भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 501 से 503: आपराधिक मामलों में आपत्तिजनक वस्तुओं के विनाश, अचल संपत्ति की पुनः प्राप्ति और पुलिस द्वारा जब्त संपत्ति के निपटान की प्रक्रिया
Himanshu Mishra
6 Jun 2025 5:20 PM IST

आपराधिक न्याय प्रणाली केवल अपराधी को दंडित करने तक सीमित नहीं होती, बल्कि अपराध से जुड़ी हुई वस्तुओं, संपत्तियों और पीड़ितों के अधिकारों की भी रक्षा करती है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में धाराएं 501 से 503 तक शामिल की गई हैं।
ये धाराएं विशेष रूप से न्यायालय द्वारा आपत्तिजनक सामग्री के नष्ट करने, अचल संपत्ति के कब्जे की पुनः प्राप्ति और पुलिस द्वारा जब्त की गई संपत्ति के सुरक्षित निपटान से संबंधित हैं। नीचे हम इन तीनों धाराओं की सरल हिंदी में विस्तृत व्याख्या करेंगे।
धारा 501: मानहानिकारक (Libellous) और अन्य आपत्तिजनक वस्तुओं का विनाश
यह धारा न्यायालय को यह अधिकार प्रदान करती है कि जब किसी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता, 2023 (अब Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 294, 295 या धारा 356 की उपधारा (3) और (4) के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है, तब वह न्यायालय उस वस्तु की सभी प्रतियों को नष्ट करने का आदेश दे सकता है जो अपराध का कारण बनी हो।
यह आदेश केवल उन्हीं प्रतियों पर लागू होता है जो न्यायालय की अभिरक्षा में हों या अब भी उस दोषी व्यक्ति के अधिकार या कब्जे में हों। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपत्तिजनक, मानहानिकारक, धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली या अश्लील सामग्री समाज में दोबारा प्रसारित न हो सके।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति धार्मिक पुस्तक की नकली और अपमानजनक प्रतियां बनाकर बाँटता है और उसे धारा 295 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है, तो न्यायालय उन सभी प्रतियों को जो आरोपी के पास हैं या न्यायालय की अभिरक्षा में हैं, नष्ट करने का आदेश दे सकता है।
इसी प्रकार, न्यायालय धारा 274, 275, 276 या 277 के अंतर्गत दोषसिद्धि की स्थिति में भी ऐसा आदेश दे सकता है। इन धाराओं का संबंध मिलावटी खाद्य पदार्थों, पेय, औषधियों या चिकित्सा तैयारी से होता है। यदि ऐसे पदार्थों के कारण दोषसिद्धि हुई हो, तो न्यायालय उनके विनाश का आदेश दे सकता है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति मिलावटी दूध बेचता है और धारा 274 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है, तो न्यायालय उस दूध को नष्ट करने का आदेश दे सकता है ताकि कोई अन्य व्यक्ति उसके सेवन से बीमार न हो।
धारा 502: अचल संपत्ति (Immovable Property) के कब्जे की पुनः बहाली
यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है जिनमें किसी व्यक्ति को जबरन बल प्रयोग, धमकी या डराने के माध्यम से उसकी अचल संपत्ति (जैसे – जमीन, मकान, खेत आदि) से बेदखल कर दिया गया हो और दोषी व्यक्ति को इसके लिए सजा दी गई हो।
यदि किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि पीड़ित को उसका कब्जा पुनः सौंपा जाए। आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय बल प्रयोग द्वारा वर्तमान में कब्जाधारी व्यक्ति को वहां से हटा सकता है।
प्रावधान का समय-सीमा
इस धारा की एक महत्वपूर्ण शर्त यह है कि ऐसा आदेश केवल दोषसिद्धि के एक महीने के भीतर ही पारित किया जा सकता है। एक महीने के बाद न्यायालय प्रथम दृष्टया इस धारा के अंतर्गत ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकता।
उदाहरण:
मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने अपने गुंडों के बल पर किसी गरीब किसान को उसके खेत से जबरन बाहर निकाल दिया और खुद कब्जा जमा लिया। बाद में किसान न्याय की गुहार लगाता है और आरोपी दोषी पाया जाता है। न्यायालय, दोषसिद्धि की तारीख से एक महीने के भीतर आदेश देकर किसान को उसका खेत वापस दिला सकता है।
यदि विचारण न्यायालय ने ऐसा आदेश पारित नहीं किया है, तो यह अधिकार अपीलीय (Appeal), पुष्टि (Confirmation) या पुनरीक्षण (Revision) न्यायालय को भी दिया गया है। वह उपयुक्त समझे तो अपील या पुनरीक्षण की सुनवाई के दौरान संपत्ति वापस देने का आदेश पारित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, यदि इस धारा के तहत कोई आदेश पारित किया गया हो, तो उस आदेश के विरुद्ध धारा 500 के अंतर्गत अपील की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार जैसे धारा 499 के आदेशों के विरुद्ध की जाती है।
यह स्पष्ट किया गया है कि न्यायालय का ऐसा आदेश किसी भी व्यक्ति के वैध सिविल अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा। यानी यदि कोई व्यक्ति दावा करता है कि उस अचल संपत्ति पर उसका वैध अधिकार है, तो वह इसे सिविल न्यायालय में चुनौती दे सकता है और यदि उसका दावा सही पाया गया तो वह संपत्ति उसे सौंपी जा सकती है।
धारा 503: पुलिस द्वारा जब्त की गई संपत्ति से संबंधित प्रक्रिया
जब पुलिस किसी संपत्ति को जब्त करती है और उसकी रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को देती है, परंतु वह संपत्ति आपराधिक विचारण के दौरान न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं होती, तो मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार होता है कि वह उस संपत्ति के निपटान के संबंध में आदेश पारित करे।
यदि यह ज्ञात है कि उक्त संपत्ति का स्वामी कौन है, तो मजिस्ट्रेट उसे वह संपत्ति सौंप सकता है, आवश्यकता हो तो कुछ शर्तों के साथ।
लेकिन यदि यह ज्ञात नहीं है कि संपत्ति का वास्तविक मालिक कौन है, तो मजिस्ट्रेट उस संपत्ति को अपनी अभिरक्षा में रख सकता है और एक सार्वजनिक घोषणा (Proclamation) जारी करेगा। इस घोषणा में उस संपत्ति का वर्णन किया जाएगा और यह कहा जाएगा कि यदि किसी व्यक्ति का उस पर दावा है, तो वह छह महीने के भीतर उपस्थित होकर अपना दावा प्रस्तुत करे।
उदाहरण:
मान लीजिए पुलिस को एक सुनसान जगह से बिना पहचान के कुछ महंगे इलेक्ट्रॉनिक सामान मिलते हैं। पुलिस उसे जब्त कर लेती है और मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट करती है। यदि उस सामान का स्वामी सामने नहीं आता, तो मजिस्ट्रेट छह महीने के भीतर दावा करने की सार्वजनिक सूचना देगा। अगर कोई वैध दावेदार आता है और प्रमाण प्रस्तुत करता है, तो उसे वह संपत्ति दी जा सकती है।
यदि कोई नहीं आता है, तो मजिस्ट्रेट वैधानिक रूप से उस संपत्ति का उचित निपटान कर सकता है।
धाराएं 501 से 503 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की संपत्ति से संबंधित न्यायिक कार्यवाही की रीढ़ हैं।
धारा 501 समाज के नैतिक और शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आपत्तिजनक और घातक वस्तुओं के विनाश की व्यवस्था देती है। धारा 502 पीड़ितों को अचल संपत्ति के कब्जे की पुनः प्राप्ति का अधिकार देती है, जिससे बलात्कारी या धमकाने वालों से न्याय मिल सके। वहीं, धारा 503 यह सुनिश्चित करती है कि पुलिस द्वारा जब्त की गई संपत्तियों का न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शी और उचित निपटान हो।
इन धाराओं के माध्यम से भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली यह संदेश देती है कि वह केवल सजा देने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज में न्यायपूर्ण पुनर्स्थापन (Restitution) की भी समर्थक है। न्यायालय और पुलिस को इन धाराओं के तहत मिले अधिकारों का ईमानदारी से प्रयोग करना चाहिए ताकि पीड़ित को सच्चा और पूर्ण न्याय मिल सके।

