अपीलीय न्यायालय की शक्तियां : धारा 427 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

Himanshu Mishra

19 April 2025 11:30 AM

  • अपीलीय न्यायालय की शक्तियां : धारा 427 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023

    भारतीय न्याय व्यवस्था में "अपील" (Appeal) एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से किसी आरोपी (Accused) या अभियोजन पक्ष (Prosecution) को निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय को ऊपरी अदालत में चुनौती देने का अधिकार प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति किसी आदेश या सजा (Sentence) से संतुष्ट नहीं है, तो वह अपीलीय न्यायालय (Appellate Court) में जाकर न्याय मांग सकता है।

    धारा 427 बी.एन.एस.एस., 2023 का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो यह निर्धारित करता है कि एक अपीलीय न्यायालय को क्या-क्या अधिकार प्राप्त होते हैं जब वह किसी अपील को सुन रहा होता है।

    रिकॉर्ड का परीक्षण और पक्षों को सुनना (Examination of Record and Hearing Parties)

    धारा 427 की शुरुआत इस बात से होती है कि अपीलीय न्यायालय सबसे पहले उस मामले की रिकॉर्डिंग (Record) की जांच करेगा, जिसमें अपील दाख़िल की गई है। इसके साथ ही, न्यायालय अपील करने वाले (Appellant) या उसके वकील (Advocate), और यदि उपस्थित हो, तो लोक अभियोजक (Public Prosecutor) की दलीलें सुनेगा।

    अगर अपील धारा 418 (राज्य द्वारा सज़ा के विरुद्ध अपील) या धारा 419 (निर्दोष करार दिए गए के विरुद्ध अपील) के अंतर्गत है, तो न्यायालय आरोपी को भी सुनने का अवसर देगा।

    इस प्रक्रिया का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायालय किसी भी अंतिम निर्णय पर पहुँचने से पहले सभी पक्षों की बात सुने और सभी साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करे।

    अपील खारिज करने की स्थिति (Dismissal of Appeal)

    यदि अपीलीय न्यायालय यह पाता है कि मामले में हस्तक्षेप करने के लिए कोई ठोस आधार (Ground) नहीं है, तो वह अपील को खारिज (Dismiss) कर सकता है।

    उदाहरण (Illustration):

    मान लीजिए एक व्यक्ति को निचली अदालत ने दोषी ठहराया है और उसने इस सजा के विरुद्ध अपील की है। अगर अपीलीय न्यायालय को लगता है कि निचली अदालत ने सभी साक्ष्यों के आधार पर सही निर्णय लिया है, और अपील में कोई नया महत्वपूर्ण बिंदु नहीं उठाया गया है, तो वह अपील को खारिज कर सकता है।

    अलग-अलग प्रकार की अपीलों में न्यायालय की शक्तियाँ (Different Powers in Different Appeals)

    धारा 427 न्यायालय को विभिन्न प्रकार की अपीलों में विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ प्रदान करता है। इन्हें हम एक-एक करके समझते हैं:

    (a) दोषमुक्ति के आदेश के विरुद्ध अपील (Appeal Against Acquittal):

    यदि यह अपील किसी आरोपी की दोषमुक्ति (Acquittal) के विरुद्ध है, तो अपीलीय न्यायालय उस दोषमुक्ति के आदेश को पलट सकता है। वह या तो आगे जांच (Further Inquiry) का आदेश दे सकता है, या पुनः मुकदमा (Retrial) शुरू करने का निर्देश दे सकता है, या सीधे उसे दोषी ठहरा कर उसे सजा (Sentence) सुना सकता है।

    उदाहरण:

    अगर किसी व्यक्ति को एक गंभीर अपराध जैसे हत्या से दोषमुक्त कर दिया गया और राज्य सरकार ने अपील की, तो अपीलीय न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि आरोपी के विरुद्ध फिर से ट्रायल हो।

    (b) दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील (Appeal Against Conviction):

    यदि अपील किसी दोषसिद्धि (Conviction) के विरुद्ध है, तो न्यायालय के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:

    • दोषसिद्धि और सजा को पलटना और आरोपी को बरी (Acquit) करना या मुक्त (Discharge) करना।

    • दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सजा को वैसा ही रखना।

    • दोषसिद्धि में परिवर्तन करते हुए, या बिना परिवर्तन किए, सजा की प्रकृति (Nature) या अवधि (Extent) में बदलाव करना, लेकिन सजा को बढ़ाना नहीं।

    (c) सजा बढ़ाने की अपील (Appeal for Enhancement of Sentence):

    यदि अपील केवल सजा को बढ़ाने (Enhancement) के लिए की गई है, तो न्यायालय निम्न निर्णय ले सकता है:

    • दोषसिद्धि और सजा को पलटना और आरोपी को मुक्त करना या दोबारा ट्रायल का आदेश देना।

    • दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सजा वैसी ही रखना।

    • दोषसिद्धि में परिवर्तन करते हुए, या बिना परिवर्तन किए, सजा की प्रकृति या अवधि में वृद्धि (Enhance) या कमी (Reduce) करना।

    (d) किसी अन्य आदेश के विरुद्ध अपील (Appeal Against Other Orders):

    यदि अपील किसी अन्य प्रकार के आदेश के विरुद्ध है, तो न्यायालय उस आदेश को बदल (Alter) सकता है या उसे रद्द (Reverse) कर सकता है।

    (e) अन्य उपयुक्त आदेश (Other Just or Proper Orders):

    न्यायालय किसी भी प्रकार का ऐसा संशोधन (Amendment) या संबंधित आदेश (Consequential Order) पारित कर सकता है जो न्यायसंगत (Just) और उपयुक्त (Proper) हो।

    सजा बढ़ाने से पहले आरोपी को सुनवाई का अवसर (Opportunity Before Enhancing Sentence)

    धारा 427 के अंत में यह प्रावधान है कि अगर न्यायालय सजा को बढ़ाने (Enhance) का इरादा रखता है, तो आरोपी को पहले यह अवसर दिया जाएगा कि वह यह स्पष्ट कर सके कि ऐसा क्यों न किया जाए।

    उदाहरण:

    अगर निचली अदालत ने आरोपी को केवल 5 वर्ष की सजा दी है और अपीलीय न्यायालय उसे 10 वर्ष देना चाहता है, तो पहले आरोपी को नोटिस देकर उसका पक्ष सुना जाएगा।

    किसी अपराध के लिए अधिकतम सजा से अधिक सजा नहीं दी जा सकती (Limitation on Enhanced Punishment)

    एक और महत्वपूर्ण सीमा यह है कि अपीलीय न्यायालय उस सजा से अधिक दंड नहीं दे सकता जो उस अपराध के लिए मूल रूप से निचली अदालत दे सकती थी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऊपरी न्यायालय के पास अनियंत्रित शक्ति न हो।

    धारा 427 अपीलीय न्यायालयों को बहुत व्यापक अधिकार प्रदान करता है ताकि वे न्याय सुनिश्चित कर सकें। चाहे दोषसिद्धि हो, दोषमुक्ति हो या सजा का निर्धारण, न्यायालय प्रत्येक पहलू पर विचार करके आवश्यक निर्णय ले सकता है। लेकिन इन सभी शक्तियों के प्रयोग में न्याय और निष्पक्षता (Fairness) का पालन अनिवार्य है।

    यह अनुच्छेद धारा 423 से लेकर धारा 426 तक के अनुच्छेदों का तार्किक विस्तार है, जो अपील दाख़िल करने की प्रक्रिया, जेल से अपील भेजने की विधि और प्रारंभिक जांच की प्रक्रिया को समझाते हैं। धारा 427 बताता है कि यदि अपील खारिज नहीं होती, तो न्यायालय कैसे उस अपील पर अंतिम निर्णय देता है।

    इस प्रकार, धारा 427 एक मजबूत स्तंभ है जो भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली (Criminal Justice System) में अपीलीय प्रक्रिया को प्रभावी और न्यायसंगत बनाता है।

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