Constitution में लोक सेवा आयोग उल्लेख
Shadab Salim
27 Dec 2024 1:32 PM IST
भारत के कांस्टीट्यूशन के आर्टिकल 315 संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग तथा प्रत्येक राज्य के लिए लोक सेवा आयोग का उपबंध करता है। दो या दो से अधिक राज्य संयुक्त लोक सेवा आयोग रख सकते हैं और संसद उनकी प्रार्थना पर संयुक्त आयोग की स्थापना कर सकती है।
यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ के लोक सेवा आयोग से राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कार्य करने की प्रार्थना करें तो राष्ट्रपति के अनुमोदन से संघ लोक सेवा आयोग राज्यों के लिए कार्य कर सकता है।
संघ लोक सेवा आयोग के संयुक्त लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और राज्य लोक सेवा आयोग तथा सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है पर प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथासंभव निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्ष पद धारण कर चुके हैं।
लोक सेवा आयोग का सदस्य 6 वर्ष की अवधि तक यदि वह संघ आयोग का सदस्य तो 65 वर्ष की आयु तक यदि व राज्य के लोक सेवा आयोग का संयुक्त लोक सेवा आयोग का सदस्य है तो 62 वर्ष की आयु प्राप्त होने तक इनमें से जो भी पहले हो अपना पद धारण करेगा। इसका अर्थ है कि यदि वह सेवानिवृत्ति की आयु को प्राप्त कर चुका है तो 6 वर्ष की अवधि के पहले ही सेवानिवृत्त हो जाएगा। लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य स्वयं अपने पद से इस्तीफा दे सकता है, उसे अपने पद से राष्ट्रपति के आदेश द्वारा कदाचार के आधार पर हटाया जा सकता है कि राष्ट्रपति द्वारा निर्देश दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट जांच करने के बाद राष्ट्रपति को यह प्रतिवेदन दे कि उसे हटा दिया जाए।
जयशंकर प्रसाद बनाम बिहार राज्य 1993 के एक मामले में अपीलार्थी ने प्रत्यार्थी शिव रतन ठाकुर के बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में की गई नियुक्ति को कुछ आधारों पर चुनौती दी जिसमें पहला आधार यह था कि कुल विहित नियुक्तियों से अधिक है और दूसरा यह कि अंधा होने के कारण प्रत्याशी शारीरिक रूप से उस पद को धारण करने के लिए योग्य नहीं था।
यह कथन किया गया कि कुल 11 सदस्यों में से 6 गैर सरकारी सदस्य ही हो सकते हैं और प्रत्येक सातवां व्यक्ति था उसकी नियुक्ति अवैध थी और उसे समाप्त किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त दोनों तर्कों को अस्वीकार कर दिया और निर्णय दिया कि प्रत्यार्थी की नियुक्ति वैध थी। कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 316(1) में यथासंभव आधे सरकारी सदस्य होना चाहिए। यह केवल निर्देश आदेशात्मक नहीं है निर्देशात्मक है, अतः साथ में गैर सरकारी सदस्य की नियुक्ति वर्जित नहीं है। दूसरा आर्टिकल 317 के अधीन मानसिक और शारीरिक स्थिरता का तात्पर्य ऐसी अयोग्यता से है जो सदस्य को अपने कार्यों के प्रभावी रूप से करने के लिए अयोग्य बनाती है।
अंधापन ऐसी अयोग्यता नहीं है प्रत्यार्थी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं और वह पीएचडी डिलीट है और उसे पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उसका अंधापन उसके कार्य में बाधक नहीं है उसकी नियुक्ति यह जानते हुए की गई है कि वह सदस्य के रूप में अभ्यर्थियों की योग्यता का मूल्यांकन करने में सक्षम है। सभी सदस्य मिलकर आपस में निर्णय लेते ऐसी परिस्थितियों में कोर्ट ने निर्णय लिया कि की नियुक्ति प्रत्यार्थी की नियुक्ति संवैधानिक है और इस प्रकार मुकदमे बाजी की प्रवृत्ति को रोकने के उद्देश्य से अपीलार्थी और राज्य को प्रत्यार्थी के खर्चे के लिए ₹5000 देने का निर्देश भी दे दिया।
लोक सेवा आयोग के कार्य-
संघ और राज्यों के लोक सेवा आयोग का यह कर्तव्य है कि वह अपनी सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का संचालन करें। यदि या दो से अधिक राज्य संघ लोक सेवा आयोग से प्रार्थना करें कि वह किसी विशेष सेवा के लिए मिली जुली भर्ती की योजना बनाते हैं उन राज्यों की सहायता करें तो संघ लोक सेवा आयोग ऐसी सहायता देने के लिए बाध्य होगा। संघ और राज्य के लोक सेवा आयोग लोक तत्वों के लिए भर्ती की नीतियों में संबंध सभी विषयों पर आपस में परामर्श करते हैं।
अभ्यर्थियों की नियुक्ति पदोन्नति बदली और उनकी उपयोगिता के बारे में अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांत पर कार्य करते हैं। भारत सरकार या राज्य सरकार की सेवा करने वाले व्यक्तियों पर प्रभाव डालने वाले समस्त अनुशासनिक विषयों पर कार्य करते हैं। ऐसे किसी व्यक्ति पर किए गए खर्च दावे पर जो उसके कर्तव्य पालन में किए गए कार्यों के संबंध में उसके उनकी चलाई गई किसी कानूनी कार्यवाही में उसे अपने प्रतिरक्षा में खर्च करना पड़े। सरकार की हैसियत में ऐसी सेवा करते समय किसी व्यक्ति को हुई क्षति के बारे में मुआवजे की राशि के किसी दावे।
हरियाणा राज्य 1987 के एक मामले में अभिनिर्धारित गया है कि लोक सेवा आयोग का कार्य लिखित परीक्षा लेना और साक्षात्कार लेना और योग्यता क्रम में उत्तीर्ण सभी अभ्यर्थियों की सूची प्रकाशित करना और उसे सरकार को प्रेषित करना है वह इसके पश्चात उस सूची में फेरबदल नहीं कर सकता और किसी अभ्यर्थी के नाम को वापस नहीं ले सकता है।
सरकार चाहे तो सभी स्थानों को भरें या न भरे। हरियाणा में अधीनस्थ कोर्टों की नियुक्ति के लिए बने नियम के अधीन लोक सेवा आयोग का स्थानों की संख्या से कोई संबंध नहीं है। पिटीशनर एक चुने हुए अभ्यर्थियों में था किंतु उसका नाम सरकार को इसलिए नहीं भेजा गया था कि उसकी स्थान कम है। कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया कि उसका नाम चुने हुए अभ्यर्थियों की सूची में शामिल करें और सरकार को प्रेषित करें।
पंजाब राज्य बनाम मनजीत सिंह के मामले में मुख्य विचारणीय प्रश्न यह था कि क्या लोक सेवा आयोग अभ्यर्थियों की संख्या को घटाने के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट कर सकता है और सेवा में कुशलता बनाए रखने के लिए लिखित परीक्षा ली जा सकती है जिसके लिए न्यूनतम अंक का मानक नियत किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि आयोग को नियुक्ति के लिए अभ्यर्थियों की संख्या घटाने व स्क्रीन टेस्ट लेने की शक्ति है किंतु न्यूनतम अर्हता अंक निर्धारित करने की शक्ति नहीं है। आयोग सेवा में कुशलता बनाए रखने के लिए कोई और नहीं अर्हता मानक नहीं निर्धारित सकता। आर्टिकल 335 के मामले में आयोग से परामर्श लेना आवश्यक नहीं है, यह नीतिगत मामला है और राज्य सरकार इस पर निर्णय करेगी क्या आरक्षण के मामले में सेवा की कुशलता बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जाएं। जहां नियमों में कोई अतिरिक्त अर्हता का उपबंध नहीं किया गया है आयोग अतिरिक्त अर्हता नहीं विहित कर सकता है।