क्या केवल ऑफिस का होना किसी High Court को Article 226(2) के तहत Jurisdiction देने के लिए काफी है?
Himanshu Mishra
16 May 2025 10:18 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने State of Goa v. Summit Online Trade Solutions (P) Ltd. [2023 LiveLaw (SC) 184] के फैसले में भारतीय संविधान के Article 226(2) के तहत High Court की Territorial Jurisdiction (क्षेत्रीय अधिकारिता) से जुड़े एक अहम मुद्दे को सुलझाया।
यह मामला writ petition (रिट याचिका) से जुड़ा था, जिसमें यह तय करना था कि किसी High Court के क्षेत्र में 'cause of action' (कारण का आधार) कब और कैसे उत्पन्न होता है। यह फैसला उन मामलों में विशेष रूप से मार्गदर्शक है, जहां एक राज्य द्वारा लिए गए फैसले का असर किसी अन्य राज्य में स्थित कंपनी या संस्था पर पड़ता है।
Article 226(2) का दायरा (Scope of Article 226(2))
संविधान का Article 226(2) High Court को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी ऐसे मामले में सुनवाई कर सके जिसमें पूरा या आंशिक 'cause of action' उस High Court के क्षेत्र में उत्पन्न हुआ हो। यह प्रावधान पहले की उस कठोर व्याख्या को लचीला बनाता है, जहां याचिकाकर्ता को केवल उसी राज्य में याचिका दायर करनी होती थी जहां संबंधित सरकारी प्राधिकारी बैठा हो।
Court ने इस फैसले में स्पष्ट किया कि 'cause of action' से तात्पर्य ऐसे material facts (प्रासंगिक तथ्यों) से है जिन्हें याचिकाकर्ता को relief (राहत) पाने के लिए अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना और सिद्ध करना अनिवार्य होता है। केवल ऐसे तथ्य जो वास्तव में याचिका के मुख्य विषय से जुड़े हों, वही jurisdiction (अधिकारिता) देने के लिए पर्याप्त माने जाएंगे।
Jurisdiction तय करने के लिए न्यायिक मापदंड (Judicial Tests for Determining Jurisdiction)
Court ने स्पष्ट किया कि High Court का अधिकार केवल सामान्य या मामूली तथ्यों के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। न्यायालय को यह देखना होता है कि क्या याचिका में जो तथ्य बताए गए हैं वे 'material, essential or integral' (अत्यावश्यक, मूलभूत या अभिन्न) हिस्से हैं या नहीं। यह परीक्षण केवल औपचारिक नहीं बल्कि वस्तुगत (Substantive) होना चाहिए।
इस सिद्धांत को पहले भी Alchemist Ltd. v. State Bank of Sikkim [(2007) 11 SCC 335] में अपनाया गया था, जहां कहा गया था कि केवल किसी कंपनी का office किसी स्थान पर होना उस स्थान की High Court को jurisdiction नहीं देता जब तक कि वहां से जुड़ा कोई मुख्य तथ्य उत्पन्न न हुआ हो। वही सिद्धांत इस फैसले में दोहराया गया।
उचित मंच और न्यायिक विवेक (Forum Conveniens and Judicial Prudence)
Court ने forum conveniens (उचित मंच) की अवधारणा को भी समझाया, खासकर उन मामलों में जहां एक ही तरह के विवाद एक से अधिक स्थानों पर लंबित हों। Court ने कहा कि यदि किसी High Court के क्षेत्र में 'cause of action' का केवल छोटा हिस्सा उत्पन्न हुआ है, तो यह जरूरी नहीं कि वही Court उस पूरे मामले की सुनवाई करे।
यह सिद्धांत Kusum Ingots & Alloys Ltd. v. Union of India [(2004) 6 SCC 254] के फैसले में भी अपनाया गया था, जहां यह कहा गया कि अगर 'cause of action' का एक हिस्सा किसी क्षेत्र में उत्पन्न होता है, तो भी वह Court सुनवाई करने के लिए बाध्य नहीं है यदि कोई अन्य Court उस मामले से अधिक निकटता रखता है।
प्रासंगिक बनाम अप्रासंगिक तथ्य (Material vs. Immaterial Facts)
Court ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल महत्वपूर्ण और आवश्यक तथ्य ही किसी Court को jurisdiction देने के लिए मान्य होते हैं। इस केस में याचिकाकर्ता कंपनी का ऑफिस Sikkim में था, लेकिन जो Tax लगाया गया था वह Goa में किए गए व्यापार पर आधारित था। इसलिए, केवल ऑफिस का Sikkim में होना पर्याप्त नहीं था।
ऐसी ही व्याख्या Oil and Natural Gas Commission v. Utpal Kumar Basu [(1994) 4 SCC 711] में की गई थी, जहां Court ने कहा था कि किसी कार्यालय की उपस्थिति मात्र से jurisdiction उत्पन्न नहीं होता जब तक कि वहां कोई प्रभावी या मुख्य कार्यवाही न हुई हो।
प्रशासनिक कार्यवाही और क्षेत्रीय संबंध (Territorial Nexus and Administrative Actions)
फैसले में यह भी दोहराया गया कि यदि कोई administrative action (प्रशासनिक कार्यवाही) किसी राज्य के बाहर हुई है, और उसका सीधा प्रभाव उस राज्य में नहीं पड़ता है, तो वहां की High Court उस कार्यवाही की वैधता की समीक्षा नहीं कर सकती।
यह सिद्धांत Union of India v. Adani Exports Ltd. [(2002) 1 SCC 567] में भी अपनाया गया था, जहां Court ने कहा था कि किसी कंपनी का ऑफिस किसी राज्य में होना पर्याप्त नहीं है जब तक उस राज्य में संबंधित प्रशासनिक कार्यवाही का प्रभाव न हुआ हो।
Court का अंतिम निर्णय (Final Determination by the Court)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि Sikkim High Court को Goa राज्य के विरुद्ध याचिका को सुनवाई में बनाए नहीं रखना चाहिए था क्योंकि जो भी material facts थे, वे सभी Goa से जुड़े हुए थे। Goa सरकार द्वारा जो notification (सूचना) जारी की गई थी, वह Goa में किए जा रहे व्यापार पर लागू थी। इसलिए Sikkim High Court के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं था।
साथ ही Court ने यह भी कहा कि Goa में पहले से ही एक समान याचिका लंबित थी, जिससे अलग-अलग फैसले आने का खतरा था। इसीलिए Court ने कहा कि writ petition का सही मंच Goa की High Court है।
यह फैसला High Courts द्वारा Article 226(2) के तहत jurisdiction तय करने के सिद्धांतों को और भी मजबूत करता है। यह स्पष्ट करता है कि केवल कार्यालय का होना या कोई मामूली तथ्य कहीं उत्पन्न होना High Court को writ jurisdiction देने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस फैसले से forum shopping (मंच का दुरुपयोग) पर रोक लगेगी और writ jurisdiction के प्रयोग को सीमित और न्यायसंगत बनाया जाएगा।
यह फैसला Alchemist, Kusum Ingots, Utpal Kumar Basu और Adani Exports जैसे महत्वपूर्ण मामलों की व्याख्या को फिर से पुष्ट करता है और सुनिश्चित करता है कि संविधान की क्षेत्रीय अधिकारिता से संबंधित धाराएं न्यायपूर्ण तरीके से लागू हों।

