फरार अपराधियों के मुकदमे की प्रक्रिया और उनके अधिकार : BNSS, 2023 की धारा 356 भाग 2

Himanshu Mishra

5 Feb 2025 5:25 PM IST

  • फरार अपराधियों के मुकदमे की प्रक्रिया और उनके अधिकार : BNSS, 2023 की धारा 356 भाग 2

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में धारा 356 उन अभियुक्तों (Accused) के मुकदमे को नियंत्रित करती है जो गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार (Abscond) हो जाते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी अपराधी सिर्फ छिपकर कानून से बच न सके और न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) को बाधित न कर सके।

    पहले भाग में हमने देखा कि कैसे कोई अभियुक्त घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) घोषित किया जाता है, और किस प्रकार उसकी गैरमौजूदगी में मुकदमे को आगे बढ़ाया जा सकता है।

    हमने यह भी समझा कि अदालत को अभियुक्त को पर्याप्त अवसर (Sufficient Opportunity) देने के लिए गिरफ्तारी वारंट (Arrest Warrants), समाचार पत्र में सूचना (Newspaper Publication), और परिवार या दोस्तों को सूचित करने जैसी प्रक्रियाओं का पालन करना पड़ता है।

    अब, धारा 356 के उप-खंड (Sub-Sections 5 to 8) को विस्तार से समझेंगे, जिसमें यह बताया गया है कि गवाहों की गवाही कैसे दर्ज की जाएगी, अभियुक्त की अनुपस्थिति में मुकदमा कैसे चलेगा, अपील (Appeal) के क्या नियम होंगे, और राज्य सरकार (State Government) कैसे इस प्रावधान को और अधिक अभियुक्तों पर लागू कर सकती है।

    गवाहों की गवाही का रिकॉर्डिंग (Recording of Witness Testimonies) - धारा 356(5)

    धारा 356(5) के अनुसार, जब किसी घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) के खिलाफ मुकदमा चलाया जा रहा हो, तो अदालत को गवाहों (Witnesses) की गवाही और पूछताछ (Examination) को रिकॉर्ड करना चाहिए। यह रिकॉर्डिंग ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Audio-Video Electronic Means) द्वारा की जा सकती है, और जहाँ तक संभव हो, इसे मोबाइल फोन (Mobile Phone) से रिकॉर्ड करने की प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

    इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गवाही (Testimony) की प्रमाणिकता बनी रहे, किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ (Tampering) न हो, और अभियुक्त बाद में गवाहों के बयान को चुनौती (Challenge) न दे सके।

    अदालत यह निर्देश भी दे सकती है कि इस रिकॉर्डिंग को कैसे संरक्षित (Preserve) किया जाए और भविष्य में मुकदमे की निष्पक्षता (Fairness) को बनाए रखने के लिए इसका उपयोग कैसे किया जाए।

    उदाहरण के लिए, यदि अभिषेक हत्या (Murder) के मामले में अभियुक्त है और अदालत में गवाह उसकी गैरमौजूदगी में बयान दे रहे हैं, तो अदालत इस पूरी गवाही को मोबाइल फोन पर रिकॉर्ड कर सकती है। यह रिकॉर्डिंग अदालत के अभिलेखों (Court Records) में सुरक्षित रखी जाएगी ताकि भविष्य में इसकी सत्यता (Authenticity) को प्रमाणित किया जा सके।

    अभियुक्त की अनुपस्थिति के बावजूद मुकदमे की निरंतरता (Trial Continuation Despite Accused's Absence) - धारा 356(6)

    धारा 356(6) स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि एक अभियुक्त स्वेच्छा से मुकदमे से गायब हो जाता है, तो उसका मुकदमा रोका नहीं जाएगा।

    अगर मुकदमे की कार्यवाही धारा 356(1) के तहत शुरू हो चुकी है और अभियुक्त जानबूझकर अनुपस्थित रहता है (Voluntary Absence), तो अदालत मुकदमे को जारी रखेगी और यहाँ तक कि अभियुक्त के गिरफ्तार होने या उपस्थित होने के बाद भी मुकदमे को रोकने की आवश्यकता नहीं होगी।

    यह प्रावधान उन मामलों में लागू होता है जब अभियुक्त मुकदमे के दौरान भाग जाता है लेकिन बाद में गिरफ्तार किया जाता है या अदालत में आत्मसमर्पण (Surrender) करता है।

    उदाहरण के लिए, यदि रवि पर भ्रष्टाचार (Corruption) का मुकदमा चल रहा है और वह पहले अदालत में उपस्थित होता है लेकिन बाद में भाग जाता है, तो अदालत मुकदमा जारी रखेगी और फैसला (Judgment) सुना सकती है। अगर रवि बाद में गिरफ्तार होता है, तो भी अदालत पहले से जारी मुकदमे को दोबारा से शुरू करने की जरूरत नहीं समझेगी।

    अपील (Appeal) करने की शर्तें - धारा 356(7)

    इस धारा में यह भी प्रावधान किया गया है कि अगर कोई अभियुक्त अपनी गैरमौजूदगी में दोषी (Convicted) ठहराया जाता है, तो वह सीधे तौर पर अपील (Appeal) नहीं कर सकता।

    अभियुक्त को अपनी अपील दायर करने से पहले खुद अदालत में प्रस्तुत (Present) होना पड़ेगा। इसका मतलब यह है कि फरार रहकर मुकदमे से बचने की रणनीति अपनाने वाले अभियुक्त को न्यायालय में वापस आकर अपने अधिकारों का प्रयोग करना होगा।

    इसके अलावा, इस प्रावधान में एक महत्वपूर्ण शर्त यह भी रखी गई है कि कोई भी अभियुक्त दोषसिद्धि (Conviction) के खिलाफ अपील तीन साल (Three Years) के भीतर ही कर सकता है।

    यदि अभियुक्त तीन साल से अधिक समय तक अदालत से अनुपस्थित रहता है और फिर अदालत में आता है, तो वह अपील का अधिकार (Right to Appeal) खो सकता है।

    उदाहरण के लिए, अगर सुनील को अदालत ने बलात्कार (Rape) के मामले में दोषी करार दिया है और वह मुकदमे से फरार था, तो वह तब तक अपील नहीं कर सकता जब तक कि वह अदालत में आत्मसमर्पण (Surrender) नहीं करता। अगर सुनील तीन साल के भीतर अदालत में उपस्थित नहीं होता, तो उसकी अपील स्वीकार नहीं की जाएगी।

    राज्य सरकार को इस प्रावधान को अन्य फरार अभियुक्तों पर लागू करने का अधिकार (Extension of Section to Other Absconders) - धारा 356(8)

    धारा 356(8) के अनुसार, राज्य सरकार (State Government) एक अधिसूचना (Notification) जारी करके इस धारा के प्रावधानों को अन्य फरार अभियुक्तों (Absconders) पर भी लागू कर सकती है।

    यह विशेष रूप से उन मामलों में उपयोगी हो सकता है जहाँ राज्य सरकार यह महसूस करती है कि न्यायिक प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने की जरूरत है और अभियुक्त अदालत में हाजिर होने के बजाय जानबूझकर मुकदमे से बच रहा है।

    यह धारा धारा 84(1) के संदर्भ में लागू की जा सकती है, जो कि उन व्यक्तियों से संबंधित है जो अदालत से छिपने के लिए अपनी पहचान बदलते हैं या एक स्थान से दूसरे स्थान पर भागते हैं।

    उदाहरण के लिए, अगर राज्य सरकार यह देखती है कि अजय और उसके साथी आतंकवादी गतिविधियों (Terrorism) में शामिल हैं और वे अदालत में पेश नहीं हो रहे हैं, तो सरकार धारा 356(8) के तहत अधिसूचना जारी करके अदालत को उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे सकती है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 356 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी अभियुक्त सिर्फ अदालत से भागकर न्याय से बच न सके।

    इसमें कई सुरक्षा उपाय (Safeguards) भी शामिल हैं ताकि अभियुक्त को पर्याप्त अवसर (Adequate Opportunity) मिल सके। गिरफ्तारी वारंट, समाचार पत्र में सूचना, वीडियो रिकॉर्डिंग, और राज्य द्वारा वकील प्रदान करने जैसे प्रावधान अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

    साथ ही, यह धारा फरार अभियुक्तों पर मुकदमे की प्रक्रिया को तेज करने में मदद करती है, जिससे न्याय में देरी (Delay in Justice) नहीं होती। अभियुक्त अगर स्वेच्छा से अनुपस्थित रहता है, तो अदालत मुकदमे को रोकने की आवश्यकता नहीं समझती, और अगर अभियुक्त दोषी करार दिया जाता है, तो वह तभी अपील कर सकता है जब वह खुद अदालत में उपस्थित हो।

    यह प्रावधान न्याय को निष्पक्ष (Fair) और प्रभावी (Effective) बनाता है और अपराधियों को कानून से बचने से रोकता है।

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