Hindu Marriage Act की धारा 15 के प्रावधान

Shadab Salim

25 July 2025 10:05 AM IST

  • Hindu Marriage Act की धारा 15 के प्रावधान

    अधिनियम की यह धारा किसी हिंदू विवाह को इस अधिनियम के अधीन विघटन कर दिए जाने के पश्चात पुनर्विवाह का उल्लेख कर रही है। पुनर्विवाह के संबंध में यह धारा में प्रावधान करते हुए यह स्पष्ट किया गया है कि किस सीमा के व्यतीत हो जाने के पश्चात पक्षकार पुनर्विवाह करने में सक्षम होंगे।

    अधिनियम की धारा 15 दो चीजों का उल्लेख कर रही है। पहली तो यह कि विवाह विच्छेद हो जाने के पश्चात स्वतंत्र हुए विवाह के पक्षकार नवीन विवाह कर सकते हैं और इसके लिए कुछ सीमाएं उनका उल्लेख विशेष रुप से धारा के अंतर्गत किया गया।

    हिंदू विवाह अधिनियम 1955 किसी भी विवाह विच्छेद के पश्चात विवाह के पक्षकारों को पुनर्विवाह करने की मान्यता देता है। धारा 15 इस मान्यता को नियंत्रित भी करती है, पुनर्विवाह लिए कुछ सीमाएं तय करती है। धारा 15 विवाह विच्छेद के बाद पुनर्विवाह कर सकने की योग्यता प्रदान करती है।

    इस धारा के अनुसार उस व्यक्ति को जो विवाह विच्छेद के उपरांत पुनर्विवाह करना चाहता है अपील संबंधी प्रावधानों का पालन करना होगा। विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील का प्रावधान है, जब तक अपील का अंतिम रूप से निर्णय नहीं हो जाता है यह नहीं समझा जाएगा कि विवाह विच्छेद की डिक्री अंतिम है। विवाह विच्छेद की डिक्री के पश्चात पुनर्विवाह करने के इच्छुक व्यक्ति को कुछ सीमाओं का पालन करना होता है।

    जब तक की विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध पारित की गई अपील निर्णीत नहीं हो जाती अथवा अपील करने का अधिकार समाप्त नहीं हो यदि विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील करने का अधिकार न हो तो ऐसी अवस्था में डिक्री पारित किए जाने के बाद कभी भी पुनर्विवाह कर सकते हैं।

    पक्षकार को अपील करने का अधिकार है तो अपील करने का समय व्यतीत हो गया हो या फिर अपील न की गई हो। यदि निर्धारित समयावधि में विवाह विच्छेद की डिक्री के विरुद्ध अपील प्रस्तुत नहीं की जाती है तो पक्षकार पुनर्विवाह कर सकता है।

    यदि अपील प्रस्तुत की गई तो अंतिम रूप से खारिज या निस्तारित कर दी गई हो तो विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह कर सकते।

    अनुराग मित्तल बनाम मिसेज शैली मिश्रा मित्तल एआईआर 2018 सुप्रीम कोर्ट 3983 के प्रकरण में यह कहा गया है कि यदि विवाह के पक्षकारों ने विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होते समय आपस में यह समझौता कर लिया है कि व प्रकरण को आगे नहीं ले जाएंगे तथा कोई अपील की कार्यवाही नहीं करेंगे ऐसी परिस्थिति में धारा 15 के प्रावधान विवाह के पक्षकारों पर लागू नहीं होंगे तथा विवाह के पक्षकार विवाह विच्छेद की डिक्री पारित होते ही पुनर्विवाह करने के लिए अधिकारी होंगे।

    पूर्व के कुछ निर्णय में भारत के उच्चतम न्यायालय ने शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह के संबंध में विवाह के अकृत के संबंध में जो डिक्री धारा 11 और धारा 12 के अंतर्गत पारित की जाती है उसके बाद विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह के लिए स्वतंत्र थे।

    धारा 15 से यह अनुमान लगाया जाता था कि विवाह विच्छेद की डिक्री के संबंध में ही केवल धारा 15 लागू होती है अर्थात यदि धारा 13 के अंतर्गत तलाक होगा तो ही विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह के संबंध में धारा 15 के अनुसार सीमाओं को मानने के लिए बाध्य होंगे।

    धारा 11 धारा 12 के अनुसार यदि किसी विवाह को अकृत किया जाता है तो विवाह के पक्षकार पुनर्विवाह के लिए निर्धारित की गई सीमाओं को मानने के लिए बाध्य नहीं होंगे परंतु श्रीमती लता कामथ के निर्णय के पश्चात सभी उच्च न्यायालय के सभी उपरोक्त निर्णय अप्रभावी हो गए।

    पक्षकारों के मध्य विवाह विच्छेद हो जाता है तथा उनका वैवाहिक संबंध अकृत घोषित कर दिया जाता है तो उस दशा में उन्हें धारा 15 में उपस्थित प्रावधानों से बाध्य माना जाएगा। यदि किसी विवाह को शून्य भी घोषित किया जाए तो भी धारा 15 में जो सीमाएं दी गई हैं उनसे बाध्य होना ही पड़ेगा। डिक्री भले धारा 11 और 12 के अंतर्गत पारित की जाए पर धारा 15 के निर्बंधन मानने होंगे।

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