निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 24: संदाय(पेमेंट) किसे किया जाना चाहिए (धारा 78)

Shadab Salim

25 Sep 2021 12:00 PM GMT

  • निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 24: संदाय(पेमेंट) किसे किया जाना चाहिए (धारा 78)

    परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत धारा 78 में संदाय किसे किया जाए इससे संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित किया गया है। जैसा कि पूर्व के आलेख में यह उल्लेख किया गया है कि परक्राम्य में लिखत अधिनियम मूल रूप से तीन प्रकार के लिखत से संबंधित है तथा उन लिखतों में संदाय किए जाने का वचन होता है न कि संदाय होता है।

    संदाय किसे किया जाएगा इससे संबंधित प्रावधानों का विस्तारपूर्वक उल्लेख अधिनियम की धारा 78 के अंतर्गत प्राप्त होता है। यह आलेख के अंतर्गत इसी धारा पर सारगर्भित टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।

    किसे संदाय किया जाना चाहिए- धारा 78 रचयिता या प्रतिग्रहीता के उन्मोचन संदाय द्वारा धारक को करने का उपबन्ध करती है। यद्यपि कि धारा 82 में रचयिता, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक का लिखत के अधीन दायित्व से उन्मोचन का उपबन्ध करती है। किसी लिखत के अर्थात् वचन पत्र या विनिमय पत्र के रचयिता या प्रतिग्रहीता के दायित्व का विधिमान्य उन्मोचन केवल धारक को संदाय द्वारा ही किया जा सकता है।

    लिखत के रचयिता या प्रतिग्रहीता का उन्मोचन धारक को संदाय द्वारा होता है। रचयिता या प्रतिग्रहीता का उन्मोचन वचन पत्र एवं विनिमय पत्र (चेक नहीं) के सम्बन्ध में ही होता है। इस प्रकार धारा 78 में उन्मोचन केवल वचन पत्र एवं विनिमय पत्र से सम्बन्धित है।

    धारा 78 आज्ञापक है एवं इस प्रकार किसी अन्य व्यक्ति को संदाय से उन्मोचन नहीं होगा जब तक कि ऐसे संदाय को लिखत का धारक स्वयं का संदाय का चुनाव न करे। सभी मामलों में लिखत के अधीन संदाय केवल धारक को या उसके अधिकृत अभिकर्ता को की जानी चाहिए।

    रायल बैंक ऑफ स्काटलैण्ड बनाम रहीम में यह धारित किया गया है कि एक बैंक किसी विनिमय पत्र या चेक की धारणाधिकार सहित वसूली के लिए धारित किया है, वह सम्यक् अनुक्रम धारक है और संदाय बैंक को ही किया जाना चाहिए।

    मूल पृष्ठांकक को किये गये संदाय को प्रतिग्रहीता के दायित्व के उन्मोचन नहीं माना जा जा सकता है। संदाय के लिए याद कौन ला सकता है-फेवल धारक या उसका विधिक प्रतिनिधि ही संदाय के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

    कोई अजनबी व्यक्ति किसी लिखत के अधीन संदाय के लिए वाद नहीं ला सकता है। संघवाल बनाम गीता देवी के मामले में यह धारित किया गया है कि वचन पत्र का रचयिता अपने ऋण से उन्मोचन केवल धारक को संदाय से हो प्राप्त कर सकता है, अन्य किसी व्यक्ति के द्वारा नहीं।

    गलत व्यक्ति को संदाय-

    एक विधिमान्य संदाय होने के लिए यह आवश्यक है कि इसे केवल धारक को किया जाय लिखत का कब्जा प्रथम दृष्टया धारक के पहचान का साक्ष्य होता है एवं एक धारक जब बिल का उपस्थापन संदाय के लिए करता है तो प्रतिग्रहोता को संदाय कर देना चाहिए और संदाय की मनाही अपने जोखिम पर करता है। यदि मालूम होता है कि उसने गलत व्यक्ति को संदाय किया है, वह पुनः संदाय के लिए आबद्ध होगा एवं मनाही की दशा में अनादर के लिए वाद लाए जाने की कार्यवाही की जोखिम उसकी होगी।

    लिखत या ऋण का समनुदेशन- उल्लेखनीय वाद स्पेन्सर बनाम शॉयरमैन में धारित किया गया है कि लिखत का रचयिता संदाय करने का हकदार है, यद्यपि उसे ऋण या लिखत के समनुदेशन की सूचना प्राप्त करा दी गयी है।

    परन्तु हरीश चन्दर बनाम जमुना के वाद में जहाँ वचन पत्र को स्वयं समनुदेशित कर दिया गया है और रचयिता को इस तथ्य की सूचना दे दी जाती है, वहाँ वह मूल धारक को संदाय नहीं कर सकता है, अर्थात् समनुदेशितों को ही संदाय किया जाएगा। आंग्ल विधि के अन्तर्गत क्या एक चोर विधिमान्य उन्मोचन दे सकता है? किसी परक्राम्य लिखत का सद्भावना पूर्वक एवं स्वत्व के दोष की जानकारी के बिना किया गया संदाय विधिमान्य होता है और लिखत को उन्मोचित बनाता है।

    अतः लिखत जो वाहक को देय है या निरंक पृष्ठांकित है, जिससे कि उसका स्वत्व केवल परिदान मात्र से ही अन्तरित हो जाय, एक पाने वाला या एक चोर जिसके कब्जे में ऐसा लिखत है, को किया गया संदाय विधिमान्य होगा और लिखत का उन्मोचन हो जाएगा। ऐसे व्यक्ति को सम्यक् अनुक्रम में किये गये संदाय से रचयिता या प्रतिग्रहीता उन्मोचित हो जाएगा।

    भारतीय विधि- हालांकि धारा 8 के अधीन परिभाषित "धारक" इतना विस्तृत नहीं है कि इसमें लिखत का पाने वाला या एक चोर को भी धारक माना जाए, परन्तु धारा 10 के अधीन परिभाषित "सम्यक् अनुक्रम में संदाय" इतना व्यापक है कि इसके अन्दर लिखत का पाने वाला या एक चोर को किया गया संदाय भी सम्मिलित किया जा सकता है।

    वाहक को देय लिखत का संदाय किसी भी व्यक्ति को किया जा सकता है जिसमें लिखत का पाने वाला या एक चोर भी सम्मिलित है। इस प्रकार चोर को किया गया संदाय क्या विधिमान्य उन्मोचन दे सकेगा भारतीय विधि आंग्ल विधि के ही समान है।

    उदाहरण- (1) एक बिल पृष्ठांकित किया गया "A and B or order" परिपक्वता पर एक अन्य व्यक्ति A and B के नाम से धारक है जो बिल को अपने नाम से पृष्ठांकित कर संदाय के लिए उपस्थापित करता है। प्रतिग्रहीता उसे संदाय कर देता है। यहाँ बिल का उन्मोचन नहीं हुआ और प्रतिग्रहीता पुनः वास्तविक A and B को संदाय करने को बाध्य होगा।

    (2) एक वाहक को पृष्ठांकित बिल चोरी चला जाता है। परिपक्वता पर चोर इसे प्रतिग्रहीता को संदाय के लिए उपस्थापित करता है जिसे वह सम्यक् अनुक्रम में संदाय कर देता है। बिल का उन्मोचन हो गया।

    (3) एक बिल पृष्ठांकिती द्वारा कपट से प्राप्त किया जाता है। पृष्ठांकिती संदाय के लिए प्रतिग्रहोता को उपस्थापित करता है जो सम्यक् अनुक्रम में संदाय कर देता है, बिल का उन्मोचन हो जाएगा भारतीय विधि में समान स्थिति नहीं होगी, क्योंकि एक व्यक्ति जो लिखत को कपट से प्राप्त किया है, यहाँ तक कि वह पृष्ठांकिती भी है, परन्तु उसे धारा 8 के अधीन धारक नहीं कहा जाएगा और इस धारा के प्रभाव से उसे संदाय धारक को संदाय नहीं माना जाएगा।

    किसके द्वारा संदाय-

    किसी लिखत का विधिमान्य एवं लिखत के उन्मोचन के लिए संदाय रचयिता या प्रतिग्रहीता या उसकी ओर से किया जाना चाहिए। रचयिता या प्रतिग्रहीता अपनी आबद्धता से उन्मोचित नहीं होगा यदि संदाय लेखीवाल या किसी पृष्ठांकक या किसी अजनबी का अपने खाते में किए गए संदाय से किया जाता है।

    यदि कोई अजनबी लिखत के अधीन रकम का संदाय धारक को करता है तो उसे लिखत का क्रेता कहा जाएगा, परन्तु एक अजनबी यदि लिखत के किसी पक्षकार की ओर से संदाय करता है तो ऐसे संदाय का वही प्रभाव होगा जैसा कि उसे पक्षकार के द्वारा संदाय के लिए अधिकृत किया गया हो।

    यदि लिखत के अधीन देय रकम का संदाय लेखीवाल या पृष्ठांकक के द्वारा किया जाता है, लिखत उन्मोचित नहीं होगा और उसका पुनः परक्रामण किया जा सकेगा। एक सौकर्य लिखत में भी सौकर्य प्राप्त व्यक्ति के द्वारा किए गए संदाय से सौफर्य लिखत उन्मोचित हो जाता है।

    इसी प्रकार धारा 113 के अनुसार आदरणार्थ संदाय की दशा में भी लिखत का उन्मोचन हो जाता है।

    इस प्रकार निम्न व्यक्तियों के द्वारा संदाय लिखत को उन्मोचित बनाने का प्रभाव रखता है:-

    1. वचन पत्र का रचयिता एवं विनियम पत्र का प्रतिग्रहोता, या

    2. किसी अन्य व्यक्ति जो रचयिता या प्रतिग्रहोता की ओर से संदाय करता है, या

    3. रचयिता या प्रतिग्रहीता का अभिकर्ता या अन्य अधिकृत व्यक्ति, या

    4. सोकर्य विनियम पत्र में सौर्य प्राप्त व्यक्ति,

    5. आदरणार्थ संदाय की दशा में उक्त के अतिरिक्त अन्य व्यक्ति द्वारा संदाय अजनवी द्वारा संदाय माना जाएगा एवं लिखत उन्मोचित नहीं होगा।

    धारा 78 एवं 82 में सम्बन्ध-

    धारा 78 एवं 82 दोनों लिखत के अधीन पक्षकारों की आवद्धता के उन्मोचन और एतद्वारा लिखत के उन्मोचन से है।

    परन्तु इन दोनों धाराओं में निम्नलिखित अन्तर है:-

    (1) धारा 78 वचन पत्र के रचयिता एवं विनिमय पत्र के प्रतिग्रहीता के उन्मोचन से सम्बन्धित है। परन्तु धारा 82 अधिक व्यापक है और यह लिखत के रचयिता, प्रतिग्रहीता एवं पृष्ठांकक के उन्मोचन से सम्बन्धित है।

    (2) धारा 78 का सम्बन्ध वचन पत्र एवं विनियम से है, जबकि धारा 82 का सम्बन्ध वचन पत्र, विनिमय पत्र एवं चेक सभी लिखतों से है।

    (3) धारा 78 का विषय रचयिता एवं प्रतिग्रहोता के दायित्व के उन्मोचन से है, परन्तु धारा 82 का विषय लिखत के कुछ पक्षकारों के उन्मोचन एवं लिखत के उन्मोचन दोनों से सम्बन्धित है।

    (4) धारा 78 के अधीन पक्षकारों का उन्मोचन केवल संदाय द्वारा, जबकि धारा 82 के अधीन पक्षकारों एवं लिखत का उन्मोचन, रद्दकरण निर्मुक्तिकरण एवं संदाय से भी हो सकता है। चेक के अधीन लेखीवाल की आबद्धता का उन्मोचन चेक के अधीन लेखीवाल की प्रमुख आबद्धता होती है एवं बैंक केवल संदाय करने का एक माध्यम होता है जिसके द्वारा संदाय किया जाता है। जब कोई चेक का उपस्थापन बैंक के समक्ष किया जाता है जिसे वह संदत्त कर देता है, लेखीवाल की आवद्धता चेक के अधीन समाप्त हो जाती है एवं चेक का उन्मोचन हो जाता है। यदि बैंक चेक को बिना संदाय किए वापस कर देता है तो इसे चेक का अनादर कहते हैं धारा 138 अब इसे इसके अन्तर्गत शर्तों के अधीन एक अपराध कारित होती है जिसके लिए लेखीवाल दण्डित किया जा सकता है। चेक का धारक बैंक के विरुद्ध कोई उपचार नहीं रखता है चाहे चेक का अनादर समुचित तरीके या गैर-समुचित तरीके से किया गया है। परन्तु अब 1986 के पश्चात् धारक बैंक के विरुद्ध भी सेवाओं में कमी के लिए जो उसके द्वारा दी जाती है, उभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अधीन वाद ला सकता है।

    गैर-समुचित तरीके से संदाय को मना करने की दशा में निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हैं :-

    (1) लेखीवाल बैंक के विरुद्ध प्रतिकर के लिए वाद ला सकता है जो ऐसे संदाय न करने से उसे नुकसान एवं क्षति हुई है। (धारा 31)

    (2) धारक अब बैंक के विरुद्ध सेवाओं में कमी के लिए वाद ला सकता है।

    (3) धारक धारा 138 के अधीन अपराध कारित करने के लिए लेखीवाल पर वाद ला सकता है।

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