अदालत द्वारा आरोपी की जांच की प्रक्रिया: धारा 351 BNSS, 2023 और पुरानी धारा 313 CrPC, 1973 से तुलना

Himanshu Mishra

31 Jan 2025 11:40 AM

  • अदालत द्वारा आरोपी की जांच की प्रक्रिया: धारा 351 BNSS, 2023 और पुरानी धारा 313 CrPC, 1973 से तुलना

    भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) का मुख्य उद्देश्य निष्पक्ष सुनवाई (Fair Trial) और न्याय सुनिश्चित करना है। इस प्रक्रिया में यह आवश्यक होता है कि जिस व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगाया गया है (Accused), उसे अपना पक्ष स्पष्ट करने का पूरा अवसर मिले।

    इसी सिद्धांत को लागू करने के लिए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023 - BNSS, 2023) की धारा 351 (Section 351) में अदालत को यह शक्ति दी गई है कि वह किसी भी मुकदमे या जांच (Inquiry or Trial) के दौरान आरोपी से सीधे प्रश्न कर सके।

    यह प्रावधान पुरानी आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973 - CrPC, 1973) की धारा 313 (Section 313) के समान है, लेकिन इसमें कुछ नए बदलाव किए गए हैं, जो इसे अधिक प्रभावी बनाते हैं। इस लेख में हम धारा 351 का विस्तृत विश्लेषण करेंगे और इसकी तुलना पुरानी CrPC की धारा 313 से करेंगे।

    धारा 351 (Section 351) का उद्देश्य और दायरा (Purpose and Scope)

    यह धारा आरोपी को यह अवसर प्रदान करती है कि वह अपने खिलाफ प्रस्तुत साक्ष्यों (Evidence) के बारे में अपना स्पष्टीकरण दे सके। इसके तहत अदालत आरोपी से सीधे प्रश्न कर सकती है, जिससे मामले में निष्पक्षता (Fairness) बनी रहे और कोई निर्दोष व्यक्ति सजा से न गुजरने पाए।

    धारा 351 के महत्वपूर्ण प्रावधान (Key Provisions of Section 351)

    1. किसी भी चरण में पूछताछ (Examination at Any Stage)

    अदालत आरोपी से मुकदमे के किसी भी चरण (Any Stage of Trial) में प्रश्न कर सकती है, और इसके लिए आरोपी को पहले से कोई सूचना देना आवश्यक नहीं है। इससे अदालत को यह सुविधा मिलती है कि वह जब भी कोई संदेह उत्पन्न हो, तब आरोपी से सफाई मांग सके।

    2. अनिवार्य पूछताछ (Mandatory Examination)

    जब अभियोजन (Prosecution) के सभी गवाहों की गवाही हो जाए, तब अदालत अनिवार्य रूप से (Mandatory) आरोपी से प्रश्न करेगी। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि आरोपी को अपनी सफाई देने का पूरा अवसर मिले।

    3. समन मामलों में छूट (Exemption in Summons Cases)

    यदि कोई मामला छोटे अपराधों (Minor Offenses) से संबंधित है और अदालत ने आरोपी को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी है, तो अदालत उसे इस पूछताछ से भी छूट दे सकती है। इससे अनावश्यक परेशानियों से बचा जा सकता है।

    4. शपथ की आवश्यकता नहीं (No Oath Required)

    जब आरोपी से प्रश्न किए जाते हैं, तो उसे शपथ (Oath) लेने की आवश्यकता नहीं होती। भारतीय कानून के अनुसार, शपथ लेकर झूठ बोलना अपराध होता है, लेकिन इस धारा के तहत आरोपी को यह स्वतंत्रता दी गई है कि वह बिना किसी दंड के भय से अपनी बात रख सके।

    5. उत्तर न देने पर दंड नहीं (No Punishment for Refusing to Answer)

    यदि आरोपी प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करता है या गलत उत्तर देता है, तो उसे इसके लिए कोई दंड (Punishment) नहीं दिया जाएगा। यह प्रावधान आरोपी के स्व-अपराध (Self-Incrimination) से बचाव के अधिकार (Right Against Self-Incrimination) की रक्षा करता है।

    6. उत्तर को साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है (Use of Answers as Evidence)

    आरोपी द्वारा दिए गए उत्तर मुकदमे में साक्ष्य (Evidence) के रूप में दर्ज किए जा सकते हैं, और यदि उत्तर से यह संकेत मिलता है कि आरोपी ने कोई और अपराध किया है, तो उसे अन्य मामलों में भी साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    7. अभियोजन और बचाव पक्ष की भूमिका (Role of Prosecutor and Defense Counsel)

    एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अदालत अब अभियोजन (Prosecution) और बचाव पक्ष (Defense) के वकीलों की सहायता लेकर आरोपी से पूछे जाने वाले प्रश्न तैयार कर सकती है। इससे सुनिश्चित किया जाता है कि पूछे गए प्रश्न मामले से संबंधित (Relevant) और निष्पक्ष (Fair) हों।

    8. लिखित बयान की अनुमति (Written Statement Allowed)

    आरोपी को यह सुविधा दी गई है कि वह मौखिक उत्तर (Oral Answer) देने के बजाय एक लिखित बयान (Written Statement) भी प्रस्तुत कर सकता है। इससे आरोपी को अपनी सफाई अच्छे से प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है और गलतफहमी की संभावना कम हो जाती है।

    धारा 351 (BNSS, 2023) बनाम धारा 313 (CrPC, 1973) – तुलना (Comparison)

    BNSS, 2023 और CrPC, 1973 की संबंधित धाराओं की तुलना नीचे दी गई है:

    विशेषता (Feature) धारा 351 (BNSS, 2023) धारा 313 (CrPC, 1973)

    मुकदमे के दौरान पूछताछ (Examination During Trial) किसी भी चरण में + अभियोजन साक्ष्यों के बाद अनिवार्य किसी भी चरण में + अभियोजन साक्ष्यों के बाद अनिवार्य

    छोटे मामलों में छूट (Exemption in Summons Cases) उपलब्ध उपलब्ध

    उत्तर का साक्ष्य के रूप में उपयोग (Use of Answers as Evidence) उपलब्ध उपलब्ध

    प्रश्न तय करने में अभियोजन और बचाव पक्ष की भागीदारी (Involvement of Prosecutor & Defense in Framing Questions) अदालत की अनुमति से नहीं

    लिखित बयान की अनुमति (Written Statement Allowed) हां नहीं

    धारा 351 में मुख्यतः दो नए बदलाव किए गए हैं:

    1. अदालत प्रश्न तैयार करने में अभियोजन और बचाव पक्ष की सहायता ले सकती है।

    2. आरोपी लिखित बयान प्रस्तुत कर सकता है।

    धारा 351 का व्यावहारिक महत्व (Practical Importance)

    1. निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करना (Ensuring Fair Trial)

    यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि आरोपी को दोषी ठहराने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर मिले।

    उदाहरण: यदि अभियोजन पक्ष यह कहता है कि आरोपी घटना स्थल पर मौजूद था, तो अदालत आरोपी से पूछेगी कि वहां उसकी उपस्थिति का क्या कारण था।

    2. मौन का दुरुपयोग रोकना (Preventing Misuse of Silence)

    यदि आरोपी चुप्पी साध लेता है, तो अदालत इस धारा के तहत उससे सीधे सवाल कर सकती है और उसे सफाई देने के लिए बाध्य कर सकती है।

    3. अभियोजन साक्ष्यों में संदेह को स्पष्ट करना (Clarifying Doubts in Prosecution's Case)

    कई बार अभियोजन पक्ष के गवाह परस्पर विरोधी बयान देते हैं। ऐसे में आरोपी से सीधा प्रश्न करना तथ्यों को स्पष्ट करने में मदद करता है।

    4. अन्यायपूर्ण दोषसिद्धि को रोकना (Avoiding Unjust Convictions)

    यदि किसी आरोपी को बिना पूछताछ दोषी ठहरा दिया जाए, तो यह अन्याय होगा। धारा 351 इस स्थिति को रोकने में मदद करती है।

    धारा 351 (BNSS, 2023) आपराधिक न्याय प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण सुधार है। यह आरोपी के अधिकारों की रक्षा करता है और अदालत को मामले की सच्चाई तक पहुंचने में मदद करता है।

    पुरानी धारा 313 (CrPC, 1973) की तुलना में, यह अधिक संरचित (Structured) और प्रभावी (Effective) है, क्योंकि इसमें अभियोजन और बचाव पक्ष की भूमिका जोड़ी गई है और आरोपी को लिखित बयान की अनुमति दी गई है।

    इससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी आरोपी बिना अपना पक्ष रखे दोषी न ठहराया जाए और न्यायपालिका का निर्णय न्यायसंगत और निष्पक्ष हो।

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