हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13: तलाक के आधार

Himanshu Mishra

14 July 2025 5:57 PM IST

  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13: तलाक के आधार

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) का सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी (Revolutionary) प्रावधानों में से एक तलाक (Divorce) का परिचय है। पारंपरिक हिंदू कानून में, विवाह को एक अटूट संस्कार (Indissoluble Sacrament) माना जाता था, और तलाक लगभग अज्ञात (Almost Unknown) था, सिवाय कुछ समुदायों में प्रचलित रीति-रिवाजों (Customs) के।

    धारा 13 (Section 13) इस दृष्टिकोण को बदलती है, जिससे पति या पत्नी दोनों को विशिष्ट आधारों (Specific Grounds) पर विवाह को भंग (Dissolve) करने की अनुमति मिलती है। यह धारा वैवाहिक संबंधों में उत्पन्न होने वाली गंभीर समस्याओं (Serious Problems) से निपटने के लिए एक कानूनी मार्ग (Legal Pathway) प्रदान करती है, जिससे व्यक्तियों को ऐसे विवाह से बाहर निकलने का अवसर मिलता है जो टूट चुके हैं।

    13. तलाक (Divorce)

    (1) इस अधिनियम के प्रारंभ (Commencement) से पहले या बाद में solemnize (विधिवत संपन्न) किया गया कोई भी विवाह, पति या पत्नी में से किसी एक द्वारा प्रस्तुत की गई याचिका (Petition) पर, तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) द्वारा भंग किया जा सकता है, इस आधार पर कि दूसरे पक्ष ने— (Any marriage solemnized, whether before or after the commencement of this Act, may, on a petition presented by either the husband or the wife, be dissolved by a decree of divorce on the ground that the other party—)

    यह उप-धारा तलाक के लिए सामान्य आधारों (General Grounds) को सूचीबद्ध करती है, जिन पर पति या पत्नी दोनों में से कोई भी तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। ये आधार मुख्य रूप से दोष सिद्धांत (Fault Theory) पर आधारित हैं, जिसका अर्थ है कि तलाक तभी दिया जा सकता है जब एक पक्ष ने दूसरे के प्रति कोई गलती (Fault) की हो।

    (i) विवाह के solemnization के बाद, अपने पति या पत्नी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ स्वेच्छा से यौन संबंध (Voluntary Sexual Intercourse) स्थापित किए हैं; या (has, after the solemnization of the marriage, had voluntary sexual intercourse with any person other than his or her spouse; or)

    स्पष्टीकरण: यह व्यभिचार (Adultery) का आधार है। यदि विवाह के बाद कोई भी पक्ष अपने पति या पत्नी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ अपनी मर्जी से यौन संबंध बनाता है, तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। यह वैवाहिक निष्ठा (Marital Fidelity) के उल्लंघन का सबसे गंभीर रूप माना जाता है।

    उदाहरण: यदि रवि की पत्नी प्रिया विवाह के बाद किसी अन्य पुरुष के साथ स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाती है, तो रवि इस आधार पर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ (Landmark Case Law): सुमन द्विवेदी बनाम अनिल कुमार द्विवेदी (Suman Dwivedi v. Anil Kumar Dwivedi), 2005: इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने इस मामले में स्पष्ट किया कि व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष प्रमाण (Direct Evidence) हमेशा आवश्यक नहीं होता है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence) भी पर्याप्त हो सकते हैं, बशर्ते वे इतने मजबूत हों कि न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालने के लिए प्रेरित करें कि व्यभिचार हुआ है।

    (ia) विवाह के solemnization के बाद, याचिकाकर्ता के साथ क्रूरता (Cruelty) का व्यवहार किया है; या (has, after the solemnization of the marriage, treated the petitioner with cruelty; or)

    स्पष्टीकरण: क्रूरता एक व्यापक आधार है जिसमें शारीरिक (Physical) और मानसिक (Mental) दोनों तरह की क्रूरता शामिल हो सकती है। इसमें ऐसा कोई भी कार्य शामिल है जो दूसरे पक्ष के लिए वैवाहिक जीवन जारी रखना असंभव या अवांछनीय (Undesirable) बना देता है।

    इसमें शारीरिक हिंसा (Physical Violence), गाली-गलौज (Verbal Abuse), भावनात्मक उपेक्षा (Emotional Neglect), अपमान (Humiliation), या ऐसा कोई भी व्यवहार शामिल हो सकता है जो दूसरे पक्ष के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) या सुरक्षा (Safety) को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

    उदाहरण: यदि पति अपनी पत्नी को लगातार मारता-पीटता है, उसे अपमानित करता है, या उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, तो पत्नी क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: वी. भगत बनाम श्रीमती डी. भगत (V. Bhagat v. Mrs. D. Bhagat), 1994: सर्वोच्च न्यायालय ने मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की। न्यायालय ने कहा कि मानसिक क्रूरता का अर्थ ऐसा व्यवहार है जो दूसरे पक्ष के लिए वैवाहिक जीवन को जारी रखना असंभव बना देता है। यह केवल शारीरिक हिंसा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ऐसा कोई भी व्यवहार शामिल है जो दूसरे पक्ष के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

    (ib) याचिका प्रस्तुत करने से ठीक पहले कम से कम दो साल की निरंतर अवधि (Continuous Period) के लिए याचिकाकर्ता को छोड़ दिया है (Deserted); या (has deserted the petitioner for a continuous period of not less than two years immediately preceding the presentation of the petition; or)

    स्पष्टीकरण: परित्याग (Desertion) का अर्थ है विवाह के एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को बिना किसी उचित कारण (Reasonable Cause) के, और दूसरे पक्ष की सहमति या इच्छा के विरुद्ध, वैवाहिक घर (Matrimonial Home) छोड़ देना। इसमें केवल शारीरिक अलगाव (Physical Separation) ही नहीं, बल्कि वैवाहिक कर्तव्यों (Marital Duties) और दायित्वों (Obligations) का जानबूझकर परित्याग (Wilful Abandonment) भी शामिल है। परित्याग की अवधि याचिका दायर करने से ठीक पहले कम से कम दो साल होनी चाहिए।

    उदाहरण: यदि पत्नी अपने पति को बिना किसी वैध कारण के छोड़कर दो साल से अधिक समय से अलग रह रही है, और उसने पति से कोई संपर्क नहीं किया है, तो पति परित्याग के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: लछमन उत्तमचंद कृपलानी बनाम मीना उर्फ मोहिनी कृपलानी (Lachman Utamchand Kirpalani v. Meena alias Mohini Kirpalani), 1964: सर्वोच्च न्यायालय ने परित्याग की अवधारणा को स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि परित्याग के लिए दो तत्व आवश्यक हैं: (1) शारीरिक अलगाव (Factum of Separation) और (2) वैवाहिक संबंध को समाप्त करने का इरादा (Animus Deserendi)। यह भी महत्वपूर्ण है कि परित्याग बिना किसी उचित कारण के और दूसरे पक्ष की सहमति या इच्छा के विरुद्ध हो।

    (ii) किसी अन्य धर्म में धर्मांतरण (Conversion to another religion) करके हिंदू होना बंद कर दिया है; या (has ceased to be a Hindu by conversion to another religion; or)

    स्पष्टीकरण: यदि कोई भी पक्ष विवाह के बाद हिंदू धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म (जैसे इस्लाम, ईसाई धर्म आदि) में परिवर्तित हो जाता है, तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है। यह आधार इस सिद्धांत पर आधारित है कि विवाह एक धार्मिक संस्कार है और धर्म परिवर्तन से वैवाहिक संबंध का आधार बदल जाता है।

    उदाहरण: यदि एक हिंदू पति विवाह के बाद ईसाई धर्म में परिवर्तित हो जाता है, तो उसकी हिंदू पत्नी इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    (iii) लाइलाज रूप से अस्वस्थ मन (Incurably of unsound mind) का रहा है, या ऐसे प्रकार (Kind) और इस हद तक मानसिक विकार (Mental Disorder) से लगातार या रुक-रुक कर पीड़ित रहा है कि याचिकाकर्ता से यह उचित रूप से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह प्रतिवादी के साथ रहे। (has been incurably of unsound mind, or has been suffering continuously or intermittently from mental disorder of such a kind and to such an extent that the petitioner cannot reasonably be expected to live with the respondent.)

    स्पष्टीकरण: यह आधार तब लागू होता है जब एक पक्ष गंभीर मानसिक बीमारी (Severe Mental Illness) से पीड़ित होता है। यह बीमारी लाइलाज (Incurable) होनी चाहिए या इतनी गंभीर होनी चाहिए कि दूसरे पक्ष के लिए उसके साथ रहना अवास्तविक (Unrealistic) और अनुचित (Unreasonable) हो जाए।

    स्पष्टीकरण (Explanation): इस खंड में,— (a) "मानसिक विकार" (Mental Disorder) अभिव्यक्ति का अर्थ मानसिक बीमारी (Mental Illness), मन का रुका हुआ या अधूरा विकास (Arrested or Incomplete Development of Mind), मनोविकृति विकार (Psychopathic Disorder) या मन का कोई अन्य विकार या अक्षमता (Disorder or Disability) है और इसमें स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) शामिल है; (b) "मनोविकृति विकार" (Psychopathic Disorder) अभिव्यक्ति का अर्थ मन का एक लगातार विकार या अक्षमता (Persistent Disorder or Disability) है (चाहे इसमें बुद्धि की उप-सामान्य स्थिति (Sub-normality of Intelligence) शामिल हो या नहीं) जिसके परिणामस्वरूप दूसरे पक्ष द्वारा असामान्य रूप से आक्रामक (Abnormally Aggressive) या गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदार आचरण (Seriously Irresponsible Conduct) होता है, और चाहे उसे चिकित्सा उपचार (Medical Treatment) की आवश्यकता हो या वह उसके प्रति संवेदनशील (Susceptible) हो या नहीं;

    उदाहरण: यदि पत्नी को लाइलाज स्किज़ोफ्रेनिया है और उसकी स्थिति इतनी गंभीर है कि वह अपने पति या बच्चों को नुकसान पहुँचा सकती है, तो पति इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: लक्ष्मीबाई बनाम सुंदरम (Lakshmibai v. Sundaram), 1990: इस मामले में न्यायालय ने "अस्वस्थ मन" और "मानसिक विकार" की व्याख्या की। न्यायालय ने कहा कि केवल मानसिक बीमारी होना तलाक का आधार नहीं है। यह बीमारी इतनी गंभीर होनी चाहिए कि याचिकाकर्ता के लिए प्रतिवादी के साथ रहना असंभव हो जाए। न्यायालय ने चिकित्सा साक्ष्य (Medical Evidence) के महत्व पर जोर दिया।

    (v) संचारी रूप (Communicable Form) में यौन रोग (Venereal Disease) से पीड़ित रहा है; या (has been suffering from venereal disease in a communicable form; or)

    स्पष्टीकरण: यदि कोई भी पक्ष विवाह के बाद एक संचारी यौन रोग से पीड़ित होता है, तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है। यह आधार सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) और दूसरे पति या पत्नी की सुरक्षा (Safety) से संबंधित है।

    उदाहरण: यदि पति को विवाह के बाद एक संचारी यौन रोग हो जाता है, तो पत्नी इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    (vi) किसी धार्मिक आदेश (Religious Order) में प्रवेश करके दुनिया का त्याग (Renounced the world) कर दिया है; या (has renounced the world by entering any religious order; or)

    स्पष्टीकरण: यदि कोई भी पक्ष संन्यासी (Sanyasi) बन जाता है या किसी ऐसे धार्मिक आदेश में प्रवेश करता है जिसके लिए उसे दुनिया और वैवाहिक जीवन से पूरी तरह से अलग होना पड़ता है, तो दूसरा पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। यह एक प्रकार की "नागरिक मृत्यु" (Civil Death) मानी जाती है।

    उदाहरण: यदि पत्नी विवाह के बाद एक भिक्षुणी (Nun) बन जाती है और सभी सांसारिक संबंधों को त्याग देती है, तो पति इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है।

    (vii) उन व्यक्तियों द्वारा सात साल या उससे अधिक की अवधि (Period of seven years or more) के लिए जीवित नहीं सुना गया है (Has not been heard of as being alive) जिन्होंने स्वाभाविक रूप से इसे सुना होता, यदि वह पक्ष जीवित होता; (has not been heard of as being alive for a period of seven years or more by those persons who would naturally have heard of it, had that party been alive;)

    स्पष्टीकरण: यह मृत्यु की धारणा (Presumption of Death) का आधार है। यदि एक पक्ष सात साल या उससे अधिक समय से लापता (Missing) है और उन लोगों द्वारा उसके जीवित होने की कोई खबर नहीं है जो स्वाभाविक रूप से उसे सुनते, तो कानून यह मान लेता है कि वह व्यक्ति मर चुका है। इस आधार पर तलाक की डिक्री प्राप्त की जा सकती है, जिससे दूसरे पक्ष को फिर से शादी करने की अनुमति मिलती है।

    उदाहरण: यदि पति सात साल से अधिक समय से लापता है और उसके परिवार या दोस्तों को उसकी कोई खबर नहीं है, तो पत्नी इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    स्पष्टीकरण (Explanation): इस उप-धारा में, "परित्याग" (Desertion) अभिव्यक्ति का अर्थ विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता का उचित कारण के बिना (Without Reasonable Cause) और ऐसी पार्टी की सहमति के बिना या इच्छा के विरुद्ध परित्याग है, और इसमें विवाह के दूसरे पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता की जानबूझकर उपेक्षा (Wilful Neglect) भी शामिल है, और इसके व्याकरणिक भिन्नरूपों (Grammatical Variations) और सजातीय अभिव्यक्तियों (Cognate Expressions) का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा। (In this sub-section, the expression “desertion” means the desertion of the petitioner by the other party to the marriage without reasonable cause and without the consent or against the wish of such party, and includes the wilful neglect of the petitioner by the other party to the marriage, and its grammatical variations and cognate expressions shall be construed accordingly.)

    स्पष्टीकरण: यह परित्याग की विस्तृत परिभाषा प्रदान करता है, जिसमें न केवल घर छोड़ना बल्कि जानबूझकर उपेक्षा भी शामिल है, जो विवाह को प्रभावी ढंग से समाप्त कर देती है।

    (1A) तलाक के लिए याचिका (Petition for Dissolution of Marriage): विवाह का कोई भी पक्ष, चाहे इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले या बाद में solemnize किया गया हो, निम्नलिखित आधार पर तलाक की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन (Dissolution) के लिए भी याचिका प्रस्तुत कर सकता है— (Either party to a marriage, whether solemnized before or after the commencement of this Act, may also present a petition for the dissolution of the marriage by a decree of divorce on the ground—)

    यह उप-धारा न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) या दांपत्य अधिकारों की बहाली (Restitution of Conjugal Rights) के decree के बाद तलाक प्राप्त करने के लिए अतिरिक्त आधार प्रदान करती है। यह विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने (Irretrievable Breakdown of Marriage) के सिद्धांत की ओर एक कदम है, जहाँ विवाह कानूनी रूप से टूट चुका है और सुलह की कोई उम्मीद नहीं है।

    (i) कि जिस कार्यवाही (Proceeding) में वे पक्ष थे, उसमें न्यायिक पृथक्करण के decree के पारित होने के बाद से विवाह के पक्षों के बीच सहवास फिर से शुरू नहीं हुआ है (No Resumption of Cohabitation) और यह अवधि एक वर्ष या उससे अधिक है; या (that there has been no resumption of cohabitation as between the parties to the marriage for a period of [one year] or upwards after the passing of a decree for judicial separation in a proceeding to which they were parties; or)

    स्पष्टीकरण: यदि पति-पत्नी को न्यायिक पृथक्करण का decree मिला है, लेकिन एक वर्ष या उससे अधिक समय तक वे फिर से साथ नहीं रहते हैं, तो कोई भी पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है।

    (ii) कि जिस कार्यवाही में वे पक्ष थे, उसमें दांपत्य अधिकारों की बहाली के decree के पारित होने के बाद से विवाह के पक्षों के बीच दांपत्य अधिकारों की बहाली नहीं हुई है (No Restitution of Conjugal Rights) और यह अवधि एक वर्ष या उससे अधिक है। (that there has been no restitution of conjugal rights as between the parties to the marriage for a period of [one year] or upwards after the passing of a decree for restitution of conjugal rights in a proceeding to which they were parties.)

    स्पष्टीकरण: यदि न्यायालय ने दांपत्य अधिकारों की बहाली का decree दिया है, लेकिन एक वर्ष या उससे अधिक समय तक पति-पत्नी फिर से साथ नहीं रहते हैं, तो कोई भी पक्ष इस आधार पर तलाक के लिए आवेदन कर सकता है।

    महत्वपूर्ण केस लॉ: स्मृति गुप्ता बनाम किरण गुप्ता (Smriti Gupta v. Kiran Gupta), 2005: दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने इस मामले में धारा 13(1A) के तहत तलाक के लिए याचिका दायर करने के अधिकार पर चर्चा की।

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि न्यायिक पृथक्करण या दांपत्य अधिकारों की बहाली का decree पारित हो गया है और एक वर्ष से अधिक समय तक सहवास या बहाली नहीं हुई है, तो कोई भी पक्ष, भले ही वह decree का उल्लंघन करने वाला पक्ष हो, तलाक के लिए याचिका दायर कर सकता है। यह "दोषी पक्ष" (Guilty Party) को भी तलाक के लिए आवेदन करने की अनुमति देता है, जो विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने के सिद्धांत के अनुरूप है।

    (2) एक पत्नी (Wife) भी तलाक की डिक्री द्वारा अपने विवाह के विघटन के लिए याचिका प्रस्तुत कर सकती है, इस आधार पर,— (A wife may also present a petition for the dissolution of her marriage by a decree of divorce on the ground,—)

    यह उप-धारा पत्नी को तलाक के लिए कुछ अतिरिक्त आधार (Additional Grounds) प्रदान करती है, जो विशेष रूप से महिलाओं के सामने आने वाली कुछ ऐतिहासिक या सामाजिक समस्याओं को संबोधित करते हैं।

    (i) इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले solemnize किए गए किसी भी विवाह के मामले में, कि पति ने ऐसे प्रारंभ से पहले फिर से शादी कर ली थी (Married again) या पति की कोई अन्य पत्नी (Any other wife) जो ऐसे प्रारंभ से पहले विवाहित थी, याचिकाकर्ता के विवाह के solemnization के समय जीवित थी: (in the case of any marriage solemnized before the commencement of this Act, that the husband had married again before such commencement or that any other wife of the husband married before such commencement was alive at the time of the solemnization of the marriage of the petitioner:)

    परंतु (Provided that) दोनों ही मामलों में दूसरी पत्नी याचिका प्रस्तुत करने के समय जीवित हो; (Provided that in either case the other wife is alive at the time of the presentation of the petition;)

    स्पष्टीकरण: यह प्रावधान उन मामलों से संबंधित है जहाँ पति ने अधिनियम के लागू होने से पहले बहुविवाह (Polygamy) किया था। यदि पति ने अधिनियम से पहले एक से अधिक पत्नियाँ रखी थीं, और दूसरी पत्नी याचिका दायर करते समय भी जीवित है, तो पहली पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है। यह अधिनियम के पूर्वव्यापी प्रभाव (Retrospective Effect) को दर्शाता है ताकि पुरानी बहुविवाह प्रथाओं से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को हल किया जा सके।

    (ii) कि पति ने, विवाह के solemnization के बाद से, बलात्कार (Rape), सोडोमी (Sodomy) या पशुगमन (Bestiality) का दोषी रहा है; या (that the husband has, since the solemnization of the marriage, been guilty of rape, sodomy or bestiality; or)

    स्पष्टीकरण: यह आधार पति द्वारा किए गए कुछ गंभीर आपराधिक कृत्यों (Serious Criminal Acts) से संबंधित है। यदि पति बलात्कार, सोडोमी (अप्राकृतिक यौन संबंध) या पशुगमन का दोषी पाया जाता है, तो पत्नी इस आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    (iii) कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (78 of 1956) की धारा 18 (Section 18) के तहत एक मुकदमे में, या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (2 of 1974) की धारा 125 (Section 125) (या दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (5 of 1898) की संबंधित धारा 488) के तहत एक कार्यवाही में, पति के खिलाफ पत्नी को भरण-पोषण (Maintenance) प्रदान करने का एक decree या आदेश, जैसा भी मामला हो, पारित किया गया है, भले ही वह अलग रह रही थी और ऐसे decree या आदेश के पारित होने के बाद से, पक्षों के बीच एक वर्ष या उससे अधिक समय से सहवास फिर से शुरू नहीं हुआ है; (that in a suit under section 18 of the Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956 (78 of 1956), or in a proceeding under section 125 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) (or under the corresponding section 488 of the Code of Criminal Procedure, 1898 (5 of 1898), a decree or order, as the case may be, has been passed against the husband awarding maintenance to the wife notwithstanding that she was living apart and that since the passing of such decree or order, cohabitation between the parties has not been resumed for one year or upwards;)

    स्पष्टीकरण: यह आधार उन पत्नियों के लिए है जिन्हें पहले ही कानून द्वारा अलग रहते हुए भी भरण-पोषण का अधिकार (Right to Maintenance) मिल चुका है। यदि एक वर्ष या उससे अधिक समय तक भरण-पोषण का आदेश होने के बाद भी सहवास फिर से शुरू नहीं होता है, तो पत्नी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है। यह उन पत्नियों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा (Safeguard) है जिन्हें उनके पतियों द्वारा छोड़ दिया गया है या उपेक्षित किया गया है।

    (iv) कि उसका विवाह (चाहे संपन्न हुआ हो या नहीं) पंद्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले solemnize किया गया था और उसने उस आयु (पंद्रह वर्ष) प्राप्त करने के बाद लेकिन अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले विवाह को अस्वीकार (Repudiated) कर दिया है। (that her marriage (whether consummated or not) was solemnized before she attained the age of fifteen years and she has repudiated the marriage after attaining that age but before attaining the age of eighteen years.)

    स्पष्टीकरण (Explanation): यह खंड लागू होता है चाहे विवाह विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 1976 (68 of 1976) के प्रारंभ से पहले या बाद में solemnize किया गया हो। (This clause applies whether the marriage was solemnized before or after the commencement of the Marriage Laws (Amendment) Act, 1976 (68 of 1976).)

    स्पष्टीकरण: यह आधार उन लड़कियों के लिए है जिनकी शादी बाल विवाह (Child Marriage) के रूप में हुई थी। यदि एक लड़की की शादी 15 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है, तो उसे 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद लेकिन 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले उस विवाह को अस्वीकार करने का अधिकार है। यह प्रावधान बाल विवाह के पीड़ितों (Victims of Child Marriage) को राहत प्रदान करता है।

    उदाहरण: 14 साल की उम्र में शादी करने वाली एक लड़की 16 साल की उम्र में अपने विवाह को अस्वीकार करने के लिए याचिका दायर कर सकती है।

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 तलाक के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा (Comprehensive Legal Framework) प्रदान करती है। यह उन परिस्थितियों को पहचानती है जब एक विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट जाता है और पति-पत्नी को एक नया जीवन शुरू करने की अनुमति देता है।

    दोष-आधारित आधारों (Fault-based Grounds) के साथ-साथ, धारा 13(1A) विवाह के अपरिवर्तनीय टूटने के सिद्धांत को भी शामिल करती है, जिससे कानूनी रूप से अलग रह रहे जोड़ों को तलाक प्राप्त करने में आसानी होती है। पत्नी के लिए अतिरिक्त आधार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें सशक्त बनाने के लिए अधिनियम की प्रतिबद्धता (Commitment) को दर्शाते हैं।

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