किसी समुदाय के पिछड़ेपन का निर्णय करने पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक संवैधानिक मामले
Himanshu Mishra
16 Nov 2024 7:48 PM IST
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने राम सिंह और अन्य बनाम भारत संघ (2014) मामले में संविधान से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार किया। यह मामला कुछ समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC - Other Backward Classes) की केंद्रीय सूची में शामिल करने से जुड़ा था।
इस ऐतिहासिक फैसले में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन की पहचान के मानदंडों, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC - National Commission for Backward Classes) की भूमिका, और समानता और सामाजिक न्याय के संवैधानिक दायित्वों को सुनिश्चित करने में सरकार की जिम्मेदारी पर विचार किया गया।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की भूमिका
NCBC एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है जो पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए विशिष्ट मानदंडों (Criteria) के आधार पर सरकार को सलाह देता है। इसकी सिफारिशें (Recommendations) आमतौर पर केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी (Ordinarily Binding) होती हैं।
अदालत ने दोहराया कि NCBC की सलाह से भटकने के लिए सरकार को ठोस और लिखित कारण (Compelling and Recorded Reasons) प्रस्तुत करने चाहिए। इस सिद्धांत को इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (1992) जैसे पिछले फैसलों में भी जोर दिया गया था।
फैसले में NCBC की सलाह को खारिज करने के लिए सरकार की आलोचना की गई क्योंकि इसके लिए पर्याप्त सबूत या कारण प्रस्तुत नहीं किए गए। विशेष रूप से, 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले अधिसूचना जारी करने के समय को राजनीतिक रूप से प्रेरित कदम बताया गया।
उद्धृत न्यायिक मिसालें
इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (Indra Sawhney v. Union of India, 1992)
यह फैसला भारत की आरक्षण नीति (Reservation Policy) के लिए एक आधारशिला है। सुप्रीम कोर्ट की नौ-जजों की पीठ ने "क्रीमी लेयर" (Creamy Layer) की अवधारणा पेश की और सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन (Social and Educational Backwardness) की पहचान के लिए प्रमाण आधारित (Evidence-Based) दृष्टिकोण पर जोर दिया।
अदालत ने सुझाव दिया कि एक स्थायी निकाय (Permanent Body) का गठन किया जाए, जो पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल या बाहर करने से संबंधित शिकायतों का निपटारा करे। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC - National Commission for Backward Classes) का गठन हुआ।
जस्टिस जीवन रेड्डी ने इंद्रा साहनी में अपने विचार में कहा कि इस स्थायी निकाय की सिफारिशें (Recommendations) सरकार के लिए बाध्यकारी (Binding) होंगी।
सरकार केवल मजबूर और लिखित कारणों (Compelling and Recorded Reasons) के आधार पर ही इन सिफारिशों को अस्वीकार कर सकती है। राम सिंह के फैसले में इसी सिद्धांत का पालन करते हुए अदालत ने सरकार द्वारा NCBC की सलाह को खारिज करने के आधारों की जांच की।
एम. नागराज बनाम भारत सरकार (M. Nagaraj v. Union of India, 2006)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण (Reservation) के लिए "मात्रात्मक डेटा" (Quantifiable Data) की आवश्यकता पर जोर दिया। अदालत ने "पिछड़ापन" (Backwardness), "अपर्याप्त प्रतिनिधित्व" (Inadequate Representation), और "कुल दक्षता" (Overall Efficiency) के सिद्धांतों को स्थापित किया।
राम सिंह के फैसले में एम. नागराज को उद्धृत करते हुए बताया गया कि आरक्षण के दावों का आकलन करते समय प्रमाण आधारित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। अदालत ने पाया कि OBC सूची में समुदाय को शामिल करने के लिए ठोस डेटा का अभाव था।
बेरियम केमिकल्स लिमिटेड बनाम कंपनी लॉ बोर्ड (Barium Chemicals Ltd. v. Company Law Board, 1966)
इस फैसले में प्रशासनिक निर्णयों (Administrative Decisions) पर न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) के दायरे को परिभाषित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशासनिक संतोष (Administrative Satisfaction) मनमाना नहीं हो सकता और यह न्यायिक जांच (Judicial Scrutiny) के तहत आ सकता है।
राम सिंह के मामले में इस मिसाल का उपयोग यह जांचने के लिए किया गया कि सरकार ने NCBC की सिफारिशों को क्यों खारिज किया। अदालत ने निर्णय लेने की प्रक्रिया और उसके समय पर सवाल उठाए, यह दर्शाते हुए कि ऐसे कार्य राजनीतिक इरादों से प्रेरित नहीं होने चाहिए।
रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम एस.डी. अग्रवाल (Rohtas Industries Ltd. v. S.D. Agarwal, 1969)
यह फैसला प्रशासनिक निर्णयों की न्यायिक समीक्षा पर केंद्रित है। अदालत ने दोहराया कि कार्यपालिका (Executive) के कार्यों की समीक्षा उन मामलों में हो सकती है, जहां दुर्भावनापूर्ण इरादे (Mala Fide Intent), अपर्याप्त साक्ष्य (Lack of Evidence), या अनौचित्य (Unreasonableness) का आरोप हो।
राम सिंह के फैसले में रोहतास इंडस्ट्रीज के सिद्धांतों को लागू करते हुए सरकार द्वारा समुदाय को OBC सूची में शामिल करने के निर्णय की जांच की गई। अदालत ने विशेष रूप से राजनीतिक लाभ (Political Motivations) के आधार पर इस निर्णय पर सवाल उठाया।
सीताराम शुगर कंपनी लिमिटेड बनाम भारत सरकार (Shri Sitaram Sugar Co. Ltd. v. Union of India, 1990)
इस मामले में अदालत ने कहा कि प्रशासनिक निर्णय विशेषज्ञ सलाह (Expert Advice) पर आधारित होने चाहिए और इसे केवल मजबूत औचित्य (Strong Justifications) के साथ ही अनदेखा किया जा सकता है।
राम सिंह के फैसले में इस मिसाल का हवाला देते हुए अदालत ने जोर दिया कि NCBC की सिफारिशें विशेषज्ञ सलाह का प्रतिनिधित्व करती हैं और उन्हें बिना पर्याप्त कारण खारिज नहीं किया जा सकता।
गाजी सदुद्दीन बनाम महाराष्ट्र सरकार (Gazi Saduddin v. State of Maharashtra, 2003)
यह फैसला प्रशासनिक कार्यों में उचितता (Fairness) और गैर-मनमानीपन (Non-Arbitrariness) के महत्व पर आधारित है। अदालत ने कहा कि सभी निर्णयों को न्यायपूर्ण (Just) और पर्याप्त रूप से कारण आधारित होना चाहिए।
राम सिंह के मामले में इस फैसले का उपयोग यह बताने के लिए किया गया कि सरकार की अधिसूचना (Notification) में न्यायसंगत कारणों (Justifiable Reasons) की कमी थी और यह उचित निर्णय लेने के सिद्धांतों का उल्लंघन करती थी।
राम सिंह का फैसला इन ऐतिहासिक निर्णयों पर आधारित था, जो प्रशासनिक प्रक्रिया की पारदर्शिता (Transparency) और संवैधानिक मानकों (Constitutional Norms) की रक्षा सुनिश्चित करते हैं। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर किसी भी प्रकार की अनियमितता (Irregularity) और राजनीतिक प्रेरणा (Political Motive) अस्वीकार्य है।