भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 487 से 490 तक: जमानत और जमानतदारों से संबंधित प्रावधान

Himanshu Mishra

31 May 2025 11:12 AM

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 487 से 490 तक: जमानत और जमानतदारों से संबंधित प्रावधान

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 487 से 490 तक उन परिस्थितियों से संबंधित हैं, जब अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाता है, और उसे जेल से छोड़ा जाता है, या जब जमानतदार अपर्याप्त पाए जाते हैं, या वे स्वयं बंधपत्र समाप्त करना चाहते हैं। ये धाराएं न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता, सुरक्षा और संतुलन सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में हम इन चारों धाराओं की सरल व्याख्या और उनके व्यावहारिक उदाहरणों सहित विस्तृत चर्चा करेंगे।

    धारा 487: हिरासत से रिहाई (Discharge from Custody)

    धारा 487 के अनुसार, जैसे ही कोई व्यक्ति जमानत बांड या साधारण बांड भर देता है, उसे तत्काल रिहा किया जाना चाहिए। यदि वह व्यक्ति पहले से जेल में बंद है, तो उस न्यायालय द्वारा जो उसे जमानत देता है, जेल अधीक्षक को रिहाई का आदेश देगा, और आदेश प्राप्त होते ही जेल अधीक्षक उस व्यक्ति को रिहा करेगा।

    उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि रमेश को चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया है और उसे न्यायालय ने ₹20,000 के दो जमानतदारों के साथ जमानत दी है। जैसे ही रमेश और उसके जमानतदार बांड भरते हैं, अदालत जेल अधीक्षक को निर्देश देती है कि रमेश को रिहा किया जाए। आदेश मिलते ही रमेश को जेल से छोड़ा जाएगा।

    धारा 487 की उपधारा (2) यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी अन्य कारण से गिरफ्तारी या हिरासत की आवश्यकता हो, तो केवल वर्तमान मामले में जमानत मिलने से उसे रिहा नहीं किया जाएगा। यानी, यदि किसी व्यक्ति ने चोरी के मामले में बांड भरा है लेकिन उसके विरुद्ध हत्या का एक और मामला लंबित है, तो उसे सिर्फ चोरी के मामले में जमानत मिलने से जेल से रिहा नहीं किया जाएगा।

    धारा 488: अपर्याप्त जमानतदारों की स्थिति (Insufficient Sureties)

    धारा 488 के अनुसार, यदि किसी अभियुक्त के लिए स्वीकार किए गए जमानतदार किसी कारणवश अपर्याप्त या अयोग्य सिद्ध होते हैं — चाहे वह गलती से हो, धोखे से हो, या बाद में उनकी स्थिति कमजोर हो गई हो — तो न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि उस अभियुक्त को गिरफ्तार कर उसके सामने पेश किया जाए। अभियुक्त को फिर से पर्याप्त और सक्षम जमानतदार प्रस्तुत करने होंगे। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो न्यायालय उसे फिर से जेल भेज सकता है।

    मान लीजिए कि सुरेश पर धोखाधड़ी का आरोप है और उसे जमानत इस शर्त पर मिली कि उसका मित्र रमाकांत जमानतदार बनेगा। बाद में पता चलता है कि रमाकांत की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है और वह जमानत की राशि देने में सक्षम नहीं है। न्यायालय सुरेश को फिर से बुलाएगा, और नए पर्याप्त जमानतदार प्रस्तुत करने को कहेगा। यदि सुरेश ऐसा नहीं कर पाता, तो उसे फिर से जेल भेजा जा सकता है।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जमानत देने वाला व्यक्ति वास्तव में जिम्मेदार और सक्षम हो। इससे यह भी रोका जाता है कि अपराधी कमजोर या फर्जी जमानत के सहारे रिहा होकर फिर न्यायिक प्रक्रिया से बचने की कोशिश करें।

    धारा 489: जमानतदार द्वारा बांड समाप्त करने का अधिकार (Discharge of Sureties)

    धारा 489 एक महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करती है जमानतदारों को। यदि कोई व्यक्ति, जो अभियुक्त के लिए जमानतदार बना है, किसी कारणवश अब जमानत की जिम्मेदारी निभाना नहीं चाहता जैसे कि अभियुक्त ने उसका भरोसा तोड़ दिया हो या वह आर्थिक रूप से कमजोर हो गया हो तो वह मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर सकता है कि उसकी जमानत समाप्त की जाए।

    ऐसी स्थिति में, मजिस्ट्रेट एक गिरफ्तारी वारंट जारी करेगा ताकि अभियुक्त को उसके सामने प्रस्तुत किया जा सके। जब अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित हो, चाहे स्वेच्छा से या गिरफ्तारी के बाद, मजिस्ट्रेट पुराने जमानतदार का बांड समाप्त कर देगा और अभियुक्त से नए जमानतदार प्रस्तुत करने को कहेगा। यदि अभियुक्त नए पर्याप्त जमानतदार नहीं दे पाता, तो उसे जेल भेजा जा सकता है।

    एक उदाहरण से समझें। मनोज ने अपने मित्र दीपक के लिए जमानत दी थी, जो एक झगड़े के मामले में गिरफ्तार हुआ था। कुछ महीनों बाद दीपक ने मनोज से बिना बताए शहर छोड़ दिया। मनोज को अब डर है कि यदि दीपक नहीं लौटता, तो उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में मनोज मजिस्ट्रेट के पास जाकर कह सकता है कि वह अब दीपक का जमानतदार नहीं रहना चाहता। मजिस्ट्रेट दीपक को बुलाएगा और यदि वह आता है, तो मनोज की जमानत समाप्त कर देगा और दीपक से नए जमानतदार प्रस्तुत करने को कहेगा।

    इस प्रावधान का महत्व यह है कि यह जमानतदारों को न्यायिक प्रक्रिया से सुरक्षित निकलने का विकल्प देता है यदि अभियुक्त उनका विश्वास तोड़ता है।

    धारा 490: बांड के स्थान पर धनराशि जमा करने की अनुमति (Deposit Instead of Bond)

    धारा 490 अभियुक्त को यह विकल्प देती है कि यदि वह चाहे, तो बांड या जमानत बांड के बदले नकद राशि या सरकारी प्रतिभूतियाँ (Government Promissory Notes) जमा कर सकता है। लेकिन यह सुविधा केवल तब लागू होती है जब बांड "अच्छे आचरण" (good behaviour) के लिए नहीं मांगा गया हो।

    इसका मतलब है कि यदि कोई अभियुक्त केवल उपस्थिति सुनिश्चित करने वाले बांड पर रिहा किया जा रहा है, तो वह न्यायालय या अधिकारी की अनुमति से तय की गई धनराशि जमा करके जमानत पर रिहा हो सकता है। लेकिन यदि बांड अच्छे आचरण के लिए मांगा गया है — जैसे कि किसी व्यक्ति को भविष्य में कोई अपराध न करने का आदेश दिया गया है — तो यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी।

    उदाहरण के रूप में, रोहित पर एक झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने का मामला दर्ज हुआ है। पुलिस उसे जमानत देने को तैयार है लेकिन ₹25,000 का जमानत बांड चाहती है। रोहित का कोई जमानतदार उपलब्ध नहीं है, तो वह न्यायालय से अनुरोध करता है कि उसे नकद राशि जमा करने की अनुमति दी जाए। न्यायालय उसकी स्थिति देखते हुए अनुमति देता है, और रोहित ₹25,000 की नकद राशि न्यायालय में जमा कर देता है, जिससे वह जमानत पर रिहा हो जाता है।

    यह प्रावधान उन लोगों के लिए बहुत सहायक है जिनके पास विश्वसनीय जमानतदार नहीं हैं लेकिन वे नकद राशि जमा करके अपनी रिहाई सुनिश्चित करना चाहते हैं। यह प्रणाली न्यायिक लचीलापन और अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा का उदाहरण है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 487 से 490 तक जमानत, बांड और जमानतदारों से संबंधित ऐसी प्रक्रियाएं निर्धारित करती हैं जो अभियुक्त के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया के संतुलन को बनाए रखती हैं। इन धाराओं से यह सुनिश्चित किया जाता है कि जमानत की प्रक्रिया केवल औपचारिकता न रह जाए बल्कि यह पारदर्शी, न्यायपूर्ण और जिम्मेदार हो।

    धारा 487 यह सुनिश्चित करती है कि बांड भरने के बाद अभियुक्त को शीघ्र रिहा किया जाए। धारा 488 यह देखती है कि जमानतदार सक्षम और ईमानदार हों। धारा 489 जमानतदार को यह विकल्प देती है कि वह उचित कारणों से बांड से हट सके। और धारा 490 अभियुक्त को विकल्प देती है कि वह जमानत बांड की बजाय धनराशि जमा कर सके।

    इन धाराओं का सही और समय पर प्रयोग न केवल अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता और निष्पक्षता को भी बनाए रखता है। ऐसे में इन प्रावधानों की गहन समझ सभी अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों और नागरिकों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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