हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 3-4: परिभाषाएं और अधिनियम का अधिरोही प्रभाव

Himanshu Mishra

7 July 2025 11:22 AM

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 3-4: परिभाषाएं और अधिनियम का अधिरोही प्रभाव

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के प्रभावी और सटीक अनुप्रयोग (Effective and Precise Application) के लिए, अधिनियम में उपयोग किए गए कुछ महत्वपूर्ण शब्दों और अभिव्यक्तियों (Expressions) का स्पष्ट अर्थ समझना आवश्यक है।

    धारा 3 (Section 3) इन आवश्यक परिभाषाओं (Definitions) को प्रदान करती है, जो कानून की बारीकियों (Nuances) को समझने की कुंजी हैं। इसके बाद, धारा 4 (Section 4) अधिनियम के सर्वोपरि (Paramount) महत्व और अन्य कानूनों और रीति-रिवाजों पर इसके अधिरोही प्रभाव (Overriding Effect) को स्थापित करती है, जो इसके सुधारवादी चरित्र (Reformative Character) को रेखांकित करता है।

    3. परिभाषाएँ (Definitions)

    इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ (Context) अन्यथा अपेक्षित न करे, निम्नलिखित शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं:

    (a) "रीति-रिवाज" और "उपयोग" (Custom and Usage)

    "रीति-रिवाज" (Custom) और "उपयोग" (Usage) का अर्थ कोई भी ऐसा नियम (Rule) है जो लंबे समय से निरंतर (Continuously) और समान रूप से (Uniformly) पालन किया जाता रहा हो और उसने किसी भी स्थानीय क्षेत्र (Local Area), जनजाति (Tribe), समुदाय (Community), समूह (Group) या परिवार (Family) में हिंदुओं के बीच कानून का बल (Force of Law) प्राप्त कर लिया हो।

    परंतु (Provided that) यह कि नियम निश्चित (Certain) होना चाहिए और अनुचित (Unreasonable) या सार्वजनिक नीति (Public Policy) के विरुद्ध (Opposed to) नहीं होना चाहिए। और आगे यह कि (Provided further that) परिवार पर लागू होने वाले नियम के मामले में, उसे परिवार द्वारा बंद (Discontinued) नहीं किया गया हो।

    स्पष्टीकरण: यह परिभाषा हिंदू कानून के तहत रीति-रिवाज के महत्वपूर्ण स्थान को दर्शाती है। यह स्पष्ट करती है कि केवल कोई भी पुरानी प्रथा (Old Practice) कानून का बल प्राप्त नहीं कर सकती। इसे लगातार और एकरूपता से पालन किया जाना चाहिए, और यह उचित (Reasonable) तथा सार्वजनिक नीति के अनुरूप (Consistent with Public Policy) होना चाहिए। परिवार-विशिष्ट (Family-specific) रीति-रिवाजों के लिए, यह भी आवश्यक है कि परिवार ने उस प्रथा को छोड़ न दिया हो।

    (b) "जिला न्यायालय" (District Court)

    "जिला न्यायालय" (District Court) का अर्थ किसी ऐसे क्षेत्र (Area) के लिए, जहाँ कोई सिटी सिविल कोर्ट (City Civil Court) है, वह कोर्ट (Court) है, और किसी अन्य क्षेत्र में मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction) का प्रधान सिविल कोर्ट (Principal Civil Court) है, और इसमें कोई भी अन्य सिविल कोर्ट शामिल है जिसे राज्य सरकार (State Government) राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना (Notification) द्वारा इस अधिनियम में वर्णित मामलों (Matters dealt with) के संबंध में अधिकारिता (Jurisdiction) रखने वाला निर्दिष्ट (Specified) कर सकती है।

    स्पष्टीकरण: यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि वैवाहिक मामलों (Matrimonial Cases) को किस न्यायालय (Court) में दायर किया जाना चाहिए। यह शहरों में विशेष सिटी सिविल कोर्ट और अन्य क्षेत्रों में मुख्य सिविल कोर्ट को अधिकारिता देता है, साथ ही राज्य सरकार को लचीलापन (Flexibility) प्रदान करता है ताकि वह आवश्यकतानुसार अन्य न्यायालयों को भी अधिकारिता दे सके।

    (c) "पूर्ण रक्त" और "अर्ध रक्त" (Full Blood and Half Blood)

    "पूर्ण रक्त" (Full Blood) से संबंधित तब माने जाते हैं जब वे एक ही पूर्वज (Common Ancestor) से एक ही पत्नी (Same Wife) से उत्पन्न होते हैं। "अर्ध रक्त" (Half Blood) से संबंधित तब माने जाते हैं जब वे एक ही पूर्वज से विभिन्न पत्नियों (Different Wives) से उत्पन्न होते हैं।

    (d) "गर्भाशय रक्त" (Uterine Blood)

    "गर्भाशय रक्त" (Uterine Blood) से संबंधित तब माने जाते हैं जब वे एक ही पूर्वजा (Common Ancestress) से विभिन्न पतियों (Different Husbands) से उत्पन्न होते हैं।

    स्पष्टीकरण (Explanation): खंड (c) और (d) में, "पूर्वज" (Ancestor) में पिता (Father) शामिल है और "पूर्वजा" (Ancestress) में माता (Mother) शामिल है।

    स्पष्टीकरण: ये परिभाषाएँ विभिन्न प्रकार के रक्त संबंधों (Blood Relationships) को स्पष्ट करती हैं जो विवाह की वैधता (Validity of Marriage) के लिए महत्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से निषिद्ध संबंध (Prohibited Relationship) और सपिंड संबंध (Sapinda Relationship) की गणना (Calculation) में।

    (e) "निर्धारित" (Prescribed)

    "निर्धारित" (Prescribed) का अर्थ इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों (Rules made under this Act) द्वारा निर्धारित है।

    स्पष्टीकरण: यह एक मानक कानूनी पद (Standard Legal Term) है जो बताता है कि विशिष्ट प्रक्रियात्मक विवरण (Procedural Details) अधिनियम के तहत बनाए जाने वाले नियमों में मिलेंगे, न कि अधिनियम में ही।

    (f) "सपिंड संबंध" (Sapinda Relationship)

    (i) किसी भी व्यक्ति के संदर्भ में "सपिंड संबंध" माता की ओर से आरोही रेखा (Line of Ascent) में तीसरी पीढ़ी (Third Generation) (सहित) तक, और पिता की ओर से आरोही रेखा में पाँचवीं पीढ़ी (Fifth Generation) (सहित) तक फैला होता है, जिसमें प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति से ऊपर की ओर रेखा का पता लगाया जाता है, जिसे पहली पीढ़ी (First Generation) के रूप में गिना जाता है;

    (ii) दो व्यक्तियों को एक-दूसरे का "सपिंड" (Sapindas) तब कहा जाता है यदि एक दूसरे का सपिंड संबंध की सीमाओं (Limits of Sapinda Relationship) के भीतर एक सीधा आरोही (Lineal Ascendant) है, या यदि उनके पास एक सामान्य सीधा आरोही (Common Lineal Ascendant) है जो उनमें से प्रत्येक के संदर्भ में सपिंड संबंध की सीमाओं के भीतर है;

    स्पष्टीकरण: सपिंड संबंध हिंदू विवाह में एक महत्वपूर्ण बाधा (Impediment) है। यह एक व्यक्ति और उसके विशिष्ट पूर्वजों (Specific Ancestors) के बीच निकट संबंध को परिभाषित करता है। यदि दो व्यक्ति एक-दूसरे के सपिंड हैं, तो उनके बीच विवाह आमतौर पर वर्जित (Prohibited) होता है, जब तक कि कोई मान्य रीति-रिवाज (Valid Custom) इसकी अनुमति न दे।

    (g) "निषिद्ध संबंध की डिग्री" (Degrees of Prohibited Relationship)

    दो व्यक्तियों को "निषिद्ध संबंध की डिग्री" (Degrees of Prohibited Relationship) के भीतर तब कहा जाता है—

    (i) यदि एक दूसरे का सीधा आरोही (Lineal Ascendant) है; या (ii) यदि एक दूसरे के सीधे आरोही या सीधे अवरोही (Lineal Descendant) का पति या पत्नी (Wife or Husband) था; या (iii) यदि एक दूसरे के भाई (Brother) या पिता (Father) या माता (Mother) के भाई या दादा (Grandfather) या दादी (Grandmother) के भाई की पत्नी था; या (iv) यदि दोनों भाई और बहन (Brother and Sister), चाचा (Uncle) और भतीजी (Niece), बुआ (Aunt) और भतीजा (Nephew), या भाई और बहन के बच्चे (Children of Brother and Sister) या दो भाइयों (Two Brothers) या दो बहनों (Two Sisters) के बच्चे हैं;

    स्पष्टीकरण (Explanation): खंड (f) और (g) के प्रयोजनों (Purposes) के लिए, संबंध (Relationship) में शामिल है—

    (i) अर्ध या गर्भाशय रक्त (Half or Uterine Blood) के साथ-साथ पूर्ण रक्त (Full Blood) द्वारा संबंध; (ii) वैध (Legitimate) के साथ-साथ अवैध रक्त संबंध (Illegitimate Blood Relationship); (iii) दत्तक ग्रहण (Adoption) के साथ-साथ रक्त (Blood) द्वारा संबंध; और उन खंडों में संबंध के सभी पदों का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।

    स्पष्टीकरण: निषिद्ध संबंध की डिग्री विवाह के लिए एक और महत्वपूर्ण बाधा है, जिसका उद्देश्य incestuous (अनैतिक) संबंधों को रोकना है। यह सीधी वंशावली (Direct Lineage), विवाह से संबंधित रिश्ते (Relations by Marriage) और कुछ भाई-बहन/चाचा-भतीजी/बुआ-भतीजा संबंधों को विवाह के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable) मानता है। स्पष्टीकरण यह सुनिश्चित करता है कि ये परिभाषाएँ व्यापक (Comprehensive) हैं और इसमें विभिन्न प्रकार के पारिवारिक संबंध शामिल हैं।

    4. अधिनियम का अधिरोही प्रभाव (Overriding Effect of Act)

    जैसा कि इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से (Expressly) अन्यथा प्रदान किया गया है, उसके सिवाय,—

    (a) हिंदू कानून (Hindu Law) का कोई भी पाठ नियम (Text Rule) या व्याख्या (Interpretation) या कोई भी रीति-रिवाज (Custom) या उपयोग (Usage) जो इस अधिनियम के प्रारंभ (Commencement) से ठीक पहले लागू (In force) था, उस मामले के संबंध में प्रभावहीन (Cease to have effect) हो जाएगा जिसके लिए इस अधिनियम में प्रावधान (Provision) किया गया है;

    (b) इस अधिनियम के प्रारंभ से ठीक पहले लागू कोई भी अन्य कानून (Any other law) उस हद तक प्रभावहीन हो जाएगा जहाँ तक वह इस अधिनियम में निहित किसी भी प्रावधान के असंगत (Inconsistent) है।

    स्पष्टीकरण: यह धारा अधिनियम के महत्व और उसके सुधारवादी उद्देश्य (Reformative Purpose) को रेखांकित करती है। इसका अर्थ है कि एक बार जब हिंदू विवाह अधिनियम लागू हो गया, तो विवाह से संबंधित कोई भी पुराना हिंदू कानून, पाठ, व्याख्या, रीति-रिवाज या उपयोग अब वैध नहीं रहेगा यदि वह इस अधिनियम में दिए गए प्रावधानों के विपरीत (Contrary) है। इसी तरह, कोई भी अन्य कानून जो इस अधिनियम के प्रावधानों से मेल नहीं खाता है, वह अपनी शक्ति खो देगा। यह एकल, एकीकृत और आधुनिक कानून (Single, Unified, and Modern Law) के रूप में अधिनियम की सर्वोच्चता (Supremacy) स्थापित करता है।

    संबंधित महत्वपूर्ण मामले (Related Landmark Cases)

    धारा 3 और 4 की व्याख्या से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण मामले अधिनियम के दायरे और उसके अधिरोही प्रभाव को स्पष्ट करते हैं:

    1. जी.एम. रेवनसिद्दैया बनाम के.एम. अंबिका (G.M. Revannasiddaiah v. K.M. Ambika), 2005 (सपिंड संबंध और रीति-रिवाज):

    o मामला: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सपिंड विवाहों (Sapinda Marriages) को केवल तभी वैध माना जा सकता है जब उन्हें स्थापित (Established) और प्राचीन (Ancient) रीति-रिवाज द्वारा स्पष्ट रूप से अनुमति दी गई हो। रीति-रिवाज को निश्चित (Certain), उचित (Reasonable) और सार्वजनिक नीति के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। इस मामले ने सपिंड संबंध की परिभाषा और उसके अपवाद (Exception) के रूप में रीति-रिवाज की कड़ी शर्तों (Strict Conditions) को सुदृढ़ किया।

    o महत्व: यह निर्णय धारा 3(a) (रीति-रिवाज) और धारा 3(f) (सपिंड संबंध) के प्रावधानों के बीच संबंध को स्पष्ट करता है, यह बताता है कि रीति-रिवाज को कितनी कठोरता से साबित करना होगा ताकि वह सपिंड नियम का अपवाद बन सके।

    2. वसंतराव बनाम स्टेट ऑफ महाराष्ट्र (Vasantrao v. State of Maharashtra), 1963 (रीति-रिवाज और स्थानीयता):

    o मामला: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने इस बात पर चर्चा की कि एक "रीति-रिवाज" को एक निश्चित स्थानीय क्षेत्र (Certain Local Area) या समुदाय तक सीमित होना चाहिए और यह एक सामान्य प्रथा (General Practice) नहीं होनी चाहिए। इसने रीति-रिवाज की क्षेत्रीय या सामुदायिक विशिष्टता (Regional or Community Specificity) पर जोर दिया।

    o महत्व: यह धारा 3(a) में "स्थानीय क्षेत्र, जनजाति, समुदाय, समूह या परिवार" के दायरे में "रीति-रिवाज" की अवधारणा को और स्पष्ट करता है।

    3. चेल्लियाना नयनायकर बनाम चेल्लियाना नयनायकर (Chellianna Nayakar v. Chellianna Nayakar), 1963 (अधिनियम का अधिरोही प्रभाव):

    o मामला: इस मामले में न्यायालय ने धारा 4 (a) के तहत हिंदू विवाह अधिनियम के अधिरोही प्रभाव को लागू किया। न्यायालय ने माना कि अधिनियम के लागू होने के बाद, किसी भी पुराने हिंदू कानून या रीति-रिवाज, जो अधिनियम के प्रावधानों के साथ असंगत थे, वे प्रभावहीन हो गए।

    o महत्व: यह निर्णय धारा 4 के मूल सिद्धांत (Core Principle) की पुष्टि करता है, कि हिंदू विवाह अधिनियम एक व्यापक और समेकित कानून (Comprehensive and Consolidated Law) है जो पुराने, खंडित (Fragmented) और अक्सर विरोधाभासी (Contradictory) प्रावधानों को प्रतिस्थापित करता है।

    ये धाराएँ और न्यायिक व्याख्याएँ हिंदू विवाह अधिनियम की नींव के रूप में कार्य करती हैं, यह सुनिश्चित करती हैं कि विवाह और संबंधित मामलों के नियमन के लिए एक स्पष्ट, सुसंगत (Coherent) और आधुनिक कानूनी ढांचा (Legal Framework) मौजूद है।

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