भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482: अग्रिम जमानत की अवधारणा

Himanshu Mishra

28 May 2025 11:30 AM

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 482: अग्रिम जमानत की अवधारणा

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 482 उस स्थिति को संबोधित करती है जब किसी व्यक्ति को यह आशंका हो कि उसे किसी गैर-जमानती अपराध (Non-Bailable Offence) के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है।

    इस स्थिति में, व्यक्ति अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) की मांग कर सकता है। यह धारा पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 से प्रेरित है, जिसे अग्रिम जमानत की धारा के रूप में जाना जाता था। धारा 482 में इस प्रकार की जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया, शर्तें और अपवादों को स्पष्ट किया गया है।

    अग्रिम जमानत की अवधारणा

    अग्रिम जमानत एक पूर्व-सावधानी है जो किसी व्यक्ति को संभावित गिरफ्तारी से सुरक्षा देती है। यह जमानत तब दी जाती है जब व्यक्ति को यह विश्वास होता है कि उसे किसी गैर-जमानती अपराध के लिए झूठे या दुर्भावनापूर्ण इरादे से फंसाया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय (High Court) या सत्र न्यायालय (Court of Session) से अनुरोध कर सकता है कि यदि उसे गिरफ्तार किया जाए, तो उसे गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत पर रिहा किया जाए।

    धारा 482(1): अग्रिम जमानत के लिए आवेदन और न्यायालय की शक्ति

    धारा 482(1) के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास हो कि उसे किसी गैर-जमानती अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में आवेदन कर सकता है। यह आवेदन तब किया जाता है जब गिरफ्तारी अभी नहीं हुई है, लेकिन उसकी आशंका हो। न्यायालय, यदि उपयुक्त समझे, तो यह निर्देश दे सकता है कि उस व्यक्ति की गिरफ्तारी की स्थिति में उसे जमानत पर रिहा किया जाए।

    उदाहरण के लिए, यदि राम को यह आशंका है कि उसके ससुराल पक्ष के लोग उसे झूठे घरेलू हिंसा के आरोप में फंसा सकते हैं, और पुलिस में शिकायत दर्ज हो गई है, लेकिन अभी गिरफ्तारी नहीं हुई है, तो राम धारा 482 के अंतर्गत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

    धारा 482(2): अग्रिम जमानत के निर्देश में न्यायालय द्वारा लगाई जा सकने वाली शर्तें

    जब न्यायालय किसी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने का निर्देश देता है, तो वह कुछ शर्तें भी निर्धारित कर सकता है, जो निम्न प्रकार की हो सकती हैं:

    पहली शर्त यह हो सकती है कि आरोपी व्यक्ति पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए जब भी बुलाया जाए, वह उपलब्ध रहेगा। इसका उद्देश्य जांच में सहयोग सुनिश्चित करना है।

    दूसरी शर्त यह हो सकती है कि वह व्यक्ति किसी भी गवाह को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा। अर्थात वह किसी को न तो धमकाएगा, न प्रलोभन देगा और न ही वादा करेगा ताकि वे सच्चाई अदालत या पुलिस को न बता सकें।

    तीसरी शर्त यह हो सकती है कि वह व्यक्ति बिना न्यायालय की पूर्व अनुमति के भारत नहीं छोड़ेगा। यह शर्त न्यायालय की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने के लिए लगाई जाती है ताकि व्यक्ति देश छोड़कर भाग न जाए।

    इसके अतिरिक्त, ऐसी अन्य शर्तें भी लगाई जा सकती हैं जो धारा 480(3) के अंतर्गत सामान्य जमानत के मामलों में लागू होती हैं। अर्थात अग्रिम जमानत के मामलों में भी न्यायालय उन सभी शर्तों को लागू कर सकता है, जो गैर-जमानती अपराध में सामान्य जमानत के समय धारा 480(3) के तहत लागू होती हैं।

    धारा 482(3): गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत

    यदि किसी व्यक्ति को अग्रिम जमानत का निर्देश मिल चुका है और बाद में पुलिस उसे बिना वारंट के गिरफ्तार करती है, तो वह व्यक्ति यदि गिरफ्तारी के समय या पुलिस हिरासत में रहते हुए जमानत देने को तैयार हो, तो उसे तुरंत रिहा कर दिया जाएगा।

    साथ ही, यदि मजिस्ट्रेट इस अपराध में संज्ञान लेने के बाद यह तय करता है कि इस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया जाना चाहिए, तो उसे अग्रिम जमानत के निर्देशों के अनुरूप "जमानतीय वारंट" (bailable warrant) जारी करना होगा, न कि गिरफ्तारी हेतु गैर-जमानतीय वारंट।

    उदाहरण के लिए, सीता ने अग्रिम जमानत प्राप्त की है। बाद में पुलिस उसे गिरफ्तार करती है। यदि सीता गिरफ्तारी के समय जमानत देने को तैयार है, तो पुलिस को उसे रिहा करना होगा। यदि मजिस्ट्रेट वारंट जारी करता है, तो उसे बेलीबल वारंट ही देना होगा।

    धारा 482(4): अग्रिम जमानत के अपवाद

    धारा 482(4) स्पष्ट रूप से कहती है कि यह धारा उन मामलों पर लागू नहीं होगी जिनमें आरोपी पर भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की धारा 65 (बलात्कार) और धारा 70(2) (गैंग रेप) के तहत आरोप है। अर्थात, ऐसे गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत की मांग नहीं की जा सकती। इन अपराधों की संवेदनशीलता और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए विधि-निर्माताओं ने इन्हें अग्रिम जमानत से बाहर रखा है।

    संबंधित प्रावधान: धारा 480 और धारा 491 का संदर्भ

    धारा 480 गैर-जमानती अपराधों में सामान्य जमानत से संबंधित है। जब अग्रिम जमानत दी जाती है, तो धारा 482(2)(iv) के अनुसार, न्यायालय धारा 480(3) में वर्णित शर्तें लागू कर सकता है। इस प्रकार, धारा 480 की समझ अग्रिम जमानत के मामलों में भी आवश्यक हो जाती है।

    साथ ही, यदि आरोपी जमानत की शर्तों का उल्लंघन करता है या न्यायालय में उपस्थित नहीं होता, तो धारा 491 के तहत उसकी जमानत जब्त की जा सकती है और आगे की कार्यवाही की जा सकती है।

    महत्वपूर्ण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

    सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत के विषय में कई बार विस्तृत मार्गदर्शन दिया है। इनमें प्रमुख हैं:

    गुर्कीरत सिंह बनाम राज्य (2020) – सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत देना कोई असाधारण उपाय नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा का एक उपाय है। न्यायालय को तथ्यों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।

    लालू यादव बनाम राज्य (2003) – इस केस में कहा गया कि यदि व्यक्ति के विरुद्ध गंभीर आर्थिक अपराध हो और वह प्रभावशाली हो, तो अग्रिम जमानत देने से पहले गहन परीक्षण जरूरी है।

    सिद्धारमैया बनाम राज्य कर्नाटक (2021) – न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत देना या इनकार करना पूरी तरह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। इस निर्णय में यह भी कहा गया कि अग्रिम जमानत देने से पूर्व अभियोजन पक्ष को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है।

    सत्य नारायण शर्मा बनाम राज्य मध्य प्रदेश (2001) – कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत के मामले में न्यायालय को आरोपी के सामाजिक पद, राजनीतिक स्थिति या दबाव को अनदेखा कर केवल तथ्यों और कानून के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।

    धारा 482 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत एक अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करती है। यह प्रावधान व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि कोई निर्दोष व्यक्ति केवल आरोपों के आधार पर जेल न चला जाए। हालांकि, इस धारा के अंतर्गत दी गई जमानत अंधाधुंध नहीं होनी चाहिए, बल्कि न्यायालय को प्रत्येक मामले के तथ्यों, अपराध की प्रकृति और आरोपी के आचरण को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।

    साथ ही, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि आरोपी ने धारा 65 या धारा 70(2) के तहत अपराध किया है, तो उसे अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती। इससे यह स्पष्ट होता है कि कानून गंभीर अपराधों और महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को लेकर सख्त रुख अपनाता है।

    अंततः, अग्रिम जमानत का उद्देश्य न्याय से भागने की छूट देना नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना है, जो अभी तक दोषी सिद्ध नहीं हुआ है। इस संतुलन को बनाए रखना ही न्यायालयों की सबसे बड़ी चुनौती है, और धारा 482 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण विधिक साधन है।

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