आपराधिक मामलों में अदालतों का साक्ष्य अभिलिखित किए जाने का तरीका

Shadab Salim

6 Oct 2022 10:36 AM IST

  • आपराधिक मामलों में अदालतों का साक्ष्य अभिलिखित किए जाने का तरीका

    कानून को दो प्रकार की विधियों में बांटा गया है आपराधिक और सिविल। अदालतें अपने निर्णय साक्ष्य के आधार पर देती है। आपराधिक मामलों में मौखिक साक्ष्य का अधिक महत्व होता है। अभियोजन अपने साक्षी प्रस्तुत करता है और बचाव पक्ष ऐसे साक्षियों का प्रतिपरीक्षण करता है।

    दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 272 से 283 तक में साक्ष्य लेने और अभिलिखित किये जाने के ढंग के बारे में प्रावधान किया गया है, यह आपराधिक मामलों के लिए है क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता आपराधिक विधि की प्रक्रिया विधि है। इस आलेख के अंतर्गत साक्ष्य अभिलिखित किए जाने संबंधी प्रावधानों पर चर्चा की जा रही है।

    संहिता में प्रावधानों को इस प्रकार उल्लेखित किया गया है

    1. साक्ष्य का न्यायालय की भाषा में लिया जाना

    धारा 272 के अनुसार साक्ष्य न्यायालय की भाषा में लिया जायेगा। उच्च न्यायालय से भिन्न न्यायालयों की भाषा वह होगी जो राज्य सरकार द्वारा अवधारित की जाए।

    2. साक्ष्य का अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना

    धारा 273 के अनुसार विचारण एवं अन्य कार्यवाहियों में लिया गया सब साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में या जब उसे वैयक्तिक हाजिरी से अधिमुक्त कर दिया गया है तब उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जायेगा।

    इस प्रावधान से स्पष्ट है कि साक्ष्य-

    (i) अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये, तथा

    (ii) अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे दिये जाने पर साक्ष्य उसके प्लीडर की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये।

    अभियुक्त या उसके प्लीडर की अनुपस्थिति में साक्ष्य लिया जाना वर्जित है। 'स्टेट ऑफ महाराष्ट्र बनाम डॉ. प्रफुल्ल वी देसाई के मामले में भी उच्चतम न्यायालय द्वारा यही कहा गया है कि संहिता की धारा 273 के अनुसार साक्ष्य अभियुक्त की उपस्थिति में लिया जाना चाहिये।

    3. समन मामलों में अभिलेख

    संहिता की धारा 274 के अनुसार समन मामलों एवं जाँचों में मजिस्ट्रेट द्वारा साक्ष्य के सारांश का ज्ञापन न्यायालय की भाषा में तैयार किया जायेगा।

    ऐसा ज्ञापन स्वयं मजिस्ट्रेट द्वारा अपने हाथों से तैयार किया जायेगा और यदि वह ऐसा कर सकने में असमर्थ है तो उसके द्वारा असमर्थता के कारण लेखबद्ध किये जायेंगे

    राम शंकर बनाम स्टेट ऑफ बिहार (1975 क्रि लॉ ज 1402), एवं केवल कृष्ण बनाम स्टेट (55 क्रि लॉ ज 1998) के मामले में कहा गया है कि ऐसा ज्ञापन मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जायेगा एवं वह अभिलेख का एक भाग होगा।

    4. वारन्ट मामलों में अभिलेख

    धारा 275 के अनुसार मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय वारन्ट मामलों में

    (क) सब साक्ष्य स्वयं मजिस्ट्रेट द्वारा अभिलिखित किया जायेगा, या खुले न्यायालय में बोलकर लिखवाया जायेगा,

    (ख) यदि मजिस्ट्रेट शारीरिक या किसी अन्य असमर्थता के कारण स्वयं ऐसा करने के लिए असमर्थ है तो वह ऐसा साक्ष्य अपने निर्देशन एवं आधीक्षण में न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा अभिलिखित करायेगा,

    (ग) मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी असमर्थता के कारणों का प्रमाणपत्र अभिलिखित किया जायेगा,

    (घ) सामान्यतः ऐसा साक्ष्य वृतान्त के रूप में अभिलिखित किया जायेगा।

    (ङ) मजिस्ट्रेट चाहे तो अपने विवेकानुसार ऐसे साक्ष्य को प्रश्नोत्तर रूप में अभिलिखित कर सकेगा,

    (च) ऐसा साक्ष्य मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित होगा, तथा

    (छ) वह अभिलेख का एक भाग समझा जायेगा।

    5. सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण में अभिलेख

    संहिता की धारा 276 के अनुसार सेशन न्यायालय के समक्ष सब विचारणों में प्रत्येक साक्षी का साक्ष्य, जैसे-जैसे उसकी परीक्षा होती जाती है, वैसे-वैसे (i) या तो स्वयं पीठासीन न्यायाधीश द्वारा लिखा जायेगा या (ii) खुले न्यायालय में उसके द्वारा बोलकर लिखवाया जायेगा; या (iii) उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त न्यायालय के किसी अभिकर्ता द्वारा उसके निदेशन और अधीक्षण में लिखा जायेगा।

    ऐसा साक्ष्य मामूली तौर पर 'वृतान्त' के रूप में या फिर 'प्रश्नोत्तर' के रूप में लिखा जायेगा। ऐसे लिखे गये साक्ष्य पर पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे तथा वह अभिलेख का एक भाग होगा।

    सेशन न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह अभियोजन पक्ष के सभी साक्षियों के कथन लेखबद्ध करें तथा उसकी साक्ष्य बन्द करने से पूर्व उससे पूछ लिया जाना चाहिए। यदि अभियोजन पक्ष की साक्ष्य अनुचित रूप से बंद कर दी जाती है तो अभियोजन पक्ष अपने साक्षियों को संहिता की धारा 311 के अन्तर्गत बुला सकेगा।

    6. साक्ष्य के अभिलेख की भाषा

    धारा 277 के अनुसार यदि साक्षी न्यायालय की भाषा में साक्ष्य देता है तो उसे उसी भाषा में लिखा जायेगा। यदि साक्षी अन्य भाषा में साक्ष्य देता है तो यथासम्भव उसे उसी भाषा में लेखबद्ध किया जाएगा और यदि ऐसा किया जाना सम्भव नहीं हो तो उसका न्यायालय को भाषा में सही अनुवाद किय जायेगा। उस पर पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षर किये जायेंगे तथा वह अभिलेख का एक भाग होगा।

    यदि साक्ष्य अंग्रेजी में लिखा जाता है और किसी भी पक्षकार द्वारा उसके न्यायालय को भाषा अनुवाद की अपेक्षा नहीं की जाती है तो ऐसे अनुवाद से अभिमुक्ति दी जा सकेगी।

    7. साक्ष्य का पढ़कर सुनाया जाना -

    धारा 278 के अनुसार जब साक्षी का साक्ष्य पूरा हो जाता है तो उसे अभियुक्त हाजिर हो तो उसकी उपस्थिति में और यदि हाजिर नहीं न हो तो उसके प्लीडर की उपस्थिति में साक्षी को पढ़कर सुनाया जायेगा और आवश्यक होने पर उसे शुद्ध किया जायेगा।

    यदि साक्षी का साक्ष्य उस भाषा से भिन्न भाषा में है जिसमें वह दिया गया है और साक्षी उस को नहीं समझता है तो उसे ऐसे अभिलेख का भाषान्तर उस भाषा में जिसमें वह दिया गया था उस भाषा में जिसमें वह समझता हो, सुनाया जायेगा।

    जब कभी कोई साक्ष्य ऐसी भाषा में दिया जाये जिसे अभियुक्त नहीं समझता है और वह न्यायालय में स्वयं उपस्थित है तब खुले न्यायालय में उसे उसका भाषान्तर सुनाया जायेगा जिसे वह समझता है।

    यदि वह प्लीडर द्वारा हाजिर हो और साक्ष्य न्यायालय की भाषा से भिन्न और प्लीडर द्वारा न समझी जाने वाली भाषा में दिया जाता है तो उसका भाषान्तर ऐसे प्लीडर को न्यायालय की भाषा में सुनाया जायेगा। यह प्रावधान संहिता की धारा 279 में दिए गए हैं।

    8. भावभंगी के बारे में टिप्पणी

    संहिता की धारा 280 के अनुसार साक्षी अपनी परीक्षा के समय यदि कोई भाव-भंगिया (हाव-भाव ) प्रदर्शित करता है तो पीठासीन न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट द्वारा, यदि वह तात्विक समझे तो ऐसी भाव-भंगिमा के बारे में अपनी टिप्पणी अभिलिखित की जा सकेगी।

    ऐसी भाव-भंगिमा के बारे में टिप्पणी 'निर्णय' में भी की जा सकेगी और वह 'सरल भाषा' में होगी है।

    अभियुक्त की परीक्षा का अभिलेख

    धारा 281 में कहा गया है कि जब किसी महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त की परीक्षा की जाये तो वह मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्त की परीक्षा के सारांश का ज्ञापन तैयार करेगा।

    ऐसा ज्ञापन

    (i) न्यायालय की भाषा या अंग्रेजी भाषा में होगा; तथा

    (ii) मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित होगा।

    जब महानगर मजिस्ट्रेट से भिन्न किसी मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय द्वारा अभियुक्त की परीक्षा की जाये तब

    (i) स्वयं मजिस्ट्रेट या पीठासीन अधिकारी द्वारा; या

    (ii) यदि वह शारीरिक या अन्य किसी असमर्थता के कारण ऐसा करने में असमर्थ है तो;

    इस निमित्त नियुक्त न्यायालय के किसी अधिकारी द्वारा अभियुक्त से पूछे गये प्रश्न एवं उसके द्वारा दिये गये उत्तर सहित सब परीक्षा अभिलिखित की जायेगी। ऐसा अभिलेख यथासम्भव उस भाषा में जिसमें अभियुक्त की परीक्षा की जाये या यदि ऐसा सम्भव नहीं है तो वह न्यायालय की भाषा में होगा।

    ऐसा अभिलेख

    (i) अभियुक्त को दिखा दिया जायेगा, या

    (ii) पढ़कर सुना दिया जायेगा,

    (ii) यदि वह लिखी गई भाषा को नहीं समझता है तो उसे उसका उस भाषा में अनुवाद कर सुनाया जायेगा जिसे वह समझता है,

    (iv) मजिस्ट्रेट या पीठासीन न्यायाधीश द्वारा हस्ताक्षरित किया जायेगा, एवं

    (v) प्रमाणित किया जायेगा कि अभियुक्त की परीक्षा उसकी उपस्थिति एवं श्रवणगोचरता में की गई तथा अभियुक्त द्वारा किये गये कथनों का पूर्ण एवं सही वर्णन उस अभिलेख में है।

    9. दुभाषिया सही भाषान्तर करने के लिए आबद्ध होगा अर्थात् जब अनुवाद करने के लिए दुभाषिये को नियुक्ति की जाती है तो वह ठीक भाषान्तर करने के लिए आबद्ध होगा। यह प्रावधान धारा 282 में दिए गए हैं।

    10. उच्च न्यायालय में अभिलेख

    प्रत्येक उच्च न्यायालय साधारण नियम द्वारा ऐसी रीति विहित कर सकेगा जिसमें उन मामलों में साक्षियों को और अभियुक्त की परीक्षा को लिखा जायेगा जो उसके समक्ष आते हैं और ऐसे साक्ष्य एवं परीक्षा को ऐसे नियम के अनुसार लिखा जायेगा। यह प्रावधान धारा 283 के अंतर्गत किए गए हैं।

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