भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 472 : मृत्युदंड प्राप्त दोषी द्वारा दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया

Himanshu Mishra

20 May 2025 6:30 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 472 : मृत्युदंड प्राप्त दोषी द्वारा दया याचिका दायर करने की प्रक्रिया

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 के अंतर्गत राष्ट्रपति और राज्यपाल को दोषियों को क्षमादान, दंड को निलंबित करने, दंड को क्षमित करने अथवा दंड को परिवर्तित करने की शक्ति प्राप्त है। इन्हीं संवैधानिक प्रावधानों के तहत दया याचिका की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से भारतीय नगरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 472 में विधिवत तरीके से सम्मिलित किया गया है।

    यह धारा विशेष रूप से उन दोषियों से संबंधित है जिन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है और वे या उनके परिजन राष्ट्रपति या राज्यपाल के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत करना चाहते हैं। यह लेख इस धारा की प्रत्येक उपधारा का सरल हिंदी में विस्तारपूर्वक विश्लेषण करेगा, साथ ही संबंधित अन्य धाराओं का उल्लेख कर इसे और सुस्पष्ट बनाएगा।

    धारा 472(1): दया याचिका दायर करने का अधिकार और समय-सीमा

    इस उपधारा के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है, तो वह स्वयं, उसका कोई कानूनी उत्तराधिकारी या अन्य कोई संबंधी, राष्ट्रपति या राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर कर सकता है। लेकिन इसके लिए एक निश्चित समय सीमा तय की गई है — 30 दिन।

    यह 30 दिन की समयावधि तब शुरू होती है जब जेल अधीक्षक उसे दो में से कोई भी सूचना देता है:

    • पहला, सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसकी अपील, पुनर्विचार याचिका या विशेष अनुमति याचिका (SLP) खारिज कर दी जाती है।

    • दूसरा, हाईकोर्ट द्वारा मृत्युदंड की पुष्टि की जाती है और सुप्रीम कोर्ट में अपील या SLP दायर करने की अवधि समाप्त हो जाती है।

    इस व्यवस्था से यह सुनिश्चित होता है कि दोषी को अंतिम कानूनी उपाय के बाद भी जीवन रक्षा का एक संवैधानिक मौका मिल सके।

    उदाहरण: मान लीजिए राम को एक हत्या के मामले में मृत्युदंड मिला और हाईकोर्ट ने इसकी पुष्टि की। उसने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, परंतु उसे खारिज कर दिया गया। जेल अधीक्षक ने उसे इस खारिजी की सूचना 1 जनवरी को दी। अब राम के पास 30 दिन यानी 31 जनवरी तक दया याचिका दायर करने का अवसर रहेगा।

    धारा 472(2): राज्यपाल से पहले याचिका और फिर राष्ट्रपति से

    अगर दोषी ने पहले राज्यपाल के समक्ष दया याचिका दायर की है और वह अस्वीकृत हो जाती है, तो उसके बाद वह 60 दिनों के भीतर राष्ट्रपति के समक्ष याचिका दायर कर सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के समक्ष याचिका क्रमशः दायर की जा सकती है और दोनों प्रक्रियाओं को अलग-अलग समय सीमा में मान्यता दी गई है।

    यह प्रावधान दोषी को एक दूसरा संवैधानिक दरवाज़ा प्रदान करता है और न्याय की संभावना को विस्तार देता है।

    धारा 472(3): अन्य सह-दोषियों द्वारा याचिका दायर करने की जिम्मेदारी

    कई बार किसी एक अपराध में एक से अधिक दोषियों को मृत्युदंड की सजा होती है। इस उपधारा के अनुसार, जेल अधीक्षक की यह जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि हर दोषी अपने स्तर पर दया याचिका दायर करे, और वह भी 60 दिनों के भीतर।

    अगर कोई सह-दोषी ऐसा नहीं करता है, तो जेल अधीक्षक को उसके नाम, पता, केस के रिकॉर्ड की कॉपी और अन्य विवरण संबंधित राज्य या केंद्र सरकार को भेजने होते हैं ताकि वह याचिका के साथ सभी पहलुओं पर विचार कर सकें।

    यह व्यवस्था इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर एक ही केस में किसी एक दोषी की याचिका स्वीकार हो जाए और बाकी की ना हो, तो न्याय में असमानता उत्पन्न हो सकती है। अतः सबकी याचिकाओं पर एक साथ विचार किया जाना न्यायसंगत है।

    धारा 472(4): केंद्र सरकार की प्रक्रिया और समय सीमा

    जब केंद्र सरकार को दया याचिका प्राप्त होती है, तो वह पहले राज्य सरकार से टिप्पणियां मंगवाती है और फिर उस याचिका और मामले के सभी दस्तावेजों के साथ राष्ट्रपति को सिफारिश भेजती है। यह सिफारिश 60 दिनों के भीतर पूरी की जानी चाहिए, जो इस पूरे प्रक्रिया को समयबद्ध बनाती है।

    इसमें यह भी कहा गया है कि जेल अधीक्षक द्वारा केस रिकॉर्ड भेजने के बाद की प्रक्रिया में सरकारों को विलंब नहीं करना चाहिए, ताकि दोषी के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

    धारा 472(5): राष्ट्रपति द्वारा निर्णय और सामूहिक सुनवाई

    अगर किसी एक केस में एक से अधिक दोषी हैं और सभी ने याचिकाएं दायर की हैं, तो राष्ट्रपति को उन सभी याचिकाओं पर एक साथ निर्णय लेना होता है। यह प्रावधान "न्याय के हित" में लाया गया है, ताकि सभी दोषियों के साथ समान व्यवहार हो और कोई भी पक्षपात या असमानता न हो।

    उदाहरण के लिए, एक गैंगरेप व हत्या के केस में तीनों दोषियों को मृत्युदंड मिला। तीनों ने अलग-अलग दया याचिकाएं राष्ट्रपति को भेजीं। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति को सभी याचिकाओं को एक साथ, एक समग्र दृष्टिकोण से देखना होगा, ताकि किसी एक को राहत देकर अन्य के साथ अन्याय न हो।

    धारा 472(6): राष्ट्रपति के आदेश की सूचना देने की समय सीमा

    जैसे ही राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर आदेश पारित किया जाता है, केंद्र सरकार को 48 घंटे के भीतर राज्य सरकार और जेल अधीक्षक को इसकी जानकारी देनी होती है। यह समयसीमा इसीलिए निर्धारित की गई है ताकि मृत्युदंड को लेकर समय पर कार्रवाई की जा सके, और यदि सजा कम या समाप्त की गई हो, तो उस आधार पर दोषी को जल्द रिहा किया जा सके।

    धारा 472(7): राष्ट्रपति या राज्यपाल के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं

    यह उपधारा स्पष्ट रूप से कहती है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 72 या 161 के तहत पारित आदेश के विरुद्ध किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती। ऐसे आदेश अंतिम और न्यायिक समीक्षा से परे होते हैं।

    साथ ही, यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल ने अपने निर्णय पर कैसे पहुँचा — इस बात की कोई भी जाँच अदालत में नहीं हो सकती। यह न्यायिक प्रक्रिया और संवैधानिक विवेकाधिकार के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

    पूर्व की धाराओं से संबंध

    इस धारा को और अच्छे से समझने के लिए हमें पहले भारतीय नगरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की कुछ अन्य धाराओं की ओर भी देखना होगा।

    धारा 466 कहती है कि सजा पाए दोषी की सजा को सरकार माफ, कम या निलंबित कर सकती है। वहीं धारा 467 बताती है कि किन परिस्थितियों में यह राहत दी जा सकती है। इन दोनों धाराओं को पढ़ने के बाद धारा 469 में बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसके पहले या बाद के दोषसिद्धि के कारण मिलने वाली सजा से छूट नहीं दी जाएगी, अगर वह वैध रूप से उस सजा का पात्र है।

    इसी प्रकार, धारा 468 में बताया गया है कि अगर किसी व्यक्ति ने पहले ही हिरासत में कुछ समय बिताया है तो उस समय को अंतिम सजा से घटा दिया जाएगा। इन सभी धाराओं से यह स्पष्ट होता है कि एक दोषी को भारतीय विधि व्यवस्था में कई अवसर दिए जाते हैं ताकि किसी भी प्रकार की अन्यायपूर्ण या कठोर सजा से उसे राहत मिल सके।

    धारा 472 एक महत्वपूर्ण संवैधानिक एवं दंड प्रक्रिया संबंधी प्रावधान है जो मृत्युदंड पाए दोषियों को अंतिम संवैधानिक अवसर प्रदान करता है कि वे अपने जीवन को बचाने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल से दया की गुहार कर सकें। इस धारा में दया याचिका की समय-सीमा, प्रक्रिया, राज्य और केंद्र सरकार की भूमिका, और याचिका के निराकरण के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इस धारा की एक विशेषता यह भी है कि यह दया याचिका की प्रक्रिया को न्यायसंगत, समयबद्ध और पारदर्शी बनाने पर बल देती है। यह न केवल विधि का अनुपालन सुनिश्चित करती है, बल्कि भारत की मानवतावादी दृष्टिकोण को भी दर्शाती है।

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