भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 353: अभियुक्त को गवाह बनने का अधिकार

Himanshu Mishra

3 Feb 2025 5:47 PM IST

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 353: अभियुक्त को गवाह बनने का अधिकार

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत में आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) को आधुनिक बनाने के लिए लाई गई थी। इस संहिता की एक महत्वपूर्ण धारा 353 अभियुक्त (Accused) को एक सक्षम गवाह (Competent Witness) बनने का अधिकार देती है।

    यह धारा अभियुक्त को अपने बचाव में शपथ (Oath) लेकर गवाही देने का अवसर देती है, लेकिन यदि वह गवाही नहीं देना चाहता, तो उसके चुप रहने पर कोई भी नकारात्मक निष्कर्ष (Negative Inference) नहीं निकाला जा सकता।

    धारा 353(1): अभियुक्त (Accused) गवाह (Witness) बन सकता है

    धारा 353(1) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जिसे किसी आपराधिक अदालत (Criminal Court) में अपराध (Offence) के लिए अभियुक्त बनाया गया है, वह अपने बचाव (Defence) में एक सक्षम गवाह (Competent Witness) बन सकता है। इसका मतलब है कि अभियुक्त अदालत में शपथ लेकर अपने बचाव में गवाही दे सकता है और अपने साथ सह-आरोपी (Co-Accused) का भी बचाव कर सकता है।

    लेकिन यह अधिकार कुछ शर्तों के साथ आता है:

    1. स्वेच्छा से गवाही देना (Voluntary Testimony)

    o अभियुक्त को मजबूर नहीं किया जा सकता कि वह गवाही दे।

    o अगर वह गवाही देना चाहता है, तो उसे लिखित अनुरोध (Written Request) देना होगा।

    o यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि किसी को भी जबरन स्वयं के विरुद्ध बयान देने के लिए मजबूर न किया जाए।

    2. चुप रहने पर गलत निष्कर्ष नहीं निकाला जाएगा (Protection Against Adverse Inference)

    o यदि अभियुक्त गवाही नहीं देता, तो कोर्ट, अभियोजन (Prosecution) या बचाव पक्ष (Defence) में से कोई भी उसकी चुप्पी पर टिप्पणी (Comment) नहीं कर सकता।

    o न्यायाधीश भी यह नहीं मान सकता कि अभियुक्त का चुप रहना उसके दोषी (Guilty) होने का संकेत है।

    उदाहरण (Example)

    मान लीजिए अजय पर चोरी (Theft) का आरोप है। यदि अजय के पास यह साबित करने के लिए कोई प्रमाण (Evidence) है कि चोरी के समय वह किसी अन्य स्थान पर था, तो वह स्वेच्छा से गवाही देकर अपनी बेगुनाही (Innocence) साबित कर सकता है। लेकिन अगर वह गवाही नहीं देना चाहता, तो अदालत इस चुप्पी को उसके दोषी होने का संकेत नहीं मान सकती।

    धारा 353(2): विशेष प्रकार की कार्यवाही (Special Categories of Proceedings)

    धारा 353(2) में कुछ विशेष परिस्थितियों में अभियुक्त को गवाही देने की अनुमति दी गई है। यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ निम्नलिखित धाराओं के तहत कार्यवाही शुरू की गई है, तो वह स्वेच्छा से गवाही देने का अधिकार रखता है:

    • धारा 101: महिलाओं और बालिकाओं को जबरन रोककर रखने या अपहरण (Abduction) के मामलों में बहाली (Restoration) से संबंधित है।

    • धारा 126 से 129: सार्वजनिक शांति (Public Order) बनाए रखने और सुरक्षा (Security) से जुड़े प्रावधानों को कवर करती हैं।

    • अध्याय X और अध्याय XI के भाग B, C, और D: सार्वजनिक शांति, कानून व्यवस्था और सुरक्षा उपायों से संबंधित हैं।

    हालांकि, धारा 127, 128 और 129 के तहत अगर अभियुक्त गवाही नहीं देता, तो इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती या इसे उसके खिलाफ उपयोग नहीं किया जा सकता, ठीक वैसे ही जैसे धारा 353(1) में बताया गया है।

    उदाहरण (Example)

    राज पर धारा 127 के तहत मुकदमा चल रहा है, जिसमें आपत्तिजनक (Obscene) या भड़काऊ सामग्री (Inflammatory Material) के प्रचार को रोकने का प्रावधान है। यदि राज यह साबित करना चाहता है कि उसने कोई गैरकानूनी (Illegal) कार्य नहीं किया, तो वह अदालत में गवाही दे सकता है। लेकिन अगर वह गवाही नहीं देता, तो अदालत इसे उसके दोषी होने का प्रमाण नहीं मान सकती।

    इस प्रावधान (Provision) का महत्व (Importance of Section 353)

    1. अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा (Protecting the Accused's Rights)

    o संविधान के अनुच्छेद 20(3) (Article 20(3)) के तहत, कोई भी व्यक्ति स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    o धारा 353 इसी सिद्धांत को मजबूत करती है, जिससे अभियुक्त को सुरक्षा मिलती है।

    2. न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करना (Ensuring Justice and Fairness)

    o अभियोजन पक्ष (Prosecution) को अभियुक्त को दोषी साबित करने का पूरा भार (Burden of Proof) उठाना पड़ता है।

    o अभियुक्त को बिना दबाव के अपना बचाव करने का अधिकार (Right to Defence) मिलता है।

    3. न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकना (Preventing Abuse of Judicial Process)

    o अभियुक्त की चुप्पी को दोषी होने का प्रमाण नहीं माना जा सकता, जिससे न्यायपालिका (Judiciary) में निष्पक्षता बनी रहती है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 353 अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार देती है। यह उसे स्वेच्छा से गवाही देने की सुविधा प्रदान करती है, साथ ही यदि वह चुप रहना चाहता है, तो इसे उसके विरुद्ध नहीं गिना जाएगा। यह प्रावधान भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) में न्याय, निष्पक्षता और मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की रक्षा सुनिश्चित करता है।

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