अनियमित कार्यवाही और मजिस्ट्रेट की शक्ति की सीमा – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 506 और 507
Himanshu Mishra
9 Jun 2025 4:47 PM IST

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में ऐसे अनेक प्रावधान हैं जो न केवल अपराध और उसकी प्रक्रिया से संबंधित हैं, बल्कि न्यायिक अधिकारियों की शक्तियों और सीमाओं को भी स्पष्ट करते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि कोई भी मजिस्ट्रेट (Magistrate) अपनी कानूनी शक्ति (Legal Authority) के अनुसार ही काम करे।
हालाँकि कभी-कभी किसी मजिस्ट्रेट द्वारा सीमित ज्ञान या ईमानदारी से की गई गलती (Error in Good Faith) से कोई कार्यवाही हो जाती है जो उसकी शक्ति क्षेत्र (Jurisdiction) में नहीं होती। इस स्थिति को लेकर अध्याय 37 (Chapter XXXVII) के तहत धारा 506 (Section 506) और धारा 507 (Section 507) दो प्रकार की परिस्थितियों को अलग-अलग तरीके से नियंत्रित करती हैं।
इस लेख में हम इन दोनों धाराओं का सरल और व्यावहारिक भाषा में विस्तृत विश्लेषण करेंगे। प्रत्येक प्रावधान को उदाहरणों द्वारा समझाया जाएगा ताकि पाठकों को इनका स्पष्ट और व्यावहारिक अर्थ समझ में आ सके।
धारा 506 – यदि मजिस्ट्रेट सीमित शक्ति में रहते हुए गलती से कोई कार्य कर दे (Proceedings Not Invalidated by Certain Irregularities)
धारा 506 उस स्थिति को संबोधित करती है जहाँ कोई मजिस्ट्रेट किसी कार्य को कर देता है, जबकि उसे वह कार्य करने का अधिकार (Power) नहीं होता, लेकिन वह कार्य उसने ईमानदारी से गलती (Erroneously in Good Faith) में किया होता है।
यह धारा कहती है कि यदि ऐसा कोई कार्य हुआ है, तो केवल इस कारण से कार्यवाही को रद्द (Set Aside) नहीं किया जाएगा कि मजिस्ट्रेट को वह शक्ति नहीं थी।
इसमें उन विशिष्ट कार्यों की सूची दी गई है, जो अगर शक्ति के बाहर होते हुए भी ईमानदारी से किए जाएँ, तो कार्यवाही वैध बनी रहेगी:
(a) धारा 97 के अंतर्गत सर्च वारंट (Search Warrant) जारी करना
(b) धारा 174 के तहत पुलिस को जांच का आदेश देना
(c) धारा 196 के अंतर्गत शव परीक्षण (Inquest) करना
(d) धारा 207 के अंतर्गत अपने क्षेत्र में किसी बाहर के अपराधी की गिरफ्तारी का आदेश देना
(e) धारा 210(1)(a) या (b) के तहत अपराध का संज्ञान लेना (Taking Cognizance)
(f) धारा 212(2) के अंतर्गत किसी मामले को दूसरे मजिस्ट्रेट को सौंपना
(g) धारा 343 के तहत क्षमा (Pardon) देना
(h) धारा 450 के तहत किसी मामले को वापस बुलाकर खुद सुनवाई करना
(i) धारा 504 या 505 के तहत संपत्ति को बेचना
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए एक मजिस्ट्रेट जो सर्च वारंट जारी करने के लिए अधिकृत नहीं है, लेकिन उसे लगता है कि किसी घर में गैरकानूनी गतिविधि हो रही है और वह धारा 97 के तहत सर्च वारंट जारी कर देता है। बाद में पता चलता है कि उसे यह अधिकार नहीं था। चूंकि मजिस्ट्रेट ने यह कार्य ईमानदारी से किया था, इसलिए पूरी कार्यवाही को केवल इसी कारण रद्द नहीं किया जाएगा।
इससे न्याय व्यवस्था में अनावश्यक देरी और प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
धारा 507 – यदि मजिस्ट्रेट अधिकार के बिना कोई गंभीर कार्यवाही करता है (Proceedings Void if Done Without Authority)
धारा 507 उस स्थिति को नियंत्रित करती है जहाँ मजिस्ट्रेट बिना अधिकार के कुछ ऐसे कार्य करता है जिनका प्रभाव व्यापक और गंभीर होता है। ऐसे मामलों में कार्यवाही को वैध नहीं माना जाएगा। बल्कि यह स्पष्ट कहा गया है कि ऐसी कार्यवाही शून्य (Void) मानी जाएगी।
इस धारा में दिए गए कार्य इस प्रकार हैं:
(a) धारा 85 के तहत संपत्ति की कुर्की और बिक्री
(b) डाक विभाग (Postal Authority) के पास से दस्तावेज़ आदि की खोज के लिए सर्च वारंट
(c) शांतिपूर्ण रहने के लिए सुरक्षा की माँग
(d) अच्छे आचरण के लिए सुरक्षा की माँग
(e) किसी ऐसे व्यक्ति को मुक्त करना जो अच्छे आचरण के लिए बंधनबद्ध था
(f) शांति बनाए रखने के लिए किया गया बंधन रद्द करना
(g) भरण-पोषण (Maintenance) का आदेश देना
(h) धारा 152 के तहत लोक असुविधा (Nuisance) से संबंधित आदेश
(i) धारा 162 के तहत लोक असुविधा की पुनरावृत्ति रोकना
(j) अध्याय 11 के भाग C और D के तहत कोई आदेश देना
(k) धारा 210(1)(c) के तहत अपराध का संज्ञान लेना
(l) किसी अपराधी की सुनवाई करना
(m) संक्षिप्त सुनवाई (Summary Trial) करना
(n) दूसरे मजिस्ट्रेट की कार्यवाही के आधार पर धारा 364 के अंतर्गत दंड देना
(o) अपील पर निर्णय देना
(p) धारा 438 के तहत कार्यवाही मंगवाना
(q) धारा 491 के तहत दिए गए आदेश की समीक्षा (Revision) करना
इनमें से कोई भी कार्य यदि कोई मजिस्ट्रेट करता है जबकि उसे इसका अधिकार नहीं है, तो ऐसी पूरी कार्यवाही अवैध और शून्य (Illegal and Void) मानी जाएगी, भले ही वह ईमानदारी से क्यों न की गई हो।
उदाहरण (Illustration):
मान लीजिए एक मजिस्ट्रेट जिसे धारा 85 के तहत संपत्ति कुर्क करने का अधिकार नहीं है, वह एक आरोपी की संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे देता है। बाद में पता चलता है कि उसे यह शक्ति नहीं थी। ऐसे में, धारा 507 के तहत यह पूरी कार्यवाही रद्द मानी जाएगी, क्योंकि यह मजिस्ट्रेट की शक्ति से बाहर था।
धारा 506 और 507 में अंतर (Difference Between Section 506 and Section 507)
धारा 506 और 507 दोनों अनियमित कार्यवाहियों से संबंधित हैं लेकिन उनका प्रभाव और प्रकृति भिन्न है।
धारा 506 में यदि मजिस्ट्रेट ने ईमानदारी से गलती से कोई कार्य किया हो, तो कार्यवाही रद्द नहीं होगी। जैसे सर्च वारंट जारी करना या केस सौंपना।
धारा 507 में अगर मजिस्ट्रेट ने अधिकार के बिना गंभीर कार्यवाही की हो – जैसे दंड देना, ट्रायल करना या अपील का फैसला करना – तो वह पूरी कार्यवाही अमान्य (Invalid) मानी जाएगी।
धारा 506 न्यायिक प्रशासन में लचीलापन (Flexibility) देती है जबकि धारा 507 न्यायिक शक्ति की सीमाओं को दृढ़ता से लागू करती है।
इन धाराओं का न्यायिक दृष्टिकोण (Judicial Perspective and Significance)
भारतीय न्यायपालिका कई बार यह देखती है कि क्या कार्यवाही मजिस्ट्रेट की अधिकृत शक्ति के भीतर हुई या नहीं। इन धाराओं की मदद से न्यायालय यह तय कर पाते हैं कि कोई प्रक्रिया केवल तकनीकी गलती के कारण रद्द होनी चाहिए या नहीं।
इससे न्याय व्यवस्था में समय की बचत, प्रक्रिया की सरलता और न्यायसंगत परिणाम सुनिश्चित किए जाते हैं।
धारा 506 और 507 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में ऐसे प्रावधान हैं जो न्यायिक प्रक्रिया की वैधता (Validity) और उसकी मर्यादा (Limitations) को दर्शाते हैं। ये दोनों धाराएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि मजिस्ट्रेट अपनी शक्ति के भीतर कार्य करें, और यदि गलती हो जाए तो उस पर कानून के अनुसार निर्णय लिया जाए।
धारा 506 न्यायिक विवेक और ईमानदार गलती को मान्यता देती है, जबकि धारा 507 कानूनी शक्ति की सीमा को सख्ती से लागू करती है।
दोनों धाराएँ एक संतुलित न्याय व्यवस्था का प्रतीक हैं – जिसमें न्यायाधीशों की जिम्मेदारी भी है और नागरिकों के अधिकार भी सुरक्षित हैं। यदि किसी व्यक्ति की कार्यवाही का अधिकार नहीं है, तो उसका आदेश या निर्णय वैध नहीं हो सकता – और यही हमारे लोकतांत्रिक व विधि शासन आधारित तंत्र की विशेषता है।