भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 415: सजा के खिलाफ अपील का अधिकार
Himanshu Mishra
10 April 2025 12:13 PM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bhartiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS) के तहत भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं। इस संहिता का अध्याय 31 (Chapter XXXI) "अपीलें" (Appeals) से संबंधित है। इसी अध्याय की धारा 415 (Section 415) में यह बताया गया है कि सजा पाए व्यक्ति को किन परिस्थितियों में और किस न्यायालय में अपील करने का अधिकार है।
अपील (Appeal) कानून में एक बहुत ज़रूरी उपाय (Remedy) है, जो किसी दोषसिद्ध व्यक्ति (Convicted Person) को अदालत के फैसले के खिलाफ अपनी बात कहने का एक और मौका देता है।
धारा 413 में कहा गया था कि जब तक किसी कानून में साफ तौर पर अपील की अनुमति न दी जाए, तब तक कोई भी अपील नहीं की जा सकती। धारा 414 में कुछ विशेष सुरक्षा से जुड़े मामलों में अपील की व्यवस्था बताई गई थी। अब धारा 415 में आम आपराधिक मामलों में सजा के खिलाफ अपील का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
हाई कोर्ट द्वारा असाधारण अधिकार क्षेत्र में की गई सुनवाई के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील (Appeal to Supreme Court) – धारा 415(1)
धारा 415 की पहली उपधारा में यह प्रावधान है कि अगर किसी व्यक्ति को हाई कोर्ट (High Court) द्वारा उसकी असाधारण मौलिक आपराधिक अधिकारिता (Extraordinary Original Criminal Jurisdiction) के तहत दोषी ठहराया गया है, तो वह व्यक्ति सीधे सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील कर सकता है।
आमतौर पर आपराधिक मुकदमे मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय (Sessions Court) में शुरू होते हैं, लेकिन कुछ विशेष मामलों में, जैसे कि बहुत संवेदनशील या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े अपराधों में, हाई कोर्ट खुद सीधे सुनवाई करता है। ऐसे मामलों में अगर हाई कोर्ट व्यक्ति को दोषी ठहराता है, तो उसकी अपील का अधिकार सीधे सुप्रीम कोर्ट में होता है।
उदाहरण: मान लीजिए दिल्ली हाई कोर्ट किसी राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सीधे सुनवाई करती है और आरोपी को दोषी ठहरा देती है। ऐसे में वह व्यक्ति धारा 415(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है।
यह उपधारा भारत के नागरिक को सर्वोच्च न्यायालय तक न्याय पाने का अधिकार सुनिश्चित करती है।
सत्र न्यायाधीश द्वारा सुनवाई और 7 साल से अधिक सजा होने पर हाई कोर्ट में अपील (Appeal to High Court) – धारा 415(2)
धारा 415(2) कहती है कि अगर किसी व्यक्ति को सत्र न्यायाधीश (Sessions Judge) या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) द्वारा दोषी ठहराया गया है, तो वह हाई कोर्ट में अपील कर सकता है।
साथ ही, अगर किसी भी अन्य अदालत द्वारा 7 साल से अधिक की सजा सुनाई गई हो, तब भी अपील हाई कोर्ट में की जाएगी, भले ही सत्र न्यायालय ने सुनवाई न की हो।
यह उपधारा दो तरह की स्थितियों को कवर करती है:
1. जब मुकदमा सत्र न्यायाधीश या अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा चला हो।
2. जब किसी भी अदालत ने 7 साल से अधिक की सजा दी हो।
अगर एक ही मुकदमे में किसी एक आरोपी को 7 साल से अधिक की सजा मिलती है, तो बाकी सह-आरोपियों को भी हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार मिलता है।
उदाहरण: मान लीजिए तीन व्यक्तियों पर फिरौती के लिए अपहरण का मुकदमा चला। उनमें से एक को 10 साल, दूसरे को 8 साल और तीसरे को 5 साल की सजा मिली। चूंकि पहले दो को 7 साल से अधिक की सजा हुई है, इसलिए तीसरे को भी हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार है।
इस व्यवस्था का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गंभीर मामलों में उच्च न्यायालय ही अपील की समीक्षा करे।
मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई सजा या अन्य आदेशों के विरुद्ध सत्र न्यायालय में अपील (Appeal to Sessions Court) – धारा 415(3)
धारा 415(3) उन मामलों से संबंधित है जो ऊपर की उपधारा में शामिल नहीं हैं। इसमें तीन प्रमुख श्रेणियाँ आती हैं:
(a) जब व्यक्ति को प्रथम श्रेणी (First Class) या द्वितीय श्रेणी (Second Class) मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी ठहराया गया हो।
(b) जब व्यक्ति को धारा 364 के तहत सजा दी गई हो।
(c) जब व्यक्ति के खिलाफ किसी मजिस्ट्रेट ने धारा 401 के तहत कोई आदेश या सजा दी हो।
धारा 364 में त्वरित न्याय के लिए बनाए गए संक्षिप्त मुकदमे (Summary Trials) का प्रावधान है, जिनमें मामूली अपराधों की सुनवाई होती है।
धारा 401 मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति (Person of Unsound Mind) के खिलाफ आदेशों से संबंधित है।
उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति को छोटी चोरी के मामले में मजिस्ट्रेट ने 3 महीने की सजा दी है, तो वह सत्र न्यायालय में अपील कर सकता है। इसी तरह, यदि किसी मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को पुनर्वास केंद्र भेजने का आदेश मजिस्ट्रेट देता है, तो उसके परिजन इस आदेश के खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
इस तरह की अपीलें न्यायिक संरचना को संतुलित रखती हैं और हर स्तर पर न्याय की जांच सुनिश्चित करती हैं।
कुछ विशेष अपीलों को छह महीने में निपटाने की अनिवार्यता (Time-bound Disposal) – धारा 415(4)
धारा 415(4) एक महत्वपूर्ण सुधार को लागू करती है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई अपील भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) की निम्नलिखित धाराओं के तहत दी गई सजा के खिलाफ दायर की गई है, तो उसे छह महीने के भीतर निपटाना होगा:
• धारा 64: सामुदायिक सेवा (Community Service)
• धारा 65: जुर्माना (Fine)
• धारा 66: जुर्माना न देने पर सजा (Imprisonment in Default of Fine)
• धारा 67: पुनर्वास केंद्र में भेजना (Detention in Rehabilitation Centre)
• धारा 68: संपत्ति की जब्ती (Forfeiture of Property)
• धारा 70: पीड़ित को मुआवज़ा (Compensation to Victim)
• धारा 71: अंतरिम मुआवज़ा (Interim Compensation)
इन सज़ाओं का सीधा संबंध या तो पीड़ित को राहत देने से है या दोषी को सुधारने की दिशा में है। इसलिए इन अपीलों का समय से निपटाया जाना जरूरी है।
उदाहरण: अगर किसी व्यक्ति को धारा 70 के तहत पीड़ित को ₹50,000 मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया है और वह व्यक्ति इस आदेश को चुनौती देता है, तो यह अपील छह महीने के भीतर तय होनी चाहिए ताकि पीड़ित को समय पर राहत मिल सके।
यह प्रावधान प्रक्रिया को तेज़ और प्रभावी बनाता है।
पूर्ववर्ती धाराओं से संबंध और न्यायिक संरचना की निरंतरता
धारा 415 को सही ढंग से समझने के लिए धारा 413 और 414 का संदर्भ लेना आवश्यक है।
धारा 413 में स्पष्ट किया गया है कि अपील का अधिकार तभी मिलेगा जब कानून में उसका स्पष्ट प्रावधान हो।
धारा 414 में कुछ विशेष मामलों—जैसे कि शांति भंग होने की आशंका में मांगी गई जमानत—में सत्र न्यायालय में अपील की अनुमति दी गई थी।
अब धारा 415 में सज़ा के खिलाफ व्यापक अपील की संरचना बताई गई है, जिसमें अलग-अलग अदालतों के अनुसार अपील का मंच तय किया गया है।
धारा 415, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत अपील के अधिकार को न्यायपूर्ण और व्यावहारिक ढंग से परिभाषित करती है। यह सुनिश्चित करती है कि गंभीर अपराधों की अपील उच्च न्यायालय में जाए और मामूली अपराधों की अपील सत्र न्यायालय में ही निपटाई जाए।
छह महीने में विशेष अपीलों को निपटाने की बाध्यता इस संहिता की समयबद्ध न्याय प्रणाली की भावना को मज़बूत करती है।
कुल मिलाकर, धारा 415 यह सुनिश्चित करती है कि दोषसिद्ध व्यक्ति को न्याय पाने का पूरा अवसर मिले, और साथ ही पीड़ित को भी समय पर न्याय मिल सके।