भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 477 : विशेष मामलों में राज्य सरकार को केंद्र सरकार की सहमति

Himanshu Mishra

23 May 2025 7:00 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 477 : विशेष मामलों में राज्य सरकार को केंद्र सरकार की सहमति

    परिचय

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) की धारा 477 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।

    यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है जहाँ सजा को क्षमादान (remission), निलंबन (suspension) या रूपांतरण (commutation) देने की शक्तियाँ राज्य सरकार को तो प्राप्त हैं, परंतु उन्हें कुछ मामलों में केंद्र सरकार की सहमति के बाद ही प्रयोग किया जा सकता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र सरकार से संबंधित मामलों में राज्य सरकार एकतरफा निर्णय न ले, जिससे राष्ट्रीय हित प्रभावित हो सकते हैं।

    इस धारा का गहरा संबंध धारा 473 और धारा 474 से है, जो राज्य सरकार को सजाओं को निलंबित या परिवर्तित करने की शक्ति प्रदान करती हैं। लेकिन धारा 477 उन सीमाओं को स्पष्ट करती है जिनके भीतर राज्य सरकार को कार्य करना होता है।

    धारा 477(1): कुछ विशेष मामलों में राज्य सरकार को केंद्र सरकार की सहमति लेनी आवश्यक

    धारा 477 की उपधारा (1) तीन प्रकार के मामलों को चिन्हित करती है जिनमें राज्य सरकार, धारा 473 (सजा का निलंबन या क्षमादान) और धारा 474 (सजा का रूपांतरण) के अंतर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों का उपयोग केवल केंद्र सरकार की सहमति के बाद ही कर सकती है। ये तीन प्रकार इस प्रकार हैं:

    पहला प्रकार – केंद्रीय अधिनियम के तहत जाँच की गई अपराधों के मामले

    यदि किसी अपराध की जाँच किसी ऐसे केंद्रीय एजेंसी द्वारा की गई हो जिसे किसी केंद्रीय अधिनियम (जैसे – धनशोधन निवारण अधिनियम, आतंकवाद विरोधी कानून, सीमा शुल्क अधिनियम, आदि) के तहत जांच करने का अधिकार प्राप्त हो, तो उस अपराध के संबंध में राज्य सरकार तब तक क्षमादान या सजा में परिवर्तन का आदेश पारित नहीं कर सकती जब तक कि उसे केंद्र सरकार की अनुमति न प्राप्त हो।

    उदाहरण के लिए – यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग (धनशोधन) के तहत जांच की और उसे दोषी ठहराया गया, तो राज्य सरकार उस व्यक्ति की सजा को क्षमा नहीं कर सकती या बदल नहीं सकती जब तक कि केंद्र सरकार सहमत न हो।

    दूसरा प्रकार – केंद्र सरकार की संपत्ति को नुकसान पहुँचाने वाले अपराध

    यदि कोई अपराध ऐसा है जिसमें केंद्र सरकार की संपत्ति का दुरुपयोग, विनाश, हानि या गबन हुआ है, तो ऐसे मामलों में भी राज्य सरकार को सजाओं के संबंध में कोई निर्णय लेने से पहले केंद्र सरकार से सहमति लेनी होगी।

    उदाहरण के लिए – यदि किसी व्यक्ति ने रेल मंत्रालय के गोदाम से सरकारी माल चोरी किया हो या रक्षा मंत्रालय की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया हो, तो उस व्यक्ति की सजा में कोई भी परिवर्तन राज्य सरकार तभी कर सकती है जब केंद्र सरकार इसकी अनुमति दे।

    तीसरा प्रकार – केंद्र सरकार के सेवकों द्वारा किया गया अपराध

    यदि कोई व्यक्ति केंद्र सरकार की सेवा में कार्यरत है और उसने कोई अपराध अपनी आधिकारिक ड्यूटी के दौरान या ड्यूटी का दिखावा करते हुए किया है, तो उस व्यक्ति की सजा के निलंबन, क्षमादान या परिवर्तन का निर्णय भी केवल केंद्र सरकार की सहमति के साथ ही किया जा सकता है।

    उदाहरण के लिए – यदि एक केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के अधिकारी ने अपनी ड्यूटी के दौरान किसी निर्दोष व्यक्ति पर गोली चलाई और उसे बाद में हत्या के लिए दोषी ठहराया गया, तो राज्य सरकार उसकी सजा को स्वतः कम नहीं कर सकती। इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति आवश्यक होगी।

    इस उपधारा का उद्देश्य

    यह उपधारा इस बात को सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों में, जहाँ केंद्र सरकार की प्रतिष्ठा, संपत्ति या कर्मचारी जुड़े हैं, वहाँ सजा में किसी भी प्रकार का परिवर्तन केवल केंद्र के परामर्श से हो। यह संघीय व्यवस्था की मर्यादा का संरक्षण करता है और यह सुनिश्चित करता है कि राज्य सरकार की एकतरफा दया केंद्र के मामलों को प्रभावित न करे।

    धारा 477(2): संयुक्त अपराधों के मामलों में राज्य सरकार के आदेश तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक केंद्र सरकार सहमत न हो

    धारा 477 की दूसरी उपधारा एक और जटिल स्थिति का समाधान प्रस्तुत करती है। यह तब लागू होती है जब एक व्यक्ति को कई अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया हो और इनमें से कुछ अपराध ऐसे हों जो केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हों।

    यदि इन सभी अपराधों के लिए अलग-अलग सजाएँ दी गई हैं लेकिन वे साथ-साथ चलने वाली (concurrent sentences) हों, तब भी राज्य सरकार तब तक सजा का निलंबन, क्षमादान या परिवर्तन नहीं कर सकती जब तक कि केंद्र सरकार ने उन अपराधों के लिए भी ऐसा ही आदेश पारित न किया हो।

    इस उपधारा की व्याख्या एक उदाहरण से

    मान लीजिए कि एक व्यक्ति ने दो अपराध किए हैं — पहला, राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आने वाला एक सामान्य चोरी का मामला और दूसरा, केंद्रीय अधिनियम के अंतर्गत मादक पदार्थों की तस्करी का अपराध। न्यायालय ने उसे दोनों मामलों में दोषी करार दिया और उसे पाँच वर्ष की सजा दी जो साथ-साथ चलेगी।

    अब यदि राज्य सरकार उस व्यक्ति की चोरी के मामले में सजा को क्षमा कर देती है, तब भी वह जेल से बाहर नहीं आ सकता जब तक केंद्र सरकार भी उसके दूसरे अपराध (जो केंद्र के क्षेत्राधिकार में है) में सजा को क्षमा या परिवर्तित न कर दे। इस प्रकार, राज्य सरकार का आदेश प्रभावी नहीं माना जाएगा जब तक केंद्र सरकार की ओर से भी समान आदेश जारी न हो।

    धारा 477 का धारा 473 और 474 से संबंध

    धारा 473 राज्य सरकार को यह शक्ति देती है कि वह दोषी व्यक्ति की सजा को निलंबित करे या क्षमा प्रदान करे। धारा 474 में यह अधिकार और भी अधिक विस्तृत किया गया है, जहाँ सरकार दोषी की सहमति के बिना सजा में परिवर्तन कर सकती है।

    परंतु जब मामला केंद्र सरकार से संबंधित हो — चाहे वह केंद्रीय एजेंसी की जांच हो, केंद्रीय संपत्ति का नुकसान हो या केंद्रीय कर्मचारी द्वारा किया गया अपराध हो — तब ये शक्तियाँ सीमित हो जाती हैं और धारा 477 के अनुसार केवल केंद्र सरकार की अनुमति के बाद ही लागू की जा सकती हैं। यह संतुलन संघीय व्यवस्था की आत्मा है।

    संविधानिक पृष्ठभूमि

    संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को क्षमादान, निलंबन और रूपांतरण का अधिकार देता है, वहीं अनुच्छेद 161 राज्यपाल को यह अधिकार प्रदान करता है। लेकिन जब दो शक्तियाँ एक ही व्यक्ति की सजा पर लागू हो सकती हैं — जैसे राज्य और केंद्र दोनों की शक्तियाँ — तो टकराव से बचने के लिए धारा 477 जैसे प्रावधान की आवश्यकता पड़ती है, जो स्पष्ट करता है कि कब राज्य सरकार को अपनी शक्ति सीमित रखनी होगी।

    धारा 477 भारतीय संघीय ढांचे के भीतर एक अत्यंत आवश्यक संतुलन बनाए रखती है। यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई अपराध केंद्र सरकार की संपत्ति, एजेंसियों या कर्मचारियों से जुड़ा है, तो राज्य सरकार को सजाओं में किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने से पहले केंद्र सरकार की अनुमति लेनी ही होगी।

    इसके अतिरिक्त, जब एक दोषी व्यक्ति को कई अपराधों में सजा मिली है, जिनमें कुछ राज्य सरकार और कुछ केंद्र सरकार के क्षेत्राधिकार में आते हैं, तब भी राज्य सरकार का आदेश तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक केंद्र सरकार भी समान रूप से संबंधित अपराधों में आदेश पारित न करे।

    इस प्रकार यह धारा सुनिश्चित करती है कि किसी भी स्थिति में राज्य सरकार के आदेशों से केंद्र सरकार की शक्तियाँ या प्रतिष्ठा प्रभावित न हो। यह न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और संतुलन की रक्षा करता है और भारत जैसे संघीय राष्ट्र के लिए एक अत्यंत आवश्यक कानूनी प्रावधान है।

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