मानसिक अस्वस्थता के कारण स्थगित हुए मामलों की पुनः सुनवाई : धारा 370, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Himanshu Mishra

24 Feb 2025 3:45 PM

  • मानसिक अस्वस्थता के कारण स्थगित हुए मामलों की पुनः सुनवाई : धारा 370, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

    भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) यह सुनिश्चित करती है कि हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) का अधिकार मिले, चाहे वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो या अस्वस्थ।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) अभियुक्तों (Accused) के लिए विशेष प्रावधान दिए गए हैं।

    धारा 370 इस संहिता का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि यदि किसी आरोपी का मुकदमा (Trial) मानसिक अस्वस्थता के कारण स्थगित (Postpone) कर दिया गया था, तो उसकी मानसिक स्थिति सामान्य होने के बाद न्यायिक प्रक्रिया कैसे फिर से शुरू होगी।

    इस धारा को समझने से पहले, यह जानना जरूरी है कि धारा 367, 368 और 369 में मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान दिए गए हैं।

    • धारा 367: जब किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) को यह संदेह हो कि कोई आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो उसे डॉक्टर से जांच करानी होगी।

    • धारा 368: यह धारा बताती है कि अगर किसी आरोपी पर सत्र न्यायालय (Court of Session) में मुकदमा चल रहा हो और वह मानसिक रूप से अस्वस्थ हो, तो उसके साथ क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

    • धारा 369: अगर कोई आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है, तो उसे ज़रूरत के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Institution) या देखभाल (Care) के लिए अन्य स्थानों पर भेजा जा सकता है।

    धारा 370 यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई आरोपी जो पहले मानसिक रूप से अस्वस्थ था, अब स्वस्थ हो गया है, तो न्यायिक प्रक्रिया (Legal Proceedings) फिर से शुरू हो सके।

    मुकदमे या जांच की पुनः शुरुआत कब होगी? (Resumption of Inquiry or Trial - Section 370(1))

    धारा 370(1) के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ धारा 367 या धारा 368 के तहत मुकदमा या जांच स्थगित कर दी गई थी, तो जब यह प्रमाणित हो जाए कि वह व्यक्ति अब मानसिक रूप से स्वस्थ (Mentally Fit) हो चुका है, तब न्यायालय या मजिस्ट्रेट मुकदमे को फिर से शुरू कर सकता है।

    यह धारा न्यायालय को यह अधिकार देती है कि वह अभियुक्त को बुलाकर (Summon) या उसे लाकर मुकदमे को आगे बढ़ा सके। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जो व्यक्ति मानसिक अस्वस्थता के कारण मुकदमे में भाग नहीं ले पा रहा था, अब वह अपनी रक्षा (Defense) कर सके।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए, एक व्यक्ति पर हत्या का आरोप लगाया गया है, लेकिन सुनवाई के दौरान यह पाया जाता है कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ है। अदालत धारा 368 के तहत मुकदमे को स्थगित कर देती है और आरोपी को मानसिक स्वास्थ्य केंद्र भेज दिया जाता है।

    कुछ समय बाद, डॉक्टरों की रिपोर्ट से यह प्रमाणित होता है कि आरोपी अब स्वस्थ हो गया है। इस स्थिति में, धारा 370(1) के तहत अदालत मुकदमे को फिर से शुरू करेगी और आरोपी को बुलाकर आगे की सुनवाई करेगी।

    अभियुक्त की अदालत में उपस्थिति आवश्यक (Requirement for Accused to Appear - Section 370(1))

    मुकदमे को फिर से शुरू करने से पहले अदालत को यह सुनिश्चित करना होता है कि अभियुक्त (Accused) वास्तव में मानसिक रूप से स्वस्थ है और अपने बचाव (Defense) में सक्षम है। इसीलिए, जब न्यायालय मुकदमे को फिर से शुरू करने का आदेश देता है, तो आरोपी को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक होता है।

    यदि अभियुक्त किसी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती है, तो प्रशासनिक अधिकारियों (Administrative Officers) और पुलिस की सहायता से उसे अदालत में लाया जाता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि मानसिक रूप से स्वस्थ हो चुके व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने का अवसर मिले।

    ज़मानत पर छोड़े गए अभियुक्त की पुनः उपस्थिति (Production of Accused on Bail - Section 370(2))

    यदि कोई अभियुक्त धारा 369 के तहत ज़मानत (Bail) पर रिहा किया गया था, तो जब मुकदमे की पुनः शुरुआत होती है, तो ज़मानत लेने वाले (Sureties) की ज़िम्मेदारी होती है कि वे आरोपी को अदालत में पेश करें।

    धारा 370(2) के अनुसार, ज़मानतदारों (Sureties) को अभियुक्त को उस अधिकारी (Officer) के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, जिसे मजिस्ट्रेट या अदालत ने नियुक्त किया हो। यदि यह अधिकारी यह प्रमाणित कर देता है कि अभियुक्त मानसिक रूप से स्वस्थ है और मुकदमे का सामना करने के लिए तैयार है, तो इस प्रमाण पत्र (Certificate) को साक्ष्य (Evidence) के रूप में स्वीकार किया जाएगा।

    उदाहरण (Illustration):

    एक व्यक्ति पर धोखाधड़ी (Fraud) का आरोप था, लेकिन सुनवाई के दौरान वह मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया गया और अदालत ने उसे धारा 369 के तहत ज़मानत पर छोड़ दिया। आरोपी के परिवार ने उसकी ज़मानत ली और यह जिम्मेदारी ली कि वे उसकी मानसिक देखभाल करेंगे।

    कुछ समय बाद, आरोपी मानसिक रूप से ठीक हो जाता है, तो परिवार उसे न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी के पास लेकर जाता है। अधिकारी उसकी मानसिक स्थिति की पुष्टि करता है और यह प्रमाण पत्र जारी करता है कि वह मुकदमे के लिए तैयार है। इस स्थिति में, अदालत मुकदमे को फिर से शुरू कर सकती है।

    न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित करना (Ensuring Fairness in Legal Process)

    धारा 370 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति तब तक मुकदमे का सामना न करे जब तक वह मानसिक रूप से स्वस्थ न हो जाए। लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कोई भी आरोपी मानसिक अस्वस्थता का बहाना बनाकर मुकदमे से बच न सके।

    यह प्रावधान विशेष रूप से गंभीर अपराधों के मामलों में बहुत महत्वपूर्ण होता है। बिना इस प्रावधान के, कोई व्यक्ति अगर मानसिक रूप से अस्थायी रूप से अस्वस्थ हो जाता है, तो वह हमेशा के लिए मुकदमे से बच सकता था। धारा 370 यह सुनिश्चित करती है कि जैसे ही वह व्यक्ति ठीक हो जाए, न्यायिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाए।

    अन्य देशों में समान प्रावधान (Similar Provisions in Other Countries)

    • संयुक्त राज्य अमेरिका (United States): अमेरिका में Insanity Defense Reform Act, 1984 के तहत मुकदमों को स्थगित किया जा सकता है और व्यक्ति के ठीक होने पर फिर से शुरू किया जाता है।

    • यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom): ब्रिटेन में Mental Health Act, 1983 मानसिक रूप से अस्वस्थ अभियुक्तों के मुकदमे को रोकने और फिर से शुरू करने का प्रावधान करता है।

    • कनाडा (Canada): कनाडा के Criminal Code में यह नियम है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपी को मानसिक देखभाल दी जाए और ठीक होने के बाद मुकदमा फिर से शुरू किया जाए।

    धारा 370 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक अस्वस्थता के कारण स्थगित हुए मुकदमे को उचित समय पर फिर से शुरू किया जाए। यह धारा 367, 368 और 369 के साथ मिलकर एक संतुलित प्रणाली बनाती है, जिससे मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों के अधिकारों की रक्षा होती है और न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है।

    यह प्रावधान न्याय की निष्पक्षता बनाए रखने में सहायक है, ताकि किसी भी आरोपी को अनुचित रूप से मुकदमे से बचने का अवसर न मिले और साथ ही किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के अधिकारों का हनन न हो।

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