भरण पोषण का आदेश हो जाने के बाद कैसे करें वसूली
Shadab Salim
28 Dec 2021 6:00 PM IST
भरण पोषण एक प्रसिद्ध कानूनी अवधारणा है वर्तमान परिस्थितियों में भरण पोषण पति द्वारा छोड़ी गई पत्नी को प्राप्त हो रहा है। हालांकि कानून में ऐसा भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार हर उस व्यक्ति को है जो दूसरे व्यक्ति के ऊपर आश्रित रहता है। जैसे बच्चे को माता पिता से भरण-पोषण करने का अधिकार है, माता पिता को बच्चों से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है परंतु समाज में साधारण रूप से पति द्वारा छोड़ी गई पत्नी अधिकांश रूप से ऐसी भरण पोषण की याचिका लेकर न्यायालय में आती है।
इन कानूनों में प्राप्त होता है भरण पोषण:-
एक पति द्वारा छोड़ी गई पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1956, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 तथा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त होता है।
इन कानूनों के तहत कोई भी पत्नी भरण पोषण प्राप्त कर सकती है। इन कानूनों के तहत कोर्ट एक पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण दिलवाने हेतु आदेश कर देती है। इन मामलों में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि यदि कोर्ट द्वारा भरण पोषण का आदेश कर दिया जाता है और पति ऐसे आदेश के बाद भी न्यायालय में भरण पोषण की राशि जमा नहीं कर रहा है तब पत्नी के पास में क्या रास्ता रहता है।
भारत के उच्चतम न्यायालय में रजनीश विरुद्ध नेहा का मामला भरण पोषण की राशि की वसूली के मामले में एक अच्छा साइटेशन है। इस मामले में न्यायालय ने भरण-पोषण की राशि की वसूली के बहुत सारे तरीके बताए हैं और सभी बातों को स्पष्ट कर दिया है।
यदि किसी पत्नी को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत कोर्ट द्वारा भरण पोषण का आदेश दिया जाता है और उसके पति द्वारा भरण पोषण की राशि न्यायालय में जमा नहीं की जा रही है तब ऐसे आदेश से 1 साल बीत जाने के बाद भरण-पोषण की राशि की वसूली के लिए धारा 125 (3) के अंतर्गत एक आवेदन लगाकर न्यायालय से भरण-पोषण की राशि की वसूली के संबंध में निवेदन किया जा सकता है।
जब कभी इस प्रकार से राशि की वसूली के लिए आवेदन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब न्यायालय वसूली वारंट के जरिए राशि की वसूली करता है। कोर्ट वारंट जारी करके पति से कहता है कि शीघ्र से शीघ्र हमारे द्वारा दिए गए आदेश में भरण पोषण की राशि जमा करें।
यदि ऐसा भरण पोषण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत नहीं किया जाता है तथा घरेलू हिंसा अधिनियम हिंदू विवाह अधिनियम या फिर विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत किया जाता है तब न्यायालय राशि की वसूली एक उधार धन की राशि की वसूली के प्रकार किए जाने हेतु भी निर्देशित कर सकता अर्थात जिस प्रकार से उधार दिए गए धन की वसूली के लिए मुकदमा न्यायालय के समक्ष किया जाता है।
इसी प्रकार से एक मुकदमा भरण-पोषण की राशि की वसूली के लिए भी न्यायालय में लगाया जा सकता है और इतना ही नहीं जिस प्रकार उधार धन की वसूली विपक्षी की संपत्ति को कुर्क करके की जाती है उसी प्रकार भरण पोषण की राशि की वसूली पति की संपत्ति को कुर्क करके की जा सकती है।
रजनीश बनाम नेहा के मामले में न्यायालय ने यह भी कहा है कि भरण पोषण के मामले में पति और पत्नी दोनों को एक शपथ पत्र के माध्यम से अपनी आय और अपने खर्चों का स्पष्ट उल्लेख करना होगा तथा उसके अंतर्गत कोई भी झूठा तथ्य नहीं दिया जाएगा जो भी बातें सही हैं उन्हें सत्य प्रतिज्ञा के साथ न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। न्यायालय भरण पोषण की राशि तय करते समय पति और पत्नी दोनों की आय और उनके स्टेटस को देखेगा उसके बाद उनकी राशि के लिए आदेश करेगा।
जब भरण-पोषण की राशि की वसूली के लिए मुकदमा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा न्यायालय वसूली का वारंट जारी करने के बाद व्यक्ति के लिए गिरफ्तारी वारंट भी जारी कर सकेगा और उसकी संपत्ति को कुर्क करने का आदेश भी दे सकेगा या फिर वे एक सरकारी सेवक है तो सीधे उसकी तनख्वाह में से राशि को काटने का आदेश भी जारी कर सकता है। इस मामले के बाद भरण पोषण की राशि की वसूली सरल हो जाती है और किसी भी पत्नी द्वारा सरलतापूर्वक भरण-पोषण की राशि को वसूल किया जा सकता है।
न्यायालय भी व्यक्ति की संपत्ति तक को बेचकर इस राशि को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। यदि व्यक्ति ऐसी राशि का भुगतान नहीं करता है तब उसे हर 1 महीने की राशि के लिए 1 महीने की जेल भी भुगतने का आदेश किया जाता है। एक महीने के भरण पोषण के लिए एक माह के कारावास का प्रावधान किया गया है।