आत्महत्या या मौत की सूचना और पुलिस द्वारा इन्क्वेस्ट रिपोर्ट : धारा 194 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
Himanshu Mishra
20 Sept 2024 6:31 PM IST
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 1 जुलाई, 2024 को लागू हुआ, जिसने पुराने (Indian Evidence Act) को बदल दिया। यह नया कानून विशेष रूप से उन मामलों में मृत्यु की जांच को अधिक आधुनिक और सुगम बनाने के लिए लाया गया है जहां मौत संदिग्ध या आपराधिक (Criminal) परिस्थितियों में हुई हो।
धारा 194 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसी संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच की प्रक्रिया का वर्णन करती है। इस लेख में हम धारा 194 और इसकी उप-धाराओं (Sub-sections) के मुख्य प्रावधानों को सरल शब्दों में समझाएँगे और उदाहरणों (Examples) के माध्यम से विषय को स्पष्ट करेंगे।
धारा 194 (1): मौत की सूचना और पुलिस द्वारा जांच (Reporting of Death and Inquest by Police)
धारा 194 (1) के अनुसार, जब किसी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्त (Specially empowered) कोई अधिकारी किसी व्यक्ति की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु की सूचना प्राप्त करता है, तो उसे तुरंत निकटतम कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) को सूचित करना होता है, जिसे जांच (Inquest) करने का अधिकार हो।
यह निम्नलिखित प्रकार की मौतों पर लागू होता है:
• आत्महत्या (Suicide)
• किसी अन्य व्यक्ति, जानवर, मशीनरी या दुर्घटना (Accident) से हुई मौत
• वह मौत जो आपराधिक गतिविधियों (Criminal Activity) के संदेह को जन्म देती हो
एक बार सूचित होने के बाद, पुलिस अधिकारी को उस स्थान पर जाना होता है जहां मृतक का शव पाया गया है। वहां, दो या अधिक सम्मानित स्थानीय निवासियों (Respectable members of the neighbourhood) की उपस्थिति में, अधिकारी को मौत के कारणों की जांच करनी होती है। अधिकारी एक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें शव पर दिखाई देने वाले चोट के निशान (Bruises), घाव (Wounds), या अन्य संकेत दर्ज किए जाते हैं। इसके अलावा, रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख होता है कि ये निशान किस प्रकार और किस हथियार (Weapon) या यंत्र (Instrument) से लगे हो सकते हैं।
उदाहरण: मान लीजिए कि किसी व्यक्ति को अपने घर में सिर पर गहरे घाव के साथ मृत पाया जाता है। पुलिस अधिकारी को इस मौत की सूचना मिलती है और वह स्थानीय मजिस्ट्रेट को सूचित करता है। अधिकारी स्थानीय निवासियों की उपस्थिति में घर जाता है, और शव पर मौजूद चोट के निशान की जांच करता है। अधिकारी नोट करता है कि घाव के पास एक चोट का निशान है, जो इंगित करता है कि व्यक्ति को किसी भारी वस्तु (Blunt object) से मारा गया हो सकता है। इस जानकारी को रिपोर्ट में शामिल किया जाता है।
धारा 194 (2): रिपोर्ट का अग्रेषण (Forwarding the Report)
जांच पूरी होने के बाद, पुलिस अधिकारी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर अधिकारी और अन्य गवाहों (Witnesses) के हस्ताक्षर होते हैं। यह रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) या उप-मंडल मजिस्ट्रेट (Sub-divisional Magistrate) को भेजी जाती है।
उदाहरण: उपरोक्त उदाहरण में, पुलिस अधिकारी मौत के कारणों पर एक रिपोर्ट तैयार करता है, उसे स्थानीय निवासियों से हस्ताक्षर करवा कर, रिपोर्ट को एक दिन के अंदर जिला मजिस्ट्रेट को भेजता है, जिससे जांच प्रक्रिया समय पर पूरी हो।
धारा 194 (3): शादी के सात वर्षों के भीतर महिलाओं की मौत के विशेष प्रावधान (Special Provisions for Deaths of Women Within Seven Years of Marriage)
यह उपधारा (Sub-section) उन मामलों पर केंद्रित है जिनमें किसी महिला की शादी के सात साल के भीतर मृत्यु होती है।
अधिकारी यह सुनिश्चित करता है कि निम्नलिखित स्थितियों में शव को चिकित्सीय जांच (Medical Examination) के लिए भेजा जाए:
1. यदि मामला किसी महिला की शादी के सात वर्षों के भीतर आत्महत्या से संबंधित है।
2. यदि मौत इस संदेह को जन्म देती है कि किसी अन्य व्यक्ति ने महिला के खिलाफ अपराध (Offence) किया हो।
3. यदि महिला के किसी रिश्तेदार (Relative) ने मौत की जांच का अनुरोध किया हो।
4. यदि मृत्यु के कारण को लेकर कोई संदेह है।
5. यदि पुलिस अधिकारी किसी अन्य कारण से इसे आवश्यक मानता है।
शव को तभी चिकित्सीय जांच के लिए भेजा जाता है यदि मौसम (Weather) और दूरी के कारण शव के सड़ने का खतरा नहीं हो और जिससे जांच बेकार न हो जाए।
उदाहरण: मान लीजिए एक महिला, जिसकी शादी को पांच साल हो चुके हैं, को उसके घर में मृत पाया जाता है। मौत के कारण स्पष्ट नहीं हैं और इस बात का संदेह है कि उसकी ससुराल वालों ने उसे नुकसान पहुंचाया हो। उसके माता-पिता पुलिस से विस्तृत जांच का अनुरोध करते हैं। इस मामले को ध्यान में रखते हुए, पुलिस अधिकारी शव को पोस्ट-मॉर्टम (Post-mortem) के लिए भेजता है ताकि मौत का सही कारण पता लगाया जा सके।
धारा 194 (4): जांच करने के लिए मजिस्ट्रेटों का अधिकार (Magistrates Empowered to Hold Inquests)
इस धारा के तहत, कुछ मजिस्ट्रेट (Magistrates) को जांच करने और मृत्यु के कारण का पता लगाने का अधिकार दिया गया है। इनमें शामिल हैं:
• कोई भी जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate)
• उप-मंडल मजिस्ट्रेट (Sub-divisional Magistrate)
• कोई भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट जिसे राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा विशेष रूप से जांच करने के लिए नियुक्त किया गया हो
उदाहरण: यदि किसी संदिग्ध मौत का मामला एक ग्रामीण इलाके में सामने आता है, तो राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से नियुक्त कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) स्थल पर जाकर जांच करता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि जांच पूरी तरह से और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार हो।
धारा 194 का महत्व (Importance of Section 194)
धारा 194 के प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि मौत की जांच सावधानीपूर्वक और उचित दस्तावेज़ीकरण (Proper Documentation) के साथ की जाए। यह विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहां आपराधिक गतिविधियों का संदेह होता है या जहां मौत की परिस्थितियाँ स्पष्ट नहीं होती हैं। स्थानीय गवाहों (Witnesses) की उपस्थिति से जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता (Transparency) आती है, और रिपोर्ट को उच्च अधिकारियों को भेजने से जिम्मेदारी (Accountability) सुनिश्चित होती है।
शादी के सात साल के भीतर महिलाओं की मौत के मामलों में, कानून अतिरिक्त सुरक्षा उपाय प्रदान करता है ताकि घरेलू हिंसा (Domestic Violence) या दहेज से संबंधित मामलों को नज़रअंदाज न किया जाए। यह कानून विशेष रूप से कमजोर व्यक्तियों की सुरक्षा पर जोर देता है और लिंग आधारित हिंसा (Gender-based violence) के मुद्दों को संबोधित करता है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 194 संदिग्ध परिस्थितियों में होने वाली मौतों की जांच के लिए स्पष्ट प्रक्रियाएं (Clear Procedures) स्थापित करती है। पुलिस और मजिस्ट्रेटों को सशक्त बनाकर (Empowering the Police and Magistrates) जांच को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने का प्रयास किया गया है। इस धारा के तहत, महिलाओं की शादी के सात साल के भीतर मौत के मामलों पर विशेष ध्यान दिया गया है ताकि घरेलू हिंसा और अन्य अपराधों (Offences) को नजरअंदाज न किया जाए।
यह नया कानून भारत की कानूनी प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे कि मौत की जांच में पारदर्शिता और न्याय की प्रक्रिया को और अधिक मजबूत बनाया जा सके।