Arbitration का अर्थ और Mediation के साथ इसका अंतर

Himanshu Mishra

16 Jan 2024 10:59 AM GMT

  • Arbitration का अर्थ और Mediation के साथ इसका अंतर

    आर्बिट्रेशन, जिसे माध्यस्थम (Arbitration) भी कहा जाता है, एक सिद्धांत है, जिसके तहत विवाद को अदालत के चक्कर काटे बिना सुलझाया जा सकता है। भारत में 'ऑल्टरनेटिव डिस्प्यूट रिड्रेसल' (ADR) का एक प्रकार 'आर्बिट्रेशन' या 'माध्यम' है। आर्बिट्रेशन में विवाद में फंसे दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से एक मध्यस्थ (आर्बिट्रेटर) चुना है. जो उस विवाद को सुलझाता है।

    मध्यस्थता अदालत के बाहर वाणिज्यिक विवादों (commercial disputes) को हल करने की एक विधि है ताकि उन पर मामले का बोझ कम किया जा सके। किसी विवाद को किसी तीसरे व्यक्ति के पास लाकर अदालत से बाहर निपटाने के बारे में प्राचीन और मध्ययुगीन भारत के काल से ही बहुत आम तौर पर जाना जाता है। तो, मध्यस्थता की अवधारणा एक पुरानी घटना है। मध्यस्थता के आधुनिक कानून का मसौदा ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तैयार किया गया था जिसे नियामक ढांचे में विकसित किया गया था जिसके माध्यम से अदालतें मध्यस्थता प्रक्रिया के लिए मुकदमों को संदर्भित करती हैं।

    आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत में पंचायतों से आर्बिट्रेशन शुरू हुआ था, जो भी एक तरह का आर्बिट्रेशन है। भारत में आर्बिट्रेशन को लेकर ब्रिटिश काल से कानून बनाए गए हैं, जैसे Code of Civil Procedure Act 1859, Indian Arbitration Act 1899, Arbitration (Protocol and Convention) Act 1937 और Arbitration Act of 1940।

    अब भारत में आर्बिट्रेशन 'माध्यस्थम और सुलह अधिनियम, 1996' (The Arbitration and Conciliation Act, 1996) के तहत होते हैं। यह कानून 25 जनवरी, 1996 को पहली बार लागू हुआ था और इसके तहत आंतरिक और अंतर्राष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशन के फैसले लिए जाते हैं।

    ध्यान दें कि भारत में आर्बिट्रेशन अक्सर बिजनेस डिस्प्यूट (commercial disputes) या अनुबंध के तहत होने वाले विवादों को हल करने के लिए प्रयोग किया जाता है। आर्बिट्रेशन एक बहुत व्यापक प्रक्रिया है, जिसमें सबसे पहले किसी भी समझौते में एक "आर्बिट्रेशन क्लॉज" होता है, जो बताता है कि यदि पार्टियों के बीच कोई विवाद होता है तो उसे सुलझाने के लिए आर्बिट्रेशन का उपयोग किया जाएगा।

    जब विवाद होता है, वह पक्ष जो आर्बिट्रेशन करवाने का निर्णय लेता है, दूसरी पार्टी को एक "आर्बिट्रेशन नोटिस" भेजता है. इसके बाद, दोनों पार्टीों ने आपसी सहमति से एक आर्बिट्रेटर चुना जाता है। इसके बाद, दोनों पक्षों के बीच हुए विवाद का विवरण सहित एक "स्टेटमेंट ऑफ क्लेम" बनाया जाता है।

    दोनों पक्षों की हियरिंग के बाद 'अवॉर्ड' फैसला सुनाया जाता है. इस अवॉर्ड को दोनों पार्टियों को मानना ही होता है।

    Arbitration और Mediation के बीच क्या है अंतर

    "वैकल्पिक विवाद समाधान" में, मध्यस्थता या मीडिएशन भी एक विकल्प है जिसके माध्यम से विवादों को सुलझाया जाता है। ये एक स्वैच्छिक, बाध्यकारी प्रक्रिया है जिसमें एक निष्पक्ष और तटस्थ मध्यस्थ विवादित पक्षों को समझौता करने में मदद करता है।

    मध्यस्थ समाधान नहीं लाता, बल्कि वातावरण बनाता है जिसमें दोनों पक्षों को उनके सभी मतभेदों को सुलझाने का अवसर मिलता है।

    उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 Consumer Protection Act, 2019), कंपनी मध्यस्थता नियम, 2016 (Companies Mediation Rules, 2016), और वाणिज्यिक न्यायालय (संस्था-पूर्व मध्यस्थता और निपटान) नियम, 2018 (The Commercial Courts (Pre-Institution Mediation and Settlement) Rules, 2018) में विवादों को हल करने के लिए मध्यस्थता एक विकल्प है।

    "मीडिएशन" आर्थिक रूप से "आर्बिट्रेशन" से कम खर्च है, और पूरा प्रक्रिया काफी अनौपचारिक है, जिसमें दोनों पक्ष मध्यस्थ की उपस्थिति में आपस में बातचीत कर सकते हैं। लचीली प्रक्रिया और फैसले भी इसे लोकप्रिय बनाते हैं।

    "माध्यस्थम" प्रक्रिया अधिक खर्चीली होती है क्योंकि यह औपचारिक रूप से संपन्न होती है और प्रोसीडिंग कानूनों के अधीन होती है, इसलिए यह लचीला नहीं होता है. इस प्रक्रिया के माध्यम से जिस फैसले पर पहुंचते हैं, वह उसी तरह बाध्य होता है जैसे किसी अदालत का फैसला, और इसमें पक्षकारों को कोई बातचीत नहीं होती।

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