किसी नए अभियुक्त को मुकदमे में शामिल करने की प्रक्रिया : BNSS, 2023 की धारा 358
Himanshu Mishra
8 Feb 2025 5:12 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) भारत की आपराधिक प्रक्रिया (Criminal Procedure) को अधिक प्रभावी बनाने के लिए लाई गई।
धारा 358 एक महत्वपूर्ण प्रावधान (Provision) है जो अदालत को यह शक्ति देता है कि अगर किसी व्यक्ति का नाम शुरू में अभियुक्त (Accused) के रूप में दर्ज नहीं किया गया था, लेकिन मुकदमे (Trial) के दौरान उसके अपराध में शामिल होने का प्रमाण (Evidence) मिलता है, तो अदालत उसे भी मुकदमे में अभियुक्त बना सकती है।
यह प्रावधान पहले दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) की धारा 319 में भी मौजूद था, लेकिन भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS 2023) ने इसे और अधिक स्पष्ट और प्रभावी बनाया है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी अपराधी केवल इसलिए बच न जाए कि उसका नाम शुरू में दर्ज नहीं किया गया था।
धारा 358 का उद्देश्य और दायरा (Scope and Objective of Section 358)
धारा 358 का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर किसी मुकदमे के दौरान यह प्रमाण मिलता है कि कोई अन्य व्यक्ति अपराध में शामिल था, तो उसे भी न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में शामिल किया जाए।
यह प्रावधान विशेष रूप से उन मामलों में महत्वपूर्ण है जहाँ:
• शुरुआती जांच (Initial Investigation) में किसी व्यक्ति की संलिप्तता सामने नहीं आई थी।
• प्रमुख अभियुक्त (Main Accused) ने अपराध में शामिल अन्य लोगों के बारे में जानकारी छुपाई थी।
• अदालत को मुकदमे के दौरान नए प्रमाण मिलते हैं जो यह दर्शाते हैं कि कोई और व्यक्ति भी अपराध में भागीदार था।
उदाहरण के लिए, अगर रवि और सुमित पर बैंक धोखाधड़ी (Bank Fraud) का मुकदमा चल रहा है और अदालत में एक गवाह यह बताता है कि अजय ही इस पूरी धोखाधड़ी का मास्टरमाइंड (Mastermind) था, तो अदालत धारा 358 के तहत अजय को भी अभियुक्त बनाकर मुकदमे में शामिल कर सकती है।
मुकदमे के दौरान नए अभियुक्त के खिलाफ कार्यवाही (Proceedings Against New Accused) - धारा 358(1)
धारा 358(1) कहती है कि अगर किसी मुकदमे या जांच (Inquiry) के दौरान अदालत को यह प्रमाण मिलता है कि कोई व्यक्ति, जो शुरू में अभियुक्त नहीं था, वास्तव में अपराध में शामिल था, तो अदालत उस व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है।
इसका मतलब यह है कि:
• यह जरूरी नहीं है कि उस व्यक्ति का नाम पहले एफआईआर (First Information Report - FIR) या आरोप पत्र (Charge Sheet) में हो।
• अगर मुकदमे के दौरान उसके खिलाफ पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं, तो अदालत उसे भी अभियुक्त बना सकती है।
• उस व्यक्ति के खिलाफ उसी अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाएगा, जिसके लिए पहले से अन्य अभियुक्तों पर मुकदमा चल रहा है।
उदाहरण के लिए, अगर संदीप पर हत्या (Murder) का मुकदमा चल रहा है और अदालत को एक वीडियो मिलता है जिसमें विनय भी हत्या में शामिल दिखता है, तो अदालत धारा 358 के तहत विनय को भी मुकदमे में अभियुक्त बना सकती है।
गिरफ्तारी या सम्मन जारी करने की शक्ति (Power to Issue Arrest or Summons) - धारा 358(2)
अगर नया अभियुक्त अदालत में मौजूद नहीं है, तो धारा 358(2) के तहत अदालत उसे बुलाने के लिए दो विकल्प चुन सकती है:
1. अगर अपराध गंभीर (Serious) है, तो अदालत उस व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट (Arrest Warrant) जारी कर सकती है।
2. अगर अपराध कम गंभीर (Less Serious) है, तो अदालत उसे सम्मन (Summon - कानूनी आदेश जिससे व्यक्ति को अदालत में उपस्थित होने के लिए बुलाया जाता है) जारी कर सकती है।
उदाहरण के लिए, अगर नीलम को अदालत में वित्तीय धोखाधड़ी (Financial Fraud) के एक मामले में गवाह (Witness) के रूप में बुलाया गया था, लेकिन बाद में अदालत को पता चलता है कि वह भी धोखाधड़ी में शामिल थी, तो अदालत उसे अभियुक्त घोषित कर सकती है और उसके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकती है।
अगर व्यक्ति अदालत में पहले से मौजूद है, तो उसे तुरंत हिरासत में लिया जा सकता है (Detention of Person Already Present) - धारा 358(3)
कई बार ऐसा होता है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ प्रमाण मिले हैं, वह पहले से ही अदालत में किसी अन्य कारण से मौजूद होता है। धारा 358(3) अदालत को यह शक्ति देती है कि वह ऐसे व्यक्ति को तुरंत हिरासत (Detain) में ले सकती है।
उदाहरण के लिए, अगर मनोज अदालत में एक संपत्ति विवाद (Property Dispute) के मामले में गवाह के रूप में आया है और अदालत को मुकदमे के दौरान पता चलता है कि वह भी जालसाजी (Forgery) में शामिल था, तो अदालत उसे हिरासत में लेकर उसके खिलाफ मुकदमा शुरू कर सकती है।
नए अभियुक्त के खिलाफ मुकदमे की प्रक्रिया (Fresh Proceedings Against New Accused) - धारा 358(4)
अगर कोई नया अभियुक्त मुकदमे में शामिल किया जाता है, तो कानून यह सुनिश्चित करता है कि उसके साथ न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) निष्पक्ष तरीके से चले।
इसलिए धारा 358(4) के तहत अदालत को निम्नलिखित करना होगा:
1. मुकदमे की प्रक्रिया दोबारा शुरू होगी (Fresh Proceedings)।
2. सभी गवाहों (Witnesses) को दोबारा सुना जाएगा ताकि नए अभियुक्त को अपना पक्ष रखने का अवसर मिले।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नए अभियुक्त को पूरा मौका मिले कि वह अपनी सफाई पेश कर सके और उसकी सुनवाई निष्पक्ष तरीके से हो।
उदाहरण के लिए, अगर विनोद पर लूट (Robbery) का मुकदमा चल रहा है और बाद में अदालत अमित को भी अभियुक्त बनाती है, तो मुकदमे की प्रक्रिया दोबारा शुरू होगी ताकि अमित को भी पूरा अवसर मिल सके कि वह अपना बचाव कर सके।
धारा 358 बनाम पुरानी CrPC धारा 319 (Comparison with Old CrPC Section 319)
इससे पहले दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 में यह व्यवस्था थी कि अदालत मुकदमे के दौरान किसी अन्य व्यक्ति को अभियुक्त बना सकती है।
हालांकि, BNSS की धारा 358 में कुछ महत्वपूर्ण सुधार किए गए हैं:
1. अधिक स्पष्ट प्रक्रिया (Clearer Process): अब अदालत को गवाहों को फिर से सुनने और मुकदमे को नए सिरे से शुरू करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया है।
2. स्पष्ट निर्देश कि कब सम्मन जारी किया जाए और कब गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाए।
3. सुनवाई की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए नए अभियुक्त को पूरा मौका देने का प्रावधान।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 358 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी अपराधी सिर्फ इसलिए न बच सके क्योंकि उसका नाम शुरू में अभियुक्तों की सूची में नहीं था।
यह प्रावधान अदालत को यह अधिकार देता है कि वह मुकदमे के दौरान मिले नए प्रमाणों के आधार पर किसी भी व्यक्ति को अभियुक्त बना सके, उसे हिरासत में ले सके, और मुकदमे की प्रक्रिया फिर से शुरू कर सके।
यह न्याय की निष्पक्षता (Fairness of Justice) और आपराधिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता (Effectiveness of Criminal Procedure) को मजबूत करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि हर अपराधी को उसके अपराध की सजा मिले।