धारा 430 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 : अपील लंबित होने पर सजा पर रोक और दोषी को जमानत पर रिहा करने का प्रावधान
Himanshu Mishra
22 April 2025 12:56 PM

BNS, 2023 के अंतर्गत जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और वह उस निर्णय के विरुद्ध अपील करता है, तो यह स्वाभाविक है कि वह अपीलीय न्यायालय से यह प्रार्थना करेगा कि जब तक उसकी अपील पर निर्णय नहीं हो जाता, तब तक उसे जेल में न रखा जाए और उसकी सजा पर रोक लगाई जाए।
इसी संदर्भ में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 430 एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह धारा यह निर्धारित करती है कि अपील लंबित रहने के दौरान सजा को निलंबित कैसे किया जा सकता है और दोषी व्यक्ति को किन परिस्थितियों में जमानत पर छोड़ा जा सकता है।
धारा 430(1): अपीलीय न्यायालय द्वारा सजा पर रोक लगाने और जमानत पर रिहा करने की शक्ति
इस उपधारा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया हो और उसने उस निर्णय के विरुद्ध अपील की हो, तो अपीलीय न्यायालय उसके द्वारा दायर अपील लंबित रहने के दौरान निम्नलिखित दो आदेश पारित कर सकता है:
पहला, न्यायालय लिखित रूप में कारण दर्ज करते हुए यह आदेश दे सकता है कि सजा को रोका जाए यानी उस सजा को तब तक निष्पादित न किया जाए जब तक अपील पर अंतिम निर्णय न हो जाए।
दूसरा, यदि वह व्यक्ति उस समय जेल में है, तो न्यायालय यह आदेश भी दे सकता है कि उसे जमानत पर या उसके निजी बंधपत्र (personal bond) अथवा जमानत बंधपत्र (bail bond) पर रिहा किया जाए।
लेकिन इस उपधारा में एक महत्वपूर्ण शर्त भी है। यदि दोषी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, जिसकी सजा मृत्यु दंड, आजीवन कारावास या 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा है, तो उसे जमानत पर छोड़ने से पहले लोक अभियोजक (Public Prosecutor) को यह अवसर दिया जाएगा कि वह लिखित में अपना विरोध दर्ज कर सके।
साथ ही, यह भी प्रावधान है कि यदि दोषी को जमानत पर छोड़ा जाता है, तो लोक अभियोजक यह स्वतंत्रता रखता है कि वह जमानत निरस्त (cancellation of bail) करने हेतु न्यायालय में आवेदन दे सके।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को किसी गंभीर अपराध के लिए 12 साल की सजा सुनाई गई और वह हाईकोर्ट में अपील करता है। ऐसे में न्यायालय, यदि उसे उचित कारण प्रतीत हो, तो सजा पर रोक लगाकर आरोपी को जमानत पर छोड़ सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया से पहले, लोक अभियोजक को यह मौका दिया जाएगा कि वह जमानत दिए जाने पर आपत्ति दर्ज कर सके।
धारा 430(2): हाईकोर्ट की अतिरिक्त शक्ति
इस उपधारा में यह स्पष्ट किया गया है कि धारा 430(1) के तहत जो शक्ति अपीलीय न्यायालय को दी गई है, वही शक्ति हाईकोर्ट को भी प्राप्त है जब दोषी व्यक्ति किसी अधीनस्थ न्यायालय में अपील करता है।
अर्थात्, यदि कोई व्यक्ति सेशन कोर्ट में अपील करता है, और हाईकोर्ट यह आवश्यक समझता है, तो वह सजा पर रोक लगाने और दोषी को जमानत पर छोड़ने का आदेश दे सकता है। यह व्यवस्था न्यायिक नियंत्रण और हाईकोर्ट की निगरानी की भावना को मजबूत करती है।
धारा 430(3): दोषसिद्धि देने वाले न्यायालय की भूमिका
यह उपधारा दोषसिद्ध करने वाले न्यायालय की भूमिका को स्पष्ट करती है। यदि कोई दोषी व्यक्ति यह साबित करता है कि वह अपील दायर करने का इरादा रखता है, तो दोषसिद्ध करने वाला न्यायालय भी निम्नलिखित स्थितियों में उसे सीमित अवधि के लिए जमानत पर रिहा कर सकता है:
पहली स्थिति, यदि आरोपी पहले से जमानत पर है और उसे 3 वर्ष या उससे कम की सजा सुनाई गई है।
दूसरी स्थिति, यदि दोषसिद्धि जमानती अपराध के लिए है और आरोपी पहले से जमानत पर है।
इन दोनों परिस्थितियों में, जब तक अपीलीय न्यायालय से आदेश प्राप्त न हो जाए, तब तक दोषी को सशर्त जमानत पर छोड़ा जा सकता है। और इस अवधि में दोषी की सजा निलंबित मानी जाएगी।
यह क्यों महत्वपूर्ण है? यह व्यवस्था इसलिए दी गई है ताकि न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील करने का वास्तविक अधिकार केवल सैद्धांतिक न रह जाए, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी दोषी को समय, सुविधा और स्वतंत्रता मिले कि वह अपील तैयार कर सके और न्याय की तलाश कर सके।
धारा 430(4): सजा की गणना से जमानत अवधि की वंचना
यह उपधारा एक तकनीकी लेकिन आवश्यक बात स्पष्ट करती है। जब किसी व्यक्ति को अंततः कारावास की सजा सुनाई जाती है — चाहे वह निर्धारित अवधि के लिए हो या आजीवन कारावास के लिए — तो जमानत पर बिताई गई अवधि को उसकी सजा की अवधि से घटाया नहीं जाएगा।
उदाहरण: मान लीजिए, किसी आरोपी को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराकर 5 साल की सजा दी और वह अपील करता है। अपीलीय न्यायालय सजा पर रोक लगाकर उसे 2 वर्षों तक जमानत पर रिहा रखता है। अंततः जब अपील खारिज हो जाती है, और उसकी सजा यथावत रहती है, तो यह 2 साल जमानत की अवधि उसकी 5 साल की सजा में नहीं जोड़ी जाएगी। अर्थात् उसे अब पूरे 5 साल की सजा भुगतनी होगी।
पूर्ववर्ती धाराओं से संबंध धारा 430 का सीधा संबंध धारा 426, 427, 428 और 429 से जुड़ता है। जहां धारा 426 और 427 अपील स्वीकार होने के बाद प्रक्रिया को विनियमित करती हैं, वहीं धारा 428 अपीलीय न्यायालय के निर्णयों की प्रकृति को स्पष्ट करती है और धारा 429 हाईकोर्ट के आदेशों को अधीनस्थ न्यायालयों तक पहुँचाने की व्यवस्था देती है। इन सभी प्रावधानों की कड़ी के रूप में धारा 430 यह सुनिश्चित करती है कि अपील लंबित रहने की अवधि में दोषी के अधिकार और राज्य की सुरक्षा के बीच संतुलन बना रहे।
धारा 430 यह स्पष्ट करती है कि अपील लंबित रहने की स्थिति में दोषी व्यक्ति को किस प्रकार सजा से अस्थायी राहत मिल सकती है। यह धारा दोषी व्यक्ति को अपील का अधिकार प्रभावी रूप से प्रयोग करने का अवसर देती है और साथ ही लोक अभियोजक को भी यह स्वतंत्रता देती है कि वह गंभीर मामलों में जमानत का विरोध कर सके। इस प्रकार, यह प्रावधान न्याय और प्रक्रिया के बीच एक संतुलन बनाता है, जिससे कि अपीलीय प्रक्रिया केवल औपचारिकता न बनकर न्यायिक अधिकार का वास्तविक उपयोग बन सके।