Hindu Marriage Act में Divorce के प्रावधान

Shadab Salim

23 July 2025 10:03 AM IST

  • Hindu Marriage Act में Divorce के प्रावधान

    हिन्दू विवाह एक संस्कार है जो पति पत्नी के बीच जन्मों का नाता है। समय और परिस्थितियां बदलती गई मनुष्य की आवश्यकताएं तथा उसके आचरण में परिवर्तन आता गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वर्ष 1955 में आधुनिक हिंदू विधि की रचना की गई।

    इस विधि के अधीन आधुनिक हिंदू विवाह अधिनियम बनाया गया तथा इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह के स्वरूप को संस्कार के साथ ही संविदा का भी रूप दिया गया। वर्तमान हिंदू विवाह हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन संस्कार और संविदा का एक मिश्रित रूप है।

    अब यदि हिंदू विवाह संस्कार है तो इस संस्कार के लिए प्रतिषिद्ध नातेदारी और सपिंड नातेदारी जैसी व्यवस्था की गई है। यदि हिंदू विवाह संविदा है तो संविदा की भांति ही इसमें शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह का समावेश किया गया है।

    कोई भी विवाह शून्य और शून्यकरणीय कोर्ट की आज्ञप्ति से घोषित किया जा सकता है। इस ही भांति हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत तलाक की व्यवस्था की गई है। इस धारा के अंतर्गत विवाह के विघटन का उल्लेख किया गया है।

    विवाह विच्छेद की शक्ति वैवाहिक अधिकार का स्वाभाविक परिणाम है। इस प्रकार जीवन में संस्कारों की अनिवार्यता प्रतिपादित की गई उसी प्रकार हिंदू धर्म में विवाह को भी आवश्यक संस्कार के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।

    विवाह जीवन का आवश्यक अंग माना गया है विवाह एक प्रेममय गृहस्थ जीवन के लिए है परंतु यदि यह विवाह जीवन में कलेश का कारण बन जाए तथा यह विवाह के पक्षकारों के भीतर उन्माद को भर के रख दे और दोनों के भीतर नफरत की आग जलने लगे तो ऐसी परिस्थिति में विवाह के संबंध को रखना कदापि औचित्यपूर्ण नहीं है।

    ऐसी परिस्थिति में विवाह का विघटन कर ही दिया जाना चाहिए। इस ही उद्देश्य की पूर्ति हेतु अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद की व्यवस्था की गई है। हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत होने वाले विवाहों को विघटित करना एक न्यायिक उपचार है।

    यदि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत 2 हिंदुओं के मध्य विवाह का अनुष्ठान किया गया है तो ऐसे विवाह का विच्छेद न्यायालयीन प्रक्रिया के माध्यम से होगा। हिंदू विवाह का विघटन कोर्ट की डिक्री के माध्यम से होता है। डाइवोर्स की डिक्री हिंदू विवाह अधिनियम 1955 धारा 13 के अंतर्गत प्रदान की जाती है।

    यह अधिनियम कोर्ट को इस बात पर जोर देने के लिए आदेशित करता है कि वह किसी भी विवाह को सीधे ही विघटन न कर दें इसके परिणामस्वरूप तो विवाह जैसी पवित्र संस्था दूषित हो जाएगी तथा इस विवाह से उत्पन्न होने वाली संताने व्यथित होंगी। यह अधिनियम न्यायिक पृथक्करण और दांपत्य अधिकारों के प्रत्यस्थापन के बाद भी बात नहीं बने तथा विवाह के पक्षकार पति और पत्नी का पुनर्मिलन नहीं हो तो संबंध विच्छेद की व्यवस्था का उल्लेख करता है।

    हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 दो हिंदुओं के बीच हुए हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह को कुछ आधारों पर विघटन करने हेतु उल्लेख कर रही है। धारा 13 के अनुसार विवाह का कोई भी पक्षकार पति या पत्नी इस अधिनियम के अंतर्गत होने वाले किसी वैध विवाह को विच्छेद करने हेतु तलाक हेतु कोर्ट के समक्ष आवेदन कर सकता है।

    विवाह के पक्षकार ऐसा आवेदन जिला कोर्ट के समक्ष करते हैं। जिला कोर्ट वह कोर्ट होता है जिसके क्षेत्र अधिकार के भीतर हिंदू विवाह के पक्षकार निवास कर रहे हैं या जिसके क्षेत्राधिकार के भीतर हिंदू विवाह के पक्षकारों ने अंतिम बार निवास किया है। जिला कोर्ट में विवाह के पक्षकार धारा 13 के अंतर्गत दिए गए आधारों पर विवाह विच्छेद के लिए याचिका प्रस्तुत करते हैं।

    आलेख में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अधीन दिए गए उन आधारों का उल्लेख किया जा रहा है जिन आधारों पर विवाह विच्छेद की अर्जी विवाह के दोनों पक्षकारों में से किसी पक्षकार द्वारा प्रस्तुत की जा सकती है।

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