Constitution में राज्यसभा के प्रावधान
Shadab Salim
16 Dec 2024 3:08 AM

राज्य सभा की अधिकतम सदस्य संख्या 250 है। इनमें से 238 सदस्य राज्य और संघ राज्य क्षेत्रों के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं और 12 ऐसे सदस्यों को राष्ट्रपति नामांकित करता है जो साहित्य कला विज्ञान और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान या वास्तविक अनुभव रखते हैं। नामांकित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं। राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। राज्यसभा के लिए संघ राज्य क्षेत्र प्रतिनिधि चुने जाएंगे जैसा कि संसद विधि द्वारा विविध करें।
राज्यसभा में प्रत्येक राज्य और कुछ संघ राज्य क्षेत्रों में सीटों का बंटवारा संविधान की चौथी अनुसूची द्वारा किया जाता है। इसमे आंध्र प्रदेश 18, असम राज्य से 7, बिहार राज्य से 16, झारखंड राज्य से 6, गोवा राज्य से 1, गुजरात राज्य से 11, हरियाणा राज्य से 5, राजस्थान राज्य से 10, उत्तर प्रदेश राज्य से 31, उत्तराखंड राज्य से 3, पश्चिम बंगाल राज्य से 16, जम्मू कश्मीर राज्य से 6, नागालैंड राज्य से 1, हिमाचल प्रदेश राज्य से 3, मणिपुर राज्य से 1, त्रिपुरा राज्य से 1 मेघालय राज्य से 1, सिक्किम राज्य से 1, मिजोरम राज्य से 11, अरुणाचल प्रदेश राज्य से 1, दिल्ली राज्य से 3, पांडिचेरी राज्य से 1 इस तरह कुल 233 सदस्य हैं। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किए जाते हैं सीटों का बंटवारा जनसंख्या के आधार पर किया जाता है
राज्यसभा एक स्थाई सदन है। इसका विघटन नहीं होता है किंतु इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष की समाप्ति पर रिटायर हो जाते हैं। इस नीति के अनुसार 6 वर्षों तक राज्यसभा का सदस्य व्यक्ति रहता है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा के सदस्यों में से किसी सदस्य को उपसभापति चुना जाता है।
जब सभापति का पद रिक्त हो जाता है जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो तब उपसभापति उस पद के कर्तव्यों का पालन करता है। यदि उपसभापति का पद भी रिक्त हो राज्यसभा का ऐसा सदस्य कार्य करेगा जिसे राष्ट्रपति नियुक्त करें। राज्यसभा के उपलक्ष उपसभापति धारण करने वाला व्यक्ति सभा का सदस्य नहीं रह जाता तो अपना पद खाली कर देगा। वह अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है। राज्यसभा में तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से प्रस्ताव पारित करके उसे हटा सकती है।
इसी प्रक्रिया द्वारा राज्यसभा के सभापति को हटा सकती है। राज्य सभा की बैठक में उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव विचाराधीन हो तब उपराष्ट्रपति सभा की अध्यक्षता नहीं करेगा।
भारत में राज्यसभा को रखने का औचित्य है कि भारत को एकात्मक राष्ट्र बनने से रोकना है क्योंकि भारत को जब स्वतंत्रता मिली थी जब सभी राज्यों को एक करके भारत बनाया गया है। भारत राज्यों का एक संघ है। सभी प्रांतों को भारत में मिलाकर भारत को अखंड किया गया परंतु भारत को एकात्मक राष्ट्र नहीं बनाया गया क्योंकि यह कठिन कार्य था। कुछ शक्तियां प्रांतों को भी दी गई है इसलिए राज्यसभा का होना भारत की संसद की अनिवार्य आवश्यकता है।
यह वह सभा है जिसमें देश के योग्य और अनुभवी राजनेताओं की चुनावी परेशानियों के बिना सदस्य बन जाते हैं। इस प्रकार देश को उनके अनुभव तथा ज्ञान का लाभ प्राप्त होता रहता है। राज्यसभा लोकसभा द्वारा जल्दबाजी से पारित किए गए कानूनों को उन पर उसे पुनर्विचार करने का अवसर प्रदान करती है, राज्य हितों की संरक्षिका है जो संघीय के सिद्धांत के अनुरूप है। व्यवहार में राज्यसभा अब राज्य हित के लिए कार्य नहीं करती है वरन राष्ट्र हित को ध्यान में रखकर कार्य करती है।
राज्यसभा के सदस्यों को अलग-अलग प्रांतों की विधान मंडलों के जनता द्वारा कि निर्वाचित किए गए सदस्यों द्वारा चुना जाता है। इस प्रकार राज्यसभा में सारे भारत के अलग-अलग प्रांतों के लोगों का समावेश रहता है। सभी का प्रतिनिधित्व उनकी जनसंख्या के अनुपात में होता है।