निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 भाग 19: अनादर के बाद प्राप्त की जाने वाली लिखत (धारा 59)
Shadab Salim
22 Sept 2021 6:10 PM IST
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881) के अंतर्गत धारा 59 अनादर के बाद प्राप्त की जाने वाली लिखित से संबंधित प्रावधानों को प्रस्तुत करती है। कभी-कभी लिखित अनादर के बाद प्राप्त होती है तथा इस प्रस्थिति से संबंधित नियमों की आवश्यकता इस अधिनियम में प्रतीत है।
इस उद्देश्य से ही इस अधिनियम के अंतर्गत धारा 59 में अनादर के पश्चात प्राप्त होने वाली लिखत से संबंधित प्रावधानों को उल्लेखित किया गया है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 58 की विवेचना प्रस्तुत की जा रही है।
अनादूत लिखत का परक्रामण:-
धारा 59 किसी लिखत को अनादर के पश्चात् या अतिशोध्य होने के बाद अभिप्राप्ति के प्रभाव को स्पष्ट करती है। यह सामान्य नियम है कि लिखत के एक सम्यक् अनुक्रम धारक का स्वत्व अन्तरक के स्वत्व में किसी दोष से प्रभावित नहीं होता है।
यह नियम यद्यपि निम्नलिखित दो शर्तों के अधीन है जहाँ धारक इसे-
(1) अनादर की सूचना के साथ अभिप्राप्त करता है।
(2) अतिशोध्य होने के पश्चात् अर्थात् परिपक्वता के बाद अभिप्राप्त करता है।
(1) अनादूत लिखत का परक्रामण- जहाँ कोई लिखत अप्रतिग्रहण या असंदाय द्वारा अनादृत हो गया है कोई भी व्यक्ति जो अनादर की सूचना के साथ इसे अभिप्राप्त करता है इसे वह उन दोषों के अधीन प्राप्त करता है जो अनादर के समय उससे सम्बद्ध थे। एक अनादृत लिखत का अन्तरिती, जो इसे इस अनादर की सूचना के साथ अभिप्राप्त करता है, इसका अन्तरक से बेहतर स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकता है।
ऐसा धारक धारा 9 के प्रभाव से एक सम्यक् अनुक्रम धारक भी नहीं होगा, क्योंकि इस धारा के प्रभाव से उसे लिखत को उसके शोध्य होने के पूर्व (परिपक्वता के पूर्व) और "यह विश्वास करने का कि जिस व्यक्ति से उसे अपना हक व्युत्पन्न हुआ है उस व्यक्ति के हक में कोई दोष है" अभिप्राप्त किया जाना चाहिए। अनादृत लिखत की दशा में, जब वह यह जानता है कि लिखत पर दिखाई देने वाले तथ्य, उसके अन्तरक के हक सम्बन्धी जाँच की अपेक्षा करता है, इसकी उपेक्षा से बेहतर हक अभिप्राप्त नहीं कर सकता है।
उदाहरण- एक विनिमय पत्र अ प्रतिग्रहण से अनादृत हो गया। इसे अ को पृष्ठांकित किया गया। अ इसे ब को पृष्ठांकित करता है। अ एवं ब के बीच विनिमय पत्र अ के उन्मोचन के अनुबन्ध के अधीन है। इसके पश्चात् लिखत स को पृष्ठांकित किया गया जो लिखत के अनादर की सूचना के साथ इसे प्राप्त करता है। स विनिमय पत्र को अ एवं ब के बीच सम्पन्न अनुबन्ध के अधीन प्राप्त करेगा।
(2) अतिशोध्य लिखत का परक्रामण-
धारा 58 पुनः अतिशोध्य लिखत को परक्रामण के प्रभाव को स्पष्ट करती है। एक वचन पत्र या विनिमय पत्र शोध्य तिथि की समाप्ति तक अतिशोध्य नहीं माना जाएगा और जहाँ अनुग्रह दिवस अनुज्ञात किया जाएगा वहाँ अनुग्रह दिवस का अन्तिम दिन लिखत अतिशोध्य हो जाता है। अतिशोध्य लिखत के अन्तरण को रोकने का कोई प्रावधान नहीं है। अतिशोध्य लिखत का अन्तरिती यद्यपि कि परक्राम्यता के लाभ को नहीं पाता है।
एक अतिशोध्य लिखत जब परक्रामित किया जाता है तो उसे इसके परिपक्वता पर हक सम्बन्धी दोष के अधीन ही परक्रामित किया जा सकेगा और कोई व्यक्ति जिसे यह अन्तरित किया है न तो बेहतर हक प्राप्त कर सकता है और न तो प्रदान कर सकता है।
एक व्यक्ति जो अतिशोध्य लिखत प्राप्त करता है एक सम्यक् अनुक्रम धारक नहीं हो सकता है, क्योंकि अधिनियम की धारा 9 यह अपेक्षा करती है कि सम्यक् अनुक्रम धारक होने के लिए एक धारक को लिखत में वर्णित रकम के देय होने के पूर्व उसे अभिप्राप्त किया जाना चाहिए।
यह तथ्य कि लिखत के चेहरे के स्पष्ट शब्दों में परिपक्वता समाप्त हो चुकी है और यह तथ्य यह सूचना धारक को देता है कि लिखत या तो संदत है या अनादृत है। एक अतिशोध्य विनिमय पत्र (लिखत) अपने शब्द के पूर्ण भाव में परक्रामणीय योग्य नहीं रह गया है।
एक व्यक्ति जो अतिशोध्य लिखत लेता है उसे इसे आँख बन्द करके नहीं लेना चाहिए और आशा करे कि उसे एक निर्दोष धारक माना जाय। यदि अन्तरित जो अपने को सन्तुष्ट किए बिना अतिशोध्य लिखत को लेता है, वह इसे अपने जोखिम पर लेता है और उसके अन्तरक से बेहतर हक उसे प्राप्त नहीं होता है।
अतः जहाँ परक्राम्य लिखत अनादूत हो गया है या अतिशोध्य हो गया है इसे साम्या जो लिखत में सम्बद्ध है, के अधीन ही अन्तरित किया जा सकता है। परन्तु साम्या, साम्या है जो अन्तरण के समय वर्तमान होता है न कि पश्चात्वर्ती या साम्पारिक उदाहरण- (1) अ, अवैध प्रतिफल से एक वचन पत्र ब के पक्ष में रचता है। इसे ब अतिशोध्य हो जाने पर स को अन्तरित करता है स नोट के लिए पूर्ण प्रतिफल देता है। स अ पर याद नहीं ला सकेगा, क्योंकि स को ब से बेहतर हक नहीं है।
(2) एक विनिमय पत्र जो लेखीवाल के आदेशानुसार देय है। इसे ब ने अवैध प्रतिफल से प्रतिग्रहीत किया लेखीवाल ने इसके परिपक्वता के पूर्व स को पृष्ठांकित करता है जो प्रतिफलार्थ एवं सद्भावना पूर्वक इसे प्राप्त करता है। स ने विनिमय पत्र को द को अन्तरित किया जब वह अतिशोध्य हो गया था द को अच्छा हक प्राप्त होगा और यह विनिमय पत्र के सभी पक्षों पर संदाय के लिए वाद ला सकेगा। द को बेहतर हक है और यह सम्यक् अनुक्रम धारक है।
(3) एक विनिमय पत्र लेखीवाल से विशेष प्रयोजन के लिए प्राप्त किया। अ उस प्रयोजन के कपट में विनिमय पत्र व को अन्तरित करता है जब वह अतिशोध्य हो गया था ब शोध्य रकम प्रतिग्रहीता से नहीं प्राप्त कर सकता है।
(4) ख तीन वचन पत्र रचता है जो ग या आदेशों को देय है और तत्पश्चात् दो और वचन पत्र प्रथम तीन के प्रत्याभूति और भविष्य के उधारों को आच्छादित करने के लिए देता है। सभी वचन पत्र मांग पर देय हैं और इस समझ से दिए गए हैं कि उन्हें परक्रामित किया जाएगा। ग ने सभी वचन पत्रों को घ को पृष्ठांकित कर दिया। स ने जब वचन पत्रों को पृष्ठांकित किया उसके पश्चात् ख ने अन्तिम दो वचन पत्रों का संदाय कर किया बिना इस सूचना के कि पाने वाले ने वचन पत्र को अन्तरित कर दिया है और उससे उन दो वचन पत्रों को वापस नहीं लिया।
इसके पश्चात् ग ने पाँचों वचन पत्रों को कपट से घ से प्राप्त कर लिया और उन्हें ख रचयिता को वापस कर दिया। धारित किया गया कि घ इन पाँचों वचन पत्रों के सम्बन्ध में धनराशि ख से प्राप्त कर सकेगा, क्योंकि ख प्रतिफल धारक नहीं बना था क्योंकि पूर्व के वचन पत्रों की सन्तुष्टि उसके द्वारा दिया गया प्रतिफल नहीं था, जब उसने वचन पत्रों को वापस प्राप्त किया था, और ये उस समय अतिशोध्य थे, उसने वचन पत्रों को जब पाने वाला से प्राप्त किया था जब उसके हाथ में थे।
सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र-
सौकर्य विनिमय पत्र एवं वचन पत्र को परक्राम्य लिखत अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है, परन्तु इसे धारा 59 में प्रयुक्त किया गया है। व्यापारिक समुदाय इसे प्रायः अपने व्यवहारों में प्रयोग करता है और इसे सामान्यतया साख के माध्यम के रूप में प्रयुक्त करता है। इसके द्वारा जरूरतमन्द व्यक्तियों को वित्तीय सहयोग एवं सहायता प्रदान की जाती है।
इंग्लिश विधि के अन्तर्गत आंग्ल विनिमय पत्र अधिनियम, 1882 में सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित विशिष्ट उपबन्ध किया गया है :-
(1) विनिमय पत्र का सौकर्य पक्ष ऐसा व्यक्ति होता है जिसने विनिमय पत्र पर यथा लेखीवाल, प्रतिग्रहोता या पृष्ठांकक के रूप में बिना उसके प्रतिफल लिए हस्ताक्षर करता है और अपना नाम दूसरे को कर्जा देने के प्रयोजन से देता है।
(2) सौकर्य पक्ष प्रतिफलार्थ विनिमय पत्र के धारक के प्रति आबद्ध है, और यह सारहीन होता है कि जब धारक ने इसे प्राप्त किया था तो ऐसे पक्षकार को सौकर्य पक्ष के रूप में जानता था या नहीं। आंग्ल विधि की यह धारा दो बातों को स्पष्ट करती है, अर्थात्
(i) सौकर्य पक्ष एवं सौकर्य प्राप्त पक्ष- सौकर्म विनिमय पत्र या वचन पत्र में एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को सौकर्य प्रदान करती है जिससे सौकर्य प्राप्त पक्षकार वित्तीय सहयोग प्राप्त कर सके। जब एक व्यक्ति बिना प्रतिफल के किसी वचन पत्र या विनिमय पत्र पर लेखोवाल, प्रतिग्रहीता या पृष्ठांकक के रूप में हस्ताक्षर करता है, वह सौकर्य पक्ष होता है।
(ii) सौकर्य पक्षकार ऐसे वचन पत्र या विनिमय पत्र में प्रतिफलार्थ धारक के प्रति संदाय करने के लिए आबद्ध होता है अर्थात् सम्यक् अनुक्रम धारक के प्रति चाहे उसे ऐसे सौकर्य की जानकारी है या नहीं।
भारतीय विधि – परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की सौकर्य विनिमय पत्र या वचन पत्र को निम्नलिखित धाराओं में प्रयुक्त किया गया है:-
(i) धारा 43 का अपवाद 1.
(ii) धारा 44 का दृष्टान्त एवं
(iii) धारा 59
(i) बिना प्रतिफल के लिखत [ धारा 43] - एक सौकर्य लिखत से अभिप्रेत ऐसे लिखत से है जिसे दूसरे पक्ष को आर्थिक सहयोग प्रदान करने के लिए बिना प्रतिफल के रचा, प्रतिग्रहीत या पृष्ठांकित किया गया है। उदाहरणार्थ :-
(क) अ को धन की आवश्यकता है। वह एक विनिमय पत्र 'ब' के नाम लिखता है और ब उसे अ को सहायता देने के प्रयोजन से प्रतिग्रहीत कर लेता है। अ इस विनिमय पत्र को बट्टे पर दे सकता है और धन प्राप्त कर सकता है और कठिनाई से निपट सकता है। यह विनिमय पत्र बिना प्रतिफल के अ के सौकर्य (सहायता) के लिए लिखा गया है।
धारा 43 इस प्रकार यह प्रावधानित करती है कि यदि पक्षकारों में कोई प्रतिफल नहीं है या प्रतिफल असफल हो गया है वहाँ कोई आवद्धता पक्षकारों के बीच उत्पन्न नहीं होगा, परन्तु जहाँ ऐसी लिखत किसी प्रतिफलार्थ धारक को अन्तरित की जाती है, वहाँ वह या उससे कोई अन्तरितो सभी पूर्विक पक्षकारों से लिखत की धनराशि वसूल कर सकेगा।
परन्तु अन्तिम रूप से आबद्धता उस पक्षकार की होगी जिसके लिए ऐसा सौकर्य के लिए लिखत रचा या पृष्ठांकित किया गया है। वह उस पक्षकार को भुगतान करेगा जिसने उसे ऐसी सहायता किया है, परन्तु वह किसी अन्य पक्षकार से वसूली नहीं कर सकेगा।
(ख) ब को धन की आवश्यकता है। वह अ से सहायता के लिए कहता है तद्नुसार एक वचन पत्र 10,000 रु० के लिए ब के पक्ष में बिना प्रतिफल के रचता है व धारक के रूप में वचन पत्र को बड़े पर भुना लेता है या स को प्रतिफलार्थ पृष्ठांकित कर देता है। यद्यपि कि वचन पत्र बिना प्रतिफल के रचा गया था परन्तु यह धारा 43 एवं धारा 59 से आच्छादित होगा।
सौकर्य वचन पत्र या विनिमय पत्र इस सामान्य सिद्धान्त के अपवाद है कि उस व्यक्ति का हक जो लिखत की परिपक्वता के पश्चात् प्राप्त करता है, उन सभी बचावों के अधीन होगा जो अन्तरक के विरुद्ध प्रयोज्य होगा। जहाँ एक सौकर्य पत्र परिपक्वता के पश्चात् परक्रामित की जाती है, उपबन्ध यह कहता है कि एक सम्यक अनुक्रम धारक उस पर भुगतान प्राप्त कर सकेगा।
एक सौकर्य विनिमय पत्र का परिपक्वता के पश्चात् धारक उसी स्थिति में होगा जैसा कि परिपक्वता के पूर्व धारक होता है, बशर्ते कि उसने लिखत को मूल्य के साथ एवं सद्भावना पूर्वक प्राप्त किया है।
उदाहरण- एक विनिमय पत्र तिथि से 3 माह के बाद देय है, सौकर्य लेखीवाल के सौकर्य के लिए प्रतिग्रहीत की जाती है। परिपक्वता के पश्चात् इसे अ को मूल्य के साथ पृष्ठांकित की जाती है। अ प्रतिग्रहीता धन की वसूली कर सकेगा।