Constitution में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के इलेक्शन की प्रोसेस

Shadab Salim

13 Dec 2024 8:21 AM

  • Constitution में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के इलेक्शन की प्रोसेस

    भारत का प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाता है। इसके लिए कोई सीधा चुनाव नहीं होता है अर्थात जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा ही प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया को चुन लिया जाता है। संसदीय प्रणाली के अंतर्गत प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया नाम मात्र का राष्ट्र अध्यक्ष होता है इसलिए इसके लिए कोई सीधा चुनाव नहीं होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के लिए जनता से सीधा चुनाव होता है।

    जनता द्वारा सीधे चुना गया व्यक्ति ही प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया होता है परंतु भारत की संसदीय सरकार प्रणाली में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया नाम मात्र का अध्यक्ष है इसलिए उसका चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर होता है। संघ की कार्यपालिका शक्ति मंत्री परिषद में निहित होती है। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया का निर्वाचन एक ऐसे निर्वाचन खंड के सदस्य करते हैं जिनमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य होते हैं। इसका उल्लेख भारत के संविधान के आर्टिकल 54 के अंतर्गत किया गया है। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है तथा इसे निर्वाचन में मतदान गुणाकार के द्वारा होता है।

    भारत के संविधान के आर्टिकल 55 के अनुसार जहां तक व्यवहार की बात हो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन में भिन्न भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व में एकरूपता होगी तथा समस्त राज्यों में आपस में एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में भी ऐसी समतुल्यता का प्रयास होगा। अलग-अलग राज्यों में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में संतुलित बनाए रखने के लिए एक विशेष फार्मूला अपनाया गया है।

    इस फार्मूले के अनुसार किसी राज्य के विधानसभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने की 1000 के गुणित भाग में हो। जो राज्य की जनसंख्या को सभा के निर्वाचित सदस्यों की संपूर्ण संख्या से भाग देने में आया। यदि 1000 से उक्त गुणित को लेने के बाद शेष 500 से कम न हो तो उल्लेखित प्रत्येक सदस्य के पदों की संख्या में एकमत और जोड़ दिया जाएगा।

    जैसे कि मध्य प्रदेश राज्य की जनसंख्या 28000000 है और वहां की विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 230 है अर्थात एक सदस्य एक लाख जनता का प्रतिनिधित्व करता है।

    राज्य जनसंख्या

    विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या और भाग 1000

    संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्यों के मतों की संख्या वही होगी जो राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के लिए संपूर्ण मत संख्या को सदन संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने से आए।

    यदि माना कि उक्त घटना के अनुसार राज्य विधानसभा में के सदस्यों की कुल संख्या 700000 है और संसद के दोनों सदनों की कुल 750 निर्वाचित सदस्य हैं तो संसद के प्रत्येक सदस्य को निम्नलिखित मत देने का अधिकार होगा-

    राज्य विधानसभाओं के मतों की कुल संख्या भागित संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या भागित 1000

    संविधान के अंतर्गत प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया का निर्वाचन अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा। पूर्ण निर्वाचन में मतदान गूढ़ शलाका द्वारा होगा। यह मत प्रणाली निम्न तरीके से कार्य करती है-

    यदि माना जाए कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया पद के लिए ABCD 4 प्रत्याशी हैं और दिए गए वैध मतों की संख्या 15000 है| निर्वाचित घोषित होने के लिए 1 प्रत्याशी को न्यूनतम 7501 मत प्राप्त करना आवश्यक है अर्थात कुल वैध मतों का 50 प्रतिशत। चारों प्रत्याशियों ने क्रमश निम्न प्रकार से प्रथम वरीयता मत प्राप्त किए-

    A-5250

    B-4800

    C-2700

    D- 2250

    यहां किसी भी उम्मीदवार को बहुमत अर्थात 7501 मत प्राप्त नहीं हुआ है। इस स्थिति में D को सबसे कम मत मिलने के कारण पराजित घोषित कर दिया जाएगा और उसके 2250 में ऊपर दिए गए द्वितीय वरीयता मध्य तीनों उम्मीदवारों में विभाजित कर दिया जाएगा। मान लीजिए D के मतों में विभाजन इस प्रकार है- A को 300 B को 1050 और C को 900 तो उनकी संख्या इस प्रकार होगी-

    A- 5550

    B- 5850

    C- 3600

    उसके बाद भी किसी को बहुमत नहीं मिल पाया। अतः C को सबसे कम मत मिले उसे पराजित घोषित कर दिया जाएगा और उसके 3600 मतपत्रों पर वरीयता ए और बी को हस्तांतरित कर दिए जाएंगे। मान लीजिए कि A पक्ष में 1720 और B पक्ष में 1900 है, इस प्रकार दूसरी बार हस्तांतरण का परिणाम इस प्रकार होगा-

    A-7250

    B-7750

    इस प्रकार B 50 प्रतिशत 7501 से अधिक मत प्राप्त करने के कारण विजय घोषित होगा। A को प्रथम बार मत अधिक मिले थे। यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती रहेगी जब तक कि किसी उम्मीदवार को बहुमत अर्थात आधे से अधिक मत नहीं प्राप्त हो जाते हैं।

    डॉक्टर खरे बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया के मामले में पिटीशनर ने 1957 में होने वाले प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन को इस आधार पर स्थगित किए जाने के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की कि पंजाब हिमाचल प्रदेश के विधान मंडलों में कुछ स्थान रिक्त थे। इस प्रकार आर्टिकल 54, 55 के अधीन निर्वाचक मंडल अपूर्ण था और स्थगित कर दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन पर आपत्ति करने वाली याचिका केवल चुनाव पूर्ण होने के बाद ही स्वीकार की जा सकती है। अर्थात जबकि कोई उम्मीदवार निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। यदि ऐसा न हो तो प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया का निर्वाचन 5 वर्ष तक रुका रह सकता है जो आर्टिकल 62 के विरुद्ध है। प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन पर इस आधार पर आपत्ति नहीं की जा सकती कि उसके निर्वाचन करने वाले निर्वाचक मंडल के सदस्यों में किसी कारण से रिक्तता वर्तमान हैं।

    निर्वाचन पूर्ण हो जाने के पश्चात डॉक्टर खरे ने प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन विधिमान्यता को फिर से चुनौती दी है। कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया उपराष्ट्रपति के निर्वाचन अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत किसी चुनाव पर आपत्ति ऐसे निर्वाचन में के उम्मीदवार कर सकते हैं या 10 से अधिक मतदाता कर सकते हैं, क्योंकि डॉक्टर खरे न मतदाता न उम्मीदवार इसलिए उन्हें याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं था।

    इन री प्रेसीडेंशियल इलेक्शन के मामले में पुनः प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के चुनाव को इस आधार पर स्थगित करने के लिए याचिका फाइल की गई कि गुजरात राज्य की विधानसभा स्थगित हो गई थी। आर्टिकल 54, 55 में उल्लेखित निर्वाचक मंडल अपूर्ण था। इस मामले में यही तर्क दिए गए जो डॉ खरे के मामले में दिए गए थे।सुप्रीम कोर्ट ने यह अभिनिर्धारित किया कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की पदावधि समाप्ति पर हुई रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए निर्वाचन प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की अवधि समाप्ति से पूर्व ही पूर्ण कर लिया जाएगा।

    संविधान के आर्टिकल 62 में अपेक्षा की गई है कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया का निर्वाचन उसमें नियत किए गए समय के अंदर पूर्ण हो जाना चाहिए और यह उपबंध सर्वसाधारण के हित में है और आज्ञापक स्वरूप का है। निर्वाचन की प्रक्रिया को 5 वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद तक रोका नहीं जा सकता। यदि संसद में अथवा एक या अधिक राज्यों के विधान मंडलों में रिक्तियां हो तो भी प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के चुनाव को रोका नहीं जा सकता।

    प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की पदावली निश्चित है, अवधि की समाप्ति से हुई रिक्त स्थान की पूर्ति के लिए निर्वाचन की समाप्ति से पहले पूरा कर लिया जाएगा। आर्टिकल 56 केवल उन्हीं मामलों में लागू होगा जहां उसका उत्तराधिकारी अपना पद धारण नहीं कर लेता है। आर्टिकल 56 और आर्टिकल 62 को साथ-साथ पढ़ा जाना चाहिए और इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्तियों को भरने के लिए निर्वाचन पदावली के समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाना चाहिए।

    उपराष्ट्रपति-

    भारत का एक उपराष्ट्रपति भी होता है। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्य मिलकर आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा करते हैं और ऐसा निर्वाचन में मतदान गूढ़ शलाका द्वारा होता है। आर्टिकल 66 के अनुसार प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन में विधानमंडल के सदस्य भी भाग लेते हैं जबकि उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में केवल संसद के सदस्य की भाग लेते हैं। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन राज्य के विधान मंडलों की भूमिका में नहीं होता है। ऐसा उसके कार्यों को देखते हुए किया गया है। उसका मुख्य कार्य राज्य सभा की बैठकों की अध्यक्षता करना।

    प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के निर्वाचन से संबंधित किसी विषय का विनियम संसद विधि बना कर कर सकती है। उसके निर्वाचन से संबंधित सभी शंका और विवादों की जांच और विहित सुप्रीम कोर्ट करता है। उसके निर्वाचन पर आपत्ति निर्वाचन पूरा होने के बाद भी की जा सकती है। कोर्ट द्वारा उसके निर्वाचन को शून्य घोषित किए जाने पर उसके पद की शक्तियों के प्रयोग में किए गए कार्य मान्य नहीं होंगे।

    प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की भांति उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है पर उपराष्ट्रपति भी प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की तरह अपने पद से कभी भी इस्तीफा दे सकता है।

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