Constitution में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के प्रावधान

Shadab Salim

16 Dec 2024 4:59 PM IST

  • Constitution में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के प्रावधान

    सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया की उत्पत्ति कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया से हुई है। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया एक यूनियनीय यह कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया है। भारत को राज्यों का यूनियन कहा गया है और इस राज्यों के यूनियन के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। सरकारों की शक्तियों का विभाजन एक लिखित कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के द्वारा किया गया है ताकि भविष्य में सरकारों के बीच किसी प्रकार का शक्तियों को लेकर कोई विवाद न हो। इस प्रकार का कोई विवाद होता है तो कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में उसके लिए एक स्वतंत्र संस्था न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है जिसे यूनियन की न्यायपालिका भारत का सुप्रीम कोर्ट कहा गया है।

    यूनियन की न्यायपालिका के संबंध में उपबंध कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 124 से 147 तक किए गए हैं। इन सभी आर्टिकलों में यूनियन की न्यायपालिका के संबंध में सारे उल्लेख कर दिए गए हैं। भारत केे सुप्रीम कोर्ट का गठन किया गया है और उसके मुख्य जज के संदर्भ उल्लेख किया गया है। सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक होने केे होने के साथ-साथ ही कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया का भी संरक्षक है। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के उपबंध की व्याख्या के संबंध में अंतिम निर्णय देने का अधिकार भारत के सुप्रीम कोर्ट को ही प्राप्त है।

    सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

    कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 124 के अंतर्गत भारत के सुप्रीम कोर्ट का गठन किया गया है। आर्टिकल 124 यह कहता है कि सुप्रीम कोर्ट में एक मुख्य न्यायमूर्ति होगा वह जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या में विहित नहीं करती है तब तक 7 से अधिक अन्य जज और होंगे समय-समय पर भारत के सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या बढ़ाई जाती रही है। वर्ष 2009 में संख्या को बढ़ाकर 30 कर दिया गया था, वर्तमान में भारत के सुप्रीम कोर्ट में कुल जज की संख्या 31 है।

    कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में उस न्यूनतम जजों की संख्या को उपबंध नहीं किया गया है जो सुप्रीम कोर्ट की में मामलों की सुनवाई के लिए अनिवार्य है किंतु 145 आर्टिकल यह कहता है ऐसे मामलों में जिसमें कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान प्रश्न शामिल है विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए आर्टिकल 145 के अधीन निर्देश की सुनवाई के लिए बैठने वाले जजों की न्यूनतम संख्या 5 होगी। इससे यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी संवैधानिक तथा आर्टिकल 145 की अधिकारिता का प्रयोग तब तक नहीं कर सकता जब तक कि न्यायालय की पीठ में न्यूनतम संख्या 5 न हो।

    सुप्रीम कोर्ट के जजों को राष्ट्रपति नियुक्त करता है। इस मामले में राष्ट्रपति को कोई विवेक की शक्ति नहीं है। आर्टिकल 124 यह कहता है कि राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति हाई कोर्ट तथा हाई कोर्ट के जजों से परामर्श करने के पश्चात जिनसे इस प्रयोजन के लिए आवश्यक समझे तब करता है। जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वदा मुख्य जजों के परामर्श से करता है।

    भारत में इस तरह जजों की नियुक्ति के लिए कालोजियम सिस्टम प्रचलित है। राष्ट्रपति हाई कोर्ट के जजों से भी परामर्श कर सकता है। जजों की नियुक्ति करने की राष्ट्रपति की शक्ति को औपचारिक शक्ति है क्योंकि वह इस मामले में मंत्रिमंडल की सलाह से कार्य करता है मामले में शक्ति नहीं है। जजों की नियुक्ति के मामले में कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया ने कार्यपालिका को आत्यंतिक शक्ति प्रदान नहीं की है क्योंकि भारत के सुप्रीम कोर्ट के जजों को चुनने का अधिकार स्वयं जजों को ही दिया गया है। कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के आर्टिकल 124 के अंतर्गत राष्ट्रपति को कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया द्वारा विहित योग्यता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त करने की शक्ति प्राप्त है किंतु अन्य जजों की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श लेने के लिए बाध्य है।

    आर्टिकल 124 में इस बात का भी कोई उल्लेख नहीं किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ जज को ही मुख्य न्यायमूर्ति नियुक्त किया जा सकता है कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया में ऐसी बाध्यता न होने के बावजूद प्रारंभ से ही सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज को ही मुख्य न्यायमूर्ति के पद पर नियुक्त करने की परंपरा वरिष्ठता के आधार पर चली आ रही है। जजों के गुण और उपयोगिता के आधार पर ऐसी कोई परंपरा नहीं है।

    एसपी गुप्ता बनाम भारत यूनियन के मामले में भारत के विधि मंत्री द्वारा राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भेजे गए एक परिपत्र जिसके द्वारा जजों को एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर करने इस संबंध में अपनी सहमति देने को कहा गया था की विधि मान्यता को चुनौती दी गई। पटना हाई कोर्ट के मुख्य जज मद्रास हाई कोर्ट में स्थानांतरण आदेश तथा दिल्ली हाई कोर्ट के अवर जज की पदावली ना बढ़ाए जाने के आदेश को चुनौती थी कि वह भारत के मुख्य जज के परामर्श के बिना की गई थी। इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य जज मुख्य जज की राय को प्राथमिकता दी थी।

    सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पूर्ण पीठ ने 3/4 के बहुमत से यह अभिनिर्धारित किया था कि आर्टिकल 124 में प्रयुक्त परामर्श शब्द से तात्पर्य पूर्व प्रभावी परामर्श है अर्थात संबंधित जज के समक्ष संपूर्ण तर्क रखे जाने चाहिए जिसके आधार पर किसी व्यक्ति को जज नियुक्त करने के लिए राष्ट्रपति को अपनी सिफारिश भेजेगा किंतु बहुमत ने यह स्पष्ट किया कि उक्त परामर्श मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है राष्ट्रपति अपना निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकता है। संक्षेप में जज के अनुसार मुख्य जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार को शक्ति प्राप्त है।

    सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्य कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया पीठ ने इन री प्रेसिडेंशियल रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट के मामले में जजों की नियुक्ति तथा स्थांतरण के मामले के नाम से प्रसिद्ध मामले में सर्वसम्मति से यह निर्धारित किया कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति स्थानांतरण के मामले में 1993 के निर्णय में प्रतिपादित परामर्श का पालन किए बिना मुख्य जज द्वारा की गई सिफारिशों को मानने के लिए कार्यपालिका बाध्य नहीं है।

    राष्ट्रपति ने आर्टिकल 142 के अधीन सुप्रीम कोर्ट के प्रश्नों पर अपनी सलाह देने के लिए कहा था। राष्ट्रपति ने पूछा था कि जजों की नियुक्ति के मामले में क्या वह मुख्य जज द्वारा अन्य जजों से परामर्श किए बिना भेजी गई सिफारिश है।

    9 सदस्य कांस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया पीठ के निर्णय के पश्चात सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति तथा स्थांतरण संबंधी विवाद कुछ समय के लिए टल गया किंतु इस संबंध में जजों और विधायिका के सदस्यों के दृष्टिकोण में पर्याप्त मतभेद देखने में आया।

    21 दिसंबर 1996 में दिल्ली में न्यायिक सुधारों पर हुए सेमिनार ने में न्याय तथा न्यायालय के बाहर के सदस्यों के बीच विचारों में पर्याप्त मत दिखाई पड़ा। वहां हुई चर्चा से स्पष्ट है कि जजों की नियुक्ति संबंधित सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मामले को हल करने में सफल नहीं रहा। गोष्ठी में भाग लेने वाले सदस्यों में से अधिकांश का यह मत था के जजों की नियुक्ति संस्थान के संदर्भ में राष्ट्रपति को किया गया।

    राष्ट्रीय न्यायिक समिति की स्थापना 1980 के स्थांतरण के मामले में न्यायमूर्ति श्री भगवती ने आस्ट्रेलिया की भर्ती एक न्यायिक समिति की स्थापना का सुझाव दिया था उन्होंने कहा था कि शक्ति सरकार के किसी एक अंग में अनन्य रूप में निहित नहीं होना चाहिए। ऐसी दशा में इस विवाद का एकमात्र निराकरण एक राष्ट्रीय न्यायिक समिति की स्थापना से ही है जिसमें किसी एक अंग को प्राथमिकता नहीं रहेगी वरन दोनों की समान भागीदारी रहेगी।

    1986 में विधि आयोग ने भी राष्ट्र न्यायिक समिति की स्थापना का सुझाव दिया था उसके गठन के संबंध में विधि आयोग ने यह सुझाव दिया कि उस समिति के अध्यक्ष भारत का मुख्य जज होना चाहिए तथा तीन सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के जज भारत के महाधिवक्ता एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता तथा विधि मंत्रालय के प्रतिनिधि होना चाहिए।

    Next Story