न्यायालय में साक्ष्य की स्पष्टता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 314 और 315

Himanshu Mishra

21 Dec 2024 8:20 PM IST

  • न्यायालय में साक्ष्य की स्पष्टता सुनिश्चित करने की प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 314 और 315

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), 2023, में न्यायालयीय प्रक्रिया में साक्ष्य की स्पष्टता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए विस्तृत प्रावधान दिए गए हैं। धारा 314 और 315 मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं कि साक्ष्य (Evidence) को ठीक से समझा और दर्ज किया जाए।

    ये प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने और साक्षी (Witness) के व्यवहार का मूल्यांकन करने में मदद करते हैं।

    इन प्रावधानों को पूरी तरह समझने के लिए धारा 310, 311, 312 और 313 को भी संदर्भ में लेना आवश्यक है। ये धाराएं साक्ष्य रिकॉर्डिंग और सत्यापन की एक ठोस नींव प्रदान करती हैं।

    धारा 314: साक्ष्य का अनुवाद और व्याख्या (Interpretation)

    अभियुक्त (Accused) के लिए अनुवाद सुनिश्चित करना

    धारा 314(1) के अनुसार, जब कोई साक्ष्य ऐसी भाषा में दिया जाता है जिसे अभियुक्त नहीं समझता और वह न्यायालय में मौजूद होता है, तो उसे वह साक्ष्य न्यायालय में खुले रूप से ऐसी भाषा में अनुवादित करके सुनाया जाना चाहिए जिसे वह समझ सके। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त न्यायालय की प्रक्रिया में पूरी तरह भाग ले सके।

    उदाहरण:

    मान लीजिए कि एक अभियुक्त केवल तमिल भाषा समझता है, लेकिन साक्ष्य हिंदी में दिए जा रहे हैं। इस स्थिति में, साक्ष्य को तमिल भाषा में अनुवाद करके अभियुक्त को सुनाना आवश्यक होगा।

    वकील (Advocate) के लिए व्याख्या

    धारा 314(2) यह सुनिश्चित करती है कि यदि अभियुक्त की ओर से उपस्थित वकील साक्ष्य की भाषा नहीं समझता है, तो उसे वह भाषा समझाने के लिए अनुवाद उपलब्ध कराया जाए। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि वकील अभियुक्त का प्रभावी रूप से प्रतिनिधित्व कर सके।

    उदाहरण:

    यदि एक वकील गुजराती भाषा बोलता है और साक्ष्य हिंदी में दिए जा रहे हैं, तो साक्ष्य का गुजराती में अनुवाद करना आवश्यक होगा ताकि वकील पूरी प्रक्रिया को समझ सके।

    दस्तावेज़ों का अनुवाद

    धारा 314(3) न्यायालय को यह अधिकार देती है कि जब दस्तावेज़ केवल औपचारिक प्रमाण (Formal Proof) के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं, तो आवश्यकतानुसार ही उनका अनुवाद किया जाए।

    उदाहरण:

    अगर एक फ्रेंच भाषा में लिखित अनुबंध अदालत में प्रस्तुत किया गया है, तो न्यायालय केवल उन भागों का अनुवाद कराने का निर्णय ले सकता है जो प्रासंगिक हैं।

    धारा 315: साक्षी के व्यवहार का अवलोकन (Demeanor) दर्ज करना

    साक्षी के व्यवहार का महत्व

    धारा 315 यह प्रावधान करती है कि जब न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट किसी साक्षी का साक्ष्य रिकॉर्ड कर रहे हों, तो साक्षी के व्यवहार (Demeanor) के बारे में भी टिप्पणी करें, यदि यह जरूरी हो। व्यवहार से तात्पर्य है कि साक्षी ने साक्ष्य देते समय किस प्रकार का हावभाव, आवाज़ और आचरण प्रदर्शित किया। यह साक्ष्य की प्रामाणिकता (Credibility) को मापने में सहायक हो सकता है।

    उदाहरण:

    यदि कोई साक्षी किसी महत्वपूर्ण प्रश्न के उत्तर में घबराहट या झिझक प्रदर्शित करता है, तो न्यायाधीश इसे रिकॉर्ड कर सकते हैं क्योंकि यह उसके उत्तरों की सत्यता पर संकेत दे सकता है।

    व्यवहार रिकॉर्डिंग का महत्व

    न्यायाधीश द्वारा दर्ज की गई ये टिप्पणियां न्यायालय को यह समझने में मदद करती हैं कि साक्षी का व्यवहार उसके बयानों से मेल खाता है या नहीं। यह साक्ष्य का विश्लेषण करते समय महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

    उदाहरण:

    एक साक्षी जो आत्मविश्वास से घटनाओं का वर्णन करता है, उसकी विश्वसनीयता (Reliability) उस साक्षी से अधिक हो सकती है जो अनिश्चित या अस्थिर प्रतीत होता है।

    पहले की धाराओं के संदर्भ में इन प्रावधानों की व्याख्या

    धारा 310 से 313 तक के प्रावधान धारा 314 और 315 को समझने के लिए आधारशिला तैयार करते हैं:

    1. धारा 310: यह सुनिश्चित करती है कि वॉरंट मामलों (Warrant Cases) में साक्ष्य सटीक रूप से रिकॉर्ड किए जाएं।

    2. धारा 311: यह सत्र न्यायालयों (Sessions Courts) के लिए इसी प्रकार की प्रक्रिया निर्धारित करती है।

    3. धारा 312: साक्ष्य रिकॉर्डिंग में भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करती है।

    4. धारा 313: यह सुनिश्चित करती है कि साक्ष्य को साक्षी को पढ़कर सुनाया जाए और यदि आवश्यक हो तो उसमें सुधार किया जाए।

    ये सभी प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि न्यायालय में प्रस्तुत साक्ष्य न केवल सटीक रूप से दर्ज किए जाएं, बल्कि अभियुक्त और अन्य पक्षों के लिए स्पष्ट और समझने योग्य भी हों।

    धारा 314 और 315 के व्यावहारिक प्रभाव

    बहुभाषी देश में निष्पक्ष न्याय

    धारा 314 यह सुनिश्चित करती है कि भाषा संबंधी बाधाएं किसी भी अभियुक्त के लिए न्याय पाने में बाधक न बनें।

    साक्ष्य की विश्वसनीयता को सुदृढ़ करना

    धारा 315 यह सुनिश्चित करती है कि न्यायालय साक्षी के व्यवहार का मूल्यांकन करके साक्ष्य की गहराई से जांच कर सके।

    चुनौतियां और समाधान

    प्रभावी अनुवाद

    हालांकि धारा 314 अनुवाद की गारंटी देती है, परंतु दुर्लभ भाषाओं या बोलियों में सटीक अनुवाद कराना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके लिए न्यायालय को कुशल अनुवादकों की सहायता लेनी चाहिए।

    उदाहरण:

    अगर किसी साक्षी की भाषा आदिवासी बोली है, तो न्यायालय को उस भाषा के जानकार अनुवादक की नियुक्ति करनी होगी।

    व्यवहार टिप्पणियों में व्यक्तिनिष्ठता (Subjectivity)

    धारा 315 के तहत न्यायाधीश को साक्षी के व्यवहार को देखना और रिकॉर्ड करना होता है, जो कभी-कभी व्यक्तिनिष्ठ हो सकता है। इस चुनौती से निपटने के लिए न्यायालय को साक्ष्य की सामग्री और अन्य प्रमाणों पर भी ध्यान देना चाहिए।

    उदाहरण:

    अगर कोई साक्षी घबराया हुआ दिखता है, तो यह केवल वातावरण के कारण हो सकता है, न कि उसके बयान की असत्यता के कारण। न्यायाधीश को इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए टिप्पणी करनी चाहिए।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 314 और 315 न्यायालयीय प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जहां धारा 314 यह सुनिश्चित करती है कि भाषा की बाधाएं अभियुक्त और उनके वकील को प्रभावित न करें, वहीं धारा 315 यह सुनिश्चित करती है कि साक्षी के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए साक्ष्य का मूल्यांकन किया जाए।

    धारा 310 से 313 के संदर्भ में देखा जाए तो ये प्रावधान न्यायालयीय प्रक्रिया में साक्ष्य प्रबंधन के लिए एक व्यापक ढांचा तैयार करते हैं। ये न्याय, निष्पक्षता और समानता के सिद्धांतों को बनाए रखते हुए यह सुनिश्चित करते हैं कि अभियुक्त को अपने खिलाफ प्रस्तुत साक्ष्य को समझने और चुनौती देने का पूरा अवसर मिले और साक्ष्य की सत्यता का गहन विश्लेषण हो सके।

    Next Story