विवाह पंजीकरण क्यों ज़रूरी है और कैसे कराएं?

Praveen Mishra

26 Aug 2025 3:23 PM IST

  • विवाह पंजीकरण क्यों ज़रूरी है और कैसे कराएं?

    भारत में शादी केवल सामाजिक या धार्मिक समारोह तक सीमित नहीं है। कानूनी मान्यता पाने के लिए उसका पंजीकरण कराना बहुत महत्वपूर्ण है। विवाह पंजीकरण न केवल पति-पत्नी को कानूनी सुरक्षा देता है बल्कि कई सरकारी योजनाओं और अधिकारों के लिए भी आवश्यक है। आइए समझते हैं कि यह क्यों ज़रूरी है और इसकी प्रक्रिया क्या है।


    विवाह पंजीकरण क्यों ज़रूरी है?

    1. कानूनी प्रमाण:

    शादी का रजिस्ट्रेशन पति-पत्नी के रिश्ते का आधिकारिक प्रमाण होता है। यह किसी भी कानूनी विवाद, तलाक, या संपत्ति के अधिकार के मामलों में काम आता है।

    2. महिला के अधिकारों की सुरक्षा:

    शादी रजिस्टर्ड होने पर पत्नी गुज़ारा भत्ता, पति की संपत्ति में हिस्सा, और घरेलू हिंसा से सुरक्षा जैसे अधिकारों के लिए आसानी से दावा कर सकती है।

    3. पासपोर्ट और वीज़ा के लिए ज़रूरी:

    विदेश यात्रा, वीज़ा आवेदन और पासपोर्ट में पति-पत्नी के नाम दर्ज कराने के लिए मैरिज सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है।

    4. सरकारी योजनाओं का लाभ:

    कई सरकारी योजनाओं जैसे पेंशन, बीमा, उत्तराधिकार आदि के लिए शादी का पंजीकरण प्रमाण के रूप में मांगा जाता है।

    5. धोखाधड़ी और बहुविवाह से सुरक्षा:

    पंजीकरण से यह सुनिश्चित होता है कि एक ही व्यक्ति दूसरी शादी बिना पहली शादी खत्म किए नहीं कर सकता।


    विवाह पंजीकरण कैसे कराएं?

    भारत में विवाह पंजीकरण मुख्यतः दो कानूनों के तहत होता है:

    1. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध समुदाय के लिए)

    2. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (अन्य धर्मों या अंतरधार्मिक विवाह के लिए)


    प्रक्रिया:

    1. अर्ज़ी तैयार करें (Application):

    (i) पति और पत्नी, दोनों को विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन करना होता है।

    (ii) आवेदन राज्य सरकार की वेबसाइट या उप-रजिस्ट्रार/नगर निगम कार्यालय में जमा किया जा सकता है।


    2. आवश्यक दस्तावेज़:

    (i) विवाह का प्रमाण (शादी के कार्ड, शादी की फोटो)

    (ii) पति-पत्नी की उम्र का प्रमाण (जन्म प्रमाणपत्र, स्कूल सर्टिफिकेट)

    (iii) पता प्रमाण (आधार कार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट)

    (iv) दो गवाह (जिन्होंने शादी देखी हो) के पहचान पत्र


    3. फीस का भुगतान:

    राज्य के अनुसार नाममात्र की फीस जमा करनी होती है।

    4. रजिस्ट्रार के सामने पेशी:

    (i) तय तारीख को पति-पत्नी और गवाह रजिस्ट्रार के सामने पेश होते हैं।

    (ii) दस्तावेज़ों की जांच के बाद विवाह प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है।


    समय सीमा:

    • हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, शादी के कुछ समय बाद भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है।

    • विशेष विवाह अधिनियम के तहत, रजिस्ट्रेशन से पहले 30 दिन का नोटिस पीरियड होता है।

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