धारा 357, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023: जब आरोपी अदालती कार्यवाही को नहीं समझ पाता
Himanshu Mishra
6 Feb 2025 5:24 PM IST

भारतीय न्याय प्रणाली (Justice System) यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है कि हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार मिले, चाहे वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो या नहीं।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 357 उन मामलों से संबंधित है जहां कोई आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) तो नहीं है, लेकिन फिर भी अदालत में चल रही कार्यवाही को समझने में असमर्थ है।
यह प्रावधान (Provision) यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे व्यक्ति के अधिकारों (Rights) की रक्षा की जाए और उसे बिना पूरी समझ के दोषी न ठहराया जाए।
धारा 357 का मुख्य उद्देश्य
धारा 357 यह कहती है कि यदि कोई आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं है, लेकिन वह अदालती कार्यवाही (Court Proceedings) को समझने में असमर्थ है, तो अदालत मामले की सुनवाई जारी रख सकती है। लेकिन यदि कोई निचली अदालत (Lower Court) ऐसे व्यक्ति को दोषी ठहराती है, तो इस मामले को हाईकोर्ट (High Court) के पास भेजा जाएगा। हाईकोर्ट इस मामले की समीक्षा (Review) करेगा और उचित आदेश (Appropriate Order) पारित करेगा।
इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई व्यक्ति केवल इसलिए दोषी न ठहराया जाए क्योंकि वह अदालत में चल रही प्रक्रिया (Legal Process) को ठीक से समझ नहीं पा रहा है।
असमर्थता और मानसिक अस्वस्थता (Unsound Mind) में अंतर
इस प्रावधान का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल उन लोगों पर लागू होता है जो मानसिक रूप से अस्वस्थ (Mentally Ill) नहीं हैं, लेकिन फिर भी अदालत की प्रक्रिया को नहीं समझ पा रहे हैं।
अगर कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उस पर धारा 331, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 लागू होगी, जिसमें यह प्रावधान है कि ऐसे व्यक्ति की सुनवाई को स्थगित (Suspend) कर दिया जाए या उसे किसी चिकित्सा संस्थान (Medical Institution) में भेजा जाए।
लेकिन धारा 357 उन मामलों के लिए है जहां कोई व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है, लेकिन कुछ अन्य कारणों से अदालत की कार्यवाही को नहीं समझ पा रहा है, जैसे कि भाषा की समस्या (Language Barrier), शिक्षा की कमी (Illiteracy) या कोई अन्य संचार समस्या (Communication Issue)।
धारा 357 के अंतर्गत उदाहरण (Illustrations)
1. भाषा की समस्या (Language Barrier) – यदि किसी व्यक्ति पर मुकदमा चल रहा है लेकिन वह केवल अपनी स्थानीय भाषा समझता है और अदालत की भाषा को नहीं समझ पाता, तो यह धारा लागू होगी। यदि उसे दोषी ठहराया जाता है, तो उसका मामला हाईकोर्ट में भेजा जाएगा।
2. सुनने में असमर्थता (Hearing Impairment) – यदि कोई व्यक्ति सुनने में पूरी तरह असमर्थ है और संकेत भाषा (Sign Language) भी नहीं समझता, तो यह धारा लागू होगी।
3. शिक्षा की कमी (Illiteracy) – यदि कोई व्यक्ति बिलकुल अनपढ़ (Completely Illiterate) है और कानूनी प्रक्रिया (Legal Process) को समझने में असमर्थ है, तो अदालत उसे अतिरिक्त सहायता प्रदान कर सकती है।
हाईकोर्ट (High Court) की भूमिका
यदि निचली अदालत (Lower Court) किसी आरोपी को दोषी ठहराती है और यह पाया जाता है कि वह सुनवाई को समझने में असमर्थ था, तो मामला हाईकोर्ट (High Court) को भेज दिया जाएगा।
हाईकोर्ट निम्नलिखित आदेश पारित कर सकता है:
• दोषसिद्धि को रद्द करना (Setting Aside the Conviction) – यदि अदालत को लगता है कि सुनवाई निष्पक्ष नहीं थी, तो वह दोषसिद्धि को रद्द कर सकती है।
• नया ट्रायल (Retrial) का आदेश देना – यदि अदालत को लगता है कि उचित सहायता प्रदान करने के बाद फिर से मुकदमा चलाया जाना चाहिए, तो वह नया ट्रायल का आदेश दे सकती है।
• दोषसिद्धि को बरकरार रखना (Confirming the Conviction) – यदि अदालत यह पाती है कि आरोपी को अपनी बात रखने के सभी अवसर दिए गए थे, तो दोषसिद्धि को बरकरार रखा जा सकता है।
न्यायिक प्रक्रिया में सुरक्षा उपाय (Safeguards in the Legal Process)
अदालत यह सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय कर सकती है कि आरोपी को उसकी सुनवाई के दौरान उचित अवसर मिले:
• दुभाषिया (Interpreter) की नियुक्ति – यदि भाषा की समस्या है, तो अदालत एक दुभाषिया प्रदान कर सकती है।
• न्यायिक सहायता (Legal Aid) की व्यवस्था – यदि आरोपी को कानूनी प्रक्रिया समझने में दिक्कत हो रही है, तो मुफ्त कानूनी सहायता (Legal Aid) दी जा सकती है।
• अतिरिक्त समय (Additional Time) प्रदान करना – अदालत आरोपी को कानूनी प्रक्रिया को समझने के लिए अधिक समय दे सकती है।
पिछले कानूनों से तुलना
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973) की धारा 318 और 329 में कुछ समान सिद्धांत थे, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के मामलों से जुड़े थे।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (BNSS, 2023) में धारा 357 को स्पष्ट रूप से जोड़ा गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे मामलों को निष्पक्ष तरीके से निपटाया जाए और कोई भी व्यक्ति केवल प्रक्रिया को न समझने की वजह से गलत तरीके से दोषी न ठहराया जाए।
धारा 357 का न्याय व्यवस्था पर प्रभाव
यह प्रावधान भारतीय न्याय प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सुधार लाता है:
1. गलत दोषसिद्धि को रोकना (Preventing Wrongful Convictions) – यह सुनिश्चित करता है कि किसी को केवल इसलिए सजा न मिले क्योंकि वह अदालत की प्रक्रिया को नहीं समझ सका।
2. न्यायिक समीक्षा (Judicial Oversight) को मजबूत बनाना – हाईकोर्ट द्वारा मामलों की समीक्षा अनिवार्य करने से न्यायिक प्रणाली अधिक पारदर्शी बनती है।
3. न्याय प्रक्रिया को संतुलित रखना (Maintaining Procedural Balance) – सुनवाई को स्थगित किए बिना इसे जारी रखने की अनुमति देता है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया तेज होती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 357 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी व्यक्ति को केवल इसलिए दोषी न ठहराया जाए क्योंकि वह अदालत की प्रक्रिया को नहीं समझ पा रहा है। यह प्रावधान भाषा की समस्या, शिक्षा की कमी या संचार कठिनाइयों से जूझ रहे लोगों के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करता है।
यह प्रावधान न्यायिक प्रणाली को अधिक पारदर्शी, समावेशी और निष्पक्ष बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हाईकोर्ट की समीक्षा प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि हर आरोपी को सही अवसर मिले और कोई भी गलत तरीके से दोषी न ठहराया जाए। भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत यह एक बड़ा सुधार है, जो न्याय को अधिक सुलभ और निष्पक्ष बनाता है।