भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474, 475 और 476 : बिना दोषी की सहमति के सजा का परिवर्तन

Himanshu Mishra

22 May 2025 8:22 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474, 475 और 476 : बिना दोषी की सहमति के सजा का परिवर्तन

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 474, 475 और 476 सजाओं में परिवर्तन, न्यूनतम कारावास अवधि और केंद्र व राज्य सरकार की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती हैं।

    इन तीनों धाराओं का गहरा संबंध धारा 473 से है, जो सरकार को सजाओं के निलंबन और क्षमादान का अधिकार देती है। इन धाराओं के माध्यम से कानून यह सुनिश्चित करता है कि सजा में बदलाव मानवीय दृष्टिकोण से किया जाए, लेकिन यह भी कि अपराध की गंभीरता के आधार पर न्यूनतम न्यायिक संतुलन बना रहे।

    धारा 474: बिना दोषी की सहमति के सजा का परिवर्तन

    इस धारा के अनुसार "उपयुक्त सरकार" (appropriate Government) को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी दोषी व्यक्ति की सजा को, उस व्यक्ति की सहमति के बिना ही, एक कम कठोर सजा में बदल सकती है। यह प्रावधान विशेष रूप से उन परिस्थितियों में महत्वपूर्ण है जहाँ सरकार यह समझती है कि मूल सजा अत्यधिक कठोर है या किसी सामाजिक, मानवीय या पुनर्वास संबंधी कारणों से उसमें परिवर्तन किया जाना आवश्यक है।

    इस धारा के अंतर्गत निम्नलिखित पांच प्रकार के सजा-परिवर्तन का प्रावधान किया गया है:

    पहला प्रकार – यदि किसी व्यक्ति को मृत्युदंड (death sentence) की सजा दी गई है, तो सरकार उसे बिना उस व्यक्ति की सहमति के आजीवन कारावास (imprisonment for life) में परिवर्तित कर सकती है। यह प्रावधान जीवन की सर्वोच्चता के सिद्धांत को दर्शाता है। यह एक प्रकार की दया का रूप भी है जहाँ व्यक्ति की जान बख्श दी जाती है लेकिन उसे जेल में शेष जीवन बिताना होता है।

    दूसरा प्रकार – यदि किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी गई है, तो सरकार उसे कम कर के न्यूनतम सात वर्षों के कारावास में परिवर्तित कर सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि सरकार चाहे तो आजीवन कारावास को सीमित अवधि के कठोर कारावास में परिवर्तित कर सकती है, लेकिन यह अवधि सात वर्षों से कम नहीं होनी चाहिए।

    तीसरा प्रकार – यदि किसी को सात वर्ष या उससे अधिक की कैद हुई है, तो सरकार उसे कम करके न्यूनतम तीन वर्षों की कैद में बदल सकती है। इसका उद्देश्य यह है कि न्याय और दया के बीच संतुलन बना रहे।

    चौथा प्रकार – यदि किसी व्यक्ति को सात वर्ष से कम की कैद दी गई है, तो सरकार उस सजा को केवल जुर्माने में भी परिवर्तित कर सकती है। इसका लाभ आमतौर पर कम गभीर अपराधों के दोषियों को मिलता है, जिन्हें सुधार की संभावना हो।

    पाँचवां प्रकार – यदि किसी को कठोर कारावास (rigorous imprisonment) की सजा दी गई है, तो उसे साधारण कारावास (simple imprisonment) में बदला जा सकता है। यह विशेष रूप से शारीरिक श्रम से असमर्थ या कमजोर दोषियों के लिए उपयोगी हो सकता है।

    उदाहरण के रूप में समझें – यदि किसी 65 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति को 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा हुई है, तो राज्य सरकार उसकी सजा को तीन वर्ष के साधारण कारावास में परिवर्तित कर सकती है, यदि उसे यह लगे कि उस व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक स्थिति कठोर श्रम सहन करने योग्य नहीं है।

    धारा 475: न्यूनतम 14 वर्षों का कारावास अनिवार्य

    धारा 475 यह स्पष्ट करती है कि यदि किसी व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दी गई है और वह सजा किसी ऐसे अपराध के लिए है जिसके लिए मृत्युदंड एक वैकल्पिक सजा थी, या यदि किसी व्यक्ति को मृत्युदंड दिया गया था जिसे बाद में आजीवन कारावास में परिवर्तित कर दिया गया है (धारा 474 के अंतर्गत), तो ऐसे मामलों में वह व्यक्ति जब तक कम से कम 14 वर्ष की जेल की अवधि नहीं काट लेता, तब तक उसे रिहा नहीं किया जा सकता।

    यह प्रावधान इसलिए आवश्यक है क्योंकि कुछ अपराध इतने गंभीर होते हैं कि सामान्य परिस्थितियों में क्षमादान या समय से पूर्व रिहाई का विकल्प उपलब्ध नहीं होना चाहिए। इससे पीड़ित पक्ष और समाज को यह भरोसा भी मिलता है कि गंभीर अपराधों में दोषी को पर्याप्त सजा मिली है।

    उदाहरण के तौर पर – यदि किसी व्यक्ति ने हत्या की योजना बनाकर क्रूर हत्या की है और न्यायालय ने उसे मृत्युदंड दिया था, लेकिन राज्य सरकार ने धारा 474 के अंतर्गत उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया, तो वह व्यक्ति तब तक जेल से बाहर नहीं आ सकता जब तक उसने 14 वर्ष जेल में नहीं बिताए हों।

    धारा 476: केंद्र सरकार के समान अधिकार

    धारा 476 कहती है कि धारा 473 और धारा 474 के अंतर्गत राज्य सरकार को जो शक्तियां प्राप्त हैं, विशेष रूप से मृत्युदंड से संबंधित मामलों में, वे शक्तियां केंद्र सरकार भी प्रयोग कर सकती है।

    यह व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि मृत्युदंड जैसे गंभीर मामलों में केंद्र सरकार अंतिम निर्णय ले सके, विशेष रूप से जब मामला अंतरराज्यीय प्रभाव, राष्ट्रीय सुरक्षा, या संघीय विषयों से संबंधित हो।

    उदाहरण के लिए – यदि किसी आतंकवादी को किसी केंद्र सरकार से संबंधित अपराध में मृत्युदंड मिला है, तो केंद्र सरकार यह तय कर सकती है कि उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदला जाए या नहीं।

    धारा 473 से संबंध

    धारा 473 में सरकार को यह शक्ति दी गई थी कि वह सजा को निलंबित या क्षमा कर सकती है, और इसके लिए वह संबंधित न्यायाधीश की राय भी मांग सकती है। वहीं, धारा 474 इस शक्ति को और आगे ले जाती है और सरकार को दोषी की सहमति के बिना सजा में परिवर्तन करने का अधिकार देती है। धारा 475 यह सुनिश्चित करती है कि सबसे गंभीर अपराधों में सजा को कम करने के बावजूद कम से कम 14 वर्ष का कारावास अनिवार्य हो। वहीं धारा 476 केंद्र सरकार को राज्य सरकार के बराबर अधिकार प्रदान करती है।

    इस प्रकार, इन चार धाराओं (473 से 476) का आपस में गहरा संबंध है और ये मिलकर एक संतुलित न्याय व्यवस्था सुनिश्चित करती हैं जहाँ अपराध की गंभीरता, दोषी की स्थिति, सामाजिक प्रभाव और न्याय की भावना – सभी का ध्यान रखा जाता है।

    धारा 474, 475 और 476, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में दया, विवेक और कानूनी संतुलन का प्रतीक हैं। ये धाराएं यह सुनिश्चित करती हैं कि सजा केवल प्रतिशोध नहीं बल्कि सुधार और पुनर्वास का भी माध्यम बने। साथ ही, ये यह भी सुनिश्चित करती हैं कि गंभीर अपराधों में दोषियों को पर्याप्त सजा मिले और सरकारें अपने विवेक का प्रयोग सोच-समझकर करें।

    जहां धारा 474 सरकार को दया दिखाने का कानूनी उपकरण देती है, वहीं धारा 475 इस दया को न्याय के दायरे में रखती है और यह सुनिश्चित करती है कि गंभीर अपराधों में जल्द रिहाई न हो। धारा 476 यह संतुलन बनाती है कि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सजाओं में परिवर्तन कर सकें।

    इन प्रावधानों के माध्यम से भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली यह संदेश देती है कि कानून में न केवल दंड का स्थान है, बल्कि करुणा, पुनर्वास और न्याय के आदर्शों का भी स्थान है।

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