BNSS 2023 के अंतर्गत पुलिस जांच में दिए गए बयानों की प्रक्रिया और अधिकार : धारा 181 और 182

Himanshu Mishra

10 Sep 2024 12:37 PM GMT

  • BNSS 2023 के अंतर्गत पुलिस जांच में दिए गए बयानों की प्रक्रिया और अधिकार : धारा 181 और 182

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) को प्रतिस्थापित किया और यह 1 जुलाई 2024 से लागू हो गई। इस नई संहिता के अंतर्गत धारा 181 और 182 पुलिस द्वारा जांच के दौरान दिए गए बयानों और पुलिस अधिकारियों की भूमिका के बारे में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं। ये प्रावधान यह सुनिश्चित करते हैं कि जांच के दौरान एकत्रित किए गए बयानों का सही ढंग से उपयोग हो और आरोपी के अधिकारों की रक्षा हो।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 181 और 182 पुलिस जांच के दौरान व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। धारा 181 यह सुनिश्चित करती है कि पुलिस को दिए गए बयानों का सही ढंग से उपयोग हो और आरोपी के खिलाफ उनका अनुचित तरीके से उपयोग न हो।

    यह प्रावधान यह भी सुनिश्चित करता है कि बयान को तभी अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है जब वह विशिष्ट शर्तों को पूरा करता हो।

    धारा 182 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी बयान प्रलोभन, धमकी या वादे के आधार पर नहीं लिया गया हो और जो भी बयान दिया जाए, वह स्वेच्छा से और स्वतंत्र रूप से हो। यह पुलिस द्वारा अनैतिक तरीकों से लिए गए बयानों को अदालत में मान्यता न मिलने की एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है।

    इन धाराओं के साथ धारा 180 यह सुनिश्चित करती है कि पुलिस के पास जांच के दौरान गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार हो, लेकिन इस प्रक्रिया में व्यक्ति के अधिकारों और न्याय की निष्पक्षता को बनाए रखने का भी पूरा ध्यान रखा जाए।

    धारा 181: पुलिस को दिए गए बयानों का उपयोग (Use of Statements Made to the Police)

    धारा 181 यह निर्धारित करती है कि पुलिस अधिकारियों को जांच के दौरान जो बयान दिए जाते हैं, उनका उपयोग कैसे किया जा सकता है। यह प्रावधान बयानों के प्रयोग पर कड़ी सीमाएँ लगाता है ताकि न्यायिक प्रक्रिया में निष्पक्षता बनी रहे।

    इस धारा के अनुसार, पुलिस जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया गया बयान, यदि लिखित रूप में लिया जाता है, तो उसे बयान देने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित (Signed) नहीं किया जा सकता। इसका उद्देश्य यह है कि व्यक्ति पर दबाव या जोर-जबरदस्ती से कोई बयान न लिया जा सके।

    यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस तरह के बयानों को, या उनके किसी हिस्से को, उस समय चल रही जांच से संबंधित किसी अपराध के संबंध में चल रहे किसी भी न्यायिक जांच या मुकदमे में उपयोग नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कोई भी बयान जो कि अधूरा या दबाव में लिया गया हो, अदालत में प्रस्तुत न हो सके।

    हालाँकि, एक महत्वपूर्ण अपवाद है। अगर अभियोजन (Prosecution) किसी गवाह को पेश करता है जिसका बयान पहले लिखित रूप में दर्ज किया गया था, तो आरोपी को यह अधिकार है कि वह उस बयान के किसी भी हिस्से का उपयोग गवाह के बयान का खंडन (Contradiction) करने के लिए कर सके, जैसा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) की धारा 148 में निर्दिष्ट किया गया है।

    न्यायालय की अनुमति से, अभियोजन पक्ष भी बयान के कुछ हिस्सों का उपयोग इसी उद्देश्य के लिए कर सकता है। यदि बयान के किसी हिस्से का उपयोग जिरह (Cross-examination) के दौरान किया जाता है, तो पुनः पूछताछ (Re-examination) में भी उस हिस्से का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन केवल उस जिरह में उठाए गए मुद्दों को स्पष्ट करने के लिए।

    उदाहरण के लिए, एक चोरी के मामले में एक गवाह जिसने पुलिस को बयान दिया था, मुकदमे के दौरान यदि उसका बयान और अदालत में दिए गए बयान में विरोधाभास हो, तो आरोपी उस गवाह के बयान का खंडन कर सकता है।

    धारा 181(2) यह स्पष्ट करती है कि यह प्रावधान उन बयानों पर लागू नहीं होता जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 26(a) के अंतर्गत आते हैं। इसका मतलब है कि अगर कोई बयान पुलिस की हिरासत (Custody) में रहते हुए किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) की उपस्थिति में दिया गया है, तो उसे आरोपी के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह धारा 23(2) के प्रावधानों को भी प्रभावित नहीं करती, जो दोष-स्वीकृति (Confession) से संबंधित है।

    यहाँ एक स्पष्टीकरण (Explanation) भी दिया गया है कि अगर किसी बयान में कोई तथ्य या परिस्थिति (Circumstance) का उल्लेख न किया गया हो, और वह महत्वपूर्ण और प्रासंगिक हो, तो इसे विरोधाभास माना जा सकता है। यह एक तथ्य का प्रश्न होगा कि किसी विशेष संदर्भ में इस तरह की चूक विरोधाभास है या नहीं।

    धारा 182: प्रलोभन, धमकी या वादा देने से सुरक्षा (Protection Against Inducement, Threat, or Promise)

    धारा 182 यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी पुलिस अधिकारी या अधिकार में रहने वाला व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को कोई प्रलोभन (Inducement), धमकी (Threat) या वादा (Promise) न दे। यह प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 22 के साथ मेल खाता है, जो यह कहता है कि इस तरह से प्राप्त किए गए किसी भी बयान को अदालत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

    इस धारा के पहले भाग में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुलिस अधिकारी या कोई भी अन्य अधिकारी किसी व्यक्ति से कोई बयान प्राप्त करने के लिए प्रलोभन, धमकी या वादा का उपयोग नहीं कर सकते। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि जबरन या अनुचित रूप से प्राप्त किए गए बयान अदालत में मान्य न हों।

    उदाहरण के लिए, अगर हत्या के एक मामले में पुलिस अधिकारी आरोपी को धमकी देकर कबूल करवाने की कोशिश करता है और वादा करता है कि उसकी सजा कम कर दी जाएगी, तो इस तरह का बयान अदालत में मान्य नहीं होगा, क्योंकि इसे स्वेच्छा से नहीं दिया गया था।

    हालाँकि, धारा 182(2) यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई भी अधिकारी किसी व्यक्ति को बयान देने से रोके नहीं, अगर वह स्वेच्छा से बयान देना चाहता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि व्यक्ति जो भी जानकारी देना चाहे, उसे स्वतंत्र रूप से बयान देने का अधिकार हो।

    उदाहरण के लिए, यदि एक धोखाधड़ी (Fraud) मामले की जांच के दौरान कोई व्यक्ति स्वेच्छा से पुलिस को जानकारी देना चाहता है, तो पुलिस को उसे ऐसा करने से नहीं रोकना चाहिए। यह व्यक्ति के स्वतंत्र बयान देने के अधिकार की रक्षा करता है, यह सुनिश्चित करता है कि वह अपनी इच्छा से बयान दे रहा है।

    इस धारा के अंतर्गत एक उपधारा 183(4) का संदर्भ भी दिया गया है, जो यह सुनिश्चित करता है कि अगर कोई बयान स्वेच्छा से भी दिया गया है, तो उसे अन्य संबंधित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार ही मान्यता मिलेगी।

    धारा 180 के साथ संबंध (Relationship with Section 180)

    धारा 181 और 182 को पूरी तरह समझने के लिए धारा 180 का संदर्भ लेना महत्वपूर्ण है। धारा 180 यह बताती है कि पुलिस अधिकारी जांच के दौरान गवाहों से कैसे पूछताछ (Examine) कर सकते हैं। इसके अनुसार, पुलिस अधिकारी किसी भी ऐसे व्यक्ति से मौखिक रूप से पूछताछ कर सकते हैं, जो मामले के तथ्यों से परिचित प्रतीत होता हो।

    हालाँकि, धारा 181 यह सुनिश्चित करती है कि इस तरह के बयानों को, भले ही वे पुलिस को दिए गए हों, आरोपी के खिलाफ तब तक उपयोग नहीं किया जा सकता, जब तक कि वे विशिष्ट शर्तों के तहत नहीं आते। इसी प्रकार, धारा 182 यह सुनिश्चित करती है कि बयान केवल स्वेच्छा से दिए गए हों और उन पर किसी प्रकार का दबाव न हो।

    उदाहरण के लिए, यदि एक व्यक्ति किसी डकैती (Robbery) के मामले की जांच के दौरान पुलिस को जानकारी देता है, तो धारा 180 के तहत पुलिस अधिकारी उससे पूछताछ कर सकते हैं। लेकिन धारा 181 यह सुनिश्चित करती है कि उसका बयान अदालत में तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब विशिष्ट शर्तों का पालन किया गया हो, और धारा 182 यह सुनिश्चित करती है कि यह बयान बिना किसी दबाव के दिया गया हो।

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