भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 463 और 464: अन्य क्षेत्रों से जारी वारंटों की वैधता और सजा
Himanshu Mishra
16 May 2025 10:15 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) एक नई प्रक्रिया संहिता है जो 1 जुलाई 2024 से पूरे भारत में भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के स्थान पर लागू हुई है। इस संहिता में अपराध से संबंधित दंडों के निष्पादन से जुड़ी एक संपूर्ण प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
संहिता के अध्याय XXXIV में "दंड का निष्पादन" (Execution of Sentences) से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। इस अध्याय के भाग 'ग' (C – Levy of fine) में विशेष रूप से उस स्थिति की चर्चा की गई है जब किसी अभियुक्त पर जुर्माना लगाया गया हो और वह उसे अदा नहीं करता है।
इस लेख में हम धारा 463 और धारा 464 का विस्तृत और सरल हिंदी में विश्लेषण करेंगे, जो कि क्रमशः बाहरी क्षेत्रों से जारी किए गए जुर्माने के वारंटों की वैधता और सजा के निष्पादन को स्थगित करने की प्रक्रिया से संबंधित हैं। हम पहले की धारा 461 और 462 का भी संदर्भ लेंगे, जिससे पाठकों को एक समग्र समझ मिल सके।
धारा 463 – उस क्षेत्र से जारी जुर्माने का वारंट, जहाँ यह संहिता लागू नहीं होती
संदर्भ और महत्व
धारा 463 यह सुनिश्चित करती है कि यदि किसी अन्य क्षेत्र, जहाँ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लागू नहीं होती (जैसे—जम्मू-कश्मीर, कुछ केंद्र शासित प्रदेश आदि), वहाँ की किसी आपराधिक अदालत ने किसी व्यक्ति को जुर्माना अदा करने की सजा दी है और उसने उस जुर्माने की वसूली के लिए किसी जिले के जिलाधिकारी (Collector) को वारंट भेजा है, जो इस संहिता के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो वह वारंट भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 461(1)(b) के तहत जारी समझा जाएगा।
इसका तात्पर्य क्या है
इसका अर्थ यह है कि कोई अदालत, जो उस क्षेत्र में स्थित है जहाँ यह संहिता लागू नहीं होती, अगर किसी अभियुक्त पर जुर्माना लगाती है और उस जुर्माने की वसूली के लिए किसी भारतीय राज्य के कलेक्टर को वारंट भेजती है, तो उस वारंट को वैध मानते हुए उसी प्रकार निष्पादित किया जाएगा जैसे वह वारंट इस संहिता की धारा 461 के अंतर्गत जारी हुआ हो।
धारा 461(3) का संदर्भ
धारा 463 में सीधे धारा 461(3) का उल्लेख किया गया है, जो बताती है कि जब कलेक्टर को जुर्माने की वसूली का वारंट भेजा जाता है, तो वह उसे भूमि राजस्व की बकाया राशि के रूप में वसूल करता है। उसी प्रक्रिया को धारा 463 के अंतर्गत भी अपनाया जाएगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई अभियुक्त, केवल इस आधार पर कि वह किसी अन्य क्षेत्र में सजा पाया है, दंड से बच न सके।
उदाहरण
मान लीजिए कि श्रीनगर की किसी अदालत ने एक अभियुक्त को ₹25,000 का जुर्माना भरने की सजा दी और उसने यह जुर्माना नहीं भरा। अब अदालत ने जयपुर (राजस्थान) के कलेक्टर को वारंट भेजा क्योंकि अभियुक्त की संपत्ति जयपुर में स्थित है। ऐसी स्थिति में जयपुर का कलेक्टर इस वारंट को वैध मानते हुए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 461(1)(b) के तहत कार्रवाई करेगा और उक्त राशि वसूल करेगा।
धारा 464 – कारावास की सजा का निष्पादन स्थगित करना
प्रावधान का उद्देश्य
यह धारा ऐसे मामलों से संबंधित है जहाँ अभियुक्त को केवल जुर्माने की सजा दी गई है, लेकिन यह भी आदेशित किया गया है कि यदि वह जुर्माना नहीं भरता है, तो उसे कारावास भुगतना होगा। इस स्थिति में, यदि अभियुक्त जुर्माना तुरंत नहीं भरता है, तो न्यायालय कुछ विकल्प अपना सकता है जिससे उसे जेल भेजे बिना समय या अवसर दिया जा सके।
धारा 464(1)(a) – भुगतान के लिए समय देना
न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि अभियुक्त द्वारा जुर्माना या तो पूर्ण रूप से एकमुश्त अधिकतम 30 दिनों के भीतर भरा जाए, या फिर दो या तीन किश्तों में भरा जाए। पहली किश्त का भुगतान 30 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से करना होगा और शेष किश्तें भी अधिकतम 30-30 दिनों के अंतराल पर नियत की जा सकती हैं।
उदाहरण
अगर किसी व्यक्ति को ₹15,000 का जुर्माना भरने की सजा हुई है, तो न्यायालय यह कह सकता है कि वह पूरी राशि 30 दिन में भर दे, या ₹5,000 तीन किश्तों में—30-30 दिनों के अंतराल पर—दे दे।
धारा 464(1)(b) – जेल की सजा स्थगित करना और बॉन्ड भरवाना
न्यायालय उस कारावास की सजा को स्थगित कर सकता है और अभियुक्त को इस शर्त पर रिहा कर सकता है कि वह एक बॉन्ड (या ज़मानती बॉन्ड) भरेगा, जिसमें यह शर्त होगी कि वह नियत तिथि को उपस्थित होगा और जुर्माना या उसकी किश्तें भरेगा। यदि अभियुक्त द्वारा नियत तिथि पर जुर्माना अदा नहीं किया जाता है, तो न्यायालय तत्काल कारावास की सजा को लागू कर सकता है।
उदाहरण
किसी अभियुक्त को ₹10,000 का जुर्माना और उसके न भरने पर 2 महीने की सजा दी गई। न्यायालय उसे कहता है कि वह ₹5,000 एक माह में और शेष ₹5,000 अगले माह में दे। अभियुक्त एक ₹10,000 का बॉन्ड भरकर रिहा हो जाता है। लेकिन अगर वह दूसरी किश्त नहीं देता है, तो न्यायालय बिना कोई अतिरिक्त प्रक्रिया अपनाए उसे सीधे 2 महीने की जेल भेज सकता है।
धारा 464(2) – अन्य धनराशियों की वसूली पर भी लागू
यह उपधारा बताती है कि केवल जुर्माना ही नहीं, बल्कि किसी भी प्रकार की धनराशि जिसके न भरने पर सजा दी जा सकती है, उसके संदर्भ में भी धारा 464(1) लागू की जाएगी। साथ ही, यदि अभियुक्त कोर्ट द्वारा कहे जाने पर ऐसा बॉन्ड भरने से इनकार करता है, तो न्यायालय उसे तत्काल कारावास की सजा सुनाकर जेल भेज सकता है।
उदाहरण
मान लीजिए किसी व्यक्ति पर कोर्ट ने ₹8,000 पीड़ित को मुआवजे के तौर पर भरने का आदेश दिया, और आदेश में यह कहा गया कि न भरने पर 1 महीने की जेल होगी। यदि वह व्यक्ति तुरंत भुगतान नहीं करता और न्यायालय द्वारा बॉन्ड भरने को कहे जाने पर भी इनकार करता है, तो न्यायालय उसे तुरंत जेल भेज सकता है।
पहले की धाराओं से संबंध
धारा 455 से लेकर धारा 464 तक की श्रृंखला में दंड के विविध प्रकारों के निष्पादन की प्रक्रिया दी गई है।
धारा 455 न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है कि कौन-सा न्यायालय किस सजा का निष्पादन करेगा।
धारा 456 से लेकर धारा 460 में मृत्युदंड, आजीवन कारावास, जुर्माना, संपत्ति की जब्ती आदि से संबंधित प्रक्रियाएँ दी गई हैं।
धारा 461, 462, और 463 विशेष रूप से जुर्माने की वसूली के प्रावधानों को नियंत्रित करती हैं। और अब धारा 464 इस प्रक्रिया को मानवीय दृष्टिकोण से देखती है, जिसमें न्यायालय अभियुक्त को सुधार और भुगतान के अवसर देता है।
धारा 463 और 464, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में न्याय की व्यापकता और व्यवहारिकता को दर्शाती हैं। धारा 463 यह सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति केवल भौगोलिक सीमा का लाभ उठाकर न्याय से बच न सके। वहीं धारा 464 यह दिखाती है कि भारतीय न्यायिक प्रणाली अभियुक्त को केवल दंडित करने के बजाय उसे सुधार और भुगतान के लिए अवसर भी देती है।
इन प्रावधानों का उद्देश्य कठोरता नहीं, बल्कि विधिसम्मत, न्यायसंगत और विवेकपूर्ण दंड प्रक्रिया सुनिश्चित करना है। इससे न्यायालयों को यह विवेक मिलता है कि वे परिस्थिति के अनुसार अभियुक्त के साथ संतुलित व्यवहार करें, और राज्य प्रशासन को ऐसे वारंटों के निष्पादन की वैधानिक ताकत मिलती है।

