भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 478: जमानत और बांड से जुड़ी कानूनी प्रक्रिया
Himanshu Mishra
24 May 2025 7:36 PM IST

जमानत और बांड का अर्थ (Meaning of Bail and Bond)
आगे बढ़ने से पहले यह समझना जरूरी है कि जमानत (Bail) और बांड (Bond) का मतलब क्या होता है। जमानत का मतलब होता है कि जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया हो, तो उसे कुछ शर्तों के साथ अस्थायी रूप से पुलिस या अदालत की हिरासत से छोड़ा जा सकता है, बशर्ते वह भविष्य में कोर्ट में पेश होने का वादा करे। यह वादा एक लिखित बांड या ज़मानती (Surety) के जरिए किया जाता है।
बांड एक लिखित वादा (Written Promise) होता है कि व्यक्ति तय तारीखों पर अदालत में हाजिर होगा। कई बार यह बांड किसी ज़मानती (वह व्यक्ति जो यह जिम्मेदारी लेता है कि आरोपी कोर्ट में पेश होगा) के साथ भी जमा किया जाता है।
बाइलबल और नॉन-बाइलबल अपराध (Bailable and Non-Bailable Offence)
भारतीय आपराधिक कानून में दो तरह के अपराध होते हैं:
• बाइलबल (Bailable) अपराध – जिनमें आरोपी को जमानत पर छोड़ना उसका कानूनी अधिकार (Legal Right) होता है।
• नॉन-बाइलबल (Non-Bailable) अपराध – जिनमें जमानत देना कोर्ट के विवेक (Discretion) पर निर्भर करता है।
जब जमानत लेना कानूनी अधिकार होता है (When Bail is a Legal Right)
धारा 478(1) कहती है कि जब कोई व्यक्ति बिना वारंट (Without Warrant) के गिरफ्तार किया गया हो और वह नॉन-बाइलबल अपराध का आरोपी नहीं है, तो वह किसी भी समय अगर जमानत देने को तैयार हो, तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
यह नियम इन स्थितियों में भी लागू होता है:
• जब व्यक्ति खुद अदालत में हाजिर होता है, या
• जब पुलिस उसे अदालत में पेश करती है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए रमेश को साधारण मारपीट (Simple Hurt) के मामले में गिरफ्तार किया गया, जो एक बाइलबल अपराध है। अगर रमेश जमानत देने को तैयार है, तो पुलिस को उसे जमानत पर छोड़ना ही होगा।
गरीब (Indigent) व्यक्ति के लिए विशेष सुविधा (Special Relief for Indigent Person)
इस धारा में गरीबों का भी विशेष ध्यान रखा गया है। अगर कोई व्यक्ति जमानत के लिए ज़मानती नहीं दे सकता, तो पुलिस या कोर्ट उसे स्वयं के वचन (Own Bond) पर छोड़ सकती है। इसका मतलब है कि उसे कोई ज़मानती नहीं देना होगा — सिर्फ एक लिखित वादा करना होगा कि वह कोर्ट में हाजिर होगा।
इसके अलावा, एक बहुत ही मानवीय प्रावधान यह है कि अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तारी की तारीख से एक हफ्ते के अंदर जमानत नहीं दे पाता, तो मान लिया जाएगा कि वह गरीब (Indigent) है।
उदाहरण के तौर पर, श्याम एक मजदूर है जिसे एक बाइलबल अपराध में गिरफ्तार किया गया है। वह कहता है कि वह कोर्ट में जरूर हाजिर होगा, लेकिन उसके पास कोई ज़मानती नहीं है। अगर श्याम 7 दिन तक जेल में रहता है, तो पुलिस या कोर्ट को उसे स्वतः ही गरीब मानकर स्वयं के बांड पर रिहा करना चाहिए।
अपवाद (Exceptions) – अन्य महत्वपूर्ण धाराएं (Reference to Other Important Sections)
धारा 478 यह भी कहती है कि इसके प्रावधान धारा 135(3) और धारा 492 को प्रभावित नहीं करेंगे।
• धारा 135(3) कुछ विशेष परिस्थितियों में जमानत की शर्तें तय करती है, जैसे कि गंभीर मामलों में अतिरिक्त नियम।
• धारा 492 यह बताती है कि अगर कोई व्यक्ति बांड की शर्तों का उल्लंघन करता है, तो उसकी जमानत रद्द (Cancel) की जा सकती है।
इसका मतलब यह है कि धारा 478 के अंतर्गत रिहा व्यक्ति अगर शर्तें तोड़े, तो कोर्ट के पास उसके खिलाफ कार्रवाई करने का पूरा अधिकार रहता है।
अगर शर्तों का पालन न किया जाए (When Bail Conditions Are Not Followed)
धारा 478(2) के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति जमानत मिलने के बाद बांड में तय समय और स्थान पर हाजिर नहीं होता, और बाद में उसी केस में दोबारा कोर्ट में लाया जाता है, तो कोर्ट उसे फिर से जमानत देने से मना कर सकती है।
उदाहरण के लिए, सुनील को एक बाइलबल अपराध में पहले जमानत मिल गई थी। लेकिन वह बार-बार कोर्ट में अनुपस्थित रहा। जब बाद में उसे दोबारा गिरफ्तार कर कोर्ट में लाया गया, तो कोर्ट उसे जमानत देने से मना कर सकती है।
इस धारा के अनुसार, ऐसा करने से बांड की राशि वसूलने (Forfeiture) की कार्रवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके लिए कोर्ट धारा 491 का उपयोग कर सकती है।
धारा 478 की विशेषताएं (Key Features of Section 478)
1. यह उन मामलों पर लागू होती है जहाँ व्यक्ति बिना वारंट गिरफ्तार हुआ हो और बाइलबल अपराध का आरोपी हो।
2. अगर वह जमानत देने को तैयार है, तो रिहाई का अधिकार है।
3. अगर वह गरीब है और ज़मानती नहीं दे सकता, तो उसे स्वयं के बांड पर छोड़ा जा सकता है।
4. 7 दिन में जमानत न देने पर, उसे गरीब मान लिया जाएगा।
5. यह धारा धारा 135(3) और धारा 492 से प्रभावित नहीं होगी।
6. अगर व्यक्ति बांड की शर्तें तोड़े, तो कोर्ट उसे अगली बार जमानत देने से मना कर सकता है।
7. कोर्ट बांड की राशि वसूलने की कार्रवाई (Section 491) भी कर सकता है।
न्याय व्यवस्था में धारा 478 का महत्व (Importance of Section 478 in Justice System)
धारा 478 यह सुनिश्चित करती है कि गरीब और सामान्य व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा हो सके। यह न्याय की सुलभता (Access to Justice) को बढ़ावा देती है। सुप्रीम कोर्ट भी Hussainara Khatoon बनाम बिहार राज्य (1979 AIR 1369) केस में यह कह चुका है कि बिना वजह जेल में रखना अनुच्छेद 21 (Right to Life and Liberty) का उल्लंघन है।
धारा 478 यह भी सुनिश्चित करती है कि अगर कोई व्यक्ति जमानत का दुरुपयोग करता है, तो कोर्ट के पास उसे सुधारने और सज़ा देने का भी अधिकार है।
धारा 478, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह तय करता है कि बाइलबल अपराधों में व्यक्ति को न्यायसंगत तरीके से रिहाई का अधिकार मिले। साथ ही, यह व्यवस्था भी देता है कि जमानत का दुरुपयोग न हो।

