आपातकालीन स्थिति में तुरंत कार्रवाई के लिए BNSS 2023 की धारा 163 के तहत प्रावधान

Himanshu Mishra

21 Aug 2024 2:05 PM GMT

  • आपातकालीन स्थिति में तुरंत कार्रवाई के लिए BNSS 2023 की धारा 163 के तहत प्रावधान

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, जो 1 जुलाई 2024 से लागू हुई है, ने पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को बदल दिया है। इस नए कानून के तहत धारा 163 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो आपातकालीन स्थिति में उत्पन्न होने वाली परेशानियों (nuisance) या संभावित खतरे को रोकने के लिए बनाई गई है।

    यह धारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के समान है, जो सार्वजनिक व्यवस्था (public order) बनाए रखने और सार्वजनिक सुरक्षा (public safety) के लिए तुरंत कार्रवाई करने के लिए उपयोग की जाती थी।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163, परेशानियों या संभावित खतरे के मामलों में तुरंत कार्रवाई के लिए मजिस्ट्रेट को एक मजबूत कानूनी उपकरण (legal tool) प्रदान करती है।

    यह धारा आपातकालीन स्थितियों में त्वरित कार्रवाई के लिए मजिस्ट्रेट को अधिकार देती है ताकि सार्वजनिक शांति और सुरक्षा बनाए रखी जा सके।

    एकतरफा आदेशों, व्यापक आवेदन, और आदेशों को रद्द या बदलने के प्रावधान के माध्यम से यह कानून तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता और प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखता है।

    यह धारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 की शक्तियों का निरंतरता (continuity) प्रदान करती है, जिससे भारत में सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए कानूनी ढांचे की निरंतरता सुनिश्चित होती है।

    मजिस्ट्रेट को आदेश जारी करने का अधिकार

    धारा 163(1) के अंतर्गत, जिला मजिस्ट्रेट, उप-मंडल मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिकृत (empowered) कोई भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) तुरंत आदेश जारी कर सकता है।

    यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि तत्काल रोकथाम या त्वरित समाधान (speedy remedy) की आवश्यकता है, तो वह लिखित रूप से एक आदेश जारी कर सकता है। इस आदेश में मामले के महत्वपूर्ण तथ्य (material facts) स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए और उसे धारा 153 के अंतर्गत संबंधित व्यक्ति को दिया जाना चाहिए।

    यह आदेश किसी व्यक्ति को किसी विशेष कार्य से रोकने या उसके कब्जे में या प्रबंधन में किसी संपत्ति के संबंध में कुछ कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है।

    इस आदेश का उद्देश्य बाधा (obstruction), परेशानी (annoyance), या किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने, मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरे से बचाने, सार्वजनिक शांति (public tranquility) बनाए रखने, दंगा (riot), या झगड़े (affray) को रोकने के लिए है।

    उदाहरण: मान लीजिए कि एक बड़े बाजार क्षेत्र में एक सार्वजनिक विरोध (protest) आयोजित किया जाना है, और यह जानकारी है कि यह हिंसक हो सकता है।

    ऐसे में जिला मजिस्ट्रेट धारा 163(1) के तहत आदेश जारी कर सकता है, जिसमें आयोजकों को विरोध को स्थगित (postpone) करने या स्थान बदलने के लिए कहा जा सकता है। यह आदेश संभावित चोट या खतरे को रोकने के उद्देश्य से जारी किया जाएगा।

    आपातकालीन स्थितियों में एकतरफा आदेश (Ex Parte Orders)

    धारा 163(2) के अनुसार, यदि स्थिति आपातकालीन है या संबंधित व्यक्ति को समय पर सूचना देने का समय नहीं है, तो इस धारा के तहत एकतरफा आदेश (Ex Parte Orders) जारी किया जा सकता है। यह प्रावधान उन स्थितियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जहाँ तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता होती है।

    उदाहरण: एक संक्रामक बीमारी (Contagious disease) के अचानक फैलने की स्थिति में, उप-मंडल मजिस्ट्रेट धारा 163(2) के तहत उस क्षेत्र में एक अस्थायी लॉकडाउन (lockdown) लागू कर सकता है, बिना सभी निवासियों को पहले से सूचना दिए।

    आदेशों का दायरा

    धारा 163(3) में यह प्रावधान है कि इस धारा के तहत जारी आदेश किसी विशेष व्यक्ति, किसी क्षेत्र के निवासियों, या किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने वाले लोगों के लिए हो सकता है। यह विस्तृत दायरा (broad scope) सुनिश्चित करता है कि मजिस्ट्रेट संभावित खतरों को प्रभावी ढंग से संबोधित कर सके।

    उदाहरण: यदि किसी विशेष मोहल्ले में बार-बार हिंसा (Violence) हो रही है, तो कार्यकारी मजिस्ट्रेट धारा 163(3) के तहत सभी निवासियों को आदेश दे सकता है कि वे किसी भी प्रकार के हथियार न रखें, जिससे आगे की हिंसा को रोका जा सके।

    आदेशों की अवधि

    धारा 163(4) के अनुसार, इस धारा के तहत कोई भी आदेश जारी होने की तिथि से दो महीने से अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहेगा। हालांकि, राज्य सरकार को यह अधिकार है कि यदि उसे मानव जीवन, स्वास्थ्य, सुरक्षा को खतरे से बचाने, दंगे या झगड़े को रोकने की आवश्यकता लगती है, तो वह आदेश की अवधि को छह महीने तक बढ़ा सकती है।

    उदाहरण: मान लीजिए कि किसी क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव (Communal tensions) के कारण सभाओं पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया है। यदि दो महीने बाद भी स्थिति सामान्य नहीं होती है, तो राज्य सरकार इस आदेश को छह महीने तक बढ़ा सकती है ताकि सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

    आदेशों को रद्द (Rescind) या बदलने का अधिकार

    धारा 163(5) के तहत कोई भी मजिस्ट्रेट, अपने या किसी अन्य अधीनस्थ (Subordinate) मजिस्ट्रेट द्वारा या उनके पूर्ववर्ती (Predecessor) द्वारा जारी किए गए आदेश को स्वयं या किसी पीड़ित व्यक्ति (Aggrieved person) के आवेदन पर रद्द या बदल सकता है।

    इसी प्रकार, धारा 163(6) के अनुसार, राज्य सरकार अपने द्वारा जारी किए गए आदेश को या किसी पीड़ित व्यक्ति के आवेदन पर रद्द या बदल सकती है।

    उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति मानता है कि जिस स्थिति के कारण आदेश जारी किया गया था, वह अब नहीं है, तो वह मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार से आदेश को रद्द या बदलने का अनुरोध कर सकता है। यदि स्थिति वास्तव में सुधर गई है, तो आदेश को समय से पहले ही हटा लिया जा सकता है।

    सुनवाई का अधिकार (Right to Be Heard)

    धारा 163(7) के अनुसार, यदि उपधारा (Sub-section) (5) या (6) के तहत आवेदन किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार को आवेदक को व्यक्तिगत रूप से या एक वकील के माध्यम से अपनी बात रखने का अवसर देना होगा। यदि मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदन को पूर्णतः या आंशिक रूप से अस्वीकार (reject) करती है, तो इसका कारण लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।

    उदाहरण: यदि एक दुकानदार, जिसे बाजार क्षेत्र में व्यापार संचालन पर लगे प्रतिबंध के कारण नुकसान हो रहा है, आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन करता है, तो मजिस्ट्रेट को उसे अपनी स्थिति समझाने का मौका देना चाहिए। यदि मजिस्ट्रेट आदेश को नहीं हटाने का फैसला करता है, तो उसे इसका लिखित कारण देना होगा।

    Next Story