भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 479: विचाराधीन बंदियों की अधिकतम निरुद्ध
Himanshu Mishra
26 May 2025 11:49 AM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 479, विचाराधीन बंदियों (Undertrial Prisoners) की अधिकतम निरुद्ध अवधि (Maximum Detention Period) को निर्धारित करती है।
यह प्रावधान पूर्ववर्ती दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 436A के स्थान पर लागू हुआ है। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण विचाराधीन बंदियों की अनावश्यक लंबी निरुद्धता को रोकना और जेलों में भीड़भाड़ को कम करना है।
धारा 479(1): सामान्य प्रावधान (Section 479(1): General Provision)
यदि कोई व्यक्ति, जिसे किसी ऐसे अपराध के लिए निरुद्ध किया गया है जिसके लिए मृत्युदंड (Death Penalty) या आजीवन कारावास (Life Imprisonment) का प्रावधान नहीं है, और उसने जांच, पूछताछ या मुकदमे की अवधि के दौरान उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि के आधे समय तक निरुद्धता भुगती है, तो उसे न्यायालय द्वारा जमानत (Bail) पर रिहा किया जाएगा।
प्रथम बार अपराध करने वालों के लिए विशेष प्रावधान (Special Provision for First-Time Offenders)
यदि ऐसा व्यक्ति प्रथम बार अपराध करने वाला है, अर्थात उसने पूर्व में किसी भी अपराध के लिए सजा नहीं पाई है, और उसने उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि के एक-तिहाई समय तक निरुद्धता भुगती है, तो न्यायालय उसे बांड (Bond) पर रिहा करेगा।
न्यायालय का विवेकाधिकार (Court's Discretion)
न्यायालय, लोक अभियोजक (Public Prosecutor) की सुनवाई के बाद, लिखित रूप में कारण दर्ज करके, ऐसे व्यक्ति की निरुद्धता को आधे से अधिक अवधि तक बढ़ा सकता है या उसे बांड के स्थान पर जमानत बांड (Bail Bond) पर रिहा कर सकता है।
अधिकतम निरुद्धता अवधि की सीमा (Maximum Limit of Detention)
किसी भी स्थिति में, ऐसा व्यक्ति उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि से अधिक समय तक निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
स्पष्टीकरण (Explanation)
इस धारा के अंतर्गत जमानत देने के लिए निरुद्धता की अवधि की गणना करते समय, अभियुक्त द्वारा कार्यवाही में देरी के कारण बीता समय शामिल नहीं किया जाएगा।
धारा 479(2): बहु-अपराध या बहु-मामलों की स्थिति (Section 479(2): Multiple Offences or Cases)
यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध एक से अधिक अपराधों की जांच, पूछताछ या मुकदमे लंबित हैं, तो उसे न्यायालय द्वारा जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा, भले ही उसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट अवधि की निरुद्धता भुगती हो।
धारा 479(3): जेल अधीक्षक की भूमिका (Section 479(3): Role of Jail Superintendent)
जिस जेल में अभियुक्त निरुद्ध है, वहां के जेल अधीक्षक (Superintendent of Jail) को, उपधारा (1) में निर्दिष्ट एक-तिहाई या आधी अवधि की निरुद्धता पूरी होने पर, तुरंत न्यायालय में लिखित आवेदन प्रस्तुत करना होगा, ताकि न्यायालय उस व्यक्ति की जमानत पर रिहाई की प्रक्रिया प्रारंभ कर सके।
पूर्ववर्ती प्रावधानों से तुलना (Comparison with Previous Provisions)
धारा 479, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 436A के स्थान पर लागू हुई है। पूर्ववर्ती प्रावधान में, विचाराधीन बंदियों को उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कारावास अवधि के आधे समय की निरुद्धता के बाद जमानत पर रिहा किया जा सकता था। धारा 479 में, प्रथम बार अपराध करने वालों के लिए यह अवधि एक-तिहाई कर दी गई है, जिससे उन्हें शीघ्र रिहाई का अवसर मिलता है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए, एक व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तार किया गया है, जिसके लिए अधिकतम कारावास अवधि 6 वर्ष है, और वह प्रथम बार अपराध करने वाला है। यदि उसने 2 वर्ष (6 वर्ष का एक-तिहाई) की निरुद्धता भुगती है, तो उसे न्यायालय द्वारा बांड पर रिहा किया जाएगा। यदि वह प्रथम बार अपराध करने वाला नहीं है, तो उसे 3 वर्ष (6 वर्ष का आधा) की निरुद्धता के बाद जमानत पर रिहा किया जाएगा।
धारा 479 का उद्देश्य विचाराधीन बंदियों की अनावश्यक लंबी निरुद्धता को रोकना और न्यायिक प्रक्रिया में देरी के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को कम करना है। यह प्रावधान न्यायालयों को विवेकाधिकार प्रदान करता है, साथ ही जेल अधीक्षकों को भी सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर देता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और गति सुनिश्चित हो सके।