अधिनियम की धारा 8/20ख (1) के तहत दोषी माना था। अभियुक्त पर 5 वर्ष का सश्रम निरोध व 50,000 रुपए जुर्माना अधिरोपित किया गया था। उच्च न्यायालय ने मामले में दंडादेश के बिन्दु पर इस आधार पर नरमी बरती कि अभियुक्त से अल्प मात्रा में ही गाँजा जप्त हुआ था । परिणामतः दंडादेश को घटाकर 1 वर्ष के निरोध व 10,000 रुपए जुर्माने के रुप में कर दिया गया।

    रामावतार बनाम स्टेट, 2011 क्रिलॉज 69 राजस्थान के मामले में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त को अधिनियम की धारा 8/20 (ख) (2) (ग) के अंतर्गत दोषसिद्ध किया था उस पर 10 वर्ष का सश्रम निरोध व 1 लाख रुपए जुर्माना अधिरोपित किया था। जुर्माना भुगतान करने में चूक करने पर 2 वर्ष 6 माह का अन्यथा सश्रम निरोध भुगतना था। अधिनियम की धारा 8/20 (ख) (2) (क) के अंतर्गत 6 माह के सश्रम निरोध का दण्डादेश दिया गया था। दोनों दण्डादेश साथ-साथ चलने का आदेश दिया गया था। दोषसिद्धि से व्यथित होकर अपील की गई थी। अपील में हाई कोर्ट ने ने यह मत दिया कि अभियोजन के द्वारा 1985 के अधिनियम के प्रावधानों का पालन किया था और युक्तियुक्त संदेह से परे मामला प्रमाणित किया था।

    विद्वान विचारण न्यायालय ने प्रत्येक परिस्थिति पर विचार किया था व अभियोजन के द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य पर भी विचार किया था। हालांकि एक महत्वपूर्ण अवधारणा जो कि अंकित किए जाने की अपेक्षा करती है। यह इस प्रकार बताई गई कि अभियोजन स्वयं का यह कहना था कि प्रतिषिद्ध जप्त चरस जो कि बैग से जप्त हुआ था उसका कुल वजन 1 किलोग्राम था। कथित वजन में बारदाना (पैकिंग मटेरियल) का वजन भी शामिल था। ऐसी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता था कि वर्तमान मामले में अंतर्ग्रस्त मात्रा व्यवसायिक मात्रा थी क्योंकि टेबल की प्रविष्टि क्रमांक 3 में जो मात्रा दी गई है उसके अनुसार अल्प मात्रा 100 ग्राम थी एवं व्यवसायिक मात्रा 1 किलोग्राम थी।

    स्वीकृत तौर पर अभियोजन के द्वारा बारदाना (पैकिंग मटेरियल) समेत 1 किलोग्राम वजन होना पाया गया था। इसलिए यह अखण्डनीय निष्कर्ष निकलता था कि प्रतिषिद्ध वस्तु का कुल वजन 1 किलोग्राम से कम था और इस प्रकार यह अल्प एवं व्यवसायिक मात्रा के मध्य आती थी। परिणामस्वरुप वर्तमान मामला 1985 के अधिनियम की धारा 20(ग) के प्रावधान के तहत आने वाला नहीं माना गया।

    वर्तमान मामले में 1985 के अधिनियम की धारा 20 के खण्ड (ख) के प्रावधान आकर्षित होना माने गए। अतः यह माना गया कि न्याय के उद्देश्य की पूर्ति हो जाएगी यदि अभियुक्त को 7 वर्ष के सक्षम निरोध की अवधि के लिए दण्डादिष्ट किया जाता है। परिणामतः मामले में दोनों अपीलों को आंशिक तौर पर स्वीकार किया गया सभी अपीलांट्स की दोषसिद्धि को अधिनियम की धारा 8/20 (ख) के अंतर्गत कर दिया गया और सज़ा को कम कर दिया गया।

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