भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 453 से 456 : हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि के बाद मृत्युदंड की सजा

Himanshu Mishra

10 May 2025 5:10 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 453 से 456 : हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि के बाद मृत्युदंड की सजा

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS), जो अब दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की जगह लागू हो चुकी है, उसमें मृत्युदंड (Death Sentence) से जुड़ी प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी व्यक्ति को मृत्युदंड देने से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाएं (Legal Procedures) पूरी की जाएं और उसे संविधान द्वारा प्राप्त सभी अधिकार (Rights under Constitution) मिलें।

    इस अध्याय (Chapter XXXIV) का भाग-A (Part A) विशेष रूप से मृत्युदंड से संबंधित है और इसमें धारा 453 से 456 तक का उल्लेख है।

    धारा 453 – हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि के आदेश का निष्पादन (Execution of Order Passed under Section 409)

    जब किसी व्यक्ति को सत्र न्यायालय (Sessions Court) मृत्युदंड देता है, तो वह आदेश तुरंत अंतिम (Final) नहीं हो जाता। सत्र न्यायालय को यह आदेश हाईकोर्ट (High Court) के पास पुष्टि (Confirmation) के लिए भेजना होता है, जैसा कि धारा 409 में बताया गया है।

    यदि हाईकोर्ट मृत्युदंड को सही मानता है और पुष्टि कर देता है, तो वह आदेश फिर से सत्र न्यायालय को भेजता है। धारा 453 के अनुसार, जैसे ही सत्र न्यायालय को हाईकोर्ट से ऐसा आदेश प्राप्त होता है, वह मृत्युदंड का निष्पादन (Execution) शुरू करता है। इसके लिए वह एक वारंट (Warrant) जारी करता है या अन्य आवश्यक कदम उठाता है।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए रमेश नामक व्यक्ति को हत्या के गंभीर अपराध में सत्र न्यायालय ने मृत्युदंड दिया। यह मामला पुष्टि के लिए हाईकोर्ट गया। हाईकोर्ट ने उस सजा को सही माना और पुष्टि कर दी। अब सत्र न्यायालय को कानून के अनुसार उस मृत्युदंड को लागू करना होगा, यानी वारंट जारी करके उसे निष्पादित करना होगा।

    धारा 454 – हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा का निष्पादन (Execution of Sentence of Death Passed by High Court)

    कभी-कभी ऐसा होता है कि हाईकोर्ट किसी अपील (Appeal) या पुनर्विचार (Revision) के दौरान स्वयं ही मृत्युदंड सुना देता है। ऐसे मामलों में भी सत्र न्यायालय की भूमिका रहती है।

    धारा 454 के अनुसार, जब हाईकोर्ट सीधे किसी आरोपी को मृत्युदंड सुनाता है, तो सत्र न्यायालय को उस आदेश को लागू करने के लिए वारंट जारी करना होता है।

    उदाहरण (Illustration):

    अनिता को निचली अदालत ने उम्रकैद (Life Imprisonment) की सजा दी, लेकिन पीड़ित पक्ष ने हाई कोर्ट में अपील की और हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सजा को मृत्युदंड में बदल दिया। अब सत्र न्यायालय को हाई कोर्ट के इस आदेश का पालन करते हुए मृत्युदंड लागू करना होगा।

    धारा 455 – सुप्रीम कोर्ट में अपील की स्थिति में मृत्युदंड के निष्पादन की स्थगन (Postponement of Execution of Sentence of Death in Case of Appeal to Supreme Court)

    यह धारा बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति हाईकोर्ट से मृत्युदंड पाता है और वह सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहता है, तो उसकी सजा को कुछ समय के लिए स्थगित (Postpone) किया जाएगा। इस धारा में तीन उपधाराएं (Sub-sections) हैं:

    उपधारा (1): जब सुप्रीम कोर्ट में अपील का अधिकार होता है (Appeal as a matter of right)

    यदि किसी व्यक्ति को हाईकोर्ट ने मृत्युदंड दिया है और उसे संविधान के अनुच्छेद 134(1)(a) या (b) के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार है, तो हाईकोर्ट को मृत्युदंड के निष्पादन को स्थगित करना होगा:

    • जब तक अपील करने की समय-सीमा पूरी नहीं हो जाती, या

    • यदि अपील कर दी गई है, तब तक जब तक सुप्रीम कोर्ट उस पर निर्णय नहीं दे देता।

    उदाहरण (Illustration):

    विजय को हाईकोर्ट ने मृत्युदंड दिया और वह अनुच्छेद 134(1)(a) के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। ऐसे में हाई कोर्ट को उसकी सजा को तब तक रोके रखना होगा जब तक सुप्रीम कोर्ट अपील पर निर्णय नहीं दे देता या अपील दायर करने की समय-सीमा समाप्त नहीं हो जाती।

    उपधारा (2): जब प्रमाणपत्र के लिए आवेदन किया जाता है (Application for Certificate to Appeal)

    यदि व्यक्ति हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए अनुच्छेद 132 या अनुच्छेद 134(1)(c) के तहत प्रमाणपत्र (Certificate) की मांग करता है, तो हाईकोर्ट को मृत्युदंड के निष्पादन को स्थगित करना होगा:

    • जब तक प्रमाणपत्र देने के लिए आवेदन लंबित है, या

    • यदि प्रमाणपत्र मिल गया है, तब तक जब तक अपील दायर करने की समय-सीमा समाप्त नहीं हो जाती।

    उदाहरण (Illustration):

    सीता को मृत्युदंड मिला और उसने हाईकोर्ट से अपील के लिए अनुच्छेद 132 के तहत प्रमाणपत्र मांगा। जब तक यह आवेदन लंबित है, मृत्युदंड को रोका जाएगा। यदि प्रमाणपत्र मिल जाता है, तब तक निष्पादन नहीं होगा जब तक वह सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की समय-सीमा पूरी नहीं हो जाती।

    उपधारा (3): जब विशेष अनुमति याचिका (SLP) दाखिल करने का इरादा हो (Special Leave Petition under Article 136)

    यदि व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition – SLP) दाखिल करना चाहता है, और हाईकोर्ट को यह विश्वास हो जाए कि वह सच में ऐसा करना चाहता है, तो हाईकोर्ट सजा को उचित समय के लिए स्थगित कर सकता है ताकि याचिका दाखिल की जा सके।

    उदाहरण (Illustration):

    फैज़ल को हाईकोर्ट से मृत्युदंड मिला और उसने सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल करने का इरादा जताया। यदि हाईकोर्ट को विश्वास है कि फैज़ल वास्तव में SLP दाखिल करेगा, तो वह सजा को कुछ दिनों के लिए रोक सकता है।

    धारा 456 – यदि मृत्युदंड प्राप्त महिला गर्भवती हो तो सजा का परिवर्तन (Commutation of Death Sentence of a Pregnant Woman)

    यह धारा मानवीय आधार (Humanitarian Grounds) पर आधारित है। यदि कोई महिला, जिसे मृत्युदंड सुनाया गया है, गर्भवती (Pregnant) पाई जाती है, तो हाईकोर्ट को उस सजा को आजीवन कारावास (Life Imprisonment) में बदलना अनिवार्य है। यह इस बात को ध्यान में रखते हुए किया जाता है कि अजन्मा बच्चा माँ की सजा से प्रभावित न हो।

    उदाहरण (Illustration):

    लीला को हत्या के आरोप में मृत्युदंड मिला। बाद में यह पता चला कि वह गर्भवती है। ऐसे में हाईकोर्ट को उसकी सजा को जीवनभर की कैद में बदलना होगा। यह कानूनन अनिवार्य (Mandatory) है।

    धारा 453 से 456 तक भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में मृत्युदंड से जुड़ी पूरी प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया है। ये धाराएं यह सुनिश्चित करती हैं कि मृत्युदंड जैसी गंभीर सजा को बेहद सावधानी और पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के तहत ही लागू किया जाए।

    चाहे सत्र न्यायालय द्वारा दिया गया मृत्युदंड हो (धारा 453), या हाईकोर्ट द्वारा अपील में सुनाई गई सजा (धारा 454), या सुप्रीम कोर्ट में अपील की प्रक्रिया (धारा 455), या किसी महिला की गर्भावस्था की स्थिति (धारा 456) – हर स्थिति में व्यक्ति को पूरा न्याय मिले, यही इन धाराओं का उद्देश्य है।

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