निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 22: संदाय (पेमेंट) के लिए उपस्थापन (धारा 64)
Shadab Salim
24 Sept 2021 9:30 AM IST
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत उपस्थापन से संबंधित प्रावधान किए गए हैं। इससे पूर्व के आलेख में उपस्थापन शब्द का अर्थ प्रस्तुत किया गया था जो कि इस अधिनियम की धारा 61 से संबंधित है।
उस आलेख के अंतर्गत यह स्पष्ट किया गया था कि उपस्थापन किन किन उद्देश्य से किए जा सकते हैं। इस आलेख के अंतर्गत इस अधिनियम की धारा 64 जो संदाय के लिए उपस्थापन से संबंधित है के प्रावधान प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
सभी लिखतों की संदाय के लिए उपस्थापन-
अधिनियम की धारा 64 यह अपेक्षा करती है कि सभी लिखत अर्थात् वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक संदाय के लिए अवश्य उपस्थापित किए जायेंगे। इसका व्यतिक्रम की दशा में उसके अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उस पर दायी न होंगे।
संदाय के लिए उपस्थापन किसके द्वारा-
संदाय के लिए उपस्थापन धारक द्वारा या उसकी ओर से उपस्थापित किए जाने होंगे। धारक को ही संदाय के लिए उपस्थापित करना होता है। इसके लिए वह किसी अन्य व्यक्ति को अधिकृत कर सकता है। धारक का अभिकर्ता भी उसकी ओर से उपस्थापित कर सकेगा। किसे उपस्थापन संदाय के लिए उपस्थापन लिखत के रचयिता, लेखीवाल (प्रतिग्रहीता) या ऊपरवाल को क्रमशः वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक की दशा में किया जा सकेगा।
अपवाद- धारा 64 का अपवाद धारा 76 में उपबन्धित है जहाँ संदाय के लिए उपस्थापन अनावश्यक होता है। संक्षेपित चेक का उपस्थापन [ धारा 64 (2)] - इस उपबन्ध को संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा अन्तःस्थापित किया गया है। धारा 64 (2) में यह उपबन्धित है कि जहाँ संक्षेपित चेक का कोई इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरूप संदाय के लिए उपस्थापित किया जाता है, वहाँ ऊपरवाल बैंक, लिखत के प्रकट शब्दों की असलियत के बारे में किसी युक्तियुक्त सन्देह की दशा में संक्षेपित चेक को धारण करने वाले बैंक से उक्त संक्षेपित चैक के सम्बन्ध में किसी और जानकारी की माँग करने का हकदार है और यदि सन्देह लिखत में किसी कपट, कूटरचना, छेड़छाड़ या विनाश के बारे में है तो वह सत्यापन के लिए संक्षेपित चेक के ही उपस्थापन की और माँग करने का हकदार है। परन्तु ऊपरवाल बैंक द्वारा इस प्रकार माँगा गया संक्षेपित चेक उसके द्वारा उस दशा में प्रतिधारित किया जाएगा जिसमें तद्नुसार संदाय कर दिया जाता है।
पुनः धारा 81 (2) 2 के अधीन जहाँ चेक संक्षेपित चेक का कोई इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरूप है वहाँ संदाय के पश्चात् भी वह बैंककार जिसने संदाय प्राप्त किया है, संक्षेपित चेक को प्रतिधारित करने का हकदार होगा।
कब संदाय के लिए उपस्थापन आवश्यक नहीं निम्नलिखित मामलों में संदाय के लिए लिखत का आवश्यक नहीं होता है एवं लिखत को अनादृत, उपस्थापन की देय तिथि पर मान लिया जाता है :-
(i) यदि रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता साशय लिखत के उपस्थापन को रोकते हैं।
(ii) जहाँ लिखत को उसके कारोबार स्थल पर देय बनाया गया है, वह उस स्थान को कारबार के दिन सामान्य कारबार समय में बन्द रखता है।
(iii) यदि लिखत किसी अन्य विहित स्थल पर देय है, वहाँ न तो वह या संदाय के लिए अधिकृत व्यक्ति ऐसे स्थान पर सामान्य कारोबार समय पर उपस्थित नहीं रहता।
(iv) यदि लिखत किसी विहित स्थान पर देय नहीं है, वह सम्यक् खोज के पश्चात् पाया नहीं जाता है।
(v) किसी अन्य व्यक्ति जो भारित किया है, यदि वह अ-उपस्थापन के होते हुए संदाय करने के लिए अनुबन्धित हो जाता है।
(vi) भारित किया जाने वाला पक्षकार बिना उपस्थापन के देय धनराशि पूर्ण या भागिक रूप में संदाय करता है।
(vii) कोई पक्षकार जो दायी है, संदाय के उपस्थापन के व्यतिक्रम से उत्पन्न लाभ के अधिकार का परित्याग करता है।
(viii) लेखीवाल के विरुद्ध, यदि लेखीवाल को ऐसे उपस्थापन न करने से कोई क्षति नहीं होती।
(ix) माँग पर देय वचनपत्र और किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर संदेय नहीं है, बनाने वाले को प्रभारित करने के लिए कोई उपस्थापन आवश्यक नहीं है।
पोस्ट आफिस द्वारा उपस्थापन- जहाँ अनुबन्ध द्वारा प्राधिकृत होने पर या रूढ़ियों द्वारा पोस्ट आफिस के डाक के माध्यम से रजिस्टर्ड पत्र से पर्याप्त होगा अब तो कोरियर सेवा को भी मान्यता दे दी गयी है।
उपस्थापन के प्रभाव एवं परिणाम- अ-उपस्थापन के प्रभावों एवं परिणामों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है:-
1. धारा 61 में उपबन्धित है कि प्रतिग्रहण के उपस्थापन में व्यतिक्रम होने पर उसका कोई भी पक्षकार ऐसा व्यतिक्रम करने वाले पक्षकार के प्रति उस पर दायी नहीं होगा अर्थात् ऐसे व्यक्ति के पूर्व के सभी व्यक्ति अपनी आबद्धता से उन्मोचित हो जायेंगे।
2. धारा 64 में उपबन्धित है कि एक लिखत जिसे संदाय के लिए उपस्थापित नहीं किया है, वहाँ ऐसे व्यतिक्रम करने वाले व्यक्ति के पूर्व के सभी पक्षकार अपनी आबद्धता से उन्मोचित हो जायेंगे।
3. धारा 77 में यह उपबन्धित है कि जब कि किसी विनिर्दिष्ट बैंक पर देय प्रतिग्रहीत विनिमय पत्र वहाँ संदाय के लिए सम्यक् रूप से उपस्थापित कर दिया गया है और अन्यदूत कर दिया है, तब यदि बैंककार ऐसे विनिमय पत्र को ऐसे उपेक्षापूर्ण या अनुचित तौर पर रखे, बरते या वापस परिदत्त करे कि धारक को उससे हानि पहुँचे तो वह धारक को ऐसी हानि के लिए प्रतिकर देगा।
4. यदि चेक को संदाय के लिए बैंक में उपस्थापित नहीं किया जाता है तो धारक धारा 138 के अधीन अपने अधिकार को खो देता है अर्थात् चेक के अनादर की दशा में लेखोवाल के विरुद्ध आपराधिक दायित्व के लिए भारित नहीं कर सकेगा।
अपवाद- एक वचन पत्र जो माँग पर देय है, परन्तु किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं है वहाँ रचयिता को भारित करने के लिए उपस्थापन आवश्यक नहीं है।
संदाय के उपस्थापन के नियम- हर लिखत में एक निश्चित धनराशि के संदाय की अपेक्षा होती और ऐसी धनराशि का संदाय तभी होता है जब उसे संदाय के लिए उपस्थापित किया सिवाय माँग पर देय वचन पत्र जिसे किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं बनाया गया है। अतः एक विधिमान्य उन्मुक्ति या संदाय के लिए लिखत का उपस्थापन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लिखत को संदाय के लिये सम्यक् रूपेण है
उपस्थापित किया जाना चाहिए अन्यथा ऐसे धारक के प्रति लिखत के पक्षकार आबद्धता से उन्मुक्त हो जाएंगे। संदाय के लिए नियमों का उपबन्ध अधिनियम की धारा 64 से 73 तक की गयी है।
आंग्ल विधि के विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 की धारा 45 में इस सम्बन्ध में नियम उपबन्धित है और इसी प्रकार के नियम भारतीय विधि में अधिनियम की धाराएं 64 से 73 तक दी गई हैं जो निम्नलिखित है :-
अंग्रेजी विधि को धारा 45 में यह कहा गया है कि विनिमय पत्र को संदाय के लिए सम्यक् रूप से उपस्थापित किया जाना चाहिए। यदि ऐसे उपस्थित नहीं किया जाता है, तो लेखीवाल और पृष्ठांकक उन्मोचित हो जाएगा।
विनिमय पत्र को भुगतान के लिए सम्यक रूप से उपस्थित किया जाता है जिसे निम्नलिखित नियमों के अनुसार उपस्थित किया जाता है:-
(1) जहाँ लिखत माँग पर देय नहीं है, यहाँ उपस्थापन इस दिन किया जाना चाहिए जब यह शोध्य होता है।
(2) जहाँ लिख माँग पर देय है, यहाँ इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन उपस्थापन लिखत के जारी करने के पश्चात् नियुक्त समय में एवं पृष्ठांकन के पश्चात् युक्तियुक्त समय में किया जाना चाहिए।
(3) उपस्थापन धारक या ऐसे व्यक्ति के द्वारा किया जाना चाहिए जो धारक की ओर से गंदाय पाने के लिए अधिकृत हो एवं ऐसे कारवार के दिन युक्तियुक्त समय पर एतदद्वारा परिभाषित समुचित स्थान पर उस व्यक्ति को जिसे भुगतान करने वाला या भुगतान करने के लिए अधिकृत व्यक्ति या जो संदाय मना करने वाले को यदि ऐसा व्यक्ति युक्तियुक्त खोज के पश्चात् यहाँ पाया जा सके, को किया जाना चाहिए।
(4) बिल (ख) को समुचित स्थान पर उपस्थापित किया जाये,
(i) यदि लिखत में संदाय का स्थान विहित है, उपस्थापन उसी स्थान पर किया जाना चाहिए।
(ii) जहाँ लिखत में संदाय स्थान विहित नहीं, परन्तु लिखत में ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता का पता दिया हुआ है, लिखत को उस पते पर उपस्थित किया जाना।
(iii) जहाँ न तो स्थान विहित है और न तो पता दिया हुआ है, यहाँ यदि ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता का कारोबार स्थल जात है, यहाँ उस स्थान पर, यदि नहीं तो सामान्य निवास स्थान पर यदि ज्ञात हो।
(iv) अन्य मामलों में ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता जहाँ भी पाया जाय या इसे उसके अन्तिम ज्ञात कारबार स्थल या निवास स्थान पर उपस्थापना किया जाय।
(5) जहाँ लिखत समुचित स्थान पर उपस्थापित की जाती है और युक्तियुक्त प्रयास के पश्चात् भी संदाय करने या इन्कार करने का प्राधिकृत व्यक्ति नहीं पाया जाता है, पुनः उपस्थापन अपेक्षित नहीं होता है।
(6) जहाँ लिखत दो या अधिक व्यक्तियों पर लिखा गया है या प्रतिग्रहीत किया गया है, जो भागीदार नहीं है एवं संदाय का कोई स्थान विहित नहीं है, यहाँ उपस्थापन उन सभी व्यक्तियों को किया जाना चाहिए।
(7) ऊपरवाल या प्रतिग्रहीता की मृत्यु की दशा में उसके वैयक्तिक प्रतिनिधि को उपस्थापित किया जाना चाहिए।
(8) अनुबन्ध या रुढ़ियों द्वारा प्राधिकृत होने पर पोस्ट ऑफिस द्वारा उपस्थापन पर्याप्त होगा।
उक्त उपबन्धों एवं सांविधिक प्रावधानों जो भारतीय विधि में उपबन्धित है, संदाय के लिए उपस्थापन के नियमों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
(क) उपस्थापन का स्थान
(i) धारा 68 में यह उपबन्धित है कि वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक एक विहित स्थान पर देय बनाए गए हैं, अन्यत्र नहीं, यहाँ उसमें किसी पक्षकार को भारित करने के लिए संदाय के लिए उपस्थापन उसी स्थान पर किया जाना चाहिए।
(ii) धारा 69 केवल वचन पत्र या विनिमय पत्र पर किसी विहित स्थान पर देय पर प्रयोज्य है, उपस्थापन उसी स्थान पर किया जाना चाहिए।
(iii) जो वचन पत्र या विनिमय पत्र धाराओं 68 एवं 69 में वर्णित तौर पर देय रचित नहीं है, उसे यथास्थिति, उसके रचयिता, लेखीवाल या प्रतिग्रहीता के कारबार स्थान में यदि कोई हो या प्राधिक निवास स्थान में संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा। धारा 71 के अधीन यदि लिखत के रचयिता लेखीवाल या प्रतिग्रहीता का कोई कारवार का ज्ञात स्थान या निवास स्थान नहीं है और लिखत में प्रतिग्रहणार्थ या संदायार्थ उपस्थापन के लिए कोई स्थान विनिर्दिष्ट नहीं है तो ऐसे उपस्थापन स्वयं उसको किसी ऐसे स्थान पर किया जा सकेगा, जहाँ कहीं यह पाया जा सके। एस० एस० वी० प्रसाद बनाम सुरेश कुमार के मामले में धारित किया गया है कि जहाँ लिखत किसी विनिर्दिष्ट स्थान पर देय है एवं अन्यत्र नहीं, इसे उसी स्थान पर उपस्थापित किया जाना चाहिए।
(ख) उपस्थापन के समय- धारा 65 में यह उपबंध किया गया है कि उपस्थापन कारवार के सामान्य समय के दौरान और यदि बैंककार का हो, बैंककारी समय के भीतर किया जाना चाहिए।
(ग) युक्तियुक्त समय में धारा 74 कहती है कि एक परक्राम्य लिखत जो माँग पर देय है आवश्यक रूप में धारक द्वारा इसे अभिप्राप्त करने के पश्चात् युक्तियुक्त समय में संदाय के लिए उपस्थापित किया जाएगा। धारा 105 के अनुसार युतियुक्त के अवधारण करने में लिखत को प्रकृति और वैसे ही लिखतों के बारे में व्यवहार की प्रायिक कार्यवाही को ध्यान में रखा जाएगा एवं ऐसे समय की संगणना में लोक अवकाशों को अपवर्जित कर दिया जायेगा।
मांग पर देय लिखत का उपस्थापन (धारा 74 ) धारा 74 यह उपवन्धित करती है कि परक्राम्य लिखत जो माँग पर देय बनाए गए हैं, संदाय के लिए धारक द्वारा इसकी प्राप्ति से युक्तियुक्त समय के अन्दर उपस्थापन किया जाएगा। इस प्रकार वचन पत्र विनिमय पत्र या चेक जो माँग पर देय है, संदाय के लिए, उपस्थापित किए जाएंगे।
लिखत जो तिथि के पश्चात् या दर्शनोपरान्त देय है (धारा 66) - जो वचन पत्र या विनिमय पत्र उसमें दो हुई तारीख के पश्चात् या उसके दर्शनोपरान्त एक विनिर्दिष्ट कालावधि पर देय रचा गया है, उसे परिपक्वता पर संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा।
अपवाद- धारा 64 का अपवाद यह कहता है कि जहाँ वचन पत्र माँग पर देय है और विनिर्दिष्ट स्थान पर देय नहीं है, यहाँ उसके रचयिता को भारित करने के लिए कोई उपस्थापन आवश्यक नहीं है।
धारा 64 का अपवाद लागू होने के लिए,
(i) वचन पत्र या विनिमय पत्र की माँग पर देय होना चाहिए एवं (ii) जो किसी विहित स्थान पर देय नहीं है।
एल० एन० गुप्ता बनाम तारामन्सा के मामले में यह धारित किया गया है कि एक वचन पत्र जो हस्ताक्षर के स्थान पर या भारत में किसी स्थान पर देय बनाया गया है, इसे किसी भी स्थान पर उपस्थापित या माँग किया जा सकता है।
किश्तों में देय वचन पत्र का संदाय के लिए उपस्थापन (धारा 67) धारा 67 उपबन्ध करती किश्तों में देय वचन पत्र हर एक किश्त के संदाय के लिए नियत तारीख के पश्चात् तीसरे दिन संदाय के लिए उपस्थापित करना होगा और ऐसे उपस्थापन पर असंदाय का यही प्रभाव होगा जो परिपक्वता पर वचनपत्र के असंदाय का होता है।
विलम्ब की माफी धारा 75क यह उपबन्धित करती है कि संदाय के उपस्थापन में विलम्ब यदि धारक के नियंत्रण के परे की परिस्थितियों से हुआ है और उसके व्यतिक्रम, अवचार या उपेक्षा के कारण होने का दोष नहीं लगाया जा सकता, तो वह माफी योग्य होगा।
(प) किसे उपस्थापन किया जाएगा धारा 75 में यह उपबन्धित है कि लिखत के प्रतिग्रहण या संदाय के लिए उपस्थापन किया जाएगा,
(1) लिखत के रचयिता, ऊपरवाल या प्रतिग्रहोता को की जाएगी।
(2) रचयिता या प्रतिग्रहीता के प्राधिकृत अभिकर्ता की।
(3) रचयिता या प्रतिग्रहीता के मृत्यु की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि।
(4) रचयिता या प्रतिग्रहीता के दिवालिया होने की दशा में उसके सरकारी समनुदेशितो, को को जाएगी। उपस्थापन का परित्याग [ धारा 76(ग) ] धारा 64 में यह अपेक्षित है कि परक्राम्य लिखत संदाय के लिए उपस्थापित किए जायेंगे एवं इसके व्यतिक्रम होने पर उसके अन्य पक्षकार ऐसे धारक के प्रति उस पर दायी न होंगे।