भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 491: बांड की ज़ब्ती की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

Himanshu Mishra

2 Jun 2025 12:36 PM

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 491: बांड की ज़ब्ती की स्थिति में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 491 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो उस स्थिति से संबंधित है जब कोई व्यक्ति अपने द्वारा दिए गए बांड (Bond) की शर्तों का उल्लंघन करता है और न्यायालय द्वारा उसे ज़ब्त (forfeit) घोषित कर दिया जाता है।

    यह धारा यह भी निर्धारित करती है कि ऐसी स्थिति में न्यायालय क्या प्रक्रिया अपनाएगा, क्या अधिकार रखेगा, और जमानतदार (Surety) या अभियुक्त को क्या परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

    धारा 491(1): जब बांड ज़ब्त हो जाए, तो क्या किया जाएगा

    धारा 491 की उपधारा (1) स्पष्ट रूप से यह बताती है कि जब कोई व्यक्ति अपने बांड की शर्तों का पालन नहीं करता है, और न्यायालय को संतोषजनक रूप से यह सिद्ध हो जाता है कि बांड ज़ब्त किया जाना चाहिए, तब न्यायालय निम्नलिखित कदम उठाता है—

    पहली स्थिति तब होती है जब बांड व्यक्ति की न्यायालय में पेशी या किसी संपत्ति को प्रस्तुत करने से संबंधित होता है। अगर यह सिद्ध हो जाता है कि अभियुक्त अदालत में उपस्थित नहीं हुआ या संपत्ति नहीं प्रस्तुत की, तो यह बांड की शर्तों का उल्लंघन माना जाएगा और उसे ज़ब्त किया जा सकता है।

    दूसरी स्थिति किसी अन्य प्रकार के बांड से संबंधित है (जैसे अच्छे आचरण का बांड)। यदि न्यायालय को लगता है कि यह बांड भी उल्लंघित हुआ है, तो वह न्यायालय भी बांड को ज़ब्त कर सकता है, चाहे वह बांड जिस न्यायालय में भरा गया था वह न होकर कोई अन्य न्यायालय ही क्यों न हो, जिसमें मामला स्थानांतरित हो गया हो।

    न्यायालय ऐसी स्थिति में बांड ज़ब्त करने के कारणों को रिकॉर्ड करता है और फिर उस व्यक्ति को (चाहे अभियुक्त हो या उसका जमानतदार) नोटिस जारी करता है कि वह जुर्माना (penalty) राशि क्यों न दे, या ऐसा करने से क्यों छूट दी जाए। यानी, व्यक्ति को यह अवसर दिया जाता है कि वह स्पष्टीकरण दे कि बांड का उल्लंघन क्यों हुआ और उस पर दंड क्यों न लगाया जाए।

    स्पष्टीकरण (Explanation): इस उपधारा में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी व्यक्ति का बांड किसी एक न्यायालय में पेश होने के लिए भरा गया था, लेकिन बाद में मामला किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित हो जाता है, तो उसे उस दूसरे न्यायालय में भी पेश होना पड़ेगा। यह स्थिति बांड की व्याख्या का हिस्सा मानी जाएगी।

    उदाहरण के तौर पर, रवि को एक न्यायालय में ₹30,000 के जमानत बांड पर रिहा किया गया था और उसे 15 जून को पेश होना था। लेकिन मामला उच्चतर न्यायालय में स्थानांतरित हो गया, और रवि ने वहां उपस्थिति नहीं दी। यह बांड की शर्त का उल्लंघन माना जाएगा और न्यायालय बांड ज़ब्त कर सकता है।

    धारा 491(2): जुर्माने की वसूली और सिविल जेल में सजा

    यदि वह व्यक्ति (जिस पर बांड की जिम्मेदारी थी) न्यायालय द्वारा बताए गए कारणों का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाता, और ना ही वह बांड की राशि (जुर्माना) चुकाता है, तो न्यायालय उस राशि की वसूली एक सामान्य जुर्माने की तरह करेगा। इसका मतलब यह है कि न्यायालय उस व्यक्ति की संपत्ति कुर्क करवा सकता है या अन्य विधिक साधनों से राशि वसूल सकता है।

    यदि वह व्यक्ति जुर्माना देने में असमर्थ रहता है और राशि की वसूली भी नहीं हो पाती, तब न्यायालय आदेश दे सकता है कि वह व्यक्ति सिविल जेल (civil jail) में भेजा जाए। इस सजा की अधिकतम अवधि छह महीने तक हो सकती है।

    यह एक बहुत महत्वपूर्ण दंडात्मक उपाय है जिससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि बांड और जमानतदारों की भूमिका केवल औपचारिकता न रह जाए, बल्कि उनके उल्लंघन पर सख्त परिणाम भी हों।

    धारा 491(3): दंड राशि में छूट या आंशिक वसूली का प्रावधान

    धारा 491 की तीसरी उपधारा न्यायालय को यह अधिकार देती है कि यदि उसे उचित प्रतीत हो, तो वह बांड की ज़ब्ती के बावजूद, पूरी दंड राशि वसूलने के स्थान पर कुछ राशि माफ कर सकता है और आंशिक राशि ही वसूल सकता है।

    यह न्यायालय को विवेकाधिकार (discretionary power) देता है, और इसका उपयोग विशेष परिस्थितियों में किया जाता है जैसे कि जमानतदार वृद्ध है, आर्थिक रूप से दुर्बल है, या अभियुक्त ने जानबूझकर बांड नहीं तोड़ा।

    उदाहरण के लिए, अगर सुरेश ने अपने भतीजे के लिए ₹50,000 का जमानत बांड भरा था लेकिन भतीजा अदालत में पेश नहीं हुआ, और सुरेश स्वयं भी बहुत वृद्ध और बीमार है, तब न्यायालय चाहे तो पूरी राशि वसूलने के बजाय केवल ₹10,000 या ₹20,000 ही वसूल करने का आदेश दे सकता है।

    धारा 491(4): जमानतदार की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति की सुरक्षा

    यदि कोई व्यक्ति जो किसी का जमानतदार था, उसकी मृत्यु उस समय से पहले हो जाती है जब बांड ज़ब्त किया गया हो, तो उसकी संपत्ति उस बांड की जिम्मेदारी से मुक्त मानी जाएगी। इसका सीधा अर्थ यह है कि मरने के बाद जमानतदार के उत्तराधिकारियों से कोई दंड नहीं लिया जाएगा, न ही उनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी।

    इस प्रावधान से यह सुनिश्चित किया जाता है कि मृत व्यक्ति की संपत्ति पर अन्यायपूर्ण कार्रवाई न हो।

    उदाहरण के लिए, लक्ष्मण ने अपने मित्र शंकर के लिए जमानत दी थी। लेकिन बांड ज़ब्त होने से पहले ही लक्ष्मण का देहांत हो गया। अब शंकर अगर अदालत में पेश नहीं होता, तो लक्ष्मण की संपत्ति पर कोई जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।

    धारा 491(5): पूर्व अपराध सिद्ध होने पर उसका प्रभाव जमानतदार पर

    यदि किसी व्यक्ति ने धारा 125, 136 या 401 के अंतर्गत बांड भरा था और बाद में उस व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है जो उसके बांड की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उस अपराध के निर्णय की प्रमाणित प्रति (certified copy) को न्यायालय में उसके जमानतदार के विरुद्ध उपयोग किया जा सकता है।

    ऐसी स्थिति में, न्यायालय यह मान लेगा कि उस व्यक्ति ने अपराध किया था और उसने बांड की शर्तों का उल्लंघन किया है — जब तक कि जमानतदार या अन्य पक्ष यह सिद्ध न कर दें कि अपराध नहीं हुआ।

    उदाहरण के रूप में, रोहित ने शांति बनाए रखने की शर्त पर बांड भरा था। बाद में वह गंभीर मारपीट के मामले में दोषी पाया गया। उस निर्णय की प्रमाणित प्रति रोहित के जमानतदार के विरुद्ध प्रस्तुत की गई, और न्यायालय ने माना कि रोहित ने बांड का उल्लंघन किया, जब तक रोहित या उसका जमानतदार यह सिद्ध न करें कि अपराध नहीं हुआ।

    यह प्रावधान जमानतदारों पर एक नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी डालता है कि वे उस व्यक्ति की जिम्मेदारी सही से निभाएं जिसकी जमानत ली है।

    धारा 491 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत बांड की शर्तों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों और उनके जमानतदारों के विरुद्ध की जाने वाली प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और न्यायसंगत ढंग से प्रस्तुत करती है। इसमें बांड की ज़ब्ती के आधार, दंड की वसूली, जेल भेजने की स्थिति, दंड में छूट, मृत जमानतदार की संपत्ति की रक्षा, और दोषसिद्ध अभियुक्तों के विरुद्ध प्रमाण के रूप में निर्णय का उपयोग — इन सभी का समावेश है।

    धारा 487 से 490 तक की धाराएं बांड की प्रकृति, जमानतदारों की भूमिका, बांड से मुक्त होने का अधिकार, और धन जमा करने के विकल्प की चर्चा करती हैं, जबकि धारा 491 इन सभी का तार्किक निष्कर्ष प्रस्तुत करती है जब इन प्रावधानों का उल्लंघन होता है, तो कानून कैसे क्रियाशील होता है।

    इसलिए, न्यायालय, अधिवक्ता, अभियुक्त, और जमानतदार — सभी को इन प्रावधानों की गहन जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है, ताकि न्याय की प्रक्रिया पारदर्शी, उत्तरदायी और निष्पक्ष बनी रहे।

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