घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) में Interim Order दिए जाने में मजिस्ट्रेट का जूरिडिक्शन
Shadab Salim
13 Oct 2025 7:04 PM IST

इस एक्ट से संबंधित एक मामले में कहा गया है कि चूंकि हिंसा का कृत्य स्वयं द्वारा अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध गठित नहीं करता है और यह केवल अधिनियम की धारा 18 अथवा 23 के अधीन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किये गये आदेश का भंग है, जो दण्डनीय बनाया गया है, तारीख, जिस पर घरेलू हिंसा का कृत्य कारित किया गया था, का पूर्ण रूप से मामले के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इसी प्रकार यह पूर्ण रूप से अतात्विक है कि क्या 'व्यथित व्यक्ति अपराध कारित करने की तारीख पर प्रत्यर्थी के साथ रह रहा था अथवा नहीं।
जब एक बार मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाता है कि याची अधिनियम की धारा 2 (क) के अर्थान्तर्गत 'व्यथित व्यक्ति' है और घरेलू हिंसा हुई है अथवा होनी संभाव्य है, तब वह अधिनियम की धारा 18 के निबन्धनों में संरक्षण आदेश अथवा धारा 23 के निबन्धनों में अन्तरिम आदेश पारित करने के लिए सक्षम होता है।
शब्दों 'घरेलू नातेदारी में है अथवा रही है' का प्रयोग इसमें कोई संदेह नहीं छोड़ता है कि यह आवश्यक नहीं है कि व्यथित व्यक्ति को अधिनियम के प्रवर्तन में आने की तारीख पर अथवा उसके पश्चात्वर्ती तारीख पर उसके अधिनियम के प्रावधानों के अधीन मजिस्ट्रेट की अधिकारिता का आश्रय ले सकने के पहले प्रत्यर्थों के साथ रहना आवश्यक है
अन्तरिम अनुतोष का दावा जब व्यथित व्यक्ति अधिनियम की धारा 23 के अधीन किसी अन्तरिम अनुतोष के लिए दावा करना चाहता है, तब व्यथित व्यक्ति के लिए अन्तरिम अनुतोष का पृथक् आवेदन लाना आवश्यक नहीं होता है और विधि की केवल अपेक्षा यह होती है कि नियम के प्ररूप तीन में विहित शपथ पत्र व्यथित व्यक्ति के द्वारा दाखिल किया जाना है।
उपधारा (2) यह प्रावधान करती है कि जब ऐसा शपथ पत्र व्यथित व्यक्ति के द्वारा विहित प्ररूप में दाखिल किया जाता है और यदि अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन प्रथम दृष्ट्या यह प्रकट करता है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कृत्य कारित कर रहा है अथवा किया है अथवा यह कि इस बात की संभावना है कि प्रत्यर्थी घरेलू हिंसा का कृत्य कारित कर सकता है, तब मजिस्ट्रेट प्रत्यर्थी के विरुद्ध धारा 18, 19, 20, 21 अथवा जैसे भी स्थिति हो, धारा 22 के अधीन एकपक्षीय आदेश पारित कर सकता है।
इस प्रकार धारा 23 को उपधारा (2) मजिस्ट्रेट पर एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष प्रदान करने की शक्ति प्रदत्त करती हैं। उक्त एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष को उक्त अधिनियम की धारा 18 से 22 के अधीन अनुतोषों के निवन्धनों में प्रदान किया जा सकता है।
यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि याची का यह मामला नहीं है कि शपथ पत्र, जिसे घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण नियम, 2006 के नियम 7 के अधीन दाखिल किया जाना आवश्यक है, प्रथम प्रत्यर्थी के द्वारा दाखिल नहीं किया गया था। इस प्रकार याची के द्वारा उठाया गया यह तर्क स्वीकार करना संभव नहीं है कि अधिनियम की धारा 23 के अधीन अन्तरिम अनुतोष केवल व्यथित व्यक्ति के द्वारा अन्तरिम अनुतोष के लिए प्रस्तुत किये गये केवल पृथक् आवेदन पर हो प्रदान किया जा सकता है।
अधिनियम की योजना तथा प्रावधानों और विशेष रूप में अधिनियम की धारा 23, सपठित धारा 28 और उक्त नियम के नियम 7 से यह प्रकट है कि विधि की ऐसी कोई अपेक्षा नहीं है। विधि की केवल अपेक्षा यह है कि एकपक्षीय अन्तरिम अनुतोष की मांग करने वाली व्यथित व्यक्ति को नियम 7 सपठित अधिनियम की धारा 23 की उपधारा (2) के अधीन यथोबन्धित विहित प्ररूप में शपथ पत्र दाखिल करना होगा। बाद के तथ्यों में याची के द्वारा अपीलीय कोर्ट के समक्ष अथवा इस याचिका में ऐसी कोई शिकायत नहीं की गई है. कि ऐसा आवेदन दाखिल नहीं किया गया था।
एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले सावधानी और सतर्कता की मात्रा धारा 18 से 22 के अधीन संभाव्य आदेशों तथा अन्तरिम आदेश जो धारा के अधीन ऐसी शक्तियों का आश्रय लेते हुए पारित किये जा सकते हैं, कि प्रकृति अभी भी सावधानी तथा सतर्कता की सहवर्ती मात्रा, जो धारा 23, सपठित धारा 18 से 22 के अधीन एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले आवश्यक है, मजिस्ट्रेट को अभी भी ध्यान में रखना चाहिए।
ऐसे मामलों में, जहाँ विवाह का अस्तित्व विवादित हो, आदि, ऐसा एकपक्षीय अन्तरिम आदेश पारित करने के पहले निश्चित रूप से मस्तिष्क का सतर्क अनुप्रयोग आवश्यक होगा। केवल यह उल्लेख करने की आवश्यकता है कि मजिस्ट्रेट को ऐसे एकपक्षीय अन्तरिम आदेशों, जो अधिनियम की धारा 23 के अधीन पारित किये जा सकते हैं, की प्रतिक्रियाओं तथा प्रचण्डताओं को ध्यान में रखना चाहिए।
अन्तरिम अनुतोष केवल अन्तिम अनुतोष की सहायता से ही प्रदान किया जा सकता की यह सुनिश्चित स्थिति है कि अन्तरिम अनुतोष केवल अन्तिम अनुतोष, जो मुख्य कार्यवाही में प्रदान किये जा सकते हैं, की सहायता से ही प्रदान किया जा सकता है। अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही के मामले में मजिस्ट्रेट अधिनियम की धारा 18, 19, 20, 21 अथवा 22 के द्वारा आच्छादित अन्तिम आदेशों को पारित कर सकता है और इसलिए यह स्पष्ट है कि अन्तरिम आदेश, जो धारा 23 की उपधारा (1) के अधीन पारित किया जा सकता है, केवल उक्त अधिनियम की धारा 18 से 22 में उपबन्धित अनुतोषों के निबन्धनों में ही हो सकता है।
सामान्यतः व्यक्ति जो आदेश से पीड़ित है, मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होगा और अन्तरिम आदेश के उपान्तरण/निरस्तीकरण के लिए अथवा धारा 23 के अधीन पारित किये गये अन्तरिम आदेश को विस्तारित न करने के लिए प्रार्थना करेगा।
अन्तरिम आदेश का उपान्तरण मात्र यह तथ्य कि प्रत्यर्थी, जो अन्तरिम आदेश से पौड़ित है, हो धारा 23 के अधीन पारित किये गये आदेश के उपान्तरण की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष जा सकता है और अभियान के साथ आदेश को शीघ्र सुनिश्चित कर सकता है, भी धारा 29 का निर्वाचन धारा 23 के अधीन अन्तरिम आदेश के विरुद्ध अपील के किसो अधिकार को अपवर्जित करने के लिए करने का कोई आधार नहीं होता है।
जहां इस धारा के अधीन आवेदन मुख्य आवेदन को दाखिल करने के दो वर्ष पश्चात् दाखिल किया गया था, वहां ऐसे आवेदन को पोषणीय न करना नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे तब दाखिल किया गया था, जब आवश्यकता शैक्षिक खर्च और भरण-पोषण को वहन करने के लिए पत्नी और बच्चों के लिए उत्पन्न हुई है।
जब मजिस्ट्रेट ने स्वयं परिवाद की लम्बितता के दौरान घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 23 के अधीन शक्ति के प्रयोग में अन्तरिम आदेश के रूप में स्वीकृत रूप से आदेश पारित किया था, तब क्या इसको इसे अभिखण्डित करने के बारे में प्रतिकूल होना कहा जा सकता है? उत्तर स्पष्ट रूप से "नहीं" है। अन्तरिम संरक्षण का आदेश प्रदान न करना पत्नी तथा उसके अवयस्क पुत्र को अन्य व्यक्तियों की दया पर छोड़ेगा और यह घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के अक्षरशः भावना के प्रतिकूल कार्य करेगा।
कोई महिला, जो परिवार भीतर होने वाली घरेलू हिंसा से पीड़ित हो, जिसके सम्बन्ध में सक्षम कोर्ट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया हो, मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया है, के लिए अधिनियम को धारा 23 के अधीन अन्तरिम प्रक्रम पर त्वरित आदेश पारित करना आवश्यक है, जैसे मजिस्ट्रेट न्याय संगत और उचित समझे। इसका उद्देश्य अधिनियम के अधीन महिला/ परिवादिनी को त्वरित रूप से संरक्षण का प्रावधान करना है।
धारा 23 के अधीन आदेश के विरुद्ध अपील की व्याप्ति सीमित होगी। एकपक्षीय अन्तरिम आदेश के विरुद्ध अपील पर विचार करते समय सत्र कोर्ट ऐसे आदेशों में हस्तक्षेप करने के लिए सुस्त होगा, जब तक आदेश प्रतिकूल अथवा अभिव्यक्त रूप से अवैध न हो। हालांकि, अधिनियम की धारा 12 (1) के अधीन आवेदन पर अन्तिम आदेश के विरुद्ध अपील की व्याप्ति पूर्वोक्त अवरोधों के द्वारा शासित नहीं होगी।
अन्तर्वती आदेश के विरुद्ध अपील का अधिकार मात्र यह तथ्य की अन्तर्वर्ती आदेश के विरुद्ध अपील प्रस्तुत की गई है, आवश्यक रूप से धारा 18 से 22 के अधीन आवेदनों के निस्तारण की प्रगति को मन्दित करना आवश्यक नहीं है। यह मानना गलत होगा कि अन्तवंत आदेश के विरुद्ध अपील का अधिकार आवश्यक रूप से अध्याय 4 के अधीन आवेदनों के निस्तारण में विलम्ब कारित करेगा।
अपील का अधिकार ऐसी पीड़ित महिला को भी उपलब्ध होगा, यदि उसके पक्ष में धारा 23 के अधीन आदेश पारित न किया गया हो। इसलिए धारा 29 में अभिव्यक्ति 'आदेश' का अध्याय चार के अधीन आवेदनों के निस्तारण में प्रगति के संभाव्य मण्डन के किसी सिद्धान्त पर अथवा इस तर्क पर निर्वाचन करना गलत होगा कि अपील का ऐसा अधिकार लक्ष्यित समूह के हितों प्रतिकूल होगा।

