अपराधों के समझौते या Compounding of Offences पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 359

Himanshu Mishra

10 Feb 2025 5:06 PM IST

  • अपराधों के समझौते या Compounding of Offences पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 359

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita - BNSS), 2023 की धारा 359 उन अपराधों से संबंधित है, जिनका समझौता (Compounding) किया जा सकता है। समझौते का मतलब होता है कि अपराध के पीड़ित (Victim) और आरोपी (Accused) आपसी सहमति से मामला निपटा सकते हैं, जिससे केस बिना ट्रायल (Trial) के समाप्त हो जाता है।

    यह प्रावधान (Provision) अदालतों (Courts) का बोझ कम करने के लिए बनाया गया है, ताकि छोटी-मोटी आपराधिक घटनाओं को अदालत से बाहर सुलझाया जा सके। लेकिन सभी अपराधों का समझौता नहीं किया जा सकता, केवल उन्हीं मामलों में यह संभव है जिनकी अनुमति कानून (Law) देता है।

    किन अपराधों का समझौता किया जा सकता है? (Offences That Can Be Compounded)

    धारा 359 के तहत भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita - BNS), 2023 में सूचीबद्ध कुछ अपराधों का समझौता किया जा सकता है। इस धारा में यह भी बताया गया है कि किन अपराधों का समझौता किसके द्वारा किया जा सकता है।

    कुछ मुख्य अपराध जिनका समझौता किया जा सकता है:

    1. शादीशुदा महिला को बहलाकर भगाना (Enticing or Taking Away a Married Woman) – धारा 84, BNS

    o समझौता करने का अधिकार: महिला स्वयं और उसका पति।

    2. स्वेच्छा से चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Hurt) – धारा 115(2), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: वह व्यक्ति जिसे चोट पहुँची है।

    3. गंभीर उकसावे पर चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Hurt on Provocation) – धारा 122(1), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: पीड़ित व्यक्ति।

    4. गंभीर चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Grievous Hurt) – धारा 122(2), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: पीड़ित व्यक्ति।

    5. गलत तरीके से रोकना या कैद करना (Wrongful Restraint or Confinement) – धारा 126(2), 127(2), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: जिस व्यक्ति को गलत तरीके से रोका या कैद किया गया हो।

    6. चोरी (Theft) – धारा 303(2), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: चोरी हुई संपत्ति का मालिक।

    7. भरोसा तोड़कर संपत्ति का गबन (Criminal Breach of Trust) – धारा 316(3), BNS

    o समझौता करने का अधिकार: जिस व्यक्ति की संपत्ति का गबन हुआ हो।

    समझौते की प्रक्रिया (Process of Compounding an Offence)

    समझौते की प्रक्रिया इस प्रकार होती है:

    1. पीड़ित और आरोपी की सहमति (Agreement Between Parties) –

    o पीड़ित को अपराधी से समझौते के लिए स्वेच्छा से सहमत होना जरूरी है।

    2. न्यायालय की अनुमति (Court's Permission, If Required) –

    o कुछ अपराध सीधे समझौते योग्य होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अदालत की मंजूरी आवश्यक होती है।

    o यदि मामला पहले से अदालत में लंबित है, तो जज (Judge) को यह सुनिश्चित करना होगा कि समझौता जबरदस्ती या दबाव में न किया गया हो।

    3. समझौते का परिणाम (Effect of Compounding) –

    o जैसे ही समझौता हो जाता है, आरोपी को अपराध से बरी (Acquitted) कर दिया जाता है।

    o इसके बाद उसी अपराध के लिए कोई और कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती।

    4. समझौते पर रोक (Restrictions on Compounding) –

    o सभी अपराधों का समझौता नहीं किया जा सकता।

    o यदि अपराध गैर-समझौतायोग्य (Non-Compoundable) है, तो आरोपी को ट्रायल का सामना करना पड़ेगा।

    विशेष मामलों में समझौता (Compounding in Special Cases)

    धारा 359 में कुछ विशेष परिस्थितियों (Special Circumstances) में समझौते के लिए अलग प्रावधान किए गए हैं।

    1. यदि पीड़ित नाबालिग (Minor) या मानसिक रूप से अक्षम (Unsound Mind) हो

    o इस स्थिति में, उसके कानूनी अभिभावक (Legal Guardian) को अदालत की अनुमति से समझौता करने का अधिकार होगा।

    2. यदि पीड़ित की मृत्यु हो चुकी हो (If the Victim is Deceased)

    o मृतक (Deceased) के कानूनी उत्तराधिकारी (Legal Heirs) अदालत की मंजूरी से समझौता कर सकते हैं।

    न्यायालय की भूमिका (Court's Role in Compounding)

    कुछ अपराधों का समझौता सीधे किया जा सकता है, जबकि अन्य मामलों में अदालत की मंजूरी आवश्यक होती है। न्यायालय निम्नलिखित बिंदुओं को सुनिश्चित करता है:

    • समझौता पूरी तरह से स्वेच्छा (Voluntary) और बिना किसी दबाव (Without Coercion) के हो।

    • यदि मामला नाबालिग या मृतक से संबंधित हो, तो कानूनी उत्तराधिकारी सही निर्णय लें।

    • यदि अपराध सार्वजनिक हित (Public Interest) को प्रभावित करता है, तो समझौते की अनुमति न दी जाए।

    कब समझौता नहीं किया जा सकता? (When Compounding is Not Allowed?)

    धारा 359 के तहत कुछ विशेष परिस्थितियों में समझौते की अनुमति नहीं दी जाती:

    1. अगर आरोपी पहले भी दोषी (Convicted) पाया गया हो और उस अपराध के लिए सख्त सजा दी जा चुकी हो।

    2. अगर कानून किसी विशेष अपराध के लिए समझौते की अनुमति नहीं देता हो।

    3. अगर अपराध समाज के लिए गंभीर खतरा (Grave Threat to Society) पैदा करता हो।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 359 एक ऐसा कानूनी प्रावधान है, जो अदालतों का बोझ कम करने और छोटे अपराधों को आपसी सहमति से हल करने में मदद करता है।

    इससे आरोपी और पीड़ित दोनों को समय और संसाधनों की बचत होती है। लेकिन साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया गया है कि गंभीर अपराधों को समझौते के माध्यम से टाला न जा सके। इस तरह, धारा 359 भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) में संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है।

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