जानिए कैसे होता है ट्रायल( विचारण) चलाने के लिए न्यायालय का निर्धारण
Shadab Salim
30 Jun 2020 9:34 AM IST
जब भी कोई अपराध होता है तो उस अपराध के होने के बाद उसका अन्वेषण किया जाता है तथा अन्वेषण के पश्चात उस पर जांच या विचारण न्यायालय द्वारा किया जाता है। बड़ा तात्विक प्रश्न है कि ऐसी जांच और विचारण कौन से न्यायालय द्वारा किया जाएगा?
दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 13 में जांच और विचारण का स्थान बताया गया है। इस अध्याय में लगभग उन सभी प्रश्नों को हल कर दिया गया है जो किसी विचारण के स्थान के संबंध में उत्पन्न होते हैं।
विचारण कौन से न्यायालय द्वारा किया जाएगा, यह महत्वपूर्ण और बुनियादी प्रश्न है, क्योंकि इस प्रश्न का उत्तर आगे की प्रक्रिया को तय करता है तथा जब इस प्रश्न का उत्तर मिलता है तो यह तय कर लिया जाता है कि विचारण कौन से न्यायालय द्वारा किया जाएगा।
इस लेख के माध्यम से भारत में या भारतीय नागरिकों द्वारा भारत के बाहर किए जाने वाले अपराधों के विचारण के स्थान के संबंध में विस्तृत चर्चा की जा रही है।
जांच व विचारण का स्थान
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 177 जांच और विचारण के मामूली स्थान ( Ordinary Place) का वर्णन करती है। इस धारा के अनुसार किसी अपराध में जांच अथवा विचारण के लिए उस न्यायालय को अधिकारिता होगी, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर अपराध किया गया है। इस धारा में वर्णित उपबंधों के अनुसार कोई भी मजिस्ट्रेट किसी ऐसे मामले में विचारण के लिए अधिकृत नहीं है जो उसकी स्थानीय अधिकारिता से परे घटित हुआ है।
शाम आलम खान बनाम भारत संघ 1982 के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि यदि अभियुक्त ने दिल्ली संघ क्षेत्र में कोई अपराध किया है तो उस अपराध के लिए उसका गाजियाबाद के न्यायालय में विचारण नहीं किया जा सकता।
अनेक मामले इस तरह के होते हैं, जिनके संबंध में मामूली स्थान का निर्धारण कर पाना थोड़ा कठिन होता है। इस तरह के अपराध के मामलों में स्थान के निर्धारण के लिए ही अध्याय 13 को दंड प्रक्रिया संहिता का हिस्सा बनाया गया है। धारा 177 विचारण का मामूली स्थान बता रही है, परंतु अनेक ऐसे मामले है, जिनका विचारण केवल इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि जहां अपराध हुआ है वही विचारण कर दिया जाए।
अनेक क्षेत्रों में किए गए किसी एक अपराध का विचारण
कभी-कभी अपराध अनेक क्षेत्रों में किए जाते हैं या फिर ऐसे अपराध होते हैं जो चालू रहते हैं और अलग-अलग स्थान में क्षेत्रों में होते रहते हैं। इस प्रकार के अपराधों के विचारण के संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 178 अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धारा 178 में पूर्ववर्ती धारा 177 के कतिपय वादों का उल्लेख है अर्थात जब धारा 177 के आधार पर विचारण के न्यायालय का निर्धारण नहीं हो पाता है तो धारा 178 से काम लिया जाता है।
इस धारा में महत्वपूर्ण उपबंध दिया है कि कौन सी परिस्थितियों में विचारण न्यायालय अपराध के स्थानीय सीमा के बाहर भी हो सकता है। वह परिस्थितिया निम्नलिखित हैं।
1) जब अपराध कारित किए जाने का स्थान क्षेत्र अनिश्चित हो।
2) जब अपराध का कुछ हिस्सा स्थानीय क्षेत्र तथा कुछ हिस्सा दूसरे क्षेत्र में किया गया हो।
3) जब अपराध निरंतर चालू रहने वाले स्वरूप का हो तथा एक से अधिक स्थान में क्षेत्रों में चालू रहता है जैसे कि अपहरण।
4) जब अपराध का निर्माण विभिन्न स्थान क्षेत्रों में किए गए अनेक कार्यों से होता है।
मध्य प्रदेश राज्य बनाम केपी घियारा के वाद में आपराधिक न्यास भंग का अपराध किया गया था। संपत्ति अ नामक स्थान पर प्राप्त की गयी थी तथा अभियुक्तों द्वारा उसका बेईमानी से दुर्विनियोग ब नामक स्थान पर किया गया था।
इस दशा में निर्णय दिया गया कि मामले की जांच या विचारण का कार्य किसी भी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसे अ और ब नामक स्थान पर स्थानीय अधिकारिता प्राप्त है।
महिला अपराध से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला श्रीमती सुजाता मुखर्जी बनाम प्रशांत कुमार मुखर्जी के मामले में अपीलार्थी सुजाता मुखर्जी को दहेज की मांग के लिए उसको ससुराल रायगढ़ में सास, ससुर और पति ने प्रताड़ित किया। जब वह रायपुर अपने मायके में आ गयी, तब उसका पति उसके घर आया और उस पर प्रहार किया।
इस प्रकार भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए तथा 506बी तथा 323 के अंतर्गत अपराध दोनों स्थानों अर्थात रायगढ़ तथा रायपुर होते रहे। इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि दोनों स्थानों में से किसी भी स्थान के मजिस्ट्रेट को इन अपराधों के विचारण की अधिकारिता है।
कही गई बातों द्वारा अपराध
कभी-कभी अपराध कही गयी बातों द्वारा भी किए जाते हैं। जैसे कि किसी व्यक्ति को विचारण के माध्यम से किसी अपराध को करने के लिए उकसाया जा रहा है तो यह कही गयी बातों द्वारा अपराध है।
मान लीजिए कि कोई व्यक्ति टेलीफोन के माध्यम से किसी व्यक्ति को हत्या करने के लिए उकसा रहा है। यह टेलीफोन के माध्यम से कही गयी बातों द्वारा अपराध है। ऐसी परिस्थिति में दुष्प्रेरण के अपराध का विचारण किस न्यायालय द्वारा किया जाएगा?
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 179 इस संबंध में विस्तृत चर्चा करती है।
इस धारा के अनुसार जब कोई कार्य किसी कही गयी बात द्वारा और उस कही गयी बात के निकले हुए परिणाम के कारण अपराध है, तब ऐसे अपराध की जांच या विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसी बात कही गयी है या ऐसा परिणाम निकला है।
सम्राज्ञी बनाम शिवदयाल मल का एक बड़ा पुराना मामला है। इसमें निर्णय दिया गया है कि जहां कोई व्यक्ति अपने द्वारा कही गयी बातों से अपराध करता है, उस अपराध करवाने हेतु कोलकाता से गोरखपुर पत्र भेजता है और उस पत्र को एजेंट गोरखपुर में प्राप्त कर लेता है। दुष्प्रेरण का अपराध पूर्ण हो जाएगा अतः अपराध का विचारण कोलकाता या गोरखपुर में किया जा सकेगा।
डकैतों के एक गिरोह का गठन 'अ' नामक जिले के भीतर किया जाता है तथा उस गिरोह दौरान डकैती का अपराध ब नामक जिले में किया जाता है। उक्त दशा में भारतीय दंड संहिता की धारा 400 के अधीन अपराध का विचारण अ और ब जिले में स्थानीय अधिकारिता रखने वाले न्यायालय में से किसी भी न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।
रेखा बाई बनाम दत्तात्रेय के वाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने अभिनिर्धारित किया कि मानहानि के अपराध के लिए विचारण उस स्थान के न्यायालय में किया जा सकेगा, जहां मानहानि जनक पत्र लिखकर उसे पत्र पेटी में डाला गया था, यह जहां पत्र प्राप्त हुआ और पढ़ा गया था।
ई-मेल पत्र और दूरसंचार के माध्यम से किए गए अपराध
अनेक अपराध ऐसे होते हैं जो ईमेल, टेलीफोन या पत्र के माध्यम से होते हैं। ऐसे अपराधों का विचारण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 182 के माध्यम से उन स्थानों पर किया जा सकता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर ऐसे पत्र या संदेश भेजे गए है या फिर ऐसे पत्र या संदेश प्राप्त किए गए है।
छल और धोखाधड़ी के मामले में विचारण ऐसे न्यायालय में किया जाता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर छल व धोखाधड़ी में किसी संपत्ति का परिधान किया गया। जैसे कि कोई व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति से कोई धनराशि जो नोटों में है छल द्वारा प्राप्त कर लेता है, ऐसी परिस्थिति में जिस स्थान पर नोटों को प्राप्त किया गया है उस स्थान पर विचारण किया जाएगा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और 495 के अधीन दंडनीय अपराध जो कि दूसरे विवाह पर लागू होते हैं, इनका विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर प्रथम विवाह की पत्नी पति अंतिम बार एक साथ रहे होंगे अर्थात जिस स्थान पर पति और पत्नी अंतिम बार साथ में रहे होंगे उस स्थान के क्षेत्रीय न्यायालय में दूसरे विवाह के अपराध में विचारण किया जाएगा।
यात्रा के दौरान होने वाले अपराधों का विचारण
अनेक बार यह भी होता है कि कई अपराध यात्रा के दौरान घट जाते हैं। जैसे किसी जलयान में या फिर किसी हवाई जहाज में कोई अपराध घट गया। यहां प्रश्न उठता है कि अब ऐसी परिस्थिति में अपराध का विचारण किस न्यायालय की अधिकारिता में होगा? धारा 183 के अंतर्गत विचारण उसी स्थान पर किया जाएगा जिस स्थान पर से यात्रा के दौरान गुजरा जा रहा था या फिर जहां से वाहन चला था।
एक साथ आरोप लगाए जाने वाले अपराधों का विचारण
कुछ अपराध ऐसे होते हैं जो अनेक होते है परंतु अपराधों से मिलकर कोई एक ही अपराध बनता है। इन अनेकों अपराधों का एक ही विचारण किया जाता है। एक ही आरोप तय किए जाते है ऐसे अपराधों का विचारण उस न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जो न्यायालय इन अपराधों में से किसी भी एक अपराध का विचारण करने के लिए सक्षम है।
जैसे बीस लोग मिलकर मुंबई में डकैती करने का प्लान दिल्ली में बनाते है और हथियार इंदौर से खरीद कर मुंबई में डकैती करते हैं, डकैती के दौरान हत्या भी कारित कर देते हैं। ऐसे में आरोपी अनेक हैं और अपराध भी अनेक है, आपराधिक षणयंत्र, डकैती, अवैध हथियार खरीदना, और हत्या का अपराध है। इन सब अपराधों और अपराधियों के लिए एक विचारण होगा। इंदौर, मुंबई और दिल्ली कहीं भी विचारण किया जा सकता है परन्तु साधारण रूप से विचारण वहीं किया जाता है, जहां मुख्य अपराध घटा है और पुलिस द्वारा एफ आई आर दर्ज़ की गयी है अर्थात मुंबई में डकैती और हत्या का मुख्य अपराध हुआ है इसलिए विचारण भी वहीं किया जाएगा।
भारत से बाहर किए गए अपराधों का विचारण
भारतीय दंड संहिता भारत से बाहर अपराध करने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होती है। ऐसी परिस्थिति में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 भारत से बाहर किए गए अपराधों के विचारण के संबंध में न्यायालय का निर्धारण करती है। इस धारा के अनुसार जब कोई अपराध भारत से बाहर भारत के किसी नागरिक द्वारा किया जाता है, अब चाहे वह अपराध खुले समुंद्र या किसी अन्य जगह पर हो।
ऐसे अपराधों का विचार है उस न्यायालय द्वारा किया जाता है, जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर वह व्यक्ति पकड़ाया गया है या पाया गया है।
ओम हेमराजानी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 188 के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए अभिकथन किया है कि कोई व्यक्ति जिसने भारत के बाहर किसी देश में अपराध किया हो और फरार हो गया हो। यह आपत्ति उठा कर दांडिक कार्यवाही से स्वयं को बचा नहीं सकेगा कि भारत के न्यायालय को उसके अपराध के विचारण की अधिकारिता नहीं है। यदि ऐसा व्यक्ति भारत में कहीं भी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध विचारण कार्यवाही उस ही स्थान पर होगी जहां वह पाया जाता है या फिर जहाँ पीड़ित व्यक्ति उसके विरुद्ध कार्यवाही चलाना चाहता है।
परंतु भारत के बाहर किए गए अपराध के विचारण के लिए केंद्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है। किसी भी पूर्व मंजूरी के अभाव में इस प्रकार का कोई विचारण नहीं चलाया जा सकता है।