सार्वजनिक उपद्रव: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अंतर्गत प्रावधान

Himanshu Mishra

15 Aug 2024 12:54 PM GMT

  • सार्वजनिक उपद्रव: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के अंतर्गत प्रावधान

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, जो कि 1 जुलाई 2024 से लागू हो गई है, ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) की जगह ली है। इस संहिता का उद्देश्य देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखना है। इस संहिता के तहत, सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisances) से संबंधित प्रावधानों को धारा 152 में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है।

    यह धारा उन परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई है, जो सार्वजनिक स्थलों, मार्गों, नदियों या अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अवैध अवरोध (obstruction) या उपद्रव के कारण उत्पन्न होती हैं।

    इसके अलावा, यह धारा उन गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए भी बनाई गई है जो समुदाय के स्वास्थ्य या शारीरिक आराम को नुकसान पहुंचाती हैं। यहाँ धारा 152 के सभी उप-प्रावधानों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 152 सार्वजनिक उपद्रवों को रोकने और नियंत्रित करने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रस्तुत करती है। यह धारा मजिस्ट्रेटों को अवैध अवरोधों, हानिकारक व्यवसायों, खतरनाक संरचनाओं, और खतरनाक जानवरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की शक्ति देती है। इन प्रावधानों का उद्देश्य सार्वजनिक शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

    इसके अलावा, इन आदेशों को सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती, जो इस कानून की कठोरता और महत्व को दर्शाता है।

    धारा 152(1): कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा शर्तात्मक आदेश जारी करने का अधिकार

    धारा 152(1) के अंतर्गत, जिला मजिस्ट्रेट, उप-मंडल मजिस्ट्रेट, या कोई अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिकृत किया गया हो, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त करने या अन्य जानकारी के आधार पर, और आवश्यक साक्ष्य (evidence) लेने के बाद, यह निर्धारित कर सकते हैं कि क्या कोई अवैध अवरोध या उपद्रव किसी सार्वजनिक स्थान, मार्ग, नदी या चैनल से हटाया जाना चाहिए, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रयोग किया जा सकता है।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी गाँव में एक व्यक्ति ने सार्वजनिक मार्ग पर अवैध रूप से अपनी दुकान लगा ली है, जिससे लोगों को आने-जाने में परेशानी हो रही है, तो मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को उस दुकान को हटाने का आदेश दे सकता है।

    यदि वह व्यक्ति आदेश का पालन नहीं करता, तो मजिस्ट्रेट उसे अदालत में पेश होने के लिए कह सकता है और कारण बताने के लिए कह सकता है कि आदेश को स्थायी क्यों न किया जाए।

    धारा 152(1)(a): अवैध अवरोध या उपद्रव का निवारण

    इस उप-धारा के अनुसार, यदि मजिस्ट्रेट यह पाते हैं कि किसी सार्वजनिक स्थान, मार्ग, नदी, या चैनल में कोई अवैध अवरोध या उपद्रव उत्पन्न हुआ है, तो उसे हटाया जाना चाहिए।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी शहर में एक नदी के किनारे किसी ने अवैध निर्माण कर लिया है, जिससे लोगों का नदी तक पहुंचना मुश्किल हो गया है, तो मजिस्ट्रेट उस निर्माण को हटाने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(1)(b): व्यापार या व्यवसाय से उत्पन्न सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा

    यदि कोई व्यापार या व्यवसाय, या कोई वस्तु या माल रखने का कार्य समुदाय के स्वास्थ्य या शारीरिक आराम के लिए हानिकारक है, तो मजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकते हैं कि उस व्यापार या व्यवसाय को प्रतिबंधित किया जाए, या उसे विनियमित (regulated) किया जाए, या उस वस्तु या माल को हटा दिया जाए।

    उदाहरण के लिए, यदि एक रासायनिक कारखाना किसी आवासीय क्षेत्र में स्थित है और उसके धुएं के कारण लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है, तो मजिस्ट्रेट उस कारखाने को बंद करने या उसे दूसरी जगह स्थानांतरित करने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(1)(c): विस्फोटक निर्माण रोकने के उपाय

    यदि कोई इमारत निर्माण या किसी पदार्थ का निपटान (disposal) ऐसा है जिससे आग लगने या विस्फोट होने की संभावना है, तो मजिस्ट्रेट इसे रोकने या बंद करने का आदेश दे सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, अगर किसी क्षेत्र में पटाखे बनाने का काम बिना उचित सुरक्षा उपायों के किया जा रहा है, तो मजिस्ट्रेट उस कार्य को तुरंत रोकने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(1)(d): गिरने की स्थिति में भवन या संरचना की मरम्मत

    यदि कोई भवन, तंबू, संरचना, या पेड़ इस स्थिति में है कि वह गिर सकता है और आसपास के लोगों को नुकसान पहुंचा सकता है, तो मजिस्ट्रेट उसे हटाने, मरम्मत करने, या समर्थन देने का आदेश दे सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि एक पुराना पेड़ सड़क के किनारे खड़ा है और उसके गिरने की संभावना है, जिससे वहाँ से गुजरने वाले लोगों को खतरा है, तो मजिस्ट्रेट उस पेड़ को काटने या उसके लिए समर्थन व्यवस्था करने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(1)(e): जलाशयों का घेराव

    यदि कोई तालाब, कुआँ या खुदाई किसी सार्वजनिक मार्ग या स्थान के पास स्थित है और उससे सार्वजनिक खतरा हो सकता है, तो मजिस्ट्रेट उसे सुरक्षित घेरने का आदेश दे सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि एक गहरा कुआँ सड़क के किनारे खुला है और उससे बच्चों या अन्य लोगों को गिरने का खतरा है, तो मजिस्ट्रेट उस कुएँ के चारों ओर बाड़ लगाने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(1)(f): खतरनाक जानवर का निवारण

    यदि कोई खतरनाक जानवर है, तो मजिस्ट्रेट उसे मारने, बंद करने, या अन्यथा निपटाने का आदेश दे सकते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि एक पागल कुत्ता किसी इलाके में घूम रहा है और लोगों को काटने का खतरा है, तो मजिस्ट्रेट उस कुत्ते को पकड़ने या मारने का आदेश दे सकते हैं।

    धारा 152(2): सिविल कोर्ट में आदेश की चुनौती

    धारा 152(2) के अनुसार, इस धारा के तहत किसी मजिस्ट्रेट द्वारा विधिवत किया गया आदेश किसी भी सिविल कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती।

    इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक सुरक्षा और शांति बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेशों को बाधित न किया जा सके।

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