क्या सिनेमा हॉल में Accessibility संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है?
Himanshu Mishra
27 Aug 2025 5:53 PM IST

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला “Nipun Malhotra v. Sony Pictures Films India Pvt. Ltd. & Ors., 2024 INSC 465” में सुनाया। इस केस में अदालत ने यह प्रश्न उठाया कि क्या सिनेमा हॉल और फिल्मों तक पहुँच (Accessibility) विकलांग व्यक्तियों (Persons with Disabilities) का संवैधानिक अधिकार है?
यह मामला केवल किसी फिल्म के Certification तक सीमित नहीं था, बल्कि इससे बड़े सवाल जुड़े थे—क्या विकलांग व्यक्तियों को गरिमा (Dignity) और समानता (Equality) से जीने के लिए संस्कृति (Culture), मनोरंजन (Entertainment) और अवकाश (Leisure) तक पहुँच मिलनी चाहिए? अदालत ने स्पष्ट किया कि Accessibility कोई दया (Charity) नहीं, बल्कि संविधान द्वारा संरक्षित मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है।
संवैधानिक ढांचा (Constitutional Framework)
इस केस में न्यायालय ने संविधान (Constitution of India) के तीन मुख्य अनुच्छेदों—14, 19 और 21—पर चर्चा की।
अनुच्छेद 14 (Article 14: Equality before Law): यह समानता और भेदभाव-निषेध (Non-discrimination) की गारंटी देता है। विकलांग व्यक्तियों को भी समाज के हर हिस्से तक समान रूप से पहुँच का अधिकार है।
अनुच्छेद 19 (Article 19: Freedom of Speech and Expression): यह केवल बोलने की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है बल्कि सांस्कृतिक और मनोरंजन जीवन (Cultural and Recreational Life) तक पहुँच भी इसका हिस्सा है। एक फिल्म को देख पाना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेना, यह सब स्वतंत्रता का ही हिस्सा है।
अनुच्छेद 21 (Article 21: Right to Life and Personal Liberty): जीवन के अधिकार में गरिमा (Dignity) और आत्म-सम्मान के साथ जीने का अधिकार शामिल है। यदि सिनेमा हॉल और सांस्कृतिक स्थल Accessible नहीं होंगे तो विकलांग व्यक्तियों की गरिमा को ठेस पहुँचेगी और उनका जीवन अपूर्ण रह जाएगा।
न्यायालय ने यह भी कहा कि संवैधानिक मूल्यों का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जो हर नागरिक के लिए समावेशी (Inclusive) और सम्मानजनक (Respectful) हो।
RPwD Act, 2016 का महत्व (Statutory Provisions under the RPwD Act, 2016)
भारत में विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को मजबूत करने के लिए Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 (RPwD Act) लागू किया गया। यह कानून UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities (CRPD) से प्रेरित है।
धारा 40 (Section 40): सरकार को Accessibility Standards तय करने का अधिकार देती है।
धारा 42 (Section 42): Electronic और Digital Content को Accessible बनाने का दायित्व।
धारा 29 (Section 29): विकलांग व्यक्तियों को सांस्कृतिक जीवन (Cultural Life), मनोरंजन (Entertainment) और अवकाश (Leisure) में भागीदारी का अधिकार।
न्यायालय ने कहा कि RPwD Act ने विकलांग व्यक्तियों को दया के पात्र नहीं बल्कि अधिकार-धारी (Rights Holders) के रूप में स्वीकार किया है। Accessibility अब वैधानिक अधिकार (Statutory Right) है जिसे सुनिश्चित करना अनिवार्य है।
Cinematograph Act, 1952 और फिल्मों का Certification (Cinematograph Act, 1952 and Film Certification)
फिल्मों के Certification और प्रदर्शन पर Cinematograph Act, 1952 लागू होता है। इस अधिनियम के तहत CBFC (Central Board of Film Certification) फिल्मों को Certificate देती है।
न्यायालय ने कहा कि Cinematograph Act को RPwD Act के साथ पढ़ा जाना चाहिए। इसका मतलब है कि CBFC और फिल्म निर्माता (Filmmakers) दोनों की ज़िम्मेदारी है कि फिल्मों को Accessible बनाया जाए। Accessibility Features जैसे—
• Subtitles (उपशीर्षक),
• Sign Language Interpretation (संकेत भाषा व्याख्या), और
• Audio Description (श्रव्य विवरण)
को शामिल करना अब आवश्यक है ताकि हर नागरिक फिल्म का समान रूप से आनंद ले सके।
मौलिक अधिकार और Accessibility (Fundamental Rights and Accessibility)
इस केस में न्यायालय ने Accessibility को सीधे-सीधे Fundamental Rights से जोड़ा।
पूर्व मामलों में भी यह सिद्धांत सामने आया था:
• Justice Sunanda Bhandare Foundation v. Union of India – Accessibility को संवैधानिक दायित्व (Constitutional Mandate) माना गया।
• Rajive Raturi v. Union of India (2018) – सार्वजनिक इमारतों और यातायात में Accessibility को अनिवार्य बताया गया।
• Jeeja Ghosh v. Union of India (2016) – हवाई यात्रा के दौरान विकलांगों की गरिमा (Dignity) को सर्वोच्च माना गया।
न्यायालय ने कहा कि यदि Accessibility नहीं दी जाएगी तो यह Articles 14, 19 और 21 का उल्लंघन (Violation) होगा।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (International Obligations)
भारत ने 2007 में UNCRPD (United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities) को Ratify किया।
• Article 9: Accessibility सुनिश्चित करने पर जोर।
• Article 30: सांस्कृतिक जीवन और मनोरंजन तक पहुँच।
न्यायालय ने कहा कि भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ (International Commitments) भी यह साबित करती हैं कि Accessibility एक मौलिक अधिकार है।
अधिकार बनाम व्यावहारिक चुनौतियाँ (Balancing Rights and Practical Challenges)
सिनेमा मालिकों ने Accessibility लागू करने में आने वाली कठिनाइयों की बात कही। लेकिन न्यायालय ने साफ कहा कि कठिनाइयाँ मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) को सीमित नहीं कर सकतीं।
आज Technology इतनी उन्नत है कि Accessibility Features को लागू करना संभव और अपेक्षाकृत आसान है। इसीलिए कठिनाई को बहाना बनाकर अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता।
न्यायालय द्वारा संदर्भित महत्वपूर्ण मामले (Important Judgments Referred)
इस फैसले में कई अहम मामलों का उल्लेख किया गया—
• National Federation of the Blind v. UPSC (2013) – दृष्टिहीनों के अधिकारों की रक्षा।
• Rajive Raturi v. Union of India (2018) – सार्वजनिक भवनों में Accessibility सुनिश्चित करना।
• Jeeja Ghosh v. Union of India (2016) – गरिमा और समानता का महत्व।
• KA Abbas v. Union of India (1970) – फिल्मों पर सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएँ।
• Bobby Art International v. Om Pal Singh Hoon (1996) – सामाजिक बुराइयों का चित्रण अभिव्यक्ति का हिस्सा।
इन मामलों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने Accessibility को Fundamental Right माना।
न्यायालय के निर्देश (Directions Issued by the Court)
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कई दिशा-निर्देश दिए:
1. केंद्र सरकार RPwD Act के तहत Accessibility Rules बनाए।
2. CBFC फिल्मों के Certification में Accessibility Features पर ध्यान दे।
3. Cinema Owners को Ramps, Lifts, Accessible Washrooms जैसी सुविधाएँ देनी होंगी।
4. Filmmakers को Subtitles और Audio Description जैसे Features शामिल करने होंगे।
निर्णय का महत्व (Significance of the Judgment)
यह फैसला Accessibility को Welfare Issue से उठाकर Fundamental Rights Issue बना देता है।
अब यह स्पष्ट है कि मनोरंजन, संस्कृति और अवकाश केवल कुछ लोगों का विशेषाधिकार (Privilege) नहीं बल्कि हर नागरिक का अधिकार है।
न्यायालय ने Accessibility को समानता (Equality) और गरिमा (Dignity) से जोड़ा और इसे संविधान की मूल भावना का हिस्सा बताया।
“Nipun Malhotra v. Sony Pictures Films India Pvt. Ltd. & Ors., 2024 INSC 465” में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Accessibility (सुगम्यता) अब कोई विकल्प (Optional) नहीं बल्कि एक संवैधानिक दायित्व (Constitutional Mandate) है।
यह Articles 14, 19 और 21 के साथ-साथ RPwD Act, 2016 और Cinematograph Act, 1952 द्वारा समर्थित है।
यह फैसला भारतीय समाज को अधिक Inclusive (समावेशी) और Dignity-Centric (गरिमा-आधारित) बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

