अभियोजन गवाहों की जिरह, अभियुक्त का बचाव और साक्ष्य प्रस्तुत करना की प्रक्रिया: धारा 269 और 270 BNSS, 2023

Himanshu Mishra

19 Nov 2024 5:28 PM IST

  • अभियोजन गवाहों की जिरह, अभियुक्त का बचाव और साक्ष्य प्रस्तुत करना की प्रक्रिया: धारा 269 और 270 BNSS, 2023

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), यह सुनिश्चित करती है कि गंभीर मामलों (Warrant Cases) की सुनवाई एक संगठित और निष्पक्ष तरीके से हो।

    इसकी धारा 269 और 270 अभियोजन पक्ष (Prosecution) के साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद की प्रक्रिया, आरोप तय करने (Framing of Charges), गवाहों की जिरह (Cross-Examination), और अभियुक्त (Accused) के बचाव (Defence) की प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। यह प्रावधान प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करते हैं।

    धारा 269: आरोप तय करना और अभियोजन गवाहों की जिरह (Framing of Charges and Cross-Examination)

    साक्ष्यों के आधार पर आरोप तय करना

    धारा 269 के तहत, यदि मजिस्ट्रेट (Magistrate) साक्ष्यों की जांच के बाद, या मामले के किसी भी चरण पर, यह मानते हैं कि आरोपी ने ऐसा अपराध किया है:

    1. जिसे वह सुनने और पर्याप्त सजा देने के लिए सक्षम हैं, तो वह आरोपी के खिलाफ आरोप लिखित रूप में तय करेंगे।

    2. इन आरोपों को पढ़कर और समझाकर आरोपी को बताया जाएगा और उससे पूछा जाएगा कि वह अपराध स्वीकार करता है या बचाव करना चाहता है।

    अपराध स्वीकार करना (Plea of Guilty)

    अगर आरोपी आरोपों को स्वीकार करता है, तो मजिस्ट्रेट उसके बयान को दर्ज कर सकते हैं और अपने विवेक (Discretion) से उसे दोषी ठहरा सकते हैं। यह धारा 264 के समान है, जो पुलिस रिपोर्ट आधारित मामलों (Police-Report Based Cases) में दोषसिद्धि (Conviction) की अनुमति देती है।

    जब आरोपी आरोपों से इनकार करे

    यदि आरोपी आरोप स्वीकार करने से इनकार करता है, कुछ नहीं कहता या मुकदमा लड़ने की बात करता है, या मजिस्ट्रेट उसे दोषी नहीं ठहराते:

    • आरोपी से पूछा जाएगा कि वह अभियोजन पक्ष के किन गवाहों की जिरह करना चाहता है।

    गवाहों की जिरह (Cross-Examination of Witnesses)

    • आरोपी जिन गवाहों की जिरह चाहता है, उन्हें बुलाकर जिरह और पुनः जिरह (Re-Examination) की जाएगी।

    • जिरह पूरी होने के बाद, गवाहों को मुक्त कर दिया जाएगा।

    शेष गवाहों के साक्ष्य लेना

    • शेष गवाहों का बयान लिया जाएगा, जिरह और पुनः जिरह के बाद उन्हें भी मुक्त कर दिया जाएगा।

    गवाह अनुपस्थित होने पर प्रक्रिया

    यदि अभियोजन पक्ष के गवाह तमाम प्रयासों के बाद भी उपस्थित नहीं हो पाते, तो मजिस्ट्रेट:

    1. उन गवाहों को अनुपलब्ध मान सकते हैं।

    2. अभियोजन साक्ष्य (Prosecution Evidence) को बंद कर उपलब्ध रिकॉर्ड के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं।

    उदाहरण

    मान लीजिए, एक व्यक्ति पर धोखाधड़ी (Fraud) का आरोप है और अभियोजन पक्ष ने दो गवाह पेश किए हैं। आरोपी एक गवाह की जिरह करना चाहता है और मजिस्ट्रेट इसकी अनुमति देते हैं। लेकिन दूसरा गवाह, बार-बार बुलाने के बाद भी उपस्थित नहीं होता। ऐसे में मजिस्ट्रेट, अभियोजन साक्ष्य को बंद कर मामले की सुनवाई जारी रखते हैं।

    धारा 270: अभियुक्त का बचाव और साक्ष्य प्रस्तुत करना (Defence by Accused and Production of Evidence)

    जब अभियोजन साक्ष्य पूरी हो जाती है, तो धारा 270 के तहत आरोपी को अपना बचाव पेश करने का अवसर दिया जाता है। इसमें:

    1. आरोपी अपने बचाव के लिए साक्ष्य (Evidence) और गवाह प्रस्तुत कर सकता है।

    2. आरोपी लिखित बयान (Written Statement) भी पेश कर सकता है, जिसे कोर्ट रिकॉर्ड का हिस्सा बनाया जाएगा।

    बचाव का निष्पक्ष अवसर (Fair Opportunity for Defence)

    धारा 266 की प्रक्रिया यहां लागू होती है। इसके तहत आरोपी अदालत से गवाहों को बुलाने (Summon) या दस्तावेज पेश करने के लिए आवेदन कर सकता है। मजिस्ट्रेट, अगर इसे अनुचित या विलंब करने के उद्देश्य से नहीं मानते, तो समन जारी करेंगे।

    उदाहरण

    मान लीजिए, चोरी के आरोप में एक व्यक्ति खुद को निर्दोष साबित करने के लिए गवाहों और दस्तावेजों का सहारा लेना चाहता है। धारा 270 उसे अपने गवाह पेश करने और अभियोजन पक्ष के आरोपों को खारिज करने का पूरा अवसर देती है।

    पिछली धाराओं से संदर्भ (Reference to Previous Sections)

    धारा 269 और 270, धारा 264-268 में निर्धारित प्रक्रिया को आगे बढ़ाती हैं:

    • धारा 264: आरोपी के अपराध स्वीकार करने पर मजिस्ट्रेट दोषसिद्धि कर सकते हैं।

    • धारा 265: अभियोजन साक्ष्य दर्ज करने और जिरह के लिए प्रावधान करती है।

    • धारा 266: आरोपी को अपना बचाव प्रस्तुत करने और गवाहों को बुलाने का अधिकार देती है।

    • धारा 267-268: गवाहों की जांच और आरोपों की पुष्टि के लिए दिशा-निर्देश देती हैं।

    इन सभी प्रावधानों का समन्वय (Coordination) सुनवाई प्रक्रिया को न्यायसंगत और सुगठित बनाता है।

    धारा 269 और 270 का महत्व

    इन धाराओं के माध्यम से:

    1. अधिकारों का संतुलन (Balance of Rights): अभियोजन और बचाव, दोनों को अपनी बात रखने का बराबर मौका मिलता है।

    2. पारदर्शिता (Transparency): सुनवाई के प्रत्येक चरण को रिकॉर्ड किया जाता है।

    3. प्रभावी प्रबंधन (Efficient Management): गवाहों की अनुपस्थिति के मामलों में प्रक्रिया को अनावश्यक विलंब से बचाने का प्रावधान है।

    4. न्याय की निष्पक्षता (Fairness): आरोपी को गवाहों की जिरह और अपना बचाव पेश करने का पूरा अधिकार दिया गया है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 269 और 270 सुनवाई प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यह सुनिश्चित करती हैं कि आरोप साक्ष्य के आधार पर तय हों, अभियोजन और बचाव, दोनों को समान अवसर मिलें, और निष्पक्ष सुनवाई हो।

    इन प्रावधानों से न केवल निर्दोष लोगों को गलत दोषसिद्धि से बचाने में मदद मिलती है, बल्कि अभियोजन पक्ष को दोष साबित करने के लिए पर्याप्त मौका भी मिलता है। यह प्रक्रिया भारतीय आपराधिक कानून के तहत प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता (Procedural Fairness) के सिद्धांतों को मजबूत करती है।

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