निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 33: चेक का संदाय (पेमेंट) प्राप्त करने वाले बैंक का अदायित्व (धारा 131)
Shadab Salim
29 Sept 2021 7:00 PM IST
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत धारा 131 चेक का संदाय करने वाले बैंक के अदायित्व के संबंध में प्रावधान प्रस्तुत करती है। परक्राम्य लिखत अधिनियम चेक के व्यवहार में अधिकांश दायित्व लेखीवाल और उसके धारक को सौंपता है और यह अधिनियम एक प्रकार से धारक के अधिकारों की सुरक्षा पर ही अधिक बल देता है। धारा 131 बैंक के अदायित्व का विशेष रूप से उल्लेख कर रही है। इस आलेख के अंतर्गत संदाय करने वाले बैंक के अदायित्व को समझा जा रहा है।
संग्राहक बैंक को संरक्षण: [ धारा 131 ]:-
संग्राहक बैंक:-
संग्राहक बैंक वह होता है जो समाशोधन द्वारा चेक की धनराशि का संग्रहण करता है। चेकों का संग्रहण महत्वपूर्ण सुविधा है जो बैंक अपने ग्राहक को प्रदान करता है। चेकों का संग्रहण खुला एवं क्रास दोनों चेकों का होता है, पर धारा 131 केवल क्रास चेक के संदाय के सम्बन्ध में संग्राहक बैंक को संरक्षण प्रदान करती है। धारा 131क अब माँग ड्राफ्ट को भी ऐसी संरक्षण प्रदान करती है।
बैंक जो क्रास चेकों का संदाय अपने ग्राहकों के लिए प्राप्त करता है, संग्राहक बैंक होता है। धारा 128 के अधीन भुगतानी बैंक को संरक्षण प्रदान किया गया है, पर यह धारा संग्राहक बैंक को संरक्षण देती है। ग्राहक जिसके लिए बैंक संग्रह करता है, यह हो सकता है कि वह चेक का हकदार न हो। अतः बैंकर चेक के सही स्वामी के प्रति संपरिवर्तन के लिए उत्तरदायी हो सकता है, क्योंकि उसने ऐसे व्यक्ति को चेक को संदाय करने में सहयोग किया है जो संदाय पाने का हकदार नहीं था।
वर्तमान धारा यह प्रावधानित करती है कि जहाँ एक बैंकर एक ग्राहक से क्रास चेक के संग्रह के लिए प्राप्त करता है और संदाय अपने ग्राहक के लिए प्राप्त करता है, यह तथ्य कि ग्राहक का स्वत्व चेक के प्रति दोषपूर्ण है, वहाँ बैंकर सही स्वामी के प्रति के लिए उत्तरदायी नहीं होगा यह संरक्षण बहुत ही महत्वपूर्ण है।
धारा 131 बैंकर जो सद्भावनापूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा के अपने किसी ग्राहक के क्रास चेक का संग्रह करता है जो उसका स्वत्व नहीं रखता है, उसे संरक्षण प्रदान करता है। यह भी धारित किया गया है कि ऐसा संरक्षण जहाजी बिल्टी के देयता को संग्रह करता है जिसे यह पृष्ठांकित किया गया है, उसे भी प्राप्त होता है।
धारा 131 कहती है-
"जिस बैंक ने अपने ग्राहक के पक्ष में साधारण या विशेष क्रास किए हुए चेक का संदाय अपने व्यवहारी (ग्राहक) लेखे सद्भावपूर्वक एवं उपेक्षा के बिना प्राप्त किया है वह बैंककार उस चेक पर हक के त्रुटिपूर्ण साबित होने की दशा में सही स्वामी के प्रति कोई दायित्व ऐसा संदाय प्राप्त करने के कारण ही उपगत न करेगा।"
संग्राहक बैंक के विधिक संरक्षण के सम्बन्ध में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, बंगलौर बनाम विश्वेसरीयाह को-आप० बैंक लि० का मामला नियम को स्पष्ट करता है। इस मामले में एक धोखेबाज ने प्रतिवादी बैंक में खाता खोला और खोए हुए ड्राफ्ट की धनराशि को नकद किया।
यह कहा गया कि प्रतिवादी बैंक ने धोखेबाज का खाता खोलने में उपेक्षा बरती है और इससे उसने डी० डी० का नकदीकरण करा लिया। भुगतानी बैंक का कथन था कि संग्राहक बैंक ने खाता खोलने में खाता खुलवाने वाले का समुचित परिचय नहीं प्राप्त किया था।
परिस्थितियों से यह स्पष्ट नहीं था कि ग्राहक डी० डी० का स्वामी नहीं था। अन्तर्ग्रस्त धनराशि 25,000 रुपये कम धनराशि की थी जो विशेष और विस्तृत जाँच करने की अपेक्षा नहीं करता था विशेषकर खाता खोलने के कई दिनों के बाद डी० डी० संग्रह के लिए जमा किया गया था। अत: संग्राहक बैंक धारा 131 के अधीन संरक्षण का हकदार था।
यह प्रश्न कि क्या बैंक ने खाता खोलने में उपेक्षा बरती है धारा 131 के लिए इस सीमा तक संगत में होगी कि खाता खोलने एवं चेक को जमा करना वास्तव में एक ही योजना में थी। क्या खाता प्रश्नगत चेक के साथ खोला गया? या क्या खाता खोलने के तुरन्त बाद चेक को खाते में डाला गया जिससे यह स्पष्ट हो कि खाता खोलना एवं चेक जमा करना एक हो भाग है, तब खाता खोलने में उपेक्षा माना जाएगा कि चेक के वसूली के सम्बन्ध में था।
यहाँ पर कमिश्नर ऑफ टैक्सेसन बनाम इंग्लिश स्काटिस एण्ड आस्ट्रेलियन बैंक लि में प्रिवी कौन्सिल का निर्मय का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है।
इस वाद के तथ्य में-
एक 'अ' सिडनी का मित्र अपने द्वारा लिखे गए चेक 786 रुपये और अपने परिवार के अन्य सदस्यों के चेक को एक लिफाफे में रखा और उसे भेजने के लिए लिफाफे पर पता लिखा- कमिश्नर टैक्सेसन, जार्ज स्ट्रीट, नार्थ सिडनी। सभी चेक आयकर निर्धारण में संदाय के लिए थे। सभी चेक 'बैंक' शब्द से साधारणतः क्रास थे।
इन चेकों को किसी व्यक्ति ने चुरा लिया और चेक कमिश्नर आफ टैक्सेसन द्वारा कभी भी नकद नहीं कराए गए। इसके बाद एक व्यक्ति जिसने अपना नाम स्टेवर्ड थालोन बताते हुए प्रतिवादी बैंक, सिडनी में प्रवेश किया और कहा कि वह एक खाता खोलना चाहता है। बैंक के लेखाकार ने उस व्यक्ति से नाम और पता लिया। इस आदमी ने सिडनी के सुप्रसिद्ध आवासीय चैम्बर्स का पता दिया।
तब उसने 20 रुपये की धनराशि दी। लेखाकार ने 'पेड इन स्लिप' को भरा और सम्यक् रूप से खाता खोला और एक चेक बुक थालोन के नाम से जारी की। इसके दूसरे दिन चोरी गए चेकों को थालान के हाथ में आया और दूसरे दिन थालोन ने तीन धनराशि 483 रुपये, 260 रुपये एवं 50 रुपये अपने नाम से निकाली। इसके बाद थालोन कभी दिखाई नहीं दिया और यह पाया गया कि उसके दिए गये पते पर उस नाम का कोई व्यक्ति उस पते पर नहीं रहता था।
कमिश्नर ने तब एक वाद बैंक के विरुद्ध चेक के संपरिवर्तन के लिए लाया जिसकी अपील प्रिवी काउन्सिल में गयी। न्यू साउथ वेल्स के उच्चतम न्यायालय ने पाया कि बैंक उपेक्षा के लिए दोषी नहीं था। यह धारित किया गया कि थालोन द्वारा उपस्थापित चेक में कोई एलार्म या चेतावनी नहीं थी जिससे परिस्थितियों से कोई सन्देह उत्पन्न होता, यह धारित किया गया कि बैंक असावधान नहीं था।
प्रिवी काउन्सिल ने यह स्पष्ट किया कि : धारा 131 के अधीन संरक्षण प्राप्त करने की आवश्यक शर्तें हैं :-
1. बैंकर ने सामान्य या विशेषतः क्रास चेक का संदाय किसी ग्राहक के वास्ते प्राप्त किया है।
2. क्रास किए हुए चेक का संदाय अतः धारा 131 खुला चेक के संदाय के लिए संरक्षण प्रदान नहीं करता है।
3. बैंकर ने इन चेकों का संदाय ग्राहक के अभिकर्ता के रूप में प्राप्त किया है।
4. संग्राहक बैंक ने सद्भावपूर्वक एवं बिना किसी उपेक्षा के संदाय प्राप्त किया है।
धारा 131 के अधीन संरक्षण प्राप्त करने के लिए बैंकर पर यह आबद्धता है कि वह यह साबित करे कि-
उसने चेक का संग्रह सद्भावपूर्वक एवं बिना उपेक्षा के किया है। बैंक द्वारा उपेक्षा का बिल्कुल तथ्य का निर्णय है। वहाँ साक्ष्य यह दिखाते हैं कि जहाँ बैंक ने खाता खोलने के पूर्व ऐसे व्यक्ति के बारे में जानकारी नहीं की थी, यह धारित किया गया कि बैंक के उपेक्षा के सम्बन्ध में निर्णय में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। वादी ने चेक को अभिलिखित परिदान किया।
इसे हस्तक्षेप किया गया और धनराशि बढ़ायी गयी। ऊपरवाल बैंक के वहाँ एक खाता पाने वाले के नाम से खोला गया। बैंक ने परिवर्तित धनराशि का संग्रह किया और निकासी अनुज्ञात किया। बैंक को वादी के नुकसान के लिए दायी ठहराया गया।
बैंक को दोनों दशा में अर्थात् खाता खोलने एवं धनराशि को खाते में क्रेडिट करने के लिए बिना परिवर्तन को देखे एवं निकासी को अनुज्ञात करने में बैंक दोषी था। यह कथन कि चेक को अभिलिखित परिदान से भेजने में उपेक्षा बरती गयी थी द्वितीय अपील में प्रथम बार उठाने से मना कर किया गया।
निम्नलिखित सूचक सिद्धान्त जे० नोल्ड द्वारा मरफानी बनाम मिटलैण्ड बैंक लिबे के मामले में सुझाए गए थे:-
(1) कि सावधानों का स्तर बैंकर के सामान्य व्यवहारों से प्राप्त किया जाना चाहिए।
(2) कि अपेक्षित सावधानी का स्तर खाते का माइक्रोस्कोपिक परीक्षण करना सम्मिलित करता है।
(3) कि बैंक को एक नए ग्राहक को स्वीकार करने एवं नया खाता खोलने में उपेक्षा नहीं बरतनी चाहिए।
(4) कि बैंक पर यह दायित्व है कि वह साबित करे कि उसने बिना उपेक्षा के कार्य किया है। उच्चतम न्यायालय ने बैंक के इस कर्तव्य के सम्बन्ध में एक और बिन्दु को बल दिया है, अर्थात् एक ग्राहक के चेक का संग्रहण करने में बैंकर इस आवद्धता में होता है कि चेक को तत्काल बिना किसी विलम्ब के उपस्थापित करे जिससे परिस्थितियों के परिवर्तन से होने वाली हानि को बचाया जा सके।
निम्नलिखित कतिपय दृष्टान्त हैं कि संग्राहक बैंक असावधान धारित किया जा सकता है:-
1. आदेशित देय चेक का संग्रहण करना बिना उस पर पृष्ठांकन को प्रमाणित किये बिना या पृष्ठांकन के फार्म के सम्बन्ध में बिना जाँच-पड़ताल किये बिना या जहाँ पृष्ठांकन स्वयं से सन्देह उत्पन्न करता है।
2. एक अत्यधिक धनराशि का ऐसे लेखे से संग्रहण जो सामान्य रूप में कम स्तर का है।
3. किसी आफिसियल को देय चेक उसके निजी खाते में संदाय।
4. किसी आफिसियल को देय चेक किसी व्यक्ति के खाते में संदाय।
5. एक अभिकर्ता द्वारा लिखा गया चेक जो उसके प्रधान के खाते से संग्रहण के लिए।
6. किसी भागीदार को फर्म के नाम देय बैंक भागीदार के निजी खाते से संग्रहण।
7. एक कम्पनी द्वारा दूसरे कम्पनी को देय चेक का संग्रहण।
8. किसी कम्पनी को देय चैक उसके किसी अधिकारी के निजी खाते में संग्रहण।
9. एकाउण्ट पेयी क्रास चेक का संग्रहण पाने वाले के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के लिए।
10. नया खाता खोलना, जबकि खोलने वाले की स्थिति के बारे में जानकारी न करना।
11. सन्देहजनक परिस्थितियों में चेक का बिना पूछताछ के संदाय करना।
चेक की मार्किंग-जिस बैंक पर चेक लिखा जाता है अर्थात् ऊपरवाल बैंक द्वारा चैक पर मार्किंग या हस्ताक्षर करना चेक के संदाय के लिए एक अतिरिक्त सुरक्षा माना जाता है। इसके द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि चेक सद्भावनापूर्वक पूर्व इसे संदाय करने के लिए बैंक के पास पर्याप्त निधि है, ऐसा व्यवहार भी बैंकिंग परम्परा में रहा है।
मावर्ट चेक से तात्पर्य ऐसे चेक से है जो ऊपरवाल बैंक द्वारा मार्ड है या प्रमाणित है कि प्रभाव में यह चेक "संदाय के लिए अच्छा है।" इस प्रकार ऊपरवाल बैंक ऐसे चेक के लिए यह संकेत देता है कि लेखीवाल का इन चेकों के संदाय के लिए उसके खाते में पर्याप्त निधि है जिस समय उसे प्रमाणित किया गया है और सभी मामलों में चेक सम्पूर्ण रूप में सही एवं समुचित है।
अब यह पद्धति व्यवहार में नहीं है अब इसका केवल एकेडेमिक महत्व है, क्योंकि इसे इण्टर बैंक करार के द्वारा बन्द कर दिया गया है।